मैं सुबह उठा और अपने गर्म कम्बल में थोड़ा कसमसाया और कंबल से बाहर झाँका तो देखा की सूरज की किरनें बेडसाइड की खिड़की से छन कर मेरे ऊपर आ रही थी ।
जैसे ही मैंने अपनी खिड़की से बाहर देखा तो मैं अपनी आँखों को नींद की वजह से कम बल्की अविश्वास की वजह से ज्यादा रगड़ रहा था क्योंकि मुझे विश्वास नहीं हो था कि यह मैं क्या देख रहा हूँ। मोती सी सफेद बर्फ आसमान से गिर रही थी। कल जो हरियाली और पेड़-पौधों से भरे नज़ारे मेरे सामने थे उन्हें जैसे जगह प्रकृति ने मानो मेरी ही तरह एक सुंदर सफेद कंबल में लपेट लिया है ।
भारत में बर्फबारी किसी जादू से कम नहीं लगती है। यह भारत में स्थित आठ कम भीड़-भाड़ वाली जगहें हैं जहां आप इस शानदार अनुभव के लिए जा सकते हैं।
1. थांगा
थांगा भारत का सबसे उत्तरी गाँव है। यह गाँव तुर्तुक से कुछ ही किलोमीटर दूर है। तुर्तुक से आगे जाने के लिए, सेना से अनुमति लेना ज़रूरी होता है । यह भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LOC) के बहुत करीब स्थित है और यहाँ से सुंदर नज़ारो को देखने का मज़ा कुछ और ही है।
थांगा में खास:
बर्फ से ढकी चोटियों के अलावा इस गाँव के मुख्य आकर्षण में एक गाइडेड यात्रा शामिल है जहाँ यात्री सीमा पर फेंसिंग, भारतीय सेना के बंकर, पाकिस्तान सेना के बंकर और चोटियों पर पाकिस्तानी झंडे देख सकते हैं, क्योंकि वे बहुत ऊँचाइ पर स्थित हैं। यहाँ फोटो और वीडियो खीचने की इजाजत भारतीय सेना द्वारा अनुमत और अधिकृत हैं।
इस गाँव मे खुमानी, अखरोट और सेब से लदे पेड़ों की भरमार है। सीमापार से, LOC के पार फोरबू गाँव दिखाई देता है जो केवल लैंडमाइंस द्वारा थांग से अलग किया गया है।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
थांगा मे नवंबर की शुरुआत मे बर्फ गिरना शुरू होती है जो की गर्मियों में मार्च-अंत या मई की शुरुआत तक जारी रहती है। हालांकि थाँगा मे एंट्री भारतीय सेना द्वारा दी गई अनुमति पर निर्भर करती है।
2. लाचुंग
8,610 फीट की ऊँचाई पर और गंगटोक से लगभग 118 कि.मी. की दूरी पर स्थित, उत्तरी सिक्किम में लाचुंग को बर्फ से ढके पहाड़ों, फूलों की घाटियों, घने जंगलों, प्राकृतिक गर्म झरनों और लुभावने नज़ारो के लिए जाना जाता है।
यकीन मानिए इस ऑफ-बीट स्पॉट में आपकी मुलाक़ात सबसे दिलचस्प और गर्मजोशी से स्वागत करने वाले लोकल्स और शानदार बर्फबारी से होगी ।
लाचुंग में खास
ज़ीरो पॉइंट वो जगह है जहाँ नागरिक (सिविलयन्स) सड़क समाप्त होती है और आप इससे आगे नहीं बढ़ सकते है क्योंकि यह पूरे साल मोटी बर्फ से ढकी रहती है।
यहाँ आश्चर्यजनक युमथांग फूल घाटी में युमथांग हॉट स्प्रिंग है। यह कहा जाता है कि इस प्राकृतिक गर्म पानी में कई औषधीय गुण होते हैं, जिसका कारण इसमें मौजूद सल्फर की भरपूर मात्रा है। सोचिए बर्फ़ीले तापमान में बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच, एक गर्म पानी के झरने में एक आरामदायक डुबकी, आ गया ना मज़ा सोचने में ही !
