सिर्फ़ ₹2500 में किया चोपटा-तुंगनाथ-चंद्रशिला का सफर!

Tripoto

चोपटा-तुंगनाथ ट्रेक उन लोगों के लिए बढ़िया है, जो भरी सर्दी में उत्तराखंड की ऊँचाइयों में ट्रेक नहीं करना चाहेंगे। दिसंबर में यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है, और रास्ते में बर्फ-ही-बर्फ जमी मिलती है।

चोपटा-तुंगनाथ ट्रेक की एक और खासियत है कि यहाँ तुंगनाथ महादेव का मंदिर है, जो 5000 साल पुराना दुनिया का सबसे ऊँचा महादेव मंदिर है। ये पंच केदारों जैसे केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर में से एक है।

आसानी से किए जा सकने वाले इस ट्रेक पर आपको गढ़वाल और कुमाऊँ पर्वतों की चोटियाँ देखने को मिलेंगी। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी चंद्रशिला चोटी है, जिसकी ऊँचाई 4100 मीटर, यानी 13500 फ़ीट है। तो चलिए सफर शुरू करते हैं!

श्रेय: आकाश परमार | तुंगनाथ मंदिर

Photo of तुंगनाथ, Rudraprayag, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Day 1

देहरादून

समुद्रतल से 1400 फ़ीट ऊँचे देहरादून में ट्रेकर्स, प्रेमी जोड़े, दोस्त, परिवारिक लोग सभी आते हैं। पहला कारण ये है कि यहाँ का मौसम साल भर बढ़िया रहता है और दूसरा ये कि उत्तराखंड में कहीं भी घूमना हो, देहरादून बेस कैम्प की तरह है।

ये भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और वायुमार्ग से जुड़ा हुआ है। यहाँ आने वाली फ्लाइट यहाँ के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर उतरती है। देहरादून से बस पकड़ कर रुद्रप्रयाग जा सकते हैं और फिर वहाँ से शेयर कैब उक्खीमठ या चोपटा पहुँचा देगी।

17 नवम्बर सुबह 8 बजे हम देहरादून से निकले। देहरादून से चोपटा करीब 250 कि.मी. का रास्ता है, जिसमें 8-9 घंटे का वक़्त लगता है। रस्ते में ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर और रुद्रप्रयाग जैसी प्यारी जगहें भी आती हैं, जहाँ आप चाहें तो 15-20 मिनट के लिए रुक सकते हैं। हम तो रुके थे। ऐसे रुकते-रूकाते शाम साढ़े सात बजे हम आखिरकार चोपटा पहुँच गए।

ऋषिकेश

पहला स्टॉप: ऋषिकेश- नाश्ते के लिए 30-35 मिनट

ऋषिकेश को भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में यहाँ के योग और आध्यात्म के माहौल के कारण योग कैपिटल के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं लंकापति ब्रह्मराक्षस रावण का वध करने के बाद लगा ब्रहम ह्त्या के पाप का प्रायश्चित भगवान श्री राम ने ऋषिकेश में ही किया था।

यहाँ महर्षि महेश योगी का आश्रम भी है, जिसे अब बीटल्स आश्रम के नाम से जाना जाता है। यहाँ जाने-माने अमरीकी बैंड बीटल्स ने कई हफ़्तों तक रहते हुए ध्यान करना सीखा था। ये आश्रम अब काफी मशहूर पर्यटन स्थल है। इसके अलावा गंगा घाट और लक्ष्मण झूला भी देखने लायक जगहें हैं। ऋषिकेश में कई तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स होते हैं, मगर रिवर राफ्टिंग यहाँ की खासियत है।

श्रेय: आकाश परमार | रिवर राफ्टिंग ऋषिकेश

Photo of ऋषिकेश, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

देव प्रयाग

दूसरा स्टाप- देवप्रयाग- 15-20 मिनट के लिए

इस पवित्र तीर्थ स्थान पर अलकनंदा और भागीरथी नदी मिलकर गंगा का स्वरुप लेती हैं। इस पवित्र संगम का दर्शन करने पूरे देश भर से तीर्थयात्री यहाँ आते हैं।

