भारत का ऐसा गाँव जहाँ खरीदारी के लिए जेब में पैसों की कोई ज़रूरत नहीं!

Tripoto

गाँव नाम सुनकर आप क्या समझते हैं ? एक पिछड़ा हुआ इलाका जहाँ कच्चे मकान बने हों, महीने में एक बार डाकिया चिट्ठी लाता हो, चौपाल पर एक पी.सी.ओ. फ़ोन हो, जिसका तार टूटा हो, लोग अपनी जमा-पूँजी घर के आँगन में दबा कर रखते हों, है ना? जी नहीं। आपकी सोच से कई सदी आगे बढ़ चुका है अकोदरा!

अकोदरा: गुजरात का अनोखा गाँव

फ़र्ज़ कीजिये कि गाँव की कच्ची सड़क पर चलते हुए आपको भूख लगी। सोचा ये नुक्कड़ की टपरी से एक पैकेट बिस्किट खरीद लिए जाएँ। बिस्किट लेने के लिए आप जेब में खुल्ले पैसे ढूँढ ही रहे थे, कि गाँव के दुकानदार ने आपके सामने क्यू.आर. कोड की एक तख्ती रख दी।

आप हैरानी से उसकी तरफ देख ही रहे थे, कि उसने आपको अपना मोबाईल निकाल के स्कैन करने का तरीका भी बता दिया।

जैसे ही आपने स्कैन किया, कि दुकानदार के मोबाइल की घंटी बज गयी। गुजराती में बैंक वालों का मैसेज था। उसके अकॉउंट में पैसे क्रेडिट हो चुके हैं। उसने मुस्कुराते हुए आपके हाथ में बिस्किट का पैकेट रख दिया।

अपने बिस्किट का पैकेट खोला और चौपाल के पेड़ के नीचे बैठ कर खाने लगे। इतने में आपके मोबाईल पर आपके दोस्त का वीडियो कॉल आ गया। आप ये सोचकर हैरान हुए कि यूँ तो गाँवों में फोन का नेटवर्क भी सही से नहीं आता, इस गाँव में वीडियो कॉल कैसे आ गया? स्क्रीन पर नज़र डाली तो मोबाइल गाँव के वाई-फाई से जुड़ गया था और जबरदस्त स्पीड आ रही थी।

आपका अकोदरा में स्वागत है।

यहाँ दूध लेने जाती महिलाएँ खीसे में सिक्के नहीं बाँधती, न ही ग्वाले की किताब में हिसाब लिखवाती है। गाँव के वाई-फाई से जुड़े अपने मोबाईल से पेमेंट देकर हर दिन का हिसाब कर आती हैं।

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यहाँ किसानों को अपनी फसल बिचौलियों को आने-पौने दामों में नहीं बेचनी पड़ती। गाँव की मंडी में सीधे खरीदार को बेचकर किसान अपना पैसा हाथो-हाथ अकॉउंट में ट्रांसफर करवा लेता है।

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गाँव में बैंक और ऐटीएम भी है, जिससे लोगों को अपना पैसा तकिये के नीचे दबा कर नहीं रहना पड़ता। अगर ताऊ को अपनी चिलम के लिए कोयला लाना है तो उसके ₹100 भी एटीम से निकलवाता है।

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साल 2015 को आईसीआईसीआई बैंक ने अकोदरा को डिजिटाइज़ करने के लिए गोद ले लिया था। गाँव में बैंक, एटीएम्, वाई-फाई, और गाँव के बच्चों के लिए टैबलेट बाँटने जैसे कई काम इस बैंक ने ही पूरे किए।

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कक्षा में बच्चों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए भी डिजिटल साधन है। अगर कोई बच्चा किसी कारण से स्कूल नहीं आ पाता तो तुरंत उसके माता-पिता के मोबाईल पर मैसेज चला जाता है। ये बच्चे की सुरक्षा और शिक्षा के मद्देनज़र काफी अच्छा कदम है। कक्षा में पढ़ाने के लिए भी ऑडियो-विज़ुअल टूल्स की मदद ली जाती है।

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आस-पास के बड़े शहरों से सड़क से अच्छी तरह जुड़ा है। गाँव से 11 कि.मी. दूर हिम्मतनगर जंक्शन रेलवे स्टेशन है। सरदार वल्लभभाई पटेल इंटरनैशनल एयरपोर्ट सिर्फ 80 कि.मी. दूर अहमदाबाद में है।

उम्मीद है भारत के कई कंपनियाँ राज्य सरकारों के साथ मिल कर ऐसे ही गाँवों को डिजिटल बनाते रहें, ताकि भारत की जो 85 प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है, उनका शैक्षिक रूप से तो उत्थान हो ही, साथ ही उनके लिए चलाए जाने वाली कई तरह की सरकारी सुविधाओं का लाभ भी सीधा उनके बैंक अकॉउंट में पहुँचे, जैसे अकोदरा गाँव के डिजिटल लोगों के पहुँचता है।

आपका इस बारे में क्या ख़याल है ? क्या आप भी ऐसे मॉडर्न डिजिटल गाँव में जाना चाहेंगे और वहाँ की फोटोज़ खींच कर हाथों-हाथ गाँव के सुपर-फ़ास्ट इंटरनेट से इंस्टाग्राम पर डालोगे ? कमेंट्स में बताओ।

क्या आप भी ऐसी अनोखी जगहों के बारे में जानते हैं? तो यहाँ क्लिक करें और इसकी जानकारी Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटें।

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