हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत, स्थापत्य कला, मूर्ति कला , इतिहास , प्राचीन गौरव,किसी से छुपा नहीं है। पुरातन काल से ही हमारा देश काफी समृद्ध तथा खुशहाल रहा है। विदेशी आक्रांताओं के हमले, युद्ध की विभीषिका , और भी ना जाने क्या क्या हमने नही देखा। आजादी के बाद से ही देश की सांझी विरासत को संभालने की कोशिश की जा रही है जिससे की उनका संवर्धन एवम संरक्षण हो सके। अभी पिछले लगभग 25 से 30 सालों तक भी देश में डाकुओं का आतंक प्रायप्त था ।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों के बीच चंबल नदी का प्रवाह क्षेत्र हैं। इस नदी के आस पास का क्षेत्र बीहड़ कहलाता है, जो की बहुत ही ऊबड़ खाबड़ तथा बंजर क्षेत्र है। काफी समय से ही डाकुओं ने इस क्षेत्र को अपनी पनाहगाह बना रखा था। इस कारण बीहड़ का इलाका आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर था। लोग यहां आने से डरते थे।
हालाकि यह इलाका कभी गुर्जर – प्रतिहार वंश के राजाओं की कर्म भूमि भी रहा है। इस वंश के राजाओं ने लगभग 8वीं सदी में यहां मंदिर बनवाए थे। जो कालांतर में किसी कारणवश नष्ट हो गए या छिप गए। काफी प्रयासों के बाद इन्हें फिर से ढूंढा गया तथा संरक्षित किया गया।
यकीन मानिए यह बेहद ही खूबसूरत तथा रहस्यमई प्रतीत होते है। पुराने समय में डाकुओं के आतंक के कारण यहां पहुंचना आसान नही था। लेकिन अब यहां आसानी से आया जा सकता है। अगर आपको ऑफबीट ( अटपटी ) या अनोखी जगह देखने का शौक है । तो यह जगह आपके लिए एकदम मुफीद है ।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर तथा मुरैना शहर के बीच यह जगह पड़ती है। ग्वालियर से लगभग 60 किलोमीटर तथा मुरैना से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। बटेश्वर मंदिर समूह में लगभग छोटे बड़े 200 मंदिर हैं। एक साथ इतने मंदिर एक समूह में होना थोड़ा अचंभित करता है ।
लेकिन आप इसकी खुबसूरती को निहारे बिना रह नहीं सकते। आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि इतने लंबे काल खंड तक यह मंदिर दुनिया से छुपे कैसे रहे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने काफी मसकत के बाद दुबारा से इस मंदिर समूह को जीवित किया हैं। अभी भी इनको सजाने संवारने का काम चल रहा है ।
कुछ किवदंतियों के अनुसार डाकू इस मंदिर समूह के रक्षक थे। उन्होंने ही इस खूबसूरत मन्दिर समूह को संभाल कर रखा। यह मंदिर समूह भगवान शिव और विष्णु को समर्पित है। आप एक पूरा दिन यहां घूम सकते हैं। लेकिन रात को अभी भी सुरक्षा कारणों से यहा रुकना सुरक्षित नही माना जाता । इस मंदिर समूह के नजदीक एक दो जगहें और भी हैं जहाँ जाया जा सकता हैं ।
आस पास और क्या देखें?
इस मंदिर समूह के नजदीक एक और अनोखी संरचना है64 योगिनी मंदिर (मितावाली) यह जगह तंत्र साधकों के लिए मानी जाती है। कहा तो यहां तक भी जाता है की हमारे देश की वर्तमान संसद ( पार्लियामेंट ) का डिजाइन इस मंदिर से लिया गया है। आप खुद भी देख सकते है की इसका गोल आकार बिल्कुल संसद भवन जैसा ही हैं। यहाँ छोटे-छोटे 64 मंदिर है। यह कलाकृतिया कालांतर में कुछ कारणों से लोगो से छुपी रही थी। लेकिन अब आप यहां आसानी से आ सकते है ।
64 योगिनी मंदिर के पास गढ़ी पदावली नाम से एक पुराने किले के अवशेष भी हैं। ये भी काफी पुरानी संरचना है। बटेश्वर मंदिर समूह और 64 योगिनी मंदिर के पास ही हैं। यह तीनों जगहें काफी आस पास ही हैं। तीनों एक साथ देखी जा सकती हैं। अगर कभी आपका ग्वालियर आना जाना हो। तो इन ऐतिहासिक जगहों को देखना तो बनता हैं।
कैसे पहुंचे?
रेल, सड़क या हवाई मार्ग से पहले ग्वालियर आएं। फिर यहां से टैक्सी या प्राइवेट टूर ऑपरेटरों की बस के माध्यम से आप इन जगहों को देखने जा सकते है। ग्वालियर से लगभग 60 से 65 किलोमीटर तथा मुरैना से 30 किलोमीटर की दूरी है।
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