चंदेलों के समय बना था तालाब
बेलाताल में रहने वाले लोगों का कहना है कि यह तालाब 17 वें चंदेल राजा मदन वर्मन के छोटे भाई बलवर्मन ( ब्रह्म ) ने बनवाया था। उसी ने महोबा का मदन सागर, कबरई का ब्रह्मताल और टीकमगढ़ का मदन सागर भी बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि तालाब का नाम ब्रह्म ने अपनी रानी बेला के नाम पर बेला तालाब रखा था। बेला ( रानी का नाम) + ताल ( तालाब ) से मिलकर बेलाताल नाम बना है। यहां के बड़े बुज़ुर्ग बच्चो को बेलाताल की कहानी सुनाते हैं। उनका कहना है कि जगह का नाम तालाब के नाम से पड़ा है।कहते हैं कि एक जयंत नाम के ऋषि मुनि जंगल में रहते थे। उसी समय बेल ब्रह्म भी जंगल में घूमने आये थे। उस वक़्त ऋषि अपनी तपस्या में मग्न थे। बेल ब्रह्म की मुलाक़ात ऋषि जयंत से होती है। ऋषि , ब्रह्म से तालाब खुदवाने को कहते ताकि तालाब के पास में बस्ती बसाई जा सके। 1130 वीं में तालाब खुदवाया गया। चंदेल राजाओं के समय में कोई बस्ती नहीं थी। उस वक़्त बेलाताल में जंगल ही था। जैसे ही तालाब बना, बस्ती भी बस गयी और बस्ती का नाम बेलाताल रख दिया गया। तालाब तो खुद गया लेकिन तालाब में पानी कहाँ से आया, यह सवाल है ?
बेलाताल तालाब में पानी भरने का किस्साJ
इससे भी जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि उस वक़्त यह कहा गया की अगर किसी युवक को झूला झुलाया जाये तो इंद्रदेव खुश होकर बारिश करेंगे। लोगों ने बिलकुल ऐसा ही किया और इंद्रदेव बरसने लगे और तालाब में जाकर समाहित हो गए। कहा जाता है कि दीवाली और दशहरा के समय तालाब से एक कटोरा निकलता है। अब इस बात में कितना सच है, कुछ कहा नहीं जा सकता। बेलाताल के नाम से कई गाने भी बने, जो गाँव की औरतें सावन और मकर संक्रांति के समय गाती हैं। जैसे – ‘लाग्यो सावन भादवो‘, ‘महीनो सावन को मोत्याला‘ आदि गाने वहां गाए जाते हैं।
इससे भी जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि उस वक़्त यह कहा गया की अगर किसी युवक को झूला झुलाया जाये तो इंद्रदेव खुश होकर बारिश करेंगे। लोगों ने बिलकुल ऐसा ही किया और इंद्रदेव बरसने लगे और तालाब में जाकर समाहित हो गए। कहा जाता है कि दीवाली और दशहरा के समय तालाब से एक कटोरा निकलता है। अब इस बात में कितना सच है, कुछ कहा नहीं जा सकता। बेलाताल के नाम से कई गाने भी बने, जो गाँव की औरतें सावन और मकर संक्रांति के समय गाती हैं। जैसे – ‘लाग्यो सावन भादवो‘, ‘महीनो सावन को मोत्याला‘ आदि गाने वहां गाए जाते हैं।
बेलाताल को जैतपुर के नाम से भी जानते हैं
बेलाताल की कहानी में अभी एक और मोड़ बाकी है। बेलाताल को ‘जैतपुर‘ के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि जयंत के नाम पर जगह का नाम जैतपुर पड़ा और उसी से किले का नाम भी जैतपुर का किला पड़ा। अलग नाम की तरह, इस नाम की भी अपनी एक कहानी है। दूर तक फैले बेलाताल झील के किनारे खड़ा एक जैतपुर किला दिखाई देता है। ये किला पेशवा बाजीराव और मस्तानी के प्रेम की कहानी को आज भी बिलकुल नए की तरह सुनाता है। मानों उनका प्रेम कभी पुराना ही ना हुआ हो।
छत्रसाल ने बनवाया था किला
बेलाताल पुराने काल में चन्देलों से सूर्यवंशी बुंदेलों के कब्ज़े में आ गया था। राजा छत्रसाल ने अपने पुत्रों के बीच साम्राज्य का विभाजन किया। जिसमें से बड़े बेटे हृदयशाह, पन्ना और छोटे बेटे जहगतराज को जैतपुर का राज्य मिला। राजा छत्रसाल के निर्देशन में ही जैतपुर का किला बनवाया गया, जिसमे बादल महल और ड्योढ़ी महल का भी उल्लेख किया गया।
