अक्सर महिलाएँ दूसरी महिलाओं को कुछ नया करते देख प्रेरित होती हैं | और अगर महिलाएँ कुछ ऐसा काम करें जो समाज के हिसाब से सिर्फ़ पुरुष कर सकते हैं, तो मन में प्रेरणा के साथ इज़्ज़त भी पनपती है |
तो आइए भारत की कुछ ऐसी जाँबाज़ महिलाओं के बारे में जानकारी लें, जिन्होंने बाइक पर बैठ कर ऐसे कारनामे कर दिखाए जिनको करने की हिम्मत पुरुष भी नहीं कर सकते |
कैंडिडा लुइस
जो लोग कोई बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते हैं, वो होते तो हम जैसे ही हैं। बस उनके अन्दर जज़्बा होता है कुछ नया कर दिखाने का, कुछ हासिल करने का। हुबली जैसे एक छोटे से शहर की कैंडिडा लुइस का हौसला ही था, जिसकी बदौलत वो अपनी बाइक पर बंगलौर से सिडनी का एक लंबा सफ़र तय कर सैकड़ों लोगों के लिए मिसाल बन गईं।

लड़कों के जाने माने पैशन में अपना नाम कमाने वाली कैंडिडा आज से 5 साल पहले बाइकिंग को बस शौक़ की तरह देखती थीं। अपने कॉलेज के दोस्तों की बाइक चलाकर ख़ुश रह लेने वाली लड़की। लेकिन अपने जुनून को रास्ता देने के लिए कैंडिडा ने बाइक को अपना सहारा बनाया और अपनी सेविंग्स बाइकिंग ट्रिप पर लगाने लगीं।
शुरू के दो-तीन साल तो यही हाल रहा, लेकिन 2018 के बंगलौर से सिडनी वाले सोलो बाइकिंग ट्रिप के बाद कैंडिडा को इतनी प्रशंसा मिली कि उनकी ज़िन्दगी बदल गई। अब तक कैंडिडा कुल 25 देशों की यात्रा के साथ 34,000 किमी0 का सफ़र तय कर चुकी हैं।

बाइकिंग को अपना दोस्त बताने वाली कैंडिडा ट्रैवलिंंग को अपना सबसे बड़ा गुरू मानती हैं। पैसा तो आके चला जाता है, लेकिन ट्रैवलिंग से जो आप सीखते हो, वो हमेशा साथ रहता है।
दीपा मलिक
कुछ लोगों को लगता है कि दिव्यांग होना जीवन का अंत है | मगर दीपा जैसी पैरालिंपियन की कहानी सुनेंगे तो लगेगा कि कोई मुश्किल इंसान के जज़्बे से बड़ी नहीं होती |

दीपा मलिक रेड डी हिमालया (दुनिया की सबसे ऊँची मोटरस्पोर्ट्स रैली) का हिस्सा रही हैं, जिसमें उन्होंने मुश्किल इलाकों और बिगड़े मौसम से जूझते हुए अपनी बाइक चलाई और रैली को आख़िरी तक पूरा किया | इस रैली के ज़रिए दीपा ने भारत के उत्तरी इलाक़े की सैर करी, जिसके बारे में कई लोग सिर्फ़ सपने ही देखते हैं | उन्होनें यमुना में धारा के विपरीत तैराकी, 3000 कि.मी. की लेह और वापसी की यात्रा जैसे साहसी कारनामे तो किए ही साथ ही साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक्स में हिस्सा लिया जिसमें पदक जीतने वाली वो पहली भारतीय महिला थी।

सभी साधनों से संपन्न लोग भी कई बार इस दिव्यांग महिला जितना साहस नहीं कर पाते | दीपा बताती है कि अपने खाली समय में मूड अच्छा करने के लिए उन्हें लंबी ड्राइव करके ट्रैवल करना बेहद पसंद है | दीपा की इस अटूट इच्छाशक्ति और सपनों को सच कर दिखाने की काबिलियत को हम सलाम करते हैं |
उर्वशी पतोले
जिस समाज में औरत को चौके-चूल्हे तार सिमट कर रहने की हिदायत दी जाती है, वहाँ सभी बेड़ियों को तोड़ते हुए 28 साल की उर्वशी अपने साथ 20 और महिलाओं का समूह लेकर हिमालयन ओडिसी की ओर फ़तह पाने निकली थी |
ये एक ऐसी साहसी महिला है जो ट्रैवल करने के लिए जीतोड़ मेहनत करती हैं और बाइक पर सवार होकर नुब्रा वैली की सैर कर आई हैं | पुणे में बाइकरनी नाम का अनोखा ग्रुप चलाने वाली उर्वशी महिला बाइकरों को भारत की सैर करवाने ले जाती हैं |

