स्कूटी, पहाड़ और रोड ट्रिप: 12 दिन में स्कूटी से पूरे कुमाऊँ को कर डाला एक्सप्लोर

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Photo of स्कूटी, पहाड़ और रोड ट्रिप: 12 दिन में स्कूटी से पूरे कुमाऊँ को कर डाला एक्सप्लोर by Rishabh Dev

रोड ट्रिप पर जाना हर किसी को पसंद होता है। अगर रोड ट्रिप पहाड़ों की हो तो बात ही अलग है। स्कूटी से पहाड़ों के कच्चे और ख़राब रास्तों पर जाना सही नहीं माना जाता है। मैंने उत्तराखंड की कुमाऊँ यात्रा पर स्कूटी से जाने का प्लान बनाया। लगभग 12 दिन मैं स्कूटी से पहाड़ों में घूमता रहा। रास्ते कई जगह बहुत अच्छे थे तो कई जगह ख़राब थे लेकिन मैंने अपनी यात्रा पूरी की। आइए मैं आपको अपनी कुमाऊँ यात्रा पर लेकर चलता हूँ। कुमाऊँ में कहां गए, क्या देखा और कहां रूके? पूरी जानकारी आपको मिलेगी।

दिन 1: झाँसी से लखनऊ

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मेरी रोड ट्रिप झाँसी से शुरू हुई। झाँसी उत्तर प्रदेश प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े में आता है। झाँसी से लखनऊ की दूरी लगभग 300 किमी. है। बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से होते हुए मैं कानपुर पहुँचा। कानपुर में जाम से दो-चार होने के बाद लखनऊ के लिए निकल पड़ा। कानपुर से लखनऊ पहुँचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। लखनऊ में मैं अपने एक दोस्त के यहाँ रूका और आराम किया।

दिन 2: लखनऊ से टनकपुर

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अगले दिन मैं फिर से सुबह-सुबह से लखनऊ से टनकपुर के लिए निकल पड़ा। लखनऊ से टनकपुर 300 किमी. की दूरी पर है। लखनऊ से सीतापुर और पूरनपुर होते हुए खटीमा की तरफ़ निकल पड़ा। रास्ते में पीलीभीत टाइगर रिज़र्व भी मिला। यहाँ कई सारे लोग सफ़ारी करते हुए दिखे। पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के पास से ही उत्तर प्रदेश की सीमा समाप्त हो जाती है और उत्तराखंड शुरू हो जाता है। कुछ देर में मैं खटीमा होते हुए टनकपुर पहुँच जाता हूँ। टनकपुर में ही एक बजट वाले होटल में रात गुज़ारता हूँ।

दिन 3: टनकपुर से चंपावत

अगले दिन सुबह-सुबह मैं टनकपुर से चंपावत के लिए निकल पड़ा। चंपावत एक जिला मुख्यालय है और समुद्र तल से 1,615 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। टनकपुर से कुछ दूर निकलने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है। रास्ते में एक जगह एक ढाबे पर पराँठे का नाश्ता करता हूँ। पहाड़ों में ढाबों का खाना काफ़ी बजट में होता है। पहली बार घुमावदार रास्ते पर गाड़ी चला रहा था तो काफ़ी संभलकर चला रहा था। टनकपुर से चंपावत लगभग 72 किमी. की दूरी पर है। टनकपुर से चंपावत पहुँचने में लगभग 3 घंटे का समय लगा।

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मैंने पहले सोचा था कि चंपावत के आगे लोहाघाट में रूकूँगा लेकिन चंपावत में एक अनजान व्यक्ति मिला और मैं उसके साथ घूमने के लिए तैयार हो गया। उसके साथ सबसे पहले मैं हिंगलाज देवी मंदिर गया और उसके बाद टी गार्डन भी गया। उसके घर पर ही स्थानीय खाना खाया। रात में वहीं पर ठहरने का प्लान था लेकिन बाद में जिला पंचायत के गेस्ट में ठहरने की व्यवस्था हो गई। जिसका एक रात का किराया 300 रुपए पड़ा।

दिन 4: चंपावत से पिथौरागढ़

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अगले दिन सुबह-सुबह मैं चंपावत से पिथौरागढ़ के लिए निकल पड़ा। रास्ते में एक जगह पड़ी लोहाघाट। वहाँ से 9 किमी. दूर एक मायावती आश्रम है, जहां कभी स्वामी विवेकानंद आए थे। आश्रम को देखने के बाद मैं फिर से पिथौरागढ़ की तरफ़ चल पड़ा। चंपावत से पिथौरागढ़ 72 किमी. की दूरी पर है। रास्ते में एक ढाबे पर रूककर खाना भी खाया। कुमाऊँ यात्रा के दौरान हर जगह थाली में एक चीज ज़रूर मिली, पौदीने की चटनी। चंपावत से पिथौरागढ़ पहुँचने में 4 घंटे का समय लगा। पिथौरागढ़ शहर से कुछ ही दूरी पर कुमाऊँ मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास है, उसमें ही रूके।