जैतपुर का इतिहास उस समय अचानक से मोड़ लेता है जब इलाहबाद के मुगल सूबेदार मुहम्मद खां बंगश ने 1728 ई. में जैतपुर पर हमला करते हैं और जहगतराज को किले में ही बंदी बना लेते हैं। उस समय तक राजा छत्रसाल बूढ़े हो चुके होते हैं। उन्होंने अपने बड़े बेटे हृदयशाह से मदद के लिए पत्र लिखा– “बारे ते पालो हतो, पौनन दूध पिलाय! जगत अकेलो लरत है, जो दुख सहो न जाये”। साथ ही उन्होने मराठा पेशवा बाजीराव से सहायता की विनती की :-
जैतपुर का इतिहास उस समय अचानक से मोड़ लेता है जब इलाहबाद के मुगल सूबेदार मुहम्मद खां बंगश ने 1728 ई. में जैतपुर पर हमला करते हैं और जहगतराज को किले में ही बंदी बना लेते हैं। उस समय तक राजा छत्रसाल बूढ़े हो चुके होते हैं। उन्होंने अपने बड़े बेटे हृदयशाह से मदद के लिए पत्र लिखा– “बारे ते पालो हतो, पौनन दूध पिलाय! जगत अकेलो लरत है, जो दुख सहो न जाये”। साथ ही उन्होने मराठा पेशवा बाजीराव से सहायता की विनती की :-
“जो गति भई गज ग्राह की, सोगति भई है आय
बाजी जात बुन्देल की, राखों बाजीराव”।
राजा छत्रसाल का पत्र पाते ही पेशवा अपनी घुड़सवार सेना के साथ जैतपुर आते हैं और युद्ध में मुहम्मदखां बंगश को हरा देते हैं। फ़िर वह पेशवा बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लेते हैं । जैतपुर के युद्ध ने मराठों को बुन्देलखण्ड में स्थापित कर दिया। मराठाकालीन के किले, बावड़ियाँ और मन्दिरों के अवशेष आज भी बुन्देलखण्ड में उनके गौरव की गाथा गाते हैं।
जैतपुर की युद्ध मे पेशवा को दिखी थी मस्तानीI
जैतपुर के युद्ध में पेशवा ने एक महिला को लड़ते हुए देखा और उसके कायल हो गए। जिसके बाद पेशवा ने छत्रसाल से उस महिला योद्धा की माँग की। योद्धा का नाम मस्तानी था, जो छत्रसाल की ही पुत्री थी। जिसके बाद छत्रसाल ने ड्योढ़ी महल में एक समारोह में पेशवा और मस्तानी का विवाह करवाया। विवाह के बाद वह अपने राज्य पूना पहुंची तो पेशवा की माता और छोटे भाई द्वारा शादी का विरोध किया गया। पेशवा ने बाद में मस्तानी का नाम बदलकर नर्मदा रखा लेकिन नाम को स्वीकारा नहीं गया। बाद में दोनों का एक पुत्र होता है जिसका नाम कृष्ण रखा जाता है। लेकिन परिवार द्वारा नाम ना स्वीकारा जाने पर नाम बदलकर शमशेर बहादुर रख दिया जाता है।
जैतपुर के युद्ध में पेशवा ने एक महिला को लड़ते हुए देखा और उसके कायल हो गए। जिसके बाद पेशवा ने छत्रसाल से उस महिला योद्धा की माँग की। योद्धा का नाम मस्तानी था, जो छत्रसाल की ही पुत्री थी। जिसके बाद छत्रसाल ने ड्योढ़ी महल में एक समारोह में पेशवा और मस्तानी का विवाह करवाया। विवाह के बाद वह अपने राज्य पूना पहुंची तो पेशवा की माता और छोटे भाई द्वारा शादी का विरोध किया गया। पेशवा ने बाद में मस्तानी का नाम बदलकर नर्मदा रखा लेकिन नाम को स्वीकारा नहीं गया। बाद में दोनों का एक पुत्र होता है जिसका नाम कृष्ण रखा जाता है। लेकिन परिवार द्वारा नाम ना स्वीकारा जाने पर नाम बदलकर शमशेर बहादुर रख दिया जाता है।
मस्तानी से अलग हो गए थे पेशवा
