मुग़लों ने इस मुल्क को कुछ दिया हो ना दिया हो, रईसी दिखाने की कला ख़ूब दी है। अपनी रईसी दिखाने का तरीक़ा हमारी पुश्तों ने इनसे ही सीखा है। ये बड़े-बड़े आलीशान मक़बरे, दूर-दूर फैली हुई इमारतें, घास के हरे-हरे मैदान, और ना जाने क्या-क्या, सब बिल्कुल लार्जर देन लाइफ़।
ऐसे ही मुग़लों ने शाहजहानाबाद को सजाया, हवेलियों का अम्बार लगाया, सड़कें बनवाईं। और शहर का नक्शा यूँ, कि हर गली से जामा मस्जिद नज़र आए। फिर वक़्त बदला, लोग बदले। इन आलीशान इमारतों के रखरखाव पर ख़ूब खर्चे की ज़रूरत थी। तो सरकार ने इनको किसी दूसरी जगह में तब्दील कर दिया ताकि थोड़ा पैसा बने और इमारत रहे चंगी।
ऐसी ही एक हवेली है हवेली धरमपुरा, जिसको अब लोग 'गोयल साहब की हवेली' भी बोलते हैं। विजय गोयल साहब ने 1887 की बनी इस हवेली को बेहतर बनाने के लिए ख़ूब मेहनत की। अब 6 साल बाद ये हवेली अपने पुराने रंग रूप में हाज़िर हो गई है।
हवेली धरमपुरा की छत पर पहुँचिए, तारों का जो जाल कभी बिछा रहता था, अब नहीं है, डिश एंटीना ग़ायब हो गए हैं। जामा मस्जिद का गुम्बद आपकी आँखों को सुकून देता है, मानो फिर से हम शाहजहाँ की ज़िन्दगी में आ गए हों।
→ किनको तो ज़रूर जाना चाहिए
इतिहास से मोहब्बत करने वालों को तो यहाँ जाना ही चाहिए। अगर दिल्ली का मुग़लकाल आपको जीना है, तो यहाँ आने का मौक़ा छोड़ना नहीं चाहिए। क़िस्मत हर जगह को ऐसे मौक़े नसीब नहीं होने देती।
→ क्या है हवेली की ख़ासियत
चावड़ी बाज़ार और कुंचा सेठ की वो गलियाँ हवेली धरमपुरा तक जाती हैं, जो किसी ज़माने में दिल्ली नगर निगम की जर्जर इमारतों की लिस्ट में हुआ करती थी। सालों से इसका रखरखाव नहीं हुआ, तो ये जर्जर हो गई थी।
विजय गोयल साहब और उनके सुपुत्र ने इस विरासत को ठीक करने का ज़िम्मा उठाया। आईटीसी ग्रुप के वेलकम हेरिटेज का सहयोग मिला और इस हवेली की जर्जरता अब पुरानी बात हो गई है।
यहाँ साप्ताहिक रूप से कथक की क्लास लगती है, इसके अलावा दिल्ली के कई घरानों के कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं।
उससे अनोखी बात है यहाँ का वास्तु और कला, जो सीधा उस बचपन तक खींच के ले जाता है, जब आप पापा के साथ ऐसी जगह घूमने आया करते थे। सुन्दरता इस हवेली की जान है, हर फ़्लोर पर आपको संगमरमर के आँगन दिख जाएँगे, 20वीं सदी की हवादार जालियाँ मिल जाएँगी जिन्हें झरोखा कहते हैं, लकड़ी के बहुत करीने वाले डिज़ाइन मिल जाएँगे और छोटी छोटी मुग़लकालीन सीढ़ियाँ उसकी रंगत को और निखारती मिलेंगी। किसी ज़माने में जो यहाँ की तिजोरी हुआ करती थी, आज प्रदर्शनी में सजी मिलती है।
हवेली धरमपुरा में कुल 14 कमरे हैं, हर तल पर 7। इनमें से आधों का नाम शाहजहानाबाद के 7 दरवाज़ों के नाम पर रखा गया जो पूरे शहर को बाहरी आक्रमण से बचाते थे। बाक़ी के 7 चाँदनी चौक के बाज़ारों के नाम पर रखे गए हैं, जैसे दरीबा कालान, किनारी बाज़ार आदि।