दिन 5: पिथौरागढ़

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पिथौरागढ़ उत्तराखंड के सबसे प्रमुख शहरों में से एक है। पिथौरागढ़ समुद्र तल से 1,627 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ में सबसे पहले घूमने के लिए चंडाक हिल्स की तरफ़ निकल पड़ा। रास्ते में वरदानी माता का मंदिर मिला। चंडाक हिल्स में मोस्टमानू मंदिर है। चंडाक हिल्स से पिथौरागढ़ शहर का बेहद शानदार नजारा देखने को मिलता है। दूर-दूर तक हरियाली, पहाड़ और छोटे-छोटे घर दिखाई दिए। चंडाक हिल्स को देखने के बाद मैं पिथौरागढ़ लौट आया। पिथौरागढ़ में एक क़िला भी है जिसे गोरखा क़िला के नाम से जाना जाता है। क़िले बहुत बड़ा नहीं है लेकिन देखा जा सकता है।

दिन 6: पिथौरागढ़ से धारचूला

मेरा प्लान था कि मैं पिथौरागढ़ से सीधा मुनस्यारी निकल जाऊँगा लेकिन काफ़ी लोगाों ने सुझाव दिया कि धारचूला भी देखने लायक़ जगह है। अगले दिन मैं पिथौरागढ़ से धारचूला के लिए निकल पड़ा। पिथौरागढ़ से धारचूला लगभग 95 किमी. है। पिथौरागढ़ से अस्कोट और जौलजीबी होते हुए मैं धारचूला पहुँच गया। धारचूला तक का रास्ता एकदम शानदार है बस आख़िर के 10 किमी. का रास्ता थोड़ा ख़राब है और संभलकर चलने की ज़रूरत है।

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धारचूला में मैं कुमाऊँ मंडल विकास निगम के रेस्ट हाउस में ठहरा। धारचूला वो शहर है जो दो देशों के बीच बंटा हुआ है। महाकाली नदी के एकतरफ भारत है और दूसरी तरफ़ नेपाल है। भारत के हिस्से को धारचूला कहते हैं और नेपाल के हिस्से को दार्चुला के नाम से जाना जाता है। अच्छी बात ये है कि महाकाली नदी पर एक कच्चा पुल बना हुआ है, जिसके माध्यम से दोनों देशों के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। मैं भी नेपाल के दार्चुला गया और कुछ घंटे गुज़ारे। मुझे दोनों देशों के बीच ज़्यादा अंतर नहीं लगा। मुझे तो ऐसा लगा कि भारत में ही घूम रहा हूँ।

दिन 7: धारचूला से मुनस्यारी

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धारचूला और दार्चुला को एक्सप्लोर करने के बाद अगले दिन मैं मुनस्यारी के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले मैं पहुँचा जौलजीबी। जौलजीबी से एक रास्ता सीधा मुनस्यारी के लिए चला जाता है और एक रास्ता पिथौरागढ़ और अस्कोट के लिए जाता है। मैं गौरीगंगा के साथ-साथ मुनस्यारी के लिए निकल पड़ा। धारचूला से मुनस्यारी 96 किमी. की दूरी पर है। रास्ते में मुझे एक हॉट स्प्रिंग भी मिला, जिसमें मैंने नहा लिया। मुनस्यारी तक पहुँचने का रास्ता वाक़ई में बेहद ख़राब है। धूल और पत्थरों वाले रास्ते से होते हुए जब मैं मुनस्यारी पहुँचा तो इस जगह की ख़ूबसूरती देखकर दिल खुश हो गया। मुनस्यारी में एक होटल में रूकने का तय किया।

दिन 8: खलिया टॉप ट्रेक

मुनस्यारी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में आता है और समुद्र तल से 2,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मुनस्यारी में जो सबसे फ़ेमस जगह है वो है, खलिया टॉप ट्रेक। हमने खलिया टॉप जाने का प्लान बनाया। मुनस्यारी से खलिया टॉप द्वार 8 किमी. की दूरी पर है। हम पैदल-पैदल मुनस्यारी से गेट तक पहुँचे। वहाँ 20 रुपए का एंट्री टिकट बनवाया और लाठी भी किराए पर ली। इसके बाद चल पड़े खलिया टॉप के ट्रेक पर। खलिया टॉप का ट्रेक 6 किमी. का है।