बाजीराव-मस्तानी का प्रेम इतिहास सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है। पेशवा ने शादीशुदा होते हुए भी मस्तानी से विवाह किया था। लेकिन अपनी दूसरी पत्नियों से ज़्यादा वह मस्तानी से प्रेम करते थे। और मस्तानी के लिए अलग से एक महल भी बनवाया था। कहा जाता है कि मस्तानी के रहते हुए बाजीराव बहुत मदिरा सेवन करते थे। वैसे तो बाजीराव ब्राह्मण थे लेकिन वह मांस भी खाते थे। जो उनके परिवार को बिलकुल पसंद नहीं आया। एक दिन गुस्से में पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा और पुत्र बालाजी मिलकर मस्तानी को शनिवाड़ा महल में नज़रबंद कर देते हैं। बहुत कोशिशों के बाद भी पेशवा, मस्तानी को आज़ाद नहीं करा पाते। मस्तानी की याद में वह फिर पूना छोड़कर पारास में रहने लगते हैं। मस्तानी से अलग होने का दुःख पेशवा को इतना ज़्यादा होता है कि 1740 में वह मस्तानी को याद करते हुए अपनी आखिरी सांस लेते हैं।
बाजीराव-मस्तानी का प्रेम इतिहास सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है। पेशवा ने शादीशुदा होते हुए भी मस्तानी से विवाह किया था। लेकिन अपनी दूसरी पत्नियों से ज़्यादा वह मस्तानी से प्रेम करते थे। और मस्तानी के लिए अलग से एक महल भी बनवाया था। कहा जाता है कि मस्तानी के रहते हुए बाजीराव बहुत मदिरा सेवन करते थे। वैसे तो बाजीराव ब्राह्मण थे लेकिन वह मांस भी खाते थे। जो उनके परिवार को बिलकुल पसंद नहीं आया। एक दिन गुस्से में पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा और पुत्र बालाजी मिलकर मस्तानी को शनिवाड़ा महल में नज़रबंद कर देते हैं। बहुत कोशिशों के बाद भी पेशवा, मस्तानी को आज़ाद नहीं करा पाते। मस्तानी की याद में वह फिर पूना छोड़कर पारास में रहने लगते हैं। मस्तानी से अलग होने का दुःख पेशवा को इतना ज़्यादा होता है कि 1740 में वह मस्तानी को याद करते हुए अपनी आखिरी सांस लेते हैं।
महोबा : बेलाताल तालाब के किनारे बसा जैतपुर किला सुनाता है बाजीराव-मस्तानी की प्रेम कहानी
है सफर में अभी बहुत कुछ बाकी, आप चलना तो शुरू करिए‘। आपने बिलकुल सही पड़ा। हम आज आपको एक और दिलचस्प कहानी और इतिहास से रूबरू कराएँगे, जिसे सुनकर आप हमारे साथ सफर पर चलने के लिए खुद ही मज़बूर हो जाएंगे। यूपी के जिला महोबा में है एक विशाल तालाब, जिसे बेलाताल तालाब के नाम से जाना जाता है। बेलाताल के नाम और उसके इतिहास की अपनी ही एक खूबसूरत कहानी है।
चंदेलों के समय बना था तालाब
बेलाताल में रहने वाले लोगों का कहना है कि यह तालाब 17 वें चंदेल राजा मदन वर्मन के छोटे भाई बलवर्मन ( ब्रह्म ) ने बनवाया था। उसी ने महोबा का मदन सागर, कबरई का ब्रह्मताल और टीकमगढ़ का मदन सागर भी बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि तालाब का नाम ब्रह्म ने अपनी रानी बेला के नाम पर बेला तालाब रखा था। बेला ( रानी का नाम) + ताल ( तालाब ) से मिलकर बेलाताल नाम बना है। यहां के बड़े बुज़ुर्ग बच्चो को बेलाताल की कहानी सुनाते हैं। उनका कहना है कि जगह का नाम तालाब के नाम से पड़ा है।
कहते हैं कि एक जयंत नाम के ऋषि मुनि जंगल में रहते थे। उसी समय बेल ब्रह्म भी जंगल में घूमने आये थे। उस वक़्त ऋषि अपनी तपस्या में मग्न थे। बेल ब्रह्म की मुलाक़ात ऋषि जयंत से होती है। ऋषि , ब्रह्म से तालाब खुदवाने को कहते ताकि तालाब के पास में बस्ती बसाई जा सके। 1130 वीं में तालाब खुदवाया गया। चंदेल राजाओं के समय में कोई बस्ती नहीं थी। उस वक़्त बेलाताल में जंगल ही था। जैसे ही तालाब बना, बस्ती भी बस गयी और बस्ती का नाम बेलाताल रख दिया गया। तालाब तो खुद गया लेकिन तालाब में पानी कहाँ से आया, यह सवाल है ?