पतोले ने ना सिर्फ़ भारत की महिलाओं को सशक्त करने की पहल की है, बल्कि उनकी इस पहल से प्रभावित होकर चीन और कनाडा जैसे देशों ने उर्वशी को अपने यहाँ भी ऐसे ही इंस्टीट्यूट खोलने की गुज़ारिश की है | उर्वशी चाहती हैं कि वो हज़ारों महिलाओं को अपने सपने पूरे करने की प्रेरणा दें | वैसे तो कई बार वे ख़तरनाक इलाक़ों से भी बाइकिंग करती हुई निकलती हैं, मगर ग्रामीण इलाक़ों की खुश्बू उन्हें हर ख़तरे का सामना करने का साहस दे देती है |
चित्रा प्रिया
चित्रा प्रिया ने लेह से कन्याकुमारी तक तक का सफ़र सिर्फ़ 158 घंटों में तय करके लोगों को हैरत में डाल दिया | ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के एक छोर से दूसरे तक सबसे जल्दी पहुँचने वाली ये पहली शक्स हैं |

बाइकरनी नाम के अपने ग्रुप के साथ वे हाल ही में गुजरात और महाराष्ट्र के 10 दिन के टूर से लौटी हैं | सैडल सोर नाम की रेस (जिसमें 1600 कि.मी. की दूरी 24 घंटे में पूरी करनी होती है ) को पूरा करने वाली एशिया की अकेली महिला है | मोटरबाइकिंग के क्षेत्र में लिम्का बुक ऑफ नैशनल रिकॉर्ड में 3 रिकॉर्ड इन्हीं के नाम से हैं | ये चेन्नई में रहती हैं और तमिल नाडु के आस-पास लगातार ट्रेनिंग करती रहती हैं |

बाइकर होने के साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चित्रा ग्रीनपीस में स्वयंसेवी के रूप में भी सेवा देती हैं | ये एक ऐसे ट्रावेलर की पहचान है जो घूमने के साथ ही अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग है |चित्रा के अनुभव में भारत में बाइकिंग करना काफ़ी सेफ है | उन्हें कभी भी बाइकिंग करते हुए असुरक्षित महसूस नहीं हुआ और इस बात से बाकी महिलाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए |
श्रेया सुंदर अइयर
श्रेया को बाइकिंग से तब प्यार हुआ जब कॉलेज के बाद उनकी एक दोस्त ने बाइक खरीदी | फिर क्या था ! दोनों शहर के बाहर बाइक चलाने निकल जाते थे और इसी तरह उन्हें बाइकिंग से लगाव हो गया | चलाते चलाते कई बार वे सपनों में खो जाया करती थी, और उनमें से एक सपना बाइकर बनने का भी था |

24 साल की उम्र में ही अइयर टीवीएस और नैशनल रैली की पहचान के रूप में जानी जाने लगी | ऑफबीट जगहों और अंजानी सड़कों को नापते हुए इस पुरुष प्रधान खेल में वो कब सबसे आगे निकल गई, पता ही नहीं चला | श्रेया नैशनल रैलिंग चैंपियनशिप में भाग लेने वाली पहली महिला भी हैं | कच्ची-पक्की सड़कों को नापते हुए उन्होंने प्रतियोगिताओं की तैयारी की | आज भी आप उन्हें अपनी सुपर बाइक पर बैठ कर बेंगलुरु की सड़कें नापते देख सकते हैं |

ये साहसी लड़की देश की सभी जवान लड़कियों को अपने सपने पूरे करने के लिए मेहनत करने का मैसेज देती है | इनका मंत्र भी इन्हीं की तरह बोल्ड है - गो हार्ड ओर गो होम |
इन सभी औरतों ने अपने सपनों को पाने के लिए कई मुश्किलों का सामना किया है और हर बार जीतीं हैं | रास्ते की अटूट मेहनत के बावजूद इन्होंने कभी हार नहीं मानी | इनकी ट्रैवल की कहानियों में सच्चाई के साथ जुनून भी भरा है | इन्होंने अपनी ज़िंदगी में जो कुछ सीखा है वो अपने सपने पूरे करने की राह में ही सीखा है | उम्मीद करते हैं कि इनकी ज़बरदस्त कहानियाँ पढ़कर देश में और भी कई महिलाएँ आपे बाइकिंग के सपने को साकार करने में जुट जाएँगी |
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