चुनिंदा दरगाहों की दिलचस्प कहानियाँ: यहाँ सब मन्नत पूरी होती हैं....

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कई जगहें होती हैं जहाँ हम नज़ारों के लिए जाते हैं लेकिन कई जगहें होती हैं जहाँ हम अनुभव के लिए सफर करते हैं। किसी के लिए ऐसी जगहें मठ होते हैं, किसी के लिए मंदिर तो किसी के लिए दरगाह। अगर आप भी दरगाह के अनुभव को जीने की तलाश में हैं तो  ये आर्टिकल आप के लिए है।

इस्लाम के सूफी संत और फकीरों की कब्र पर एक स्मारक बनवा दिया जाता है। इसे दरगाह कहते हैं। दरगाह दो शब्दों से मिलकर बना है, दर "चौखट या दरवाज़ा", और गाह "जगह "।

दरगाह यानी वो जगह जहाँ आपको अपनी प्रार्थनाओं को भेजने का सही दरवाज़ा मिलता है। या यूँ कहें कि वो चौखट या दरवाज़ा जहाँ से हम अपनी दुआ को खुदा तक पहुँचा सकते हैं। तभी हमें दरगाहों में मन्नत के धागे बंधे दिखते हैं। लोग चादरें और फूलों की टोकरियाँ चढ़ाते हैं। लोगों को ये विश्वास है कि जिस फ़क़ीर को खुदा मिल गए, वो लोगों की दुआओं को भी खुदा तक ज़रूर पहुँचायेंगे।

उत्तर भारत में कई ऐसी दरगाहें हैं, जिनका इतिहास बड़ा ही रोचक है। आईये इनमें से कुछ दरगाहों की कहानी को जानें :

पिऱन खलियार शरीफ दरगाह, हरिद्वार

हरिद्वार की इस दरगाह में अलाउद्दीन अली अहमद साबिर खलिआरी की कब्र मौजूद है। ये सूफीवादी संत चिश्तिया सम्प्रदाय से थे। चिश्तिया सम्प्रदाय अफगानिस्तान के एक छोटे से गाँव चिश्त से उपजा है। इस सम्प्रदाय का मूलमंत्र है प्यार, सहनशीलता और खुलापन।

पीर खलिआरी की अम्मी जमीला खातून बाबा फरीद की बड़ी बहन थी। बचपन में ही जमीला ने खलिआरी की ज़िम्मेदारी बाबा फरीद को सौंप दी थी। बाबा फरीद ने पीर खलिआरी को रसोई के लंगर के काम में लगा दिया। कुछ दिनों बाद पीर का शरीर दुर्बल हो गया, और इस बारे में जमीला ने बाबा फरीद से शिकायत की। बाबा ने बताया कि पीर तो रसोई में काम कर रहे है और चाहे जितना खा सकते हैं। जब पीर से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें रसोई में काम करने का ही हुक्म मिला था, खाने का नहीं। खाने के लिए तो वो अपने खाली समय में पास के जंगल में जाया करते थे और वहाँ जो मिल जाए उसी से गुज़र करते थे।

पीर की इस मिताहारिता को देख कर बाबा फरीद ने उन्हें सबीर नाम दिया, जिसका मतलब है धैर्यवान।

दरगाह क़ुतुब साहिब दिल्ली

ये दरगाह पीर सैय्यद मुहम्मद बख्तियार अल हुस्सैनी की है। पीर सैय्यद मुहम्मद चिश्ती सम्प्रदाय के सूफी संत थे। ये ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के अग्रज थे।

पीर बाबा मम्लूक राजा इल्तुतमिश के शासनकाल में सन 1211 -1236 में दिल्ली आये थे। इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का संस्थापक बादशाह माना जाता है।

पीर की दरगाह दिल्ली के मेहरौली इलाके में बनी है। दरगाह में दुआ पढ़ने हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई जैसे अलग-अलग धर्मों के लोग आते हैं।

हज़रतबल श्राइन श्रीनगर

कहते हैं कि हज़रतबल श्राइन में मुहम्मद साहब का बाल रखा है। मुहम्मद साहब के इस अवशेष की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

कहते हैं कि मुहम्मद साहब के वंशज सैय्यद अब्दुल्लाह ये अवशेष लेकर सऊदी अरब के मदीना से भारत में हैदराबाद के पास बीजापुर में आकर बस गए थे। अब्दुल्लाह की मौत के बाद ये अवशेष आपके बेटे सैय्यद हामिद को मिला। मुग़ल लूट-पाट के बाद अपनी संपत्ति गँवा देने पर हामिद ने अवशेष को कश्मीरी व्यवसायी ख्वाजा नूर उद दिन ऐसे आइशै को बेच दिया।

जब मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब को इस बारे में पता चला तो उन्होंने कश्मीरी व्यवसायी को दिल्ली में कैद कर लिया। व्यवसायी की कैद में मौत हो गयी, जिसके बाद औरंगज़ेब को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने व्यावसायी का शव और मुहम्मद साहब का अवशेष ससम्मान व्यवसायी की बेटी इनायत बेगम को भिजवा दिया, जिन्होनें फिर इस श्राइन की स्थापना की।

अजमेर शरीफ राजस्थान

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में है, जिसे अजमेर शरीफ भी कहते हैं।

ये ईरानी संत दक्षिण पूर्वी एशिया में घूमते रहे और आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करते रहे। फिर ये राजस्थान के अजमेर प्रांत में आये और यहीं बस गए।

चिश्ती सम्प्रदाय की सीख लोगों तक पहुँचाने के लिए सबसे पहले ख्वाजा जी ने ही संगीत का सहारा लिया।

फिल्म जोधा अकबर में ए. आर. रेहमान का गाना "ख्वाजा मेरे ख्वाजा" मोईनुद्दीन चिश्ती को पेश है।

शेख सलीम चिश्ती दरगाह फतेहपुर सीकरी

बादशाह अकबर ने शेख सलीम चिश्ती के ठिकाने सीकरी आकर पीर से एक वारिस की दुआ मांगी थी। जल्द ही बादशाह को तीन बेटों की सौगात मिली।

ख़ुशी में बादशाह ने पीर के ठिकाने के आस-पास पूरा शहर ही बसा दिया, जिसे फतेहपुर सीकरी के नाम से जाना जाता है।

आज पानी की किल्लत की वजह से फतेहपुर सीकरी शहर उजड़ गया है, मगर फिर भी यहाँ के स्मारक उसी मुग़ल वास्तुकला की खूबसूरती को अपने में समेटे हैं।

यहाँ सलीम चिश्ती की दरगाह के दक्षिण में बुलंद दरवाजा, दायीं तरफ बादशाही दरवाज़ा और बायीं तरफ जामा मस्जिद है।

फतेहपुर सीकरी का ऐतिहासिक शहर उत्तरप्रदेश के आगरा जिले में है।

मुस्लिम सम्प्रदाय के जाने-माने संतों की कहानियाँ आपको अच्छीं लगी ? धर्म चाहे जो भी हो, हमें सीखने का मौका पूरा मिलता है। दरगाहों में जाइये, चादर चढ़ाइये, मन्नत के धागे बांधिए, और परवरदिगार को सुपुर्द क़व्वाली में डूब कर जाइये।

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