बेलाताल तालाब में पानी भरने का किस्सा
इससे भी जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि उस वक़्त यह कहा गया की अगर किसी युवक को झूला झुलाया जाये तो इंद्रदेव खुश होकर बारिश करेंगे। लोगों ने बिलकुल ऐसा ही किया और इंद्रदेव बरसने लगे और तालाब में जाकर समाहित हो गए। कहा जाता है कि दीवाली और दशहरा के समय तालाब से एक कटोरा निकलता है। अब इस बात में कितना सच है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
बेलाताल के नाम से कई गाने भी बने, जो गाँव की औरतें सावन और मकर संक्रांति के समय गाती हैं। जैसे – ‘लाग्यो सावन भादवो‘, ‘महीनो सावन को मोत्याला‘ आदि गाने वहां गाए जाते हैं।
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बेलाताल को जैतपुर के नाम से भी जानते हैं
बेलाताल की कहानी में अभी एक और मोड़ बाकी है। बेलाताल को ‘जैतपुर‘ के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि जयंत के नाम पर जगह का नाम जैतपुर पड़ा और उसी से किले का नाम भी जैतपुर का किला पड़ा। अलग नाम की तरह, इस नाम की भी अपनी एक कहानी है। दूर तक फैले बेलाताल झील के किनारे खड़ा एक जैतपुर किला दिखाई देता है। ये किला पेशवा बाजीराव और मस्तानी के प्रेम की कहानी को आज भी बिलकुल नए की तरह सुनाता है। मानों उनका प्रेम कभी पुराना ही ना हुआ हो।
छत्रसाल ने बनवाया था किला
बेलाताल पुराने काल में चन्देलों से सूर्यवंशी बुंदेलों के कब्ज़े में आ गया था। राजा छत्रसाल ने अपने पुत्रों के बीच साम्राज्य का विभाजन किया। जिसमें से बड़े बेटे हृदयशाह, पन्ना और छोटे बेटे जहगतराज को जैतपुर का राज्य मिला। राजा छत्रसाल के निर्देशन में ही जैतपुर का किला बनवाया गया, जिसमे बादल महल और ड्योढ़ी महल का भी उल्लेख किया गया।
जैतपुर का इतिहास उस समय अचानक से मोड़ लेता है जब इलाहबाद के मुगल सूबेदार मुहम्मद खां बंगश ने 1728 ई. में जैतपुर पर हमला करते हैं और जहगतराज को किले में ही बंदी बना लेते हैं। उस समय तक राजा छत्रसाल बूढ़े हो चुके होते हैं। उन्होंने अपने बड़े बेटे हृदयशाह से मदद के लिए पत्र लिखा– “बारे ते पालो हतो, पौनन दूध पिलाय! जगत अकेलो लरत है, जो दुख सहो न जाये”। साथ ही उन्होने मराठा पेशवा बाजीराव से सहायता की विनती की :-
“जो गति भई गज ग्राह की, सोगति भई है आय
बाजी जात बुन्देल की, राखों बाजीराव”।
राजा छत्रसाल का पत्र पाते ही पेशवा अपनी घुड़सवार सेना के साथ जैतपुर आते हैं और युद्ध में मुहम्मदखां बंगश को हरा देते हैं। फ़िर वह पेशवा बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लेते हैं । जैतपुर के युद्ध ने मराठों को बुन्देलखण्ड में स्थापित कर दिया। मराठाकालीन के किले, बावड़ियाँ और मन्दिरों के अवशेष आज भी बुन्देलखण्ड में उनके गौरव की गाथा गाते हैं।
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जैतपुर की युद्ध मे पेशवा को दिखी थी मस्तानी