गुरुडोंगमार झील जिसमे पूरे साल बर्फ जमी रहती है, माना जाता है कि यह बहुत पवित्र झील है। इस झील का एक हिस्सा कभी नहीं जमता है, जबकि इसके आसपास की हर जगह और चीज़ं जमी हुई रहती हैं।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
अगर आप यहाँ के शानदार उत्सवों का आनंद लेना चाहते हैं और लाचुंग मठ में पारंपरिक मुखौटा नृत्य करते भिक्षुओं को देखना चाहते है तो दिसंबर-शुरुआत का समय इसके लिए सबसे सही है। दिसंबर के अंतिम सप्ताह से अप्रैल के अंत तक लाचुंग मांनो बर्फ का एक कंबल ओढ़े आराम करता रहता है ।
3. नेलंग
11,000 फीट पर स्थित, नेलंग घाटी (नेलोंग घाटी) उत्तरकाशी शहर से लगभग 100 कि.मी. उत्तर में स्थित है जिसमें की ठंडे बंजर रेगिस्तान और बर्फ से ढकी ऊँची चोटियाँ हैं। इसे उत्तराखंड का लद्दाख भी कहा जाता है क्योंकि इसकी स्थलाकृति लद्दाख और तिब्बत की भूमि व पहाड़ों से काफी मिलती जुलती है । ये आखिरी छोर है जहाँ आप भारत-चीन सीमाओं से पहले यात्रा कर सकता है और घूम सकते है और यहाँ से सीमा से सिर्फ 60 कि.मी. दूर स्थित है।
नेलंग में खास:
लद्दाख जैसी जगह जो लद्दाख नहीं है, यकीन मानिए इस जगह को देखकर कई अनुभवी यात्री व घुमक्कड़ लोग भी धोखा खा जाते है । नेलंग उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क का हिस्सा है, जिसमें गंगा का क्रिस्टल-क्लियर पानी बहता है।
ये गाँव हर साल जून में दो लोकप्रिय त्योहारों, रिंगली देवी और सोमेश्वर देवता मंदिर के मेले का आयोजन करता है, जो इस घाटी की शानदार सांस्कृतिक झलक पेश करते है। यह घाटी काफी हद तक बाहरी दुनिया से अलग बसी हुई है जिससे यहाँ वन्यजीवों की भरमार है। हिमालयन नीली भेड़, हिम तेंदुए, और कस्तूरी मृग जैसी प्रजातियाँ यहाँ बहुतायत में मौजूद हैं। साथ ही ये घाटी तिब्बती पठारों के शानदार नज़ारे भी दिखाती है।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
यहाँ बर्फबारी नवंबर के आसपास शुरू होती है और मई की शुरुआत तक चलती रहती है। हाँ, एक बात ध्यान रहे कि यहाँ आने से पहले डी.एम. कार्यालय, उत्तरकाशी से पता कर ले कि कहीं सड़के बर्फ की वजह से ब्लॉक तो नहीं है ।
4. चितकुल
चितकुल भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित आखिरी गाँव है। किन्नौर घाटी में बसा चितकुल साल के अंत में एक विंटर वंडरलैंड में बदल जाता है, क्योंकि इस घाटी की हर एक जगह और चीज़ पर बर्फ की चादर चड़ी रहती है । यहाँ सर्दियों के दौरान तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।
चितकुल में खास:
बर्फ सी ठंडी नदी बसपा के किनारों पर चलें और हर तरफ सफ़ेद पहाड़ों के नज़ारों को देखें। आप यहाँ रंग-बिरंगे झंडो से सजे पुल पर थोड़ी देर धूप में खुद को गर्म भी कर सकते है । आप यहाँ "भारत के आखिरी ढाबे " में खाना खा सकते हैं या गरमा-गरम मैगी खाते हुए हर मिनट मे पहाड़ों को रंग बदलते देख सकते हैं । हिमालय की पौराणिक कथा के अनुसार नदी के किनारे पर खड़े होकर कंकड़ के ढेर को हाथ में लेकर एक प्रार्थना करें और आशा करें कि यह इच्छा कबूल होगी !