श्रेय: आकाश परमार |भागीरथी -अलकनंदा संगम

Photo of देवप्रयाग, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

श्रीनगर

तीसरा स्टॉप- श्रीनगर- लंच के लिए 1 घंटा

ये ऐतिहासिक शहर हिमालय की तलहटी में अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। सर्दी के समय इसे जम्मू-कश्मीर की राजधानी बना दिया जाता है। यहाँ शिव के दो मंदिर है : पहला कमलेश्वर महादेव का और दूसरा किल्किलेश्वर महादेव का जिसकी स्थापना स्वयं आदि शंकराचार्य ने की थी। श्रीनगर से 19 कि.मी. दूर धारी देवी का मंदिर भी ख़ास है।

लंच करने के लिए श्रीनगर सही जगह है, क्योंकि यहाँ कई तरह के शाकाहारी और मांसाहारी भोजनालय मिल जाएँगे, व सड़क किनारे खाने के ठेले भी हैं।

श्रेय: आकाश परमार |अलकनंदा नदी

Photo of अलकनंदा नदी, Uttarakhand by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

रुद्रप्रयाग

आखिरी स्टॉप: रुद्रप्रयाग- चाय-नाश्ते के लिए 15-20 मिनट

चोपटा पहुँचने से पहले आखिरी पड़ाव है रुद्रप्रयाग। इस तीर्थस्थल पर अलकनंदा की धारा में मंदाकिनी नदी मिलती है। इस संगम के दर्शन करने के लिए भीड़ लगी रहती है क्यूंकि रुद्रप्रयाग पाँच प्रयागों में से एक है और बदरीनाथ व केदारनाथ के रास्ते में आता है।

श्रेय: आकाश परमार |अलकनंदा-मंदाकिनी संगम

Photo of रुद्रप्रयाग, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

चोपटा हिल स्टेशन

1०-11 घंटे ड्राइव करने के बाद हम अगस्तामणि-उक्खीमठ होते हुए चोपटा पहुँच गए।

यहाँ आप या तो कैम्प में रुकते हैं, या लॉज में। कैम्प ₹500-700  में मिल जाएगा, और लॉज ₹800  में जिसमें 4 लोग आराम से रुक सकते हैं।

यहाँ चोपटा में कुछ गिनी-चुनी 5-6 दुकाने होंगी, जो सिर्फ ख़ास ज़रुरत का सामान बेचती हैं। ये दुकानें भी रात 9 बजे तक ही खुली रहती हैं।

नवम्बर में यहाँ का तापमान 5-6 डिग्री सेल्सियस हो जाता है और दिसंबर की कड़ाके की सर्दी में -5 और -6 भी हो जाता है। तो महीने के हिसाब से गर्म कपड़े लेकर ही यहाँ आएँ। और हाँ, यहाँ बिजली के कनेक्शन नहीं है। दिन में सौर ऊर्जा से बिजली इकट्ठी करके सिर्फ रात में काम में ली जाती है, इसलिए अपने मोबाईल-कैमरे वगैरह चार्ज करने के लिए पावर बैंक साथ में ले लें। वैसे तो यहाँ नेटवर्क नहीं आता, मगर कुछ कंपनियों के सिग्नल कभी-कबार दिख जाते हैं।

देवरिया ताल

समुद्रतल से 2438 मीटर ऊँची साफ़ पानी की इस झील में आस-पास के चौखम्बा पहाड़ों की झलक मिलती है। रात को आसमान में इतने तारे झिलमिलाते हैं, कि शहरों की रौनक भूल जाओगे।

श्रेय: आकाश परमार | तुंगनाथ मंदिर

Photo of देवरिया ताल, Uttarakhand by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

दूसरे दिन हमने सुबह साढ़े तीन बजे  से ट्रेकिंग करना शुरू कर दिया, क्योंकि लॉज के मालिक ने ऊपर चोटी से सूर्योदय देखने का सुझाव दिया था।

अगर आप भी सुबह जल्दी चढ़ाई शुरू करना चाहते हैं तो कुछ बाते याद रखिएगा :

1. इतनी सुबह घुप अँधेरा रहता है, तो अपने साथ टॉर्च लेकर निकलिएगा।

2. मज़बूत पकड़ वाले जूते पहनियेगा क्योंकि नवम्बर में यहाँ ट्रेक पर बर्फ मिलेगी।

3. रात को ठण्ड और बढ़ जाती है। इसलिए अपने साथ पहनने के एक जोड़ी कपड़े और रख लीजियेगा।

4. ठण्ड से सिर का बचाव करना ज़रूरी है, इसलिए चढ़ाई करते हुए सिर पर कुछ बाँध लीजियेगा।