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रास्ते में एक जगह कैंपिंग और गेस्ट हाउस भी है जिनमें आप ठहर सकते हैं। यहाँ पर काफ़ी महँगे दाल-चावल खाए और निकल पड़े खलिया टॉप की तरफ़। जैसे-जैसे ऊपर चलते जा रहे थे, काफ़ी थकान हो रही थी। काफ़ी देर बाद हम खलिया टॉप पहुँचे और कुछ देर रूकने के बाद ज़ीरो प्वाइंट की तरफ़ बढ़ चले। रास्ते में काफ़ी बर्फ़ मिली, जिसका हमें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था। यहाँ से जो नजारा दिखा वो वाक़ई में देखने लायक़ है। उसी दिन में हम वापस मुनस्यारी लौट आए।

दिन 9: मुनस्यारी से बागेश्वर

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मुनस्यारी में अगले दिन पहले हम नंदा देवी मंदिर के दर्शन करने गए। उसके बाद मुनस्यारी से चौकोड़ी की तरफ़ निकल पड़ा। रास्ते में एक जगह बिर्थी वाटरफॉल मिला। बेहद शानदार झरने को देखने के बाद हम फिर से चौकोड़ी के लिए निकल पड़ा। पहले हम चौकोड़ी रूकने वाले थे लेकिन फिर प्लान बना कि चौकोड़ी नहीं रूकेंगे और बागेश्वर चलेंगे। शाम होते-होते हम बागेश्वर पहुँच गए। बागेश्वर में हम कुमाऊँ मंडल विकास निगम के पर्यटक आवास में रूके।

दिन 10: बागेश्वर से कौसानी

बागेश्वर में एक बेहद प्रसिद्ध मंदिर है, बागनाथ मंदिर। सुबह-सुबग बागनाथ मंदिर और बाणेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद हम कौसानी के लिए निकल पड़े। बागेश्वर से कौसानी सिर्फ़ 37 किमी. की दूरी पर है। रास्ते में एक बेहद लोकप्रिय बैजनाथ मंदिर भी है। हमने बैजनाथ मंदिर के भी दर्शन किए और फिर कौसानी के लिए निकल पड़े। बागेश्वर से 3 घंटे के भीतर कौसानी पहुँच गए।

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समुद्र तल से कौसानी की ऊँचाई 2100 मीटर है। मैं कौसानी में महात्मा गांधी आश्रम में रूका, जिसे अनासक्ति आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। इस आश्रम में महात्मा गांधी उत्तराखंड प्रवास के दौरान ठहरे थे। कौसानी में इसके अलावा मैंने सरला आश्रम की यात्रा की और चाय के बाग़ान भी देखे। कौसानी से हिमालय की कई चोटियों के दर्शन होते हैं जिसमें पंचाचुली और त्रिशूल शामिल है। कौसानी उत्तराखंड के उन हिल स्टेशनों में से एक है। जहां देखने को काफ़ी कुछ ना हो लेकिन खूबसूरत चारों तरफ़ दिखाई पड़ेगी।

दिन 11: कौसानी से रानीखेत

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कौसानी को देखने के बाद अगले दिन मैं रानीखेत के लिए निकल पड़ा। रानीखेत अल्मोड़ा ज़िले में आता है। कौसानी से रानीखेत लगभग 60 किमी. की दूरी पर है। शुरूआत में रास्ता सामान्य मिला लेकिन बाद में एकदम चढ़ाई शुरू हो गई। रास्ते में मैंने एक जगह नाश्ता भी किया। समुद्र तल से रानीखेत की ऊँचाई 1,869 मीटर है। कौसानी से रानीखेत पहुँचन में 3-4 घंटे का समय लगा। रानीखेत पहुँचने के बाद मैं सबसे पहले कुमाऊँ मंडल विकास निगम पहुँचा और जमकर आराम किया। शाम को रानीखेत शहर को देखा लेकिन कोई ख़ास जगह को देखने नहीं गया।

दिन 12: रानीखेत से हल्द्वानी

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ये मेरी कुमाऊँ यात्रा का आख़िरी दिन था। रानीखेत से हल्द्वानी की दूरी लगभग 90 किमी. है। नैनीताल, कैंची धाम और मवाली होते हुए मैं हल्द्वानी पहुँचा। हल्द्वानी और काठगोदाम वो जगह हैं, जहां से आपको दिल्ली या अन्य जगह पर जाने के लिए ट्रेन मिल जाएगी। मैंने अपनी स्कूटी काठगोदाम रेलवे स्टेशन से पार्सल कर दी। इस कुमाऊँ यात्रा में कुछ जगहें छूट गईं, जिनको अगली यात्रा में ज़रूर देखा जाएगा। लगभग 12 दिन लगातार घूमना एक बढ़िया टॉस्क रहा और नईं-नईं जगहों को एक्सप्लोर करने का मौक़ा मिला।

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