मुझे पहाड़ वाक़ई में बहुत पसंद हैं। मुझे नये-नये पहाड़ी शहरों और गाँवों में जाना अच्छा लगता है। एक नई जगह को देखना का एक अलग ही एहसास होता है। ऐसा लगता की आपने एक नया मुक़ाम हासिल कर लिया हो। मैं एक बार फिर से हिमाचल प्रदेश के एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार था। कुछ ही महीने पहले मैंने शिमला से स्पीति वैली की एक लंबी यात्रा की थी। अब मैं हिमाचल प्रदेश के बिर बिलिंग की यात्रा पर जा रहा था। पहले मुझे लगता था कि बिर बिलिंग एक ही जगह है लेकिन असल में बिर और बिलिंग दो अलग-अलग जगहें हैं। दिल्ली में कुछ वक़्त बिताने और मजनू टीला की गलियों में खोने के बाद हम शाम को दिल्ली से बिर के लिए निकल पड़े।
हिमाचल प्रदेश के बिर जाने के लिए आप सरकारी और वॉल्वो बस दोनों ले सकते हैं। रोडवेज़ बस समय ज़्यादा लगाती है इसलिए मैंने वॉल्वो बस से जाने का तय किया। बस मजनू टीला से चल पड़ी। कुछ ही देर में बस दिल्ली को पार करते हुए आगे बढ़ गई। रात के अंधेरे में नज़ारे कम आती-जाती हुई गाड़ियाँ ज़्यादा दिखाई देती हैं। बस रात के 11 बजे एक ढाबे पर रूकी। यहाँ मैंने छोले-भटूरे से पेट भरा। थोड़ी देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि बस पहाड़ी रास्तों पर बढ़ती जा रही थी। पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा था? वाल्वो बस में उल्टी के लिए पॉलीथिन दी जाती हैं। मेरी सीट पर भी कई सारी थीं। मैंने एक बार उल्टी करनी शुरू की तो फिर तो कारवां बढ़ता जा रहा था। बस एक पेट्रोल पंप पर टायर बदलने के लिए रूकी तो मैं बाहर निकल गया।
बिर तो आ गए
कुछ देर में बस चल पड़ी लेकिन मेरी उल्टी का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ। मैं जल्दी से जल्दी बिर पहुँचना चाहता था। काफ़ी देर बाद बस बिर की तिब्बती कॉलोनी में रुकी। बस से उतरने के बाद मैं कुछ देर बाहर बैठा रहा। दिल्ली की मेरी एक दोस्त बिर में कुछ महीनों से यहीं रुकी हुई थी और एक दोस्त घूमने के लिए आई थी। बिर में उसके कमरे तक पैदल चलने लगे। पहली नज़र में बिर मुझे एक छोटी-सी जगह लगी। जहां छोटी-छोटी दुकानें दिखाई दे रहीं थीं। कुछ होटल भी रास्ते में मिले। कुछ देर में हम अपने दोस्तों के कमरे पर बैठे थे। बातों ही बातों में आगे जाने के प्लान के बारे में बात हुई। मैं तो यही सोचकर आया था कि पहले बिर घूमा जाएगा और फिर धर्मशाला की तरफ़ निकल जाएँगे लेकिन दोस्तों के साथ प्लान बदलने का भी अलग मज़ा है।
