हम यात्रा करने वाले लोग अपने सफर में कई यादें और अनुभव जोड़ते चले जाते हैं, ऐसे अनुभव जो हम कभी भुलाना नहीं चाहेंगे। लेकिन क्या आपने कभी कोई ऐसा अनुभव किया है जिसने आपको इतना डरा दिया, इतना दंग कर दिया कि आप उसे किसी के साथ बाँटने से भी कतराते हैं और उसके बारे में सोचने से भी सहम उठते हैं? अगर आपका जवाब ना है तो या तो आप मज़ाक कर रहे हैं या फिर बहुत ही लकी हैं क्योंकि ऐसे कई यात्री हैं जिन्होंने भारत में अपनी यात्रा पर कुछ ऐसे खतरनाक और भुतहा अनुभव झेले हैं कि उन्हें दोबारा याद करना भी एक सज़ा लगता है।
यकीन नहीं आता? ये पढ़िए,अपने आप यकीन आ जाएगा।
1. छाते वाला आदमी
"स्कूल की छुट्टी थी तो मैंने और मेरे एक दोस्त ने मॉल रोड पर टहलने और कुछ खाने पीने का प्लान बनाया। हालांकि, जब तक हम मॉल रोड पहुँचे शाम के 7 बज चुके थे। हमने गरमा गरम कॉफी भी, फोटो ली और द रिज पर एक रेस्टोरंट में बढ़िया मोमोज़ खाए। इस सब में 9 बज गए और हम दोनों अपने-अपने घर की ओर चल दिए। मैं बस कुछ सौ मीटर ही चला था कि एकदम से बारिश शुरू हो गई। मैं एक चौराहे पर खड़ा था जो काफी सुनसान थी, वहाँ ना तो कोई दुकान थी, ना हो कोई इंसान ना जानवर, लेकिन हाँ कुछ स्ट्रीट लाइट ज़रूर चल रही थी।
जैसे मैं थोड़ा और आगे बढ़ा, मैंने देखा कि एक छतरी वाला आदमी मुझसे कुछ फुट आगे चल रहा है। मुझे लगा कि उसे साथ छतरी बाँटना एक अच्छा आइडिया होगा। उस तक पहुँचने के लिए मैं तेजी से चला लेकिन ऐसा लग रहा था कि मैं उतना तेज नहीं था। तो मैंने थोड़ा तेज़ भागना शुरू कर दिया, लेकिन मैं फिर भी उसके करीब नहीं पहुँच पा रहा था। "अंकल!" मैं जोर से चिल्लाया और वो आदमी पलटा । देखने से वो आदमी करीह 60 साल का लग रहा था, लेकिन जिस बात ने मुझे हैरान किया वो था उसके पास छाता होने के बावजूद वो आदमी पूरी तरह से भीगा हुआ था। उसने फिर से चलना शुरू किया लेकिन इस बार मैंने अपनी रफ्तार धीरे कर ली, अब मुझे उस अंकल के साथ जाना कुछ ठीक नहीं लग रहा था।
लेकिन जैसी ही मैं धीमा हुआ, तो उस अंकल ने भी अपनी रफ्तार घटा ली। मैं और भी धीरे-धीरे चला और उसने भी ऐस। आखिर में मैं रुक ही गया, और वो अंकल भी! पूरा सन्नाटा था। अब मुझे बहुत डर लगने लगा था और घुटन हो रही थी, जैसे हवा कहीं गायब हो गई हो। मुझे तो लगने लगा था कि ये किस्सा सुनाने के लिए मैं ज़िंदा ही नहीं बचूँगा, लेकिन तभी मुझे साइरन की आवाज़ सुनाई दी और पुलिस की एक जीप मेरे पास आ रुकी। जब मैंने सहमते हुए उन्हें यह कहानी सुनाई, तो उन्होंने कहा कि वहाँ छतरी के साथ कोई था ही नहीं, बस मैं था, अकेला। ”- अर्पित टांटा, छात्र, शिमला
2. वो भूकंप तो बिल्कुल नहीं था
"मैं पंचचुला से धारचूला पहुँचा ही था और रात में धारचूला के एक गेस्ट हाउस में ठहरना था। हैरानी की बात यह है कि जिस गेस्ट हाउस में मैं रह रहा था, उसमें कोई और मेहमान ही नहीं था। मैंने अपना डिनर किया और करीब 10.30 बजे सोने चला गया। अचानक, मेरा बिस्तर ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगा। मैं बिना वक्त गवाए बिस्तर से बाहर कूद गया, चप्पल पहनी और बाहर भागा क्योंकि मुझे यकीन था कि यह एक भूकंप था। लेकिन सभी तरफ अंधेरा हो गया और एक दम से बेड हिलना बंद हो गया। मैंने लाइट चालू की और दरवाज़े से बाहर भागा। बाहर बारिश हो रही थी और घुप अंधेरा था। मैं किसी तरह सीढ़ियों से नीचे उतरा और रिसेप्शन पर पहुँचा और वहाँ बैठे लोगों से भूकंप के बारे में पूछा। वो दो लोग टीवी पर क्रिकेट मैच देख रहे थे। उन्होंने कहा, "यहाँ तो कुछ भी नहीं हिला। हमने कोई भूकंप महसूस नहीं किया।" मुझे यकीन था कि बिस्तर हिल रहा था। भूकंप किस तरह का था? या फिर यह भूकंप भी था? खैर, मैं उसके बाद सो नहीं सका और पूरी रात टीवी देखता रहा। "- रोहित कुमार, ट्रिपोटो
