जब खुली वादियों के बीच ठंडी हवाएं चेहरे को छूती है तो दिल बाग-बाग हो जाता है। शायद यही वजह है कि मौका मिलते ही लोग हिमाचल प्रदेश की ओर कूच कर जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में घूमते हुए बहुत सी ऐसी जगहें मिलती हैं जिनका नाम सुनते ही वहाँ जाने की इच्छा होती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का रिकांगपिओ ऐसी ही शानदार जगह है।
कल्पा में एक दिन गुजारने के बाद मैंने 6 जून 2022 को होटल से चेक आउट किया। अब हमें रिकांगपिओ जाना था लेकिन उससे पहले चीनी गाँव जाना था। चीनी गाँव के लिए हमारे होटल के बगल से नीचे की ओर शॉर्टकट रास्ता गया था। हमने उसी रास्ते को पकड़ लिया और चीनी गाँव के रास्ते पर चल पड़े। रास्ते में सेब के बागान भी थे और कुछ घर भी बने हुए थे। कुछ ही मिनटों में हम चीनी गाँव पहुँच गए।
चीनी गाँव
चीनी गाँव कल्पा में ही आता है। यहाँ पर एक गोम्पा है जिसे लोचावा का प्राचीन बौद्ध मंदिर भी कहा जाता है। मैं आपको इस गोंपा की कहानी बताता हूं। कहानी ऐसी है कि महानुवादक लोचावा रिनचेन 958-1055 ई. में गूगे साम्राज्य के राजा येशेद ओद के गुरू थे। लोचवा रिनचेन ने पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में 108 गोंपाओं का निर्माण करवाया था। उसी दौरान चीनी गाँव में इस गोंपा को बनवाया था। 1959 में आग से ये गोंपा क्षतिग्रस्त हो गया था। बाद में इसका दोबारा निर्माण करवाया गया था।
मंदिर का गेट तो बंद था लेकिन गोंपा पर लहराते झंडे वाकई में अच्छे लग रहे थे। गाँव में होने की वजह से कम लोगों को इसके बारे में पता है। इस गोंपा के आगे ही नाग मंदिर है। हम लोग उसको देखने के लिए आगे बढ़ गए। कुछ ही कदमों के बाद नाग नागिनी मंदिर आ गया। इसे नारायण नागिनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था कि त्यौहार पर मंदिर में महिलाएं दोहड़ी और टोपी पुरूष गच्छी व टोपी पहनकर आएं।
रिकांगपिओ
मंदिर बेहद शानदार है और लकड़ी और पत्थरों का बना हुआ है। मंदिरों की दीवारों पर नक्काशी भी बेहद शानदार है। कई सारी आकृतियां मंदिर की दीवारों पर उकेरी हुईं थी। मंदिर का गेट बंद था तो मैं मंदिर का चक्कर लगाकर बाहर आ गया। कुछ देर चलने के बाद ऐसी जगह आई जहाँ से बस रिकांगपिओ जा रही थी। हम उसी बस में बैठ गए। कुछ कुछ देर में बस चल पड़ी। मैंने नोटिस किया कि जब हम कल्पा से रिकांगपिओ आ रहे थे तो बस में महिलाएं ज्यादा थीं और अब लौटते समय सभी पुरूष थे।
उन्हीं घुमावदार रास्ते से होकर हम रिकांगपिओ जाने लगे। जब हम किसी जगह से लौटते हैं तो रास्तों पर उतना ध्यान नहीं देते हैं जितना आते समय देते हैं। लगभग आधे घंटे के बाद हमारी बस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर रूकी और हम यहीं पर उतर गए। सामने से एक स्कूल की रैली निकल रही थी। कुछ बच्चों के हाथ में पर्यावरण जागरूकता की तख्ती थीं और बाकी बच्चे नारे लगा रहे थे। मुझे अपना बचपन याद आ गया जब मैं भी ऐसी ही स्कूल की रैली में घूमता था, बड़ा मजा आता था।
रिकांगपिओ देखते हैं!
हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था तो सबसे पहले बस स्टैंड के पास में ही उस दुकान पर गए जहाँ एक दिन पहले नाश्ता किया था। हमने फिर से परांठे का नाश्ता किया। अब हमें रिकांगपिओ में ठिकाना खोजना था। हमने दुकान वाले से ही पूछ तो उसने पास में सैराग होटल में हमें भेज दिया। हमने कई कमरे देखे और सबसे सस्ता वाला कमरा ले लिया। ये कमरा हमें 550 रुपए में मिला। इस कमरे से ना तो कोई पहाड़ों वाला व्यू था और ना ही ज्यादा खास था। हमें बस रिकांगपिओ में कमरा चाहिए तो ले लिया। तो अब रिकांगपिओ देखते हैं।
रिकांगपिओ के बारे में बता दूं तो रिकांगपिओ किन्नौर जिले का काफी बड़ा कस्बा है। यहाँ पर कई सारे बैंक, एटीएम और बाजार भी है। रिकांगपिओ शिमला से 235 किमी. की दूरी पर है। रिकांगपिओ दो शब्दों से मिलकर बना है रेकांग और पिओ। इसकी भी एक कहानी है। रेकांग किन्नौर के एक परिवार के उपनाम से लिया गया है। वहीं डीसी ऑफिस से लगती जमीन को पिओ के नाम से जाना जाता था। दोनों शब्दों को मिलाकर 1960 में इस जगह का नाम रिकांगपिओ रखा गया।
चन्द्रिका देवी मंदिर
रिकांगपिओ में कमरे में सामान रखकर हम बाहर निकल पड़े। रिकांगपिओ में हमें सबसे पहले चन्द्रिका देवी मंदिर जाना था। ये मंदिर पिओ के कोठी गाँव में है जो रिकांगपिओ से 2 किमी. की दूरी पर है। हम लोगों से पूछते हुए पैदल-पैदल चलने लगे। रास्ते में हमें छोटा-सा बाजार मिला और थोड़ी देर बाद एक पुराना-सा गेट मिला। उसी गेट से आगे बढ़े गए। अब रास्ते में घर कम किन्नौरी सेब के पेड़ कई सारे लगे हुए थे और पीछे खूबसूरत पहाड़ दिखाई दे रहे थे।
कुछ देर में हम चन्द्रिका देवी मंदिर पहुँच गए। यहाँ पर मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था कि मंदिर के मुख्य गेट के अंदर अशुद्ध पुरूष और महिलाओं का प्रवेश निषेध है। इसके अलावा तीन गाँव की महिलाओं को बगैर दोड़ू पट्टू के आना मना है। मैं पहली बार मंदिर में ऐसी परंपरा और नियमों को देख रहा था। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना मना था इसलिए हमने की भी नहीं। चन्द्रिका देवी मंदिर में कई सारे पुराने मंदिर थे। सभी के गेट बंद थे लेकिन नक्काशी शानदार है।
मंदिर को देखने के बाद हम बाहर आ गए। चन्द्रिका देवी मंदिर के सामने भैरों मंदिर है। इस मंदिर का गेट बंद था लेकिन बाहर से नक्काशी दिखाई दे रही थी। दोनों ही मंदिरों का आर्किटेक्चर की तारीफ तो बनती है। हम काफी देर से आए थे तो इसलिए शायद मंदिर का दरवाजा बंद था। मंदिर को देखने के बाद हम पूरे दिन ऐसे ही रिकांगपिओ में टहले, फिर कुछ काम किया और फिर आराम किया। अगले दिन हमें हिमाचल प्रदेश की एक और नई जगह पर निकलना था।
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