भूत, पिशाच और प्रेतात्मा: गोवा के डार्क साइड का खुलासा

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Photo of भूत, पिशाच और प्रेतात्मा: गोवा के डार्क साइड का खुलासा 1/3 by Rupesh Kumar Jha

गोवा का ख्याल आते ही हम समुद्र तटों, वाटर स्पोर्ट्स, खाना-पीना और बिना किसी रोक-टोक के मौज-मस्ती की कल्पना करते हैं। यहाँ तक कि जो लोग ऑफबीट गोआ का अनुभव रखते हैं, वे भी झरने, जंगलों, पक्षियों और वास्तुकला के बारे में ही सोच पाते हैं। चूंकि गोवा पुर्तगाली उपनिवेश रहा था, लिहाजा वहाँ इसके प्रभाव से एक अनूठी संस्कृति की झलक मिलती है। लेकिन इस क्षेत्र में पुर्तगाली प्रभाव के बावजूद प्राचीन हिंदू संस्कृति की जड़ें बेहद मज़बूत हैं जिसे शिगमो वसंत उत्सव के दौरान देखा जा सकता है। शिगमो उत्सव कोंकण क्षेत्र में हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन महीने की पूर्णिमा की रात के आसपास मनाया जाता है। जानकर हैरानी होगी कि शिगमो उत्सव के अवसर पर भूतों और आत्माओं को धन्यवाद दिया जाता है।

गदयाची जात्रा, शिगमो उत्सव के दौरान ही निकाली जाती है जो कि देवंचार नाम के राक्षस को समर्पित होता है। गोवा के साल, बोर्डे-बिचोलिम, पिलगाओ, कुडने, सवाई-वेरम गाँवों के लोग अपने गाँव के रक्षक देवता के रूप में इसकी पूजा करते हैं। दिलचस्प बात है कि देवंचार यानी जिस पिशाच की पूजा की जाती है उसको लेकर स्थानीय लोगों के बीच कोई नकारात्मक या बुरी धारणा नहीं है। इन सभी उत्सवों में सबसे मशहूर गदयाची जात्रा गोवा के साल गाँव में देखी जाती है जहाँ गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक से पड़ोसी गाँवों के लोग और सैलानी इस उत्सव को देखने के लिए खिंचे चले आते हैं।

सफेद धोती पहनकर पुरुष, जिन्हें गद कहा जाता है, इस अनुष्ठान को करते हैं, इसलिए इसे गदयाची जात्रा (गद की रैली) नाम दिया गया। गद ऐसे लोग होते हैं जिन्हें आत्माओं से जुड़ा माना जाता है और केवल वे ही सीधे अनुष्ठान में भाग ले सकते हैं।

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पूर्णिमा की रात, महादेव मंदिर के सामने पवित्र स्थान पर आम के पेड़ की टहनी को रखा जाता है जिसे मांड कहा जाता है। महादेव को हिंदू धर्म में राक्षसों और आत्माओं का देवता माना जाता है, इसलिए पूजा का ये स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। अगली आधी रात को सभी गाँव के लोग अंधेरे में अपने मंत्रों और गीतों के साथ आत्माओं को बुलाते हैं। इस दौरान गद एक समाधि लगाते हैं और उज्वाड़ी जलाते हैं जिसे आप भी देख सकते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि ग्रामीण मानते हैं कि उज्वाड़ी उस आग को कहा जाता है जिसके माध्यम से देवंचार को देखा जा सकता है। गद आग की ओर भागते हैं जबकि देवंचार जंगलों के विभिन्न हिस्सों में आग लगाकर खेलते हैं। दिलचस्प बात यह है कि दर्शक इस आग को जंगल में भी देख सकते हैं। आखिरकार, गद वापस मांड में लौट आते हैं। हालांकि, देवंचार कुछ गद को पकड़कर अपने साथ रख लेता है। लौटे हुए गद की संख्या मांड में गिनी जाती है, और फिर जो नहीं लौटे हैं, उन्हें खोजा जाता है।

जंगलों से जब गद को खोजकर लाया जाता है तो उन्हें मांड पर लाकर सामान्य करने के लिए कुछ इलाज किया जाता है। इस प्रक्रिया का तीन दिनों तक पालन किया जाता है, जिसके दौरान पूजा जारी रहती है। तीसरी रात के अंत में, समाधि में रहने वाले गद को वहाँ से अधजले लाश के टुकड़ों को लाना पड़ता है। इन वस्तुओं को होली पर रखा जाता है और उनके चारों ओर अनुष्ठान किया जाता है। आखिरकार, तीन दिन तक चलने वाले इस उत्सव के अंत में, गद पिछली रातों की यादों को को त्यागकर एक सचेत और सामान्य स्थिति में आ जाते हैं।

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मंच पर लटकते हैं गद

पोइगुइनिम में इस त्योहार के समय बेताल मंदिर में विभिन्न प्रकार का अनुष्ठान आयोजित होता है, जो कि बुरी आत्माओं के देवता को समर्पित है। सुपारी के पेड़ को मंदिर के सामने एक मंच पर खड़ा किया जाता है, जिस पर एक घूमने वाले पहिये पर हुक द्वारा गद को लटकाया जाता है। एक पुराने दस्तावेज़ से शिलालेखों को पढ़कर अनुष्ठान शुरू होता है, और फिर पहियों को गद के चारों ओर घुमाते हैं। जब दर्शकों को यह विश्वास हो जाता है कि गद ने देवताओं को प्रसन्न किया है, तो अनुष्ठान पूरा हो जाता है।

गदयाची जात्रा कहाँ देखें?

अनुष्ठानों के स्थानीय मान्यताओं  को समझने और गदयाची जात्रा को लाइव देखने के लिए, आपको उत्तरी गोवा के साल गाँव, बिचोलिम में जाने की आवश्यकता होगी, जहाँ यह अपने भव्य रूप में मनाया जाता है। आप गोवा के दक्षिणी सिरे पर पोइगुइनिम में बेताल मंदिर भी जा सकते हैं।

चूंकि अनुष्ठान असामान्य और डरावना हो सकता है, भारत में गदयाची जात्रा सबसे प्रामाणिक त्योहारों में से एक है जो क्षेत्र की बदलती संस्कृति से प्रभावित हुए बिना अपने मूल रूप में आज भी सुरक्षित बचा हुआ है। यह निश्चित रूप से, एक ऑफबीट अनुभव है जिसकी तुलना किसी अन्य से हो ही नहीं सकती है।

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