3. समुद्र के हाथ हैं
"मैंने सूरत में डुमस बीच के बारे में कई डरावनी कहानियाँ सुनी थी। मैं कोई खतरों का खिलाड़ी तो नही हूँ लेकिन मैं एक एडवेंचर पसंद ट्रैवलर ज़रूर हूँ। इसलिए, मैं पिछले साल क्रिसमस ईव पर डुमास बीच पर पहुँच गया। ये करीब शाम 7 बजे की बात है जब मैं एक्सपोज़र फोटोग्रफी पर हाथ आज़मा रहा था कि अचानक किसे के चिल्लाने की आवाज़ आई। मैंने कुछ ही देर पहले कुछ बच्चों को पानी में खेलते हुए देखा था, लेकिन उनमें से ज़्यादातर बच्चे निकल गए थे। लेकिन मैं समुद्न के पास पहुँच गया, ये देखने कि कहीं कोई मुश्किल में तो नहीं है।
मुझे एक बच्चे को रोने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी, तो मैंने पानी में जाना शुरू किया। अब मैं इतना आगे आ गया था कि तैरना लगा था, अचानक से ही मेरी पीठ पर एक हाथ महसूस हुआ जिसने मुझे ज़ोर से समुद्र के अंदर खींचा और मैं पानी के अंदर चला गया। हालांकि मुझे तैरना अच्छे से आता था लेकिन अचानक से डूबने के डर मुझ पर हावी हो गया। शायद, मैं कुछ पल पहे हुई उस घटना से सदमे में था। मैं किसी तरह समुद्र तट की ओर वापिस तैरने लगा और वहाँ जाकर मुझे एहसास हुआ कि मैं समुद्र में कितना आगे आ गया था। ये विश्वास करना मुश्किल था, आखिर ऐसा कैसे हो सकता था। अब मुझे वो रोते हुए बच्चे कि आवाज़ आना बंद हो गई थी।
मुझे नहीं पता कि मेरा ये अनुभव कितना वास्तविक था या कितना इस दुनिया के परे, लेकिन मैं ये यकीन से कह सकता हुँ कि मैं पानी में इतना अंदर तो गया ही नहीं था कि मुझे लौटने में इतना वक्त लगाना पड़ा। " - अभिनंदन शर्मा, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, दिल्ली।
4. पीछा करने वाला भूत
शनिवार का दिन था और दिल्ली में मेरे दोस्तों ने अचानक से मिलने का प्लान बनाया। रात के 10.30 बज चुके थे, तो मैंने फटाफट अपना काम खत्म किया, गाड़ी की चाबी उठाई और रजौरी गार्डन में अपने दोस्त के घर के लिए निकल पड़ा। जैसे ही मैं ब्रार चौक के एरिया में पहुँचा मुझे अपनी गाड़ी के रियरव्यू मिरर में एक परछाई सी पीछा करती नज़र आ रही थी। मैंने इसे एक बार तो नज़रअंदाज़ कर दिया लेकिन कुछ वक्त बाद फिर देखा तो वो परछाई अभी भी दौड़ते हुए गाड़ी का पीछा कर रही थी, लेकिन अब वो मेरी गाड़ी के बहुत करीब आ गई थी।
मैं आसानी से डरता नहीं, लेकिन उस वक्त मैंने बिना रुके गाड़ी की स्पीड बढ़ाना ही बेहतर समझा"- दिल्ली छावनी क्षेत्र में काम करने वाले एक दुकानदार
5. भूत की फोटो
"सिक्किम में अकेले यात्रा करने के बाद, मैं दार्जिलिंग पहुँचा जो मेरी यात्रा का आखिरी पढ़ाव था। इस मशहूर हिल स्टेशन को घूमने के लिए मेरे पास बस डेढ़ दिन ही था। होटल में आराम करने के बाद, मैंने बाहर निकलकर आसपास घूमने का प्लान बनाया। कुछ लोकल लोगों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि कुदरत की खूबसूरती देखनी है तो कुर्सियांग के डो हिल पर जाना चाहिए। उन्होंने मुझे ये भी बताया कि वो पहाड़ी इलाका भूतहा है, फिर क्या मेरी दिलचस्पी इस जगह में और बढ़ गई।
