एक वक़्त था, जब चन्द्रमा ख़ुद हमारे प्यारे भारत की सैर करने के लिए आया हुआ था। अब जैसा कि हमारे यहाँ रिवाज है, कोई बड़ी हस्ती हमारे यहाँ आती है, तो उसको नज़राना पेश किया जाता है। उसके सम्मान में कुछ ख़ास बनवाया जाता है। ठीक वैसे ही चाँद को नज़राना पेश करने के लिए जिस झील को बनाया गया, उसे चन्द्रताल का नाम मिला। माना फ़साना मेरा है, लेकिन एकदम सही है।
चन्द्रताल भारत की उन साफ़ झीलों में एक है, जिनके आस-पास फैले हुए लाहौल स्पीति के पहाड़ और मीलों दूर का खाली इलाक़ा, जहाँ घुमक्कड़ ले पाते हैं खुली हवा में साँस।
चन्द्रताल की कहानियाँ
ये कहानियाँ मैंने भी सुनी ही हैं। ख़ुद से कोई मनगढ़ंत क़िस्सा नहीं सुना रहा।
किसी ज़माने में एक गड़रिया हुआ करता था। अपनी भेड़ें चराने के लिए जाया करता था। भेड़ों का क्या है, वो कहीं पर भी घास चरने चली जाती हैं। सारी ज़िम्मेदारी उस गड़रिए की हुआ करती थी। एक बार क्या हुआ, गड़रिये को भेड़ें चराते हुए झील पर एक परी मिली। उसको परी से प्यार हो गया। काफ़ी समय तक वो अपनी पत्नी को भूल इसी परी के साथ रहने लगा।
परी ने गड़रिए को वादा माँगा था कि वो किसी को उसके बारे में न बताए, नहीं तो वो उसको छोड़ कर चली जाएगी। सालों तक ऐसा ही चला, लेकिन एक बार उसने गुस्से में ये वादा तोड़ दिया। ठीक उसी समय परी भी उड़कर ग़ायब हो गई। जब गड़रिया कुछ दिन बाद वापस आया, तो न परी थी न ही कुछ और। यही देखकर वो रोने लगा। कहते हैं आज भी गड़रिए की आत्मा उस परी की याद में यहाँ आती है।
यहाँ पर जिस झील की बात हो रही है, वो ही है चन्द्रताल झील।
एक दूसरी कहानी भी ऐसी ही है। वो है द्वापरयुग की। जब महाभारत का युद्ध हो गया तो युधिष्ठिर अपने सारे भाइयों और पत्नी के साथ संन्यास पर निकल गए। एक एक करके परिवार में सबकी मृत्यु हो गई। आख़िरकार वो पहुँचे चन्द्रताल झील के पास, जहाँ से उनको भगवान इन्द्र का रथ स्वर्ग तक लेकर गया।
कहाँ पर है चन्द्रताल झील
लाहौल-स्पीति घाटियों में स्पीति वाले इलाक़े में पड़ती है चन्द्रताल झील। यह जगह सदियों से रिमोट एरिया रही है। लोग ज़्यादा आते जाते भी नहीं थे यहाँ पर। लेह लद्दाख जैसा ठण्डा रेगिस्तान आपको यहाँ भी मिल जाएगा। लेकिन यह जगह हम एडवेंचर पसन्द लोगों के लिए, जो ख़ुद की ट्रेकिंग पर भरोसा करते हैं और उनके लिए, जो नई जगह की तलाश में है, के लिए तो बहुत ही बढ़िया है।
कैसे पहुँचें चन्द्रताल झील
आप सबसे पहले दिल्ली से मनाली तक बस से पहुँच सकते हैं। यहाँ से आप सीधा कार से बातल तक पहुँच सकते हैं। मैं पहले ही बता दूँ, कि ये जगह सामान्य पर्यटकों के लिए नहीं है, थोड़ा एडवांस लेवल की जगह पर आपको सतर्कता ज़्यादा बरतनी होगी। बेहतर होगा कि आप टैक्सी से आएँ, ख़ुद कार लेकर न आएँ।
बातल से आप ट्रेकिंग करते हुए पहुँच सकते हैं। चाहें तो आप मनाली से ट्रेकिंग के लिए भी निकल सकते हैं।
वैसे तो आप गाड़ी से ही चन्द्रताल झील तक पहुँच सकते हैं, लेकिन फिर ट्रेकिंग का मज़ा नहीं आएगा, तो सफ़र खाली खाली सा लगेगा।
क्या क्या ले चलें
ठण्ड से बचने के लिए गर्म कपड़े साथ ज़रूर ले लें।
ट्रेक लम्बा है तो वैष्णो देवी के ट्रेक की तरह एक लकड़ी वाली लाठी भी ले लें।
फ़्लैशलाइट, काम आएगी। मान ले मान ले मेरी बात।
खाने का सामान और सामान्य ट्रेवल की चीज़ें।
जाने का सही समय
अक्टूबर से मार्च के बीच तो यहाँ जाने के बारे में सोचें भी नहीं। क्योंकि ठण्डा रेगिस्तान अपनी ठण्डी के शबाब पर होता है। जुलाई और अगस्त के बीच का समय बेस्ट है यहाँ जाने के लिए।
तो कब बनाया आपने चन्द्रताल घूमने का प्लान, कमेंट बॉक्स में हमें बताएँ।