मगध यानि आज जिसे हम बिहार के नाम से जानते हैं, किसी काल में उन्नत बुद्धिजीवियों, कला व संस्कृति का मुख्य केंद्र था। मौर्य वंश की राजधानी पाटलिपुत्र या आधुनिक पटना तथा समीपवर्ती शहर राजगृह या आधुनिक राजगीर- आज बिहार के काफी महत्वपूर्ण एतिहासिक पर्यटन केंद्र बने हुए हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के साम्राज्य के साथ ही चाणक्य एवं आर्यभट्ट जैसे विद्वान् बिहार के अमर विभूतियों में गिने जाते हैं। लेकिन इन सबके अलावा भी जिस कारण से बिहार का एतिहासिक महत्व बढ़ जाता है, वो है गौतम बुद्ध की नगरी और बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र बोध गया ।
The 80-Feet Statue of Gautam Buddha
देश के बारह-पंद्रह राज्यों में कदम रख लेने के बाद एक दिन अचानक
बोध गया: एक एतिहासिक विरासत (Bodh Gaya, Bihar) दशरथ मांझी: पर्वत से भी ऊँचे एक पुरुष की कहानी (Dashrath Manjhi: The Mountain Man) मगध की पहली राजधानी- राजगीर से कुछ पन्ने और स्वर्ण भंडार का रहस्य (Rajgir, Bihar) नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष: एक स्वर्णिम अतीत (Ruins of Nalanda University) कुम्भरार: पाटलिपुत्र के भग्नावशेष (Kumbhrar: The Ruins of Patliputra)
ख्याल आया की अब तक सबसे नजदीकी राज्य बिहार ही ढंग से नहीं देखा हूँ। बस आनन-फानन में ही बोध गया, राजगीर, नालंदा, पटना आदि का कार्यक्रम बन पड़ा और रातों रात ट्रेन से गया पहुंचकर बिहार यात्रा शुरू हुई। मुख्य शहर गया से लगभग बारह किलोमीटर की दुरी पर एक छोटा सा शहर शहर है बोध गया जहाँ तक जाने के लिए दिनभर ऑटो-रिक्शे मिलते रहते हैं। दिलचस्प तथ्य यह है की यह सड़क गया के एकमात्र नदी फाल्गु या निरंजना के किनारे-किनारे होकर जाती है और यह नदी प्रायः सूखी ही रहती है, सिर्फ बरसात के दिनों में पानी दिखाई पड़ जाता है। इसके ठीक विपरीत, नदी की चौड़ाई देखकर ऐसा लगता है की बिना पानी के ही अगर यह इतनी विशाल है, फिर पानी रहने पर क्या होता होगा? वैसे इस नदी के सूख जाने को लेकर भी कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन मेरे हिसाब से इसके पीछे कुछ भौगोलिक कारण ही होंगे, वैसे भी गया एक गर्म और शुष्क जलवायु वाला इलाका है जहाँ बारिश बिलकुल नाम मात्र की होती है।
बौद्ध धर्म के चार मुख्य केन्द्रों - लुम्बिनी, कुशीनगर, सारनाथ एवं बोध गया- इनमें बोध गया ही सर्वोच्च स्थान रखता है क्योंकि यहीं से सिद्दार्थ का नाम गौतम बुद्ध हुआ और बौद्ध धर्म की नीव पड़ी। बोध गया में सबसे अधिक महत्व की दो चीजें है- महाबोधि मंदिर और अस्सी फीट ऊँची गौतम बुद्ध की मूर्ति। एक विष्णुपद मंदिर भी है। इनके अलावा बौद्ध धर्म से जुडी जितनी चीजें हैं, जैसे की भूटानी मंदिर, जापानी मंदिर, चीनी मंदिर, थाई मंदिर आदि- ये सब आपको यहाँ अवश्य ही मिल जाएँगी। ढेर सरे बौद्ध मठ भी आसानी से देखे जा सकते हैं। किन्तु महाबोधि मंदिर ही बोध गया का केंद्र है। कहा जाता है और हम भी बचपन से यही पढ़ते आ रहे हैं की इस मंदिर के पीछे स्थित पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई। पीपल का जो पेड़ आज मंदिर के पीछे स्थित है, वह हजार वर्ष पुराने उसी पेड़ के पांचवी पीढ़ी का वंशज है, जिसके नीचे बुद्ध ने तपस्या की।