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
चितकुल में सर्दियाँ बहुत आकर्षक तो होती ही हैं लेकिन यह बेहद कठोर व मुश्किल भी हैं। कभी-कभी भारी बर्फबारी के कारण दिसंबर से मार्च के बीच मार्ग सभी बंद हो जाता है और इस अवधि के दौरान चितकुल तक पहुँचना संभव नहीं होता है। इसलिए, जाने से पहले यहाँ की स्थिति की जाँच करना सबसे अच्छा है।
कैसे पहुँचा जाए:
HRTC ने सांगला और चितकुल के लिए दिल्ली के साथ-साथ शिमला से भी बसें चलाई हैं । हालाँकि उनका रोज़ इस रूट पर आना जाना मुश्किल ही हो पाता है इसलिए निकलने से पहले अच्छे तरह से पूछताछ करना बहुत जरूरी है। शिमला और दिल्ली से निजी बसें, टैक्सी और जीप भी उपलब्ध हैं।
5. चोपटा
हिमालय की गोद में बसा त्रिशूल, नंदा देवी और चौखम्बा चोटियों के शानदार नज़ारो को पेश करते हुए, चोपटा समुद्र तल से लगभग 8,790 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।
चोपटा में खास:
चोपटा, तुंगनाथ के लिए ट्रेकिंग का बेस है । तुंगनाथ, जो पंच केदारों के साथ-साथ चंद्रशिला के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। और सर्दियों के महीनों में यह पूरा रास्ता बर्फ की एक मजबूत चादर से ढका रहता हैं। हाँ कभी-कभार होने वाली बर्फबारी में गहरे बर्फ से ढके रास्ते पर ट्रेकिंग करना एक शानदार अनुभव है।
यह विचित्र सा कस्बा केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा है जहाँ आप कस्तूरी हिरण को देख सकते हैं। बर्फ से ढके घास के मैदानों पर कैंपिंग भी कर सकते है। स्नो-ट्रेकिंग, स्कीइंग, योगा और रॉक-क्लाइम्बिंग भी यहाँ के आकर्षणों में से एक है हैं।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
दिसंबर से फरवरी तक, चोपटा में बर्फबारी जारी रहती है जो मौसम के हिसाब से कम-ज्यादा होती रहती है। इस दौरान यहाँ बहुत कम पर्येटक भी आते हैं तो उस समय इस जगह का असली अनुभव लेने का पर्फेक्ट टाइम होता है ।
कैसे पहुँचा जाए:
चोपटा ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। यहाँ कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो लगभग 200 कि.मी. दूर है। ऋषिकेश के लिए आपको देश के हर हिस्से से कई ट्रेनें मिल जाएँगी । पर्यटक ऋषिकेश से सरकारी बसों और निजी टैक्सियों से भी चोपटा बहुत आसानी से पहुँच सकते है । निकटतम हवाई अड्डा देहरादून हवाई अड्डा है।
6. तुर्तुक
हैन्डर के शानदार रेत के टीलों से गुज़रते हुए, हवा मे उड़ते प्रार्थना के झंडे को अलविदा कहें और लेह के उत्तर में 200 कि.मी. दूरी स्थित इस अविश्वसनीय, सुंदर और जादुई गाँव में पहुँचे। तुर्तुक मे खुबानी और अखरोट के पेड़ों की भरमार है और यह भारत-पाकिस्तान सीमा का आखिरी गाँव है।
तुतुर्क की खासियत:
आप जब इसे देखेंगे तो आपको लगेगा मानों आप किसी स्वर्ग मे आ गए हों। यहाँ नज़ारे और लोग दोनों ही बहुत अच्छे है । यकीन मानिए आप यहाँ पर अपने कैमरे से पिक्चर्स क्लिक करते नहीं थकेंगे । यहाँ कोई होटल नहीं है,तो इसीलिए आपको यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा उनके घरों व होमस्टे में रहने का शानदार मौका मिलता है । विश्वास करिए इन शानदार होमस्टे में बिताया गया समय आपका तुर्तुक में बेस्ट टाइम होगा । तुर्तुक में स्थानीय लोग बेहद प्यारे हैं, उनके पास अपने इस छोटे से स्वर्ग-रूपी गाँव के इतिहास के बारे में बताने के लिए कई किस्से हैं।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
अगस्त, अक्टूबर और नवंबर का समय बर्फबारी देखने के लिए बिलकुल सही समय है क्योंकि दिसंबर से मार्च तक का मौसम यहाँ अत्याधिक ठंडा और कठोर हो जाता है । यहाँ जाने के बाद यह तय है कि आपको बहुत कम यात्री और श्योक नदी और नुब्रा घाटी के आश्चर्यजनक नज़ारे देखने को मिलेंगे।
