24 साल के इस लड़के ने CA के एग्ज़ाम छोड़, साइकल पर राँची से सिंगापुर की यात्रा कर डाली! 

Tripoto

दाढ़ी बढ़ा रखी है, बाल सालों से नहीं काटे शायद, पापा के पास बड़ी गाड़ी है लेकिन साइकिल पर घूमता है। चार्टर्ड अकाउटेंट (CA) का पेपर छोड़ दिया है। 24 साल का ये लड़का दुनिया की नज़रों में पागल है, जिसको आने वाले भविष्य की कोई फ़िक्र नहीं है। लेकिन हमारे लिए मिसाल है ये शख़्स। पर आख़िर क्यों?

दिल्ली में रहने वाले हिमांशु गोयल ने 55 दिन में राँची से सिंगापुर की ज़मीन महज़ अपनी साइकिल पर नाप दी। तो इंटरव्यू लेना तो बनता ही था!

हिमांशु, अपने बारे में कुछ बताएँ

मैं पानीपत के एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ था लेकिन पिछले 14 साल से दिल्ली में रह रहा हूँ। दुनिया घूमने का इतना शौक़ है मुझे कि पर्वतारोहण और प्राथमिक चिकित्सा का कोर्स भी पूरा कर चुका हूँ।

दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉमर्स में ग्रेजुएट हूँ और इसके साथ मैंने पर्वतारोहण में बेसिक सर्टिफिकेशन कोर्स अटल बिहारी वाजपेयी माउंटेनियरिंग एवंं अलाइड स्पोर्ट्स और एडवांस सर्टिफिकेशन कोर्स राष्ट्रीय माउंटेनियरिंग एवं अलाइड स्पोर्ट्स से किया है।

इनके साथ ही चार्टर्ड अकाउंटेंट का 3 साल का कोर्स भी किया हुआ है मैंने।

पर्वतारोहण का कोर्स करने के बाद साइकिल पर सिंगापुर का प्लान कैसे बनाया??

आपके काम से लोग तब तक संतुष्ट नहीं होते जब तक आप कुछ बड़ा ना करके दिखाओ। यही वो सपना था जो इस आइडिया के क़रीब लाया।

मैं कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे दुनिया कुछ सीखें, लोग प्रेरणा ले सकें मेरे काम से। बिना डरे, बिना थके और ढेर सारी मेहनत के बाद मैंने वो मुक़ाम हासिल किया जो मैं बरसों से करना चाहता था। अगर मैं ये कहूँ कि ये कठिन काम है, तो कहना ग़लत होगा। क्योंकि अटूट लगन से कोई भी इस काम को कर सकता है।

इस कठिन और चुनौती भरे सफ़र की तैयारी कैसे की? कोई स्पेशल ट्रेनिंग या फिर कुछ और?

इस चुनौती भरे सफ़र की तैयारी 9 महीने तक चली। अक्टूबर 2018 में मैंने इसके बारे में सोचा और अगस्त 2019 में ये हक़ीकत में बदला। इस प्लानिंग में सब कुछ था, कौन सा रूट लेना है, कौन सी सड़क चुननी है। कौन- कौन से शहरों से होकर गुज़रना है। और सबसे चुनौती भरा काम था फंड जुटाना और देशों के लिए वीज़ा हासिल करना था।

इस बीच मैंने कई ट्रेन्ड साइकिलिस्ट से मुलाक़ात की जिन्होंने पूर्व से पश्चिम से गुज़रते हुए म्यांमार पार करने की सलाह दी। ख़ूब सारी खोज बीन के बाद हम तीन लोग निकलने वाले थे लेकिन किसी वजह से दो साथियों ने बैकआउट कर दिया, हमेशा की तरह। तो स्पॉन्सर्स ने भी मना कर दिया लेकिन मेरे पैसों से मैं सिंगापुर तक जा सकता था।

पिछले एक महीने से हर दिन मैं 5-10 किमी0 दौड़ता था जिसका फ़ायदा मुझे साइकिलिंग में मिला। मैं फिर मनाली से लेह तक साइकिल पर गया ये देखने के लिए कि ज़्यादा सामान लेकर मैं कितना जा सकता हूँ।

इतने बड़े रास्ते में अगर खाना पीना ठीक से ना हुआ तो बहुत बड़ी दिक्कत हो सकती है। कुछ दोस्तों की सलाह से मैंने बैकपैकिंग की। विएट्रा गेयर ने ट्रिप के लिए मुझे बैकपैक के लिए स्पॉन्सर किया था। मेरे पास कुछ गिनी चुनी चीज़ें थीं- जैसे दवाइयाँ, शॉर्ट्स के तीन जोड़े, शर्ट के तीन जोड़ियाँ, टी-शर्ट, पैंट, मोज़े, जैकेट, साइकिल के ट्यूब, टेंट, सोने वाला बैग, चटाई, कैंपिंग के लिए ज़रूरी चीज़ें।

इतने लम्बे सफ़र के लिए सही रूट बहुत ज़रूरी है, आपने कौन सा रूट चुना था? क्या आप भी आसपास के नज़ारे देखने के मूड में थे या फिर सिर्फ़ सफ़र जल्दी से जल्दी पूरा करने पर ध्यान था??