बुद्ध के जाने के ढाई सौ वर्ष बाद सम्राट अशोक ने इस महाबोधि मंदिर का निर्माण करवाया था, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे सहमती नहीं रखते। लेकिन भारतवर्ष में बौद्ध धर्म के पतन के साथ ही इस मंदिर का अस्तित्व धूल-मिट्टी में दबकर धीरे-धीरे ख़त्म सा होने लगा और लोग इसे भूलने लगे, लेकिन उन्नीसवी सदी की खुदाई में यह पुनः अपने शानदार अवस्था में आ गया। सन् 2002 में इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है।
मंदिर परिसर आज पूरी तरह से सुरक्षा घेरे में है और अन्दर जाने के लिए मोबाइल-कैमरा आदि छोड़ कर ही जाना पड़ता है। लेकिन अगर कैमरा ले ही जाना चाहते हों तो उसके लिए सौ रूपये चुकाने पड़ेंगे, जो की सिर्फ फोटो खींचने के लिए एक मोटी रकम ही है।
मंदिर परिसर बगीचों से भरा है जहाँ पडोसी मुल्कों के बौद्ध अनुयायी ही ज्यादातर दिखाई पड़ते हैं। मार्च के महीने में भी यहाँ विदेशियों की अच्छी खासी तादाद थी, लेकिन बुद्ध पूर्णिमा के समय बोध गया की रौनक चरम पर होती है। मंदिर के पिछले हिस्से में एक छोटा सा बाज़ार है, बुद्ध से जुडी चीजे किसी न किसी दुकान में अवश्य दिख जाएँगी। "बुद्धम शरणम गच्छामि" की ध्वनि से महाबोधि मंदिर हमेशा जीवंत प्रतीत होता रहता है। शाम के वक़्त रंग-बिरंगे रोशनियों से मंदिर जगमगाता रहता है।
महाबोधि मंदिर के बाद बोध गया का सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ से एकाध किलोमीटर की पैदल दूरी पर बुद्ध की अस्सी फीट ऊँची प्रतिमा है, जो ज्यादा एतिहासिक तो नही, बल्कि अस्सी के दशक में ही बनवाया गया था। बुद्ध के ध्यान मुद्रा में यह मूर्ति चुना पत्थर एवं लाल ग्रेनाइट की बनी है। बुद्ध की मूर्ति के चरों ओर उनके दस शिष्यों की भी खड़ी मूर्तियाँ हैं। यहाँ पर प्रवेश बिलकुल निशुल्क है। इस मूर्ति का सारा निर्माण एवं रख रखाव एक जापानी बौद्ध संस्था दैजोक्यों द्वारा किया जाता है, यही नहीं बल्कि बिहार पर्यटन के अधिकांश हिस्सों जैसे राजगीर, नालंदा आदि के भी ज्यादातर सड़कों-स्मारकों का रख रखाव विभिन्न जापानी संस्थाओं के ही जिम्मे है।
बोध गया में खान-पान उत्तर भारतीय ही है, लेकिन आजकल अनेक जापानी, चीनी, थाई, बर्मीज़ रेस्तरां खुल चुके है। हाँ, अगर आप इडली-डोसा की चाहत रखते हों, तब थोड़ी मुश्किल जरूर होगी।
चूँकि आज बोध गया एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र है इसीलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कोई कमी नहीं है, मुख्य शहर गया से ज्यादा होटल बोध गया में हैं। साथ ही गया का हवाई अड्डा भी अंतर्राष्ट्रीय हो चला है जहाँ से चीन, बर्मा, थाईलैंड आदि देशों से सीधी उड़ानें वर्ष के कुछ महीनों में उपलब्ध रहती हैं। बिहार का यही तो एकमात्र पर्यटन केंद्र है जहाँ विदेशियों को देखा जा सकता है। रेलमार्ग द्वारा भी गया भली-भांति जुड़ा ही हुआ है। बोध गया घुमने के लिए सिर्फ एक दिन का समय ही काफी है, इसके बाद आप राजगीर-नालंदा की ओर प्रस्थान कर सकते हैं। लेकिन एक और नई चीज जो पिछले कुछ वर्षों में सामने आई है- वो है गया से तीस किलोमीटर दूर स्थित दशरथ मांझी का पहाड़ काटकर बनाया रास्ता । तो अगले पोस्ट में दशरथ मांझी के गाँव की रोमांचक चर्चा होगी।
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