→ स्वाद है बेहतरीन
लखोरी रेस्तराँ इस हवेली के स्वाद का दूसरा नाम है। यहाँ के प्रमुख खानसामे प्रदीप कुमार चाँदनी चौक बाज़ार का बहुचर्चित नाम हैं। लखोरी में 7 कोर्स का मेन्यू है, जो हर हफ़्ते बदलता रहता है।
इस मेन्यू में कुल 17 डिश आती हैं, जिसकी शुरुआत कंजी के साथ होती है, फिर आती है दिल्ली 6 की चाट, दही पूरी, कच्चे केले की गलौटी और कुल्ले की चाट और ना जाने क्या क्या। ये तो शुरुआत है, अभी मेन कोर्स से पहले आती है सूप की लम्बी फ़ेहरिस्त। शाकाहार प्रेमियों के लिए आलू कटलियाँ अचारी, देग़ सब्ज़ कोरमा, लज़ीज़ हांडी पनीर और धर्मपुरा दाल स्पेशल। मेन्यू में मुग़लई क्विज़ीन को थोड़ा तोड़ मरोड़ कर चाँदनी चौक का बेस्ट स्ट्रीट फ़ूड बनाया गया है।
→ क़ीमत
हवेली धरमपुरा में रहने का खर्च थोड़ा ज़्यादा है, लेकिन अनुभव भी कम नहीं। तीन क़िस्म के रहने की व्यवस्था है हवेली में। शाहजहाँ सूईट में एक दिन का कुल खर्च ₹18,000, दीवान-ए-ख़ास कमरों में ₹11,250 और झरोखा कमरों का कुल खर्च ₹9,900 है। सभी के साथ सुबह का नाश्ता भी उपलब्ध है।
→ कब जाना चाहिए
सर्दियों के मौसम में, मतलब अक्टूबर से फ़रवरी का मौसम बेस्ट है यहाँ घूमने के लिए।
→ क्या-क्या करना चाहिए यहाँ
दिल्ली के इस छोटे से दिल का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। भारत की प्रसिद्ध जामा मस्जिद, लाल क़िला और जैन मंदिर यहाँ से नज़दीक में ही हैं। पराँठेवाली गली, दरीबा कालान कुछ दूर नहीं। शादी की शॉपिंग के लिए लोग किनारी बाज़ार आते हैं।
हवेली धरमपुरा की बड़ी कमाई यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों से होती है। सांस्कृतिक कथक का घराना है यहाँ पर, जो 200 साल पुराने आँगन में अपनी प्रस्तुति देता है। हर शुक्रवार, शनिवार और रविवार को 7 से 10 बजे तक आप यहाँ आ सकते हैं।
पतंगबाज़ीः कभी हवेली धरमपुरा में शाम को पतंगबाज़ी का लुत्फ़ लेना। जब सामने जामा मस्जिद हो, तो ये रंग दोगुना हो जाता है। लम्बे समय के लिए तीन बार चाय की चुस्कियाँ भी महफ़िल में शामिल की जाती हैं यहाँ। हर शनिवार और रविवार शाम को 4 से 6:30 तक आप भी मौक़ा आज़माएँ। सिर्फ़ इसके लिए कुल किराया ₹1,000 तक होगा।
→ कैसे पहुँचें हवेली धरमपुरा
दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन पर सबसे नज़दीकी स्टेशन चावड़ी बाज़ार का है।
मेट्रो मार्गः चावड़ी बाज़ार मेट्रो स्टेशन से जामा मस्जिद पुलिस स्टेशन तक रिक्शा ले लें। गलियों से पैदल और फिर यहाँ से दाएँ हाथ पर एक गली मिलेगी। इस रास्ते पर दूसरी हवेली है हवेली धरमपुरा।
सड़क मार्गः पार्किंग की दिक्कत है इसलिए जामा मस्जिद पुलिस स्टेशन पर गाड़ी पार्क करें और मेट्रो स्टेशन वाले रास्ते पर चलते जाएँ।
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