हम होटल "SHAKSPO GUEST HOUSE" पहुंच चुके थे। यह शहर से कुछ 4-5 कि.मी. दूर थी। पुरे रास्ते पेड़ो पर से हरियाली गायब थी लेकिन बर्फ ने सभी पेड़-पौधों ,मकानों के प्रांगणों ,होटलों का श्रृंगार अपनी सफेदी से किया हुआ था। बौद्धिस्ट प्रार्थना-ध्वज (PRAYER FLAGS) हर जगह नजर आ रहे थे। सड़क से लेकर सभी नल-नाले केवल बर्फ की चादर मे ही खुद को छुपाये हुए थे।
होटल के बाहर एक बड़ा जालीदार दरवाजा था। अंदर खुला प्रांगण था ,जो शायद गर्मियों में बगीचा हुआ रहता होगा। शुतुरमुर्ग एवं एक लाफिंग बुद्धा की 5 -5 feet की मुर्तिया भी हमारा स्वागत कर रही थी। यहाँ अंदर एक होमस्टे भी था ,जो की अंदर से पूरा गर्म था। हमको हीटर की सुविधा लेने की अनुमति नहीं थी।
अंदर 12 से 15 ट्रैक्कर्स और भी आये हुए थे। पता लगा कि यहाँ कुल 24 लोग थे। हम 10 लोगो के अलावा 12 सीनियर लोगो का ग्रुप था,जिनमे कुछ लंदन के डॉक्टर भी थे। वो अपनी मस्ती मे ही मस्त थे।इनके अलावा 2 लोग ओर हैं एक हैं नेहा जी ,काफी हसमुख और प्रबल इच्छा शक्ति युक्त। ये दिल्ली मे अपनी बेटी और पति के साथ रहती है। दूसरे ,उत्तम भैया ,मुंबई से , जो कि पुरे ट्रेक पर ये मेरे साथ ही रहे तथा मुझे छोटे भाई की तरह रखते थे।
अंदर एक तरफ अपने सामान हमको सबसे पहले नाश्ता करना था एवं ब्रीफिंग होनी थी ,उसके बाद कमरा मिलना था। एक सामान्य स्वाद का नाश्ता हमारे लिए तैयार रखा हुआ था। सभी लोग अपने अपने साथ अपने शहर की कुछ प्रसिद्द चीजे खाने को लाये थे, जो भी हम सभी को नाश्ते के साथ परोसी जा रही थी।
ब्रीफिंग के दौरान जो बाते बताई गयी थी वो इस प्रकार हैं-
1. लेह मे सर्दीयो मे पाइप लाइन्स जम जाती हैं तो यहाँ पानी की बड़ी विकट समस्या रहती हैं इसीलिए हमे पानी को सोच समझ कर इस्तेमाल करना होगा।
2. हमको पूरी ट्रिप पर नहाना नहीं हैं।
3 . दिन मे दो बार एक एक गर्म पानी की बाल्टी मिलेगी।
4. शरीर को पूरा ढके हुआ रखना हैं।
5. पानी फर्श पर नहीं गिरने देना हैं, क्योकि अगर गलती से भी गिर जाएगा तो उसी समय बर्फ मैं बदल जाएगा ,जिसपे फिसल कर कोई भी गिर सकता हैं।
6. पीने के लिए अलग गरम पानी पुरे दिन भर मिलेगा।
7. street dogs से दुर रहना हैं।
लेह मे वैसे सर्दियों मे कोई घूमने जाना पसंद नहीं करता हैं परन्तु सर्दियों मे यहाँ घूमने के कुछ अच्छे फायदे हैं जैसे इस समय यहाँ भीड़ कम मिलेगी ,फ्लाइट्स एवं होटल्स सस्ती मिलेगी,ज्यादा बर्फ होने से फोटोज भी अच्छे आएंगे।
अब 3 राते हमे लेह सिटी मैं ही रहना था ताकि हमारा शरीर यहाँ के वातावरण को अपना सके फिर हमे मेडिकल टेस्ट पास करने के बाद ट्रेक करने की अनुमति मिलेगी।
मुझे फर्स्ट फ्लोर पर कमरा मिला नूर ,लोकेश एवं नंदिश के साथ।कमरा न. 108 ,जो कि करीब 20x 15 वर्गफीट का कमरा था जिसमे एक डबल बेड लगा था एवं 2 लोगो के लिए गद्दे लगे हुए थे। ओढ़ने के लिए 3 -3 कम्बल भी मिले हुए थे। हम कमरे मे जाते ही बिस्तर मे घुस गए। ठण्ड की वजह से हमारे हाथ पैरों की अंगुलिया सुन्न पड़ चुकी थी ,हालाँकि हमने हाथ पेरो पर 2 -2 मोज़े पहने हुए थे फिर भी ठण्ड फिर भी ज्यादा लग रही थी।