अब हम कुछ ही देर में राजगुंधा के लिए निकलने वाले थे। राजगुंधा जाने वाले हम 7 लोग हो चुके थे। हमने 3 स्कूटी किराए पर ले लीं और एक के पास ख़ुद की गाड़ी है। राजगुंधा जाने के दो रास्ते हैं, पहला बिलिंग होते हुए राजगुंधा जाएँ जो क़रीब 30 किमी. पड़ेगा लेकिन रास्ता बेहद ख़राब है। दूसरा लंबा रास्ता बरोट होते हुए है। हमारे पास पूरा दिन तो हमने उसी लंबे रास्ते से जाने का तय किया। कुछ ही देर में हम सबके पास स्कूटी थी और हम पहाड़ी रास्तों से बढ़ते जा रहे था। मुझे पहाड़ों में स्कूटी चलाने में बहुत मज़ा आता है। हमने एक ढाबे पर खाना भी खाया और फिर से चल पड़े। दोपहर के दो बजे हम बरोट पहुँच गए। बरोट के बारे में काफ़ी सुना था लेकिन पहली बार देख रहा था। बरोट तो बिर से भी छोटी जगह है लेकिन बेहद खूबसूरत है। बिर में उह्ल नदी बहती है जो इस जगह को और सुंदर बनाती है। कुछ लोगों को यहाँ खाना खाना था इसलिए मैं नदी किनारे चला गया। क़रीब घंटे हम बरोट में रहे। बरोट ऐसी जगह है जहां कुछ दिन गुज़ारने चाहिए।
असली परीक्षा तो अब
बरोट से हमें अब राजगुंधा जाना था। बरोट से राजगुंधा क़रीब 26 किमी. है। हम बरोट से राजगुंधा की तरफ़ चल पड़े। अब तक हम आसान रास्ते से चलते आ रहे थे और हम ऐसा सोच भी रहे थे कि आगे भी ऐसा ही रास्ता होगा। हम अपनी स्पीड से बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर चलने पर बारिश अचानक शुरू हो गई। हम ऐसी ख़ाली जगह पर थे जहां छुपने का ठिकाना नहीं थी। हम एक पेड़ के नीचे रूक गए लेकिन हमारा भींगना जारी रहा। साथ ही लैंडस्लाइड का भी ख़तरा था। पीछे एक शेल्टर बना हुआ था लेकिन वहाँ जाने का मतलब है पूरा भीग जाएँगे। फिर भी हम भीगते हुए उस जगह पर पहुँच गए। हमारे कुछ साथी पहले से वहाँ थे। अब हमें बारिश रूकने का इंतज़ार करना था। भींगने की वजह से ठंड भी काफ़ी लग रही थी।
कुछ देर बाद बारिश रूक गई। हमने आगे चलने का तय किया क्योंकि शाम हो रही थी और हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचना था। कुछ देर बाद हम एक गाँव दिखाई दिया। हमें लगा कि अब हम पहुँच गए लेकिन अभी तो काफ़ी चलना था। हम बढ़ते जा रहे थे लेकिन हमारी मंज़िल नहीं आई थी। फिर एक ऐसा रास्ता आया कि लगा कि इसे पार करना तो मुश्किल है। हमें कच्चे रास्ते से ऊपर चढ़ना था। रास्ता पूरा ऊबड़-खाबड़ था और बारिश होने की वजह से फिसलन भी हो गई थी। ये चढ़ाई काफ़ी लंबी थी। इस चढ़ाई को हमने बहुत मुश्किल से चढ़ा। इस रास्ते पर दो लोग गिर भी गए थे। जब हम अपनी मंज़िल पर पहुँचे तो अंधेरा हो चुका था और हम थककर चूर हो गए थे।
हमारे लिए एक कमरे में आग की व्यवस्था की गई। कपड़े बदलकर हम आग के पास बैठ गए। उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ। बिर से राजगुंधा की इस रोमांचक यात्रा को याद करके एक-दूसरे पर हंस रहे थे। राजगुंधा तक की यात्रा वाक़ई में रोमांचक थी। ऐसे रोमांच रोज़-रोज नहीं आते हैं लेकिन हमारी इस यात्रा में अभी तो रोमांच की शुरूआत हुई थी। खाना खाने और कुछ मस्ती धमाल करने के बाद मैं एक टेंट पर जाकर लेट गया। कुछ ही देर में नींद की आग़ोश में चला गया। राजगुंधा में अभी तो एक और शानदार सफ़र बाक़ी था।
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