अंडमान मुख्य रूप से सिर्फ द्वीपों और समुद्र तटों के लिए ही जाना जाता है, परंतु इनके अलावा अंडमान बहुत सारी एतिहासिक धरोहरों को भी समेटा हुआ है, जिनमें सबसे प्रसिद्द सेल्युलर जेल के बारे हर कोई जानता ही है। जेल दिखलाने के बाद मैं आपको एक ऐसी जगह ले जा रहा हूँ जिसके बारे लोग आज भी बहुत कम ही जानते हैं, लेकिन फिर भी यह बहुत महत्वपूर्ण और रोचक जगह है।
चाथम आरा मिल (Chatham Saw Mill)
अंडमान एक ऐसी जगह है जहाँ समुद्र तटों के किनारे सिर्फ बालू और कुछ नारियल-केले के पेड़ मात्र नहीं होते, बल्कि यहाँ तो काफी घने जंगल पाए जाते हैं, जो एक से बढ़कर एक बेशकीमती लकड़ियाँ पैदा करने वाले वृक्षों से भरे हैं। यही कारण है की अंग्रेजी शासन के समय से ही यहाँ का लकड़ी उद्योग काफी विकसित रहा है। पोर्ट ब्लेयर से सटे हुए चाथम द्वीप पर है एशिया की सबसे पुरानी आरा मशीन (saw mill). इसे चाथम आरा मिल(Chatham Saw Mill) के नाम से जाना जाता है और यह सौ साल से भी अधिक पुरानी है। सच में यहाँ लकड़ी की जो कारीगिरी की जाती है वो किसी जादूगिरी से कम नहीं है।
चाथम द्वीप पोर्ट ब्लेयर से लगभग सटा ही है और वर्तमान में एक बड़े से सड़क-पुल के द्वारा जुड़ा है। चाथम पर एक जेट्टी भी है जहाँ से बम्बूफ्लैट द्वीप आने-जाने के लिए हर दस-पंद्रह मिनट में सरकारी फेरी की सुविधा है। फेरी मार्ग से इस बम्बूफ्लैट द्वीप की दूरी सिर्फ दस मिनट की होती है जबकि पोर्ट ब्लेयर से एक सड़क मार्ग भी है जिसमें दो घंटे का वक़्त लग जाता है। दक्षिण अंडमान की सबसे ऊँची चोटी माउंट हैरियट इसी द्वीप पर है।
सेल्युलर जेल देखने के बाद मैंने चाथम की एक बस पकड़ी और सीधे आरा मिल के दरवाजे पर ही उतर गया। अन्दर जाने के लिए टिकट मात्र ₹5 की है। आप चाहें तो ₹50 में गाइड की भी सुविधा ले सकते हैं, परंतु मैं कभी गाइड नहीं लेता और केवल लिखी हुई जानकारियों को पढ़ता जाता हूँ। बायीं ओर एक फारेस्ट म्यूजियम है जहाँ लकड़ियों की प्रदर्शनी लगी हुई है जहाँ एक बार में पच्चीस लोग ही अन्दर जा सकते हैं। अन्दर प्रवेश किया तो देखा की एक गाइड अंडमान के बारे बहुत सारी भौगोलिक जानकारियाँ, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं आदि के बारे एक ग्रुप को समझा रही है। कमरे में लकड़ियों से बनी बहुत सारी आकर्षक चीजें बनी हुई हैं और अंडमान के जंगलों के बारे समझाया गया है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय तीन साल तक अंडमान पर जापानियों का कब्ज़ा था और उस समय भीषण बमबारी में यह चाथम भी प्रभावित हुआ था, जिसका एक मेमोरियल यहाँ बना हुआ है। उस दौरान इस मील पर उत्पादन ठप्प था और युद्ध के बाद दुबारा नए सिरे से सब कुछ शुरू किया गया।
फारेस्ट म्यूजियम और वॉर मेमोरियल- यह सब कुछ तो पर्यटकों के लिए हाल में बनाया गया, लेकिन असली मील तो आगे है। बहुत सारे लकड़ियों के लट्ठे इधर-उधर रखे हुए हैं, कुछ चीरे जा चुके हैं। अन्दर बहुत सारे लकड़ी काटने के बड़ी-बड़ी मशीन लगे हुई हैं। बड़े-बड़े लठ्ठों को कितनी आसानी से यहाँ मनचाहे आकृति में चिर-फाड़ कर ढाला जाता है, यह देखना काफी दिलचस्प है। अंडमान की सबसे प्रसिद्द लड़की का नाम है पादुक, जिसका उत्पादन यहाँ बड़े पैमाने पर होता है। पहले बड़े-बड़े लठ्ठों को काटकर कुछ दिन समुद्र किनारे यूँ ही बांधकर तैरने के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि मिटटी और बाकि गंदगियाँ धूल जाए, उसके बाद ही बाकि काम किया जाता है। मिल में मज़दूरों की संख्या अधिक नहीं है, लेकिन सरकारी संरक्षण के कारण आज तक चल पा रही है।