हाथ पैर सुन्न होने से हम कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। ठण्ड से बचने के लिए चारो ने एक ही साथ सोने को सोचा ,तो पलंग पर सारा सामान रख कर चारो 6 कम्बल ओढ़ कर 2 लोगो की जगह चारो सो गए। गरम पानी की 2 बाल्टियां भी आ चुकी थी जिसको 15 मिनट मे ही उपयोग मे लेना होता था,नहीं तो वो ठंडी होकर जम सकती थी।
हमने कुछ घंटे आपस मे बिस्तर मे ही बाते करके परिचय बढ़ाया और हमको लग चूका था कि हम सबकी काफी अच्छी बनने वाली हैं। लंच सभी ने होटल वालो को पेमेंट देकर कर साथ मे कर लिया था। शाम को 4 बजे हम कुछ देर घूमने भी निकले ,जहा रास्ते मे एक छोटा सा बौद्धिस्ट मंदिर था। जिसके सामने एक prayer wheel * भी था। हमने कुछ फोटोज खींचे ,आगे एक 20 फ़ीट चौड़ा नाला था जो पूरा बर्फ से जम चुका था।
(*PRAYER WHEEL: यह एक मेटल या लकड़ी की सिलेंडरनुमा सरंचना होती हैं जो अपनी लम्बाई वाले अक्ष पर घुम सकती हैं। इस सरंचना पर कुछ मंत्र लिखे होते हैं। यह सभी बौद्ध मंदिर मे अनिवार्य होते हैं। इसको हाथो से घूमना होता हैं। बौद्ध धर्म'के अनुसार इस पर लिखे मंत्र को बोलने से जो शक्ति मिलती हैं वो ही शक्ति इसको घुमाने पर भी मिलती हैं। अर्थात अगर हम इससे घुमाये तो इस के मंत्र को पढ़ने की जरुरत नहीं हैं हालांकि काफी जगह इसको घूमाने के साथ लोग कोई मंत्र भी बोलते हैं। )
हम आगे नहीं गए क्योकि आगे करीब 5 -6 street dogs थे और हमे पता था कि लेह के street dogs काफी खतरनाक होते हैं। हम 1 घंटे बाद होटल वापस पहुंच गए ,जहा पल्लवी बाहर पानी गरम करने के लोकल जुगाड़ के पास बैठी हुई थी।
हमको पता लगा कि होमस्टे वाला परिवार कश्मीरी कहवा (एक प्रकार की चाय ) बहुत अच्छा देता हैं ,वो भी काफी कम कीमत पर। हम पांच लोगो ने उनकी छत पर जाकर कश्मीरी कहवा का आनंद लिया। छत की फर्श पर भी बर्फ जमी हुई थी। फिर थोड़ी देर हमने बाते करके एक दुसरे को अच्छी तरह जानने की कोशिश की। अँधेरा होते ही सब अपने कमरे मे आ गए थे। शाम को हर एक कमरे मे अलग अलग ब्रीफिंग होनी थी और साथ मैं हमारे ट्रैकिंग गियर्स पुरे हैं या नहीं इसकी भी चेकिंग होनी थी। मुझे भी काफी सामान जैसे बर्फ के लिए नए जुते ,पानी के लिए अलग जूते , कुछ और बड़ी परत वाले मोज़े ,स्टिक खरीद लेने को बोल दिया गया था। मेडिकल के लिए हमे हमारे बोर्डिंग पास को भी संभाल के रखना पड़ता हैं जिससे मेडिकल टीम तीसरे दिन ये कन्फर्म कर ले कि हम 2 दिन लेह मे गुजार चुके हैं। रात को डिनर एजेंसी की तरफ से था। डिनर करने के बाद फिर हमारे हाथ पैर सुन्न पड़ गए थे क्योकि हमने खाना खाने के लिए दस्ताने उतारे थे।
......to be continued