अभी एकाध महीने पहले ही मेरा किसी काम से भीलवाड़ा से राजसमंद के भीम गाँव की ओर जाना हुआ। भीम के पास ही गोरम घाट भी पड़ता हैं। भीम असल में भीलवाड़ा की बॉर्डर पर ही हैं। सारा काम निपटाने में हमे उधर काफी घंटे हो गए थे तो वापसी के वक्त हम लोगों को भूख लगने लगी।अचानक निगाह पड़ी एक रेस्टोरेंट पर ,जिसकी छत पर बड़ी सी राम-सीता और हनुमान जी की लगी मूर्ति दूर से ही नजर आ रही थी।हमने यही गाडी रोक दी।
आसमान में काले बादल हो रहे थे ,तेज ठंडी हवा भी बह रही थी। तो हम अंदर जाने की बजाय ,बाहर लोहे के चद्दर से ढके प्रांगण में पलंग पर बैठ गए।पगड़ी पहने एक सज्जन ने हमसे आर्डर लिया। 15 मिनट उन्हें खाना तैयार करने में लगा। तब तक हम बाहर पलंग पर ही बैठे थे। हम बाहर ही खाना खाना चाहते थे ,ठंड हवा में। पर धुल उड़ने के कारण हम अंदर चले गए। अंदर जैसे ही हम बैठे और घी में चोपड़ी हुई शानदार रोटियां और सब्जी हमारे सामने रख दी।
अब तक तो ठीक था। लेकिन सबसे अच्छी चीज जो हमे लगी यहाँ वो हैं उन्ही सज्जन का स्वभाव। हमारा कुर्सी पर बैठने से लेकर खाना खत्म करने तक ,पूरा आदर सत्कार से हमको इन्होने खाना खिलाया। इन्ही की धर्मपत्नी ही रोटियां बना रही थी तवे पर। तो खाना तो वाकई घर जैसा ही था।यह सज्जन रोटियों पर भरपूर घी लगवा रहे थे। चेयर से तो हमे उठने ही नहीं दे रहे थे - 'और एक रोटी खानी पड़ेगी ' ऐसा कह-कह कर सभी को 2 -2 रोटियां ज्यादा खिला दी। हम मन करते उस से पहले ही पीछे से आकर हमारी थाली में और रोटी रख जाते। दोपहर का समय था ,सब्जी भी केवल हम लोगों के लिए ही बनायीं थी तो सारी एक्स्ट्रा सब्जी भी ऐसा नहीं कि रात को अन्य गेस्ट के लिए बचा ली ,उन्होंने सारी ही सब्जी ही हमे रख दी। हमने दो फुल प्लेट सब्जी आर्डर की थी ,इन्होने लगभग 3 प्लेट्स सब्जी हमे रख दी और बोला - "आपके लिए ही बनायीं हैं ,आप ही को खत्म करनी हैं। सब एक्स्ट्रा मेरी तरफ से रहेगी। "
खाने के साथ में ही एक घड़ा भर कर छाछ रख दी और कहा "जितनी आप पीना चाहे पीजिये"। इनके बात करने का अंदाज ऐसा था कि इनकी आत्मीयता देख कर जो भूखा ना हो वो भी खाना खा ले। हमे ऐसा लग रहा था जैसे कि हम किसी के यहाँ फंक्शन में खाना खाने आये हैं। बिल भी एक्सपेक्टेशन से काफी कम आया। काफी तो इनकी तरफ से एक्स्ट्रा ही हो गया। इसीलिए हमने भी अपनी ओर से जो उचित अमाउंट बना वो अदा किया। थोड़ी देर इनसे बाते करके ,कार में जैसे ही हम बैठने लगे ,ये फिर हमारे पास आये और हमे 'मीठा पान मसाला ' के पैकेट पकड़ा दिए।
वाकई में ,हमने भीलवाड़ा लौटते हुए इनके बारे में कई देर तक बाते की।मैं भी बिजनसमेन हूँ ,सोच रहा था -"उचित व्यवहार और थोड़े अपनेपन से कितना आसान हो जाता हैं व्यापार ".... हमने सोचा हुआ हैं जल्दी इधर दाल बाटी खाने जाना हैं।
जब ऐसी आत्मीयता जुड़ जाती हैं किसी चीज को खरीदते समय तो ज्यादा दिया हुआ पैसा भी नहीं अखरता। वही, कई बार महंगे फाइव स्टार होटल्स में इतने घटिया अनुभव रहे कि क्या बताये। कई बार तो चाय भी इतनी देर में आती हैं कि लगता हैं कि कही कुक पहाड़ों पर चायपत्ती तोड़ने तो नहीं चला गया।
पता :श्रीराम होटल रेस्टोरेंट एन्ड गेस्ट हाउस ,बेमाली चौराहा ,करेड़ा ,भीलवाड़ा (राज।)
-Rishabh Bharawa