5. सूर्योदय से इतना पहले कोई दुकाने नहीं खुली होती, इसलिए अपने साथ पानी की बोतलें और खाने का सामान रख लीजियेगा।

6. जिस लॉज में आप रुके हैं, वहाँ से अपने लिए वाकिंग स्टिक ले लीजियेगा।

7. सबसे ज़रूरी बात ये है कि अपना कचरा अपने पास रखिए और ट्रेक से नीचे आकर डिब्बे में फेंकिए। यही सभ्यता की निशानी है।

एंट्री शुल्क : ₹150 , मगर स्टूडेंट के लिए 50 प्रतिशत डिस्काउंट

नोट : याद रखिए कि एंट्री करते हुए ही आपसे साफ़-सफाई रखने की एवज में ₹500 सिक्योरिटी के रूप में रख लिए जायेंगे। ट्रेक पर आगे बढ़ने से पहले आपके पास जो भी प्लास्टिक का सामान है उसकी गिनती होगी, और अगर वापिस लौटने पर आपके पास प्लास्टिक काम मिला तो ₹4500 का अतिरिक्त जुर्माना लिया जायेगा। तो साफ़ सफाई नहीं रखने का कुल जुरमाना हुआ ₹रुपये।

लेकिन चूंकि हमने सुबह मुँह -अँधेरे चढ़ाई शुरू की थी, इसलिए हमें एंट्री गेट पर कोई नहीं मिला। मगर लौटते हुए गेट पर हमसे एंट्री शुल्क लिया गया और पूछा गया कि हम अपना कूड़ा वापिस लाये हैं या नहीं।

4.5 कि.मी. लम्बे ट्रेक पर तुंगनाथ मंदिर तक तो रेलिंग लगी हुई है। रास्ते में बड़े-बड़े हरी घास के चारागाह और ऊँचे-ऊँचे बर्फीले हिमालय पर्वत बड़े सुन्दर लगते हैं।

तुंगनाथ मंदिर के बाद 1.5 कि.मी. की चढ़ाई और बचती है, जिसमें न तो रेलिंग लगी है, और ना ही पक्का रास्ता बना है। इसलिए बड़ी ध्यान से चढ़ियेगा। अगर पगडंडी छूट भी जाए तो कोई बात नहीं, कुछ दूर चलने पर फिर से मिल जाएगी।

श्रेय: आकाश परमार

Photo of सिर्फ़ ₹2500 में किया चोपटा-तुंगनाथ-चंद्रशिला का सफर! by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

कुछ ही घंटे और चढ़ने के बाद आप ऊपर चोटी पर पहुँच जाते हैं, जहाँ से उगते सूरज की लालिमा से पूरा आसमान नारंगी हो गया दिखता है। चारों और नज़र घुमा कर देखते हैं तो कुमाऊँ और गढ़वाल पर्वतों का बड़ा मनोरम दृश्य दिखता है। नंदादेवी, नंदाघुंटी, त्रिशूल, द्रोणगिरि, चौखम्बा और केदार पर्वत की चोटियों के दर्शन होते हों। आप अपने सभी संगी साथियों के साथ भाव-विभोर होकर ये नज़ारा देखते हैं।

कुछ देर धूप सेकने के बाद हम सभी नीचे की ओर ट्रेक करने लगे। वैसे तो नीचे उतरने में 2 घंटे से ज़्यादा नहीं लगता, मगर रुकते-रूकाते फोटो खींचते वापिस आते हुए हमें 3 घंटे से ज़्यादा ही लग गए। लॉज पर वापिस आने के बाद हमने शाम को वहीं आग जलाई और गाने सुनते हुए आराम किया।

लेकिन अगर आपको रात भर आराम की ज़रुरत नहीं तो लोग में रुकने की क्या ज़रुरत। फिर तो देवरिया ताल पहुँच कर वहीं तम्बू में रुकिए। गाँव से देवरिया ताल करीब 2-3 कि.मी.  की ट्रेकिंग करने के बाद आता है। या चाहें तो चोपटा में भी आराम कर सकते हैं।

Day 3

आज हम सुबह जल्दी ही चोपटा से रवाना हो गए। 9 बजे चोपटा से चले थे, ऋषिकेश में खाना खाया और शाम 7 बजे फिर से देहरादून लौट आए।

श्रेय: आकाश परमार 

Photo of सिर्फ़ ₹2500 में किया चोपटा-तुंगनाथ-चंद्रशिला का सफर! by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

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