जैतपुर के युद्ध में पेशवा ने एक महिला को लड़ते हुए देखा और उसके कायल हो गए। जिसके बाद पेशवा ने छत्रसाल से उस महिला योद्धा की माँग की। योद्धा का नाम मस्तानी था, जो छत्रसाल की ही पुत्री थी। जिसके बाद छत्रसाल ने ड्योढ़ी महल में एक समारोह में पेशवा और मस्तानी का विवाह करवाया। विवाह के बाद वह अपने राज्य पूना पहुंची तो पेशवा की माता और छोटे भाई द्वारा शादी का विरोध किया गया। पेशवा ने बाद में मस्तानी का नाम बदलकर नर्मदा रखा लेकिन नाम को स्वीकारा नहीं गया। बाद में दोनों का एक पुत्र होता है जिसका नाम कृष्ण रखा जाता है। लेकिन परिवार द्वारा नाम ना स्वीकारा जाने पर नाम बदलकर शमशेर बहादुर रख दिया जाता है।
मस्तानी से अलग हो गए थे पेशवा
बाजीराव-मस्तानी का प्रेम इतिहास सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है। पेशवा ने शादीशुदा होते हुए भी मस्तानी से विवाह किया था। लेकिन अपनी दूसरी पत्नियों से ज़्यादा वह मस्तानी से प्रेम करते थे। और मस्तानी के लिए अलग से एक महल भी बनवाया था। कहा जाता है कि मस्तानी के रहते हुए बाजीराव बहुत मदिरा सेवन करते थे। वैसे तो बाजीराव ब्राह्मण थे लेकिन वह मांस भी खाते थे। जो उनके परिवार को बिलकुल पसंद नहीं आया। एक दिन गुस्से में पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा और पुत्र बालाजी मिलकर मस्तानी को शनिवाड़ा महल में नज़रबंद कर देते हैं। बहुत कोशिशों के बाद भी पेशवा, मस्तानी को आज़ाद नहीं करा पाते। मस्तानी की याद में वह फिर पूना छोड़कर पारास में रहने लगते हैं। मस्तानी से अलग होने का दुःख पेशवा को इतना ज़्यादा होता है कि 1740 में वह मस्तानी को याद करते हुए अपनी आखिरी सांस लेते हैं।
इस तरह से पहुंचे
ट्रेन से : महोबा जंक्शन, यहां के लिए आप महाकौशल एक्सप्रेस, बुंदेलखंड एक्सप्रेस आदि ट्रेने पकड़ सकते हैं।
बस से : महोबा से नाओगांग के लिए बस पकडे। यहां से 25 किमी. दूरी पर ही बेलाताल है। किसी भी साधन से आप यहां पहुँच सकते हैं।
सड़क से : अगर आप अपने साधन से आ रहे हैं तो महोबा से बेलाताल की दूरी 49 किमी. है। आप तकरीबन एक घंटे में यहां पहुँच सकते हैं।
हवाईजहाज से : सबसे पास हवाई अड्डा खजुराहो का है। यहां से आप कोई भी साधन लेकर बेलाताल पहुँच सकते हैं।
महोबा का बेलाताल तालाब आपको इतिहास और प्रेम कहानियों से भरपूर मिलेगा। यहां आपको युद्ध से लेकर सियासी जंग और तख्तापलट से जुडी कहानियां भी सुनने को मिलेंगी। कुछ किस्से और बातें ऐसी होंगी जो स्थानीय लोग आपको सुनाएंगे और फिर आप भी खुद को इतिहास से जुड़ा हुआ पायेंगे। रोमांच से भरी इस जगह आइए और खुद महसूस करिए, यहां की प्रेम कहानी की गाथा। जो यहां खड़ा जैतपुर का किला बरसों से सुना रहा है।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
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