भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल

Tripoto
Photo of भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल by Rishabh Bharawa

2018 में एक खतरनाक घटना हुई। दो मछुवारों को अंडमान निकोबार द्वीप पर गिरफ्तार किया गया।कारण ,वें दोनो मछुवारे 26 वर्षीय अमेरिकन ईसाई मिशनरी "जॉन" को केवल 25000रुपए के लालच में गैर कानूनी तरीके से उस द्वीप पर ले गए,जहां जाने का साहस हर कोई नही कर सकता और जिन्होंने भी यह दुस्साहस किया , उनमें से अधिकतर मारे गए या जान बचाकर भाग निकले।

आपने मेरे आर्टिकल में नॉर्थ ईस्ट के उस गांव के बारे में पढ़ा हुआ हैं जहां नाम की जगह धुन से पुकारा जाता हैं,आपने मुझसे उल्कापिंड गिरने से बनी झील के बारे में भी पढा हैं, हांटेड गांव कुलधारा से लेकर दुबई,तिब्बत ,भूटान तक के बारे में कई अनोखे आर्टिकल्स आपने मुझसे पढ़े हैं।इसी क्रम में आज चलते हैं भारत की एक ऐसी जगह की यात्रा पर जहां जाना एकदम निषेध हैं क्योंकि वहां चल रहा हैं पाषाण काल।

भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह में करीब 572 छोटे बड़े द्वीप हैं, जिनमें से केवल कुछेक पर ही बस्ती बसी हुई हैं,उनमें से भी पर्यटकों को तो लिमिटेड द्वीप पर ही जाना अलाउड हैं। इन्हीं द्वीपों में से एक हैं "उत्तरी सेंटिनल द्वीप ",जहां बस्ती तो हैं लेकिन इस द्वीप के 10 किमी की परिधि में जाना भी गैर कानूनी हैं।

ऐसा क्या हैं यहां जिसकी वजह से यहां जाना बैन हैं:

बात हैं 1771 की ,ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक जहाज ने इस द्वीप के पास से गुजरते समय यहां कुछ रोशनी देखी थी लेकिन इस चीज को लिखकर भुला दिया गया।1867 में एक इंडियन मर्चेंट शिप यहां फंस जाता हैं ,तब उन पर कुछ लोगों का हमला होने लगता हैं,जैसे तैसे वो बच कर भाग आए।लेकिन इस से सबको पता चल गया कि यहां कोई ऐसे लोग रहते हैं जो बिल्कुल अकेले रहना चाहते हैं,दुनिया से कटकर।

1880 में यहां अंडमान के दूसरे द्वीप के कुछ आदिवासी लोगों को लेकर एक जहाज फिर इधर भेजा गया। ये लोग किसी तरह वहां से 4 बच्चे ,एक महिला और एक बुड्ढे आदमी को उठा कर पोर्ट ब्लेयर सिटी में ले आए।बुड्ढे आदमी और औरत इधर के वातावरण को बर्दाश्त नहीं कर पाए और जल्दी ही मर गए,तो बच्चों को वापस उसी द्वीप ले जाकर छोड़ दिया गया।उसके बाद 1896 में एक कैदी भाग कर वहां पहुंच गया, जो मरा हुआ मिला।फिर कई सालों तक इस क्षेत्र को अकेला छोड़ दिया गया।

Photo of भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल by Rishabh Bharawa

आजादी के बाद भारत सरकार से पहली बार 1967 में एक वैज्ञानिक (anthropologist)टीम इधर भेजी गईं,त्रिलोकनाथ पंडित जी के नेतृत्व में।लेकिन उन्हें वहां कोई नहीं मिला।टीम वहां उन आदिवासियों के लिए नारियल ,बर्तन आदि छोड़ आए।1974 में एक टीम फिर त्रिलोकनाथ जी के साथ वहां जाती हैं डॉक्यूमेंट्री बनाने , अपने साथ एक सूअर और कई नारियल लेकर। तो वहां के लोग तट पर रखे नारियल ले लेते हैं और सूअर को मार देते हैं,फिर इस टीम पर भी हमला होता हैं। तब टीम उनके कुछ फोटोज़ विडियोज लेकर लौट आती हैं।

एक जहाज यहां आज भी फंसा पड़ा हैं,गूगल मैप पर भी हैं मौजूद:

1981 में एक जहाज तूफान में फंसकर गलती से यहां पहुंच गया।फिर उन्होंने देखा कि लगभग ना के बराबर ढके शरीर के कुछ लोग तीर धनुष लेकर उनके जहाज के आसपास आ जाते हैं,और हमला बोल देते हैं।यह टीम 24 घंटे तक जहाज में अपने आप को बचा कर रखती हैं और फिर इन्हें हेलीकॉप्टर द्वारा बचा कर लाया गया।लेकिन इनका जहाज वही रह गया जिसे लेने आजतक कोई वापस नहीं आया।गूगल मैप पर भी यह जहाज आपको दिख जाएगा,मैने यहां स्क्रीनशॉट लगाया हुआ हैं।