कैसे पहुँचा जाए:
तुर्तुक गाँव नुब्रा घाटी में स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए, आप या तो बाइक की सवारी कर सकते हैं या लेह से एक निजी / शेयर टैक्सी ले सकते हैं। तुर्तुक पहुँचने के लिए आपको डिस्कित, हुंडार, थोईस नामक गाँवों को पार करना होगा।
7. नाको
स्पीति घाटी के अंदरूनी हिस्सों में स्थित, यह शांत और मनोरम गाँव, नाको झील के किनारे स्थित है।
यहाँ आपको शानदार नीले आकाश और जमीन पर हरियाली के नज़ारो का एक बेहद खूबसूरत मिश्रण देखने को मिलेगा । और तो और आपको यहाँ से कई बर्फ के पहाड़ दिखाई देंगे जो सूरज की रौशनी में चमक रहे होंगे ।
नाको में खास:
आप जब धनखड़ गोम्पा नज़ारे देखेंगे तो पाएँगे, नीचे क्रिस्टल सा साफ पानी, पीछे की तरफ बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, और झील में परावर्तित होकर आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल। ताबो मठ का अंदरूनी भाग चन्दन से बना है। नाको झील कुछ अद्भुत तस्वीरों का मानो एक शानदार कैनवास है जहाँ आप अपने कैमरा से तस्वीरें क्लिक करते नहीं थकेंगे । यहाँ के अधिकांश होम-स्टे और कैफ़े रूफ-टॉप पर स्थित हैं जिनकी छतों पर बैठकर आप गर्म चाय या मैगी की एक प्लेट के साथ बेहद खूबसूरत नज़ारो का मज़ा ले सकते है ।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
नाको में सर्दियों का मौसम पूरी तरह से अलग है । सर्दियों में नाको तक पहुँचना अपने आप में ही एक टास्क है। अक्टूबर के अंत तक स्पीति में बर्फ गिरना शुरू हो जाती है तो धीरे-धीरे रोहतांग और कुंजुम दर्रे को बंद कर दिया जाता है और नाको तक पहुँचना बेहद मुश्किल हो जाता है। हालांकि, नवंबर के अंत से फरवरी की शुरुआत में जब बर्फ पिघलना शुरू होती है तब आप इस जगह पर जा सकते है ।
कैसे पहुँचा जाए:
दिल्ली, शिमला या मनाली से रेकॉन्ग पियो तक कैब बुक की जा सकती है। रेकॉन्ग पियो, नाको से सिर्फ 4 घंटे की दूरी पर है और वहाँ से बसें और साझा टैक्सी उपलब्ध हैं जो आपको नाको तक ले जाने के लिए उपलब्ध हैं। चंडीगढ़ हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है।
8. मुंस्यारी
मुनस्यारी को इसकी सुंदरता और शानदार प्राकृतिक परिवेश को देखकर, इसे "लिटिल कश्मीर" की उपाधि दी गई है। हिमालय के चरणों में बसा ये छोटा सा शहर है और इसका शाब्दिक अर्थ है "बर्फ से भरा स्थान"।
मुंस्यारी की खासियत:
यह एक ऊँचाई वाला ट्रेकिंग स्पॉट है जो नंदा देवी से विभिन्न ग्लेशियरों और बेस कैंप की ओर जाता है। यहाँ बिर्थी पर एक शानदार झरना है और बेतुलीधर नामक दुर्लभ फूलों से भरा एक विशाल प्राकृतिक उद्यान है जो सर्दियों में रोमांचक स्कीइंग का स्पॉट बन जाता है। मदकोट को प्राकृतिक रूप से गर्म पानी के झरनों के लिए जाना जाता है, जो ठंडी सर्दियों में वास्तव में एक वरदान हैं। ताम्र कुंड, एक प्राकृतिक झील है जहाँ कस्तूरी मृगों को देखा जाता है और पवित्र नंदादेवी मंदिर देखने के लिए अन्य स्थान हैं।
बर्फबारी देखने के लिए सबसे अच्छा समय:
मुनस्यारी में काफी बर्फबारी होती है और कभी-कभी, यहाँ तक कि दिसंबर से फरवरी तक भी हिमपात होता है।
कैसे पहुँचा जाए:
मुनस्यारी उत्तराखंड के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। बस और टैक्सी दिल्ली से जाती हैं, लेकिन दिल्ली से मुनस्यारी तक की यात्रा काफी लंबी है। इसलिए, अपनी यात्रा को विभिन्न भागों व पड़ावों में बाँटने की सलाह दी जाती है। काठगोदाम (275 कि.मी.) और टनकपुर (286 कि.मी.) निकटतम रेलवे स्टेशन हैं।
तो, अगर आप बर्फ से प्यार करते हैं, तो बर्फबारी देखने के लिए इन शानदार जगहों पर जाने की प्लानिंग शुरू कर दो।
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