तो मैंने अपना कैमरा बैग उठाया, एक बाइक किराए पर ली और कुर्सियांग के लिए निकल पड़ा। दो घंटे की ड्राइव के बाज जब मैं डो हिल पहुँचा तो वहाँ कि खूबसूरती ने मुझे खुश कर दिया, जगह नैनीताल सी लग रही थी। धुंध भरे जंगल, सड़क पर चलती इक्का-दुक्का गाड़ियाँ और बीच-बीच में पक्षियों की चहचहाहट। ये जगह सुंदर तो थी लेकिन एक अजीब सी परेशान करने वाली एनर्जी मुझे महसूस हो रही थी। कुछ अच्छी फोटो लेने के बाद मैंने डो हिल के जंगल में थोड़ा और रुकने का फैसला किया।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। मैंने एक और तस्वीर लेने के लिए कैमरा के व्यूफाइंडर पर नज़रे टिकाई कि मुझे उससे भूरे रंग की आँखे घूरती नज़र आई और उसके तुरंत बाद एक ज़ोर की चीख सुनाई दी। मैंने तो बिना कुछ सोचे अपनी बाइक की और दौड़ लगाई और मुड़कर पीछे नहीं देखा। जब भी मैं इस घटना के बारे में सोचता हूँ, रौंगटे खड़े हो जाते हैं।"- जैद अहमद, ट्रैवल फोटोग्राफर
6. भटकता बच्चा
" मैं और मेरी एक दोस्त स्कूल के दोस्त की शादी में पचमढ़ी पहुँचे। शादी अटेंड करने के बाद हमने पचनढ़ी घूमने का सोचा। हमने पांडव गुफाएँ देखी,पचमढ़ी झील पर वक्त बिताया और अब एक वॉटरफॉल देखने जा रहे थे, लेकिन फिर जंगल के रास्ते घूमते-फिरते जाने का प्लान बन गया।
जंगल से गुज़रते हुए हमें 11-12 साल की एक छोटी बच्ची दिखी। उसने बताया रि वो अपनी मम्मी के साथ वॉटरफॉल पर पिकनिक मनाने आई थी और अब उसे अपनी मम्मी मिल नहीं रही। उस बच्ची के कपड़े काफी मैले थे और सिर्फ पिकनिक के हिसाब से काफी पुराने लग रहे थे। उस बच्ची को वहीं रहने को कहकर हम भी उसकी मम्मी की तलाश में लग गए, कुछ देर तो मिलकर तलाशा और फिर मैं और मेरी दोस्त अलग-अलग दिशा में ढूँढने निकल गए। हमें जंगल की खाक छानते 1 घंटा हो गया था और अंधेरा भी होने लगा था तो हमने वापिस जाने की ठानी और उस बच्ची को भी अपने साथ लेजाकर और पुलिस में खोई मम्मी की रिपोर्ट लिखवाने का फैसला किया। वापिस पहुँचकर जब हमने उसे अपने साथ चलने को कहा तो उसके जवाब ने मुझे कुछ डरा दिया। उसने कहा, "आप कल फिर से आना, हम कल फिर से मम्मी को ढूँढेंगे कल मिलेंगे।"
7. एक अच्छा फैसला
"यह 3 जनवरी, 2018 की बात है। मैं सोलो ट्रिप के बाद महाबलेश्वर से रत्नागिरी वापस जा रहा था।रात के 10 बज रहे थे और मैं खाली सड़कों पर ड्राइविंग का मज़ा ले रहा था। अचानक, मैंने देखा कि एक महिला कशेडी बस स्टैंड पर अकेले इंतज़ार कर रही है। मैंने अपनी गाड़ी की स्पीड थोड़ी कम की और आखिर में रोक ही दी। वो औरत बूढ़ी लग रही थी, थकी हुई थी और उसके पास एक बैग था जिसे पकड़कर वो मेरी गाड़ी की तरफ भागती हुई आई। मुझे एहसास हो रहा था कि मुझे गाड़ी भगाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
उसने मेरी खिड़की पर दस्तक दी और शीशा नीचे करने को कहा, मैंने बहुत थोड़ी सी खिड़की खोली और उसने कहा, "मेरे पति ने मुझे घर से निकाल दिया और मैं बिल्कुल अकेली हूँ। मेरा परिवार यहाँ से लगभग आधे घंटे की दूरी पर रहता है। क्या आप मुझे एक लिफ्ट देंगे? प्लीज़, मैं कोई भूत नहीं हूँ", ये बोलते वक्त उसकी शकल पर एक डरावनी लेकिन आकर्षक सी मुस्कान थी। उसकी शक्ल का जैसे रंग उड़ा हुआ था और बाल बिखरे हुए। "मैं उस तरफ नहीं जा रहा हूँ, सॉरी", ये झूठ बोलकर मैंने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी और उस औरत ने पीछे से चिल्लाते हुए बोली, "अच्छा फैसला किया"।
खैर, इन बातों पर आपको शायद तब तक यकीन ना हो जब तक ऐसा अनुभव खुद को ना हुआ हो! चलिए आप भी हमें कॉमेंट्स में ऐसी कोई डरावनी कहानी सुनाएँ।
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