Photo of भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल by Rishabh Bharawa

1991 में फिर एक टीम एक महिला वैज्ञानिक मधुमाला जी के नेतृत्व में यहां पहुंची। यह यहां जाने वाली पहली महिला थी, ये अपने साथ नारियल,खिलोने आदि कुछ लेकर गई। मधुमाला जी पर भी वहां के पुरुष तीर तान कर खड़े हो गए लेकिन वहां की आदिवासी स्त्रियों ने उधर की भाषा से उन्हे ऐसा करने से रोका।फिर सभी ने टीम के साथ अच्छा व्यवहार किया ,गिफ्ट्स भी लिए,फोटोज और विडियोज लेने दिए।

1997 में इस द्वीप को ट्राइबल एक्ट 1956 के तहत सुरक्षित कर दिया।वहां के लोगों को किसी का इंटरफेयर पसंद नही हैं तो द्वीप के 10 किमी के आसपास भी जाना अब इलीगल हैं।यहां भारत की नौसेना द्वारा गश्त लगाई जाती हैं।2004 की सुनामी में भारतीय हेलीकॉप्टर से उन पर निगरानी रखी गईं लेकिन उन्होंने हेलीकॉप्टर पर भी तीर चलाए।2006 में कुछ मछुवारों की लाशे वहां मिली।

Photo of भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल by Rishabh Bharawa
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कुछ सालों पहले फिर रहा यह द्वीप सुर्खियों में:

2018 में जब अमरीकी "जॉन" , नौसेना से छुपकर , दो मछुवारों के साथ वहां पहुंच जाता हैं, तब उसका उद्देश्य यह होता हैं कि वो वहां के लोगों को ईसाई धर्म के बारे में बताए और धर्म परिवर्तन करदे।इसीलिए वो अपने साथ नाव में एक गोप्रो कैमरा, बाइबल और एक डायरी लेकर जाता हैं।14 नवंबर को वह पहली बार वहां पहुंचता हैं, दोनों मछुवारे वहां से दूर नाव में ही रुकते हैं। जॉन जैसे ही उन लोगों की झोपड़ी के पास जाता हैं,वो उसे डराकर भागा देते हैं।कुछ घंटे बाद फिर वो दुसरी तरफ से उनके पास जाता हैं और चिल्ला चिल्ला कर बाइबल के बारे में बताने की कोशिश करता हैं लेकिन वो लोग उसपर हंसते हैं और गुस्सा होते हैं।उनके कुछ बच्चे जॉन के पास आकर तीर चला देते हैं जो बाईबल में जा लगता है।वो बच निकलता हैं यह घटना डायरी में लिखता हैं और अगले दिन फिर धर्म के प्रचार में अंधा होकर वहां जाता हैं।कुछ देर बाद दोनों मछुवारे देखते हैं कि वो लोग तट के पास उसकी लाश को लाकर गाड़ देते हैं। वे मछुवारे उसका कैमरा और डायरी लेकर भाग निकले, जहां पोर्ट ब्लेयर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

यह घटना महज 4 साल पहले की ही हैं।इसके बारे में सब फोटा और विडियोज गूगल पर मिल जायेंगे।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उन लोगों के बारे में:

ये लोग अपने उस वातावरण में ही ढले हुए हैं,दुनिया से एकदम कटे हुए। ये लोग अभी भी पाषाण काल में ही जी रहे हैं।ऐसा माना जा रहा हैं इनकी सभ्यता करीब 60000 साल पुरानी हैं और ये अपने आप को तब से ही सर्वाइव किए हुए हैं।दुनिया से कटे होने के कारण इनके आसपास कोई रोग नही फैला इसीलिए इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफ़ी कम हैं ,इसीलिए ये हम लोगों के बीच आते ही मर जाते हैं।ये शिकार करते हैं।केवल फल,मछलियां ,शहद और छोटे मोटे जानवर खाते हैं।यह द्वीप 60 वर्ग किमी में फैला हैं और यहां करीब 400 से 500 लोगों के होने का अनुमान हैं।

Photo of भारत के इस द्वीप पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं, अभी भी यहां चल रहा हैं पाषाण काल by Rishabh Bharawa

खैर, अब इनको इन्ही के हालात में छोड़ दिया गया हैं बस यह द्वीप भारत के हिस्से में हैं इसीलिए आसपास नौसेना गश्त करती रहती हैं।

आशा हैं आपकों यह जानकारी काफी अनोखी लगी होगी और एक बार तो यकीन भी नही हो रहा होगा कि ऐसी कोई जगह भी भारत में हैं जहां पाषाण काल अभी भी चल रहा हैं।

अच्छा लगे तो लाइक,शेयर और कॉमेंट करे।

– ऋषभ भरावा

फोटो क्रेडिट: गूगल

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