तो फिर चाथम आरा मिल से रु-ब-रु होने के बाद भी सेल्युलर जेल में शाम को लाइट शो होने में अभी चार-पाँच घंटे बचे थे। पोर्ट ब्लेयर में एक समुद्रिका म्यूजियम है जो रंग-बिरंगे समुद्री जीवन को दिखलाता है। पता चला की चाथम से वहाँ तक बस से आराम से जाया जा सकता है। बस पकड़ी और दस मिनट में म्यूजियम के पास उतर गया, लेकिन उस समय लंच-ब्रेक का समय था और गेट था बंद। समय काटने के लिए अब एक और विकल्प बचा था- कोर्बिन कोव तट (Corbyn's Cove Beach) जो पोर्ट ब्लेयर से अधिक दूर नहीं है।
चाथम से बस पकड पहले मैं बाज़ार वाले इलाके में आया। दोपहर का भोजन अभी बाकि था, अगल-बगल नजर दौड़ाने पर हर तरह के रेस्टोरेंट नजर आने लगे- चाहे दक्षिण भारतीय खाना हो या उत्तर। अंडमान में मछलियों की कोई कमी नहीं है इसलिए यहाँ इनका सेवन खूब होता है, एक मछली थाली की कीमत पोर्ट ब्लेयर में 120 रूपये है जबकि शाकाहारी थाली की 100 रूपये। पोर्ट ब्लेयर से बाहर बहुत सारे जगह ऐसे भी हैं जहाँ थाली में बिन मांगे ही एक पीस मछली देने का रिवाज है, यानि जब तक कहा न जाय खाना सामान्यतः शाकाहार नही होगा। दूसरी ओर इडली-डोसे की भी भरमार है यहाँ।
पोर्ट ब्लेयर के मोहनपुरा बस स्टैंड पर सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की बसें खड़ी मिलेंगी। यहाँ से कोर्बिन जाने के लिए बसें हैं, लेकिन बसें बिल्कुल तट तक नही जाती, बल्कि दो किमी पहले ही रुक जाती हैं। एक ऑटो वाले ने कहा की वो अस्सी रूपये में कोर्बिन ले जायेगा। मैं राजी हो गया, आधी दूरी तय करने के बाद उसने कहा की कोर्बिन तट जाने के तो डेढ़ सौ लगेंगे, उसने शुरू में कोर्बिन चौक समझ सिर्फ अस्सी कहा था। ऑटो का यह सफ़र मुझे एक छोटा सा झटका दे गया, बसें तट तक जाती नही, मज़बूरी भी थी। अंडमान में 99% लोग पैकेज टूर में घूमते हैं, मेरी तरह कोई बस में नही घूमता। इसलिए हर पर्यटक केंद्र पर पीले नंबर प्लेट वाली टैक्सीयाँ दिखाई पड़ती है।
पोर्ट ब्लेयर के मुख्य शहर से आठ-दस किमी दूर यह तट मुझे अधिक जंचा नहीं, क्योंकि इसमें अंडमान की वो नीलेपन वाली बात नहीं थी, परंतु शाम गुजारने के लिए अच्छी जगह थी। अंडमान का यह पहला तट मैं देख रहा था। उधर शाम छह बजे सेल्युलर जेल वाले लाइट शो का वक़्त अब करीब आ गया और फिर से मुझे उसी ऑटो वाले का ही सहारा लेना पड़ा। शाम को लाइट शो देखने के लिए दिन के वक़्त से भी अधिक भीड़ और धक्का-मुक्की-मारामारी थी। अन्दर पांच सौ लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां है, पर सब के सब हाउसफुल। कुछ अतिरिक्त प्लास्टिक कुर्सियां भी रखी गयीं। एक घंटे के इस शो में अंडमान का एक छोटा सा इतिहास, सेल्युलर जेल में कैदियों की कहानी, सावरकर का विद्रोह, जेलर का अत्याचार- सारी चीजें कलाकारों ने एक नाटक के रूप में अच्छे ढंग से प्रस्तुत की हैं। सौ साल पुरानी चीजें फिर से जीवंत हो उठती हैं।चाथम फारेस्ट म्यूजियम में लकड़ियों की कारीगिरी देखिये-