रूट का चुनाव करने के दो बडे़ कारण थे, मेरी सुरक्षा और रहने, खाने की सुविधा। आपको हो सकता है कॉमेडी लगे, लेकिन गूगल मैप्स पर मैंने आधे से ज़्यादा रास्ते पता किए थे। उसके साथ ही मैं वहीं रुकता था, जहाँ खाने रहने की व्यवस्था होती थी।

और इस रास्ते से गुज़रा था मैं- राँची- जमशेदपुर- खड़गपुर- कोलकाता- बांग्लादेश (जेसोर, ढाका)- त्रिपुरा- असम- मणिपुर- म्यांमार (मैंडले, बागान, नैपिटडॉ, यांगून)- थाइलैंड (बैंकॉक, हुआ हिन, सूरत थानी, कोह सामुई, हात याइ)- मलेशिया (केदाह, पेनांग, इपोह, कुआलालम्पुर, मेलेक्का, जोहोर बाहरू)- सिंगापुर।

केवल सफ़र पूरा करने की जल्दी नहींं थी। मैंने अपने रास्ते में वो सारी जगहें रखीं, जो देखने लायक थीं। इस रास्ते में मैंने कच्ची सड़कें, जंंगल, शहर, हाइवे, समुद्र से जुड़ी सड़कें, ब्रिज और पहाड़ तक पर साइकिल चलाई है।

हमें किसी ने बताया कि आपको किसी ने लूटने की भी कोशिश की थी। उससे कैसे निपटे और इसके अलावा क्या दिक्कतें आईं??

हर दिन इतनी देर साइकिल चलाना हिम्मत का काम है। इसमें कभी कभी ख़राब मौसम से सामना होता है, कभी ख़राब ट्रैफ़िक से, कभी खाने का सीन होता है। साइकिल में दिक्कत और रहने की समस्या तो बहुत आम थी इस सफ़र में। कई बार तो आसमान के नीचे ही रात गुज़ारनी पड़ीऔर कभी पुलिस स्टेशन में।

ख़राब ट्रैफ़िक के कारण बहुत दिक्कतें हुई थीं। मुझे याद है असम में सड़क पर एक बोलेरो वाले ने ख़राब सड़क पर ओवरटेक करने के चक्कर में अपनी गाड़ी भिड़ा दी थी। इसमें मेरा कंंधा, हाथ और घुटनों पर चोट भी आई थी। मेरी साइकिल को थोड़ी दिक्कत आई थी, पर उसके बाद भी 80 किमी0 वैसे ही साइकिल चलाई।

ऐसी ही दिक्कत मलेशिया में हुई। वहाँ एक आदमी मेरी साइकिल का टायर पंक्चर करके भाग गया और मेरे पैसे भी चुरा लिए। मैंने पुलिस में जाकर शिकायत की। हॉस्टल आकर ख़ूब रोया मैं। ऐसे टाइम पर आपको भविष्य की ख़ूब चिन्ता होती है, डर लगता है। मेरे आत्मविश्वास और भरोसे की ख़ूब अग्निपरीक्षा ली गई इस सफ़र में।

लेकिन ऐसा नहीं है कि सब बुरा ही हुआ। इस दौरान बहुत कुछ सीखने भी मिला। कठिन दौर में रहना सीखा, ख़ुद को चुनौतियाँ देना भी। सबसे ज़रूरी बात ये कि दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है, बल्कि हर कोई अच्छा है। बस देखने के नज़रिए वाली बात है। मंज़िलों की कमी नहीं है, बस उसे पाने का जज़्बा होना चाहिए।

इस कठिन सफ़र के बाद आगे के कुछ महीने कैसे बीते? आगे किसी सफ़र का प्लान बनाया है आपने?

दिवाली का ब्रेक लिया मैंने। उस दौरान बस बाहर कुछ काम किए। अभी, मैं बाइलेट्रल नेटवर्क के साथ आउटडोर लीडर का काम कर रहा हूँ, जिसमें मुझे लोगों को कठिन जगहों पर ज़िन्दा रहने के तरीके सिखाने होते हैं। इसमें ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, बहुत ऊँचाई पर साइकिलिंग करना सिखाता हूँ।

इसके अलावा, इस बार मैंने यूरोप का ट्रिप प्लान किया है। अगले कुछ महीनों से इसके रास्तों पर रीसर्च कर रहा हूँ। इसके बाद मुझे साइकिल पर पूरी दुनिया का चक्कर लगाना है। इस दौरान कुछ पैसे तो बच नहीं रहे इसलिए किसी स्पॉन्सर के जुगाड़ में हूँ।

आपकी इस ट्रिप से प्रेरणा लेकर बहुत से लोग अपने साइकिलिंग ट्रिप का प्लान कर रहे होंगे। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे?

मैं यही चाहता था कि लोग मेरी कहानी से कुछ सीखें। लोग ये न मानें कि मैं कोई महान आदमी हूँ। मैं भी उनकी ही तरह एक सामान्य शख़्स हूँ लेकिन कुछ अलग और बड़ा करने की ख़्वाहिश रखता हूँ। बस इसलिए कि मैं अपने दिल की सुनता हूँ, जो दिल कहता है वो करता हूँ।

मैं अपने साथियों को यही सलाह दूँगा कि जो दिल कहता है, वो करो, किसी दूसरे की मत सुनो। लोग क्या, तुम्हारे घर वाले भी तुम्हें रोकने की कोशिश करेंगे। लेकिन अगर इरादा पक्का हो तो पूरी जान लगा दो। अपने सपनों का कभी अपमान मत करना। यही वक़्त है, 'बाद में करेंगे' जैसी बातें बकवास हैं। प्लानिंग और विज़न तगड़ा रखना।

कैसा लगा आपको हिमांशु का सफ़रनामा, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।

अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।

रोज़ाना वॉट्सऐप पर यात्रा की प्रेरणा के लिए 9319591229 पर HI लिखकर भेजें या यहाँ क्लिक करें

यह एक अनुवादित आर्टिकल है। ओरिजिनल आर्टिकल पढ़ने के लिए क्लिक करें।

Further Reads