छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय 10 जनवरी को अपनी शानदार यात्रा के 100 साल पूरे कर रहा है।
यह न केवल संग्रहालय के इतिहास में बल्कि देश के सांस्कृतिक आंदोलन में भी मील का पत्थर है। यह घटना अतीत का विश्लेषण करने और भविष्य की घटनाओं की योजना बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत का मुंबई शहर ऐतिहासिक तौर से काफी ज्यादा मायने रखता है। हर साल यहां लाखों की तादात में पर्यटक देश-दुनिया से आते हैं।इस खास लेख में जानिए मुंबई स्थित एक ऐसे खास प्राचीन म्यूजियम के बारे में जो भारत की एक अलग दास्तां बयां करता है। जिसके माध्यम से आप भारतीय इतिहास के कई पहलुओं को आसानी से समझ सकते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय
छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय न सिर्फ मुंबई बल्कि भारत के सबसे खास म्यूजियम में गिना जाता है। इस संग्रहालय का प्राचीन नाम प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम है, जिसका नाम बदलकर वीर शिवाजी के नाम पर रख दिया गया। इस म्यूजियम का निर्माण 20 वीं शताब्दी के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड VIII की भारत यात्रा के सम्मान में किया गया था। आकर्षक वास्तुकला से निर्मित यह म्यूजियम गेटवे ऑफ इंडिया के पास दक्षिम मुंबई के ह्रदय स्थल में स्थित है। 1990-2000 के दौरान इस संग्रहालय का नाम बदलकर मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी के नाम पर रखा गया।
छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय गार्डन के अंदर स्थित है, जिसे वर्तमान में जिजामाता उद्यान के नाम से जाना जाता है। गोथिक वास्तुकला से युक्त इस भवन को कुछ साल पहले मुंबई नगर निगम द्वारा फिर से सजीव करने की कोशिश की गई थी।
म्यूजियम का इतिहास
इतिहास से जुड़े पन्ने बताते हैं कि 1904 में बॉम्बे के कुछ प्रमुख नागरिकों ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय उनकी स्मृति में एक संग्रहालय बनाने की सोची। जिसके लिए 14 अगस्त 1905 समिति ने एक प्रस्ताव पारित भी किया। 11 नवंबर 1905 को इस संग्रहालय को बनाने का काम शुरू किया गया। इन संग्रहालय को बनाने के लिए अलग-अलग जगहों से भारी अनुदान भी आए।
परिणामस्वरूप 1915 में यह संग्रहालय बनकर तैयार हआ, जिसका नाम प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम रखा गया। बताते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस संग्रहालय का इस्तेमाल बाल कल्याण केंद्र और मिलिट्री अस्पताल के रूप में भी किया गया। एक म्यूजियम के रूप में इसका उद्घाटन वायसराय लॉयड जॉर्ज की पत्नी लेडी लॉयड के हाथों 10 जनवरी 1922 में किया गया।
वास्तुकला
यह विशाल संरचना एक अद्भुत वास्तुकला का नमूना है। इस म्यूजियम को इंडो-सरसेनिक शैली में बनाया गया था। जिसमें मुगल, मराठा और जैन वास्तु शैलियों का भी इस्तेमाल किया गया है। यह संग्रहालय खजूर के पेड़ों और खूबसूरत रंग-बिरंगे फूलों से घिरा हुआ है। संग्रहालय भवन 2 एकड़ की जमीन पर बनाया गया है। यह संग्रहालय तीन मंजिला है जिसका आतंरिक आकार कुछ चौकोर है। इसकी छत को गुंबदनुमा आकार दिया गया है।
म्यूजियम का प्रवेश द्वार देखने लायक है। आंतरिक संरनचा में आप बारीक कारीगरी का काम देख सकते हैं। संग्रहालय के इंटीरियर में 18 वीं शताब्दी के वाडा ( मराठा हवेली) के स्तंभ, रेलिंग और बैल्कनी को शामिल किया गया है।
इस विशाल संग्रहालय में 50,000 से ज्यादा कलाकृतियों को जगह दी गई है। यहां प्रदर्शित की गई प्राचीन वस्तुओं को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। एक कला, पुरातत्व और प्राकृतिक इतिहास। यह एक अद्भुत संग्रहालय है जिसमें एक वानिकी विभाग भी शामिल है। यहां आप बॉम्बे प्रेसिडेंसी (ब्रिटिश इंडिया) द्वारा उगाए गए लकड़ी के नमूनों के साथ खनिज, पत्थरों और जीवाश्म के भूवैज्ञानिक संग्रहों को भी देख सकते हैं।
यहां आप समुद्री विरासत गैलरी, जो नेविगेशन संबंधित वस्तुओं को प्रदर्शित करती है। 2008 में संग्रहालय ने दो नई गैलरियों को जोड़ा गया था जिसमें कार्ल और मेहेरबाई खंडलावाला संग्रह और "भारतीय सिक्कों को प्रदर्शित किया गया है।
कैसे पहुँचें
प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम तक आप दो प्रमुख स्थानों छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सेंट्रल रेलवे) और चर्चगेट (पश्चिमी रेलवे) से 20 मिनट की पैदल दूरी का सफर तय कर पहुंच सकते हैं। आप इन निकटतम स्टेशनों से बस या टैक्सी के द्वारा भी संग्रहालय तक पहुंच सकते हैं।
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