हर कोई लगातार घूमने की चाहत रखता है कि लेकिन सबको ना ही मौक़ा मिलता है और ना ही सभी के पास समय होता है। ख़ुशक़िस्मत लोग होते हैं जो लगातार घूमने को अपना मक़सद बना लेते हैं। मैं लगातार तो नहीं घूमता लेकिन कोशिश करता हूँ कि महीन में एक नई जगह को एक्सप्लोर किया जाए। घुमक्कड़ी जबसे मेरी ज़िंदगी में आई है, मेरी ज़िंदगी ख़ूबसूरत बन गई है। मुझे पहाड़ों में जाना पसंद हैं और ट्रेकिंग को तो मैं एक चुनौती की तरह देखता हूँ। हिमाचल प्रदेश में मैंने एक ऐसा ही शानदार ट्रेक किया, जिसकी खूबसूरती को बयां करना बेहद मुश्किल है, पलाचक वैली।
हम एक दिन पहले रात को राजगुंधा गाँव पहुँच चुके थे। राजगुंधा तक का सफ़र काफ़ी कठिन और रोमांचक रहा। रात को तो अंधेरे की वजह से राजगुंधा को देख नहीं पाए थे लेकिन सुबह के उजाले में राजगुंधा की ख़ूबसूरती देखने को मिली। ऊँचे और खूबसूरत पहाड़ों से घिरी ये छोटी-सी जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। अपने टेंट से निकलकर कुछ देर पगडंडियों पर चला और काफ़ी देर तक सूरज को उगते हुए देखा। कीबोर्ड वाली ज़िंदगी में कभी-कभार ही सूर्योदय को उगते हुए देखने को मिलता है। जब सूर्योदय पहाड़ी जगह पर देखने को मिले तो वो अनुभव और भी शानदार हो जाता है। इसके बाद मैं तैयार हुआ और फिर पराँठे का नाश्ता किया। इसी बीच आगे का प्लान भी बन रहा था। पहले प्लान बना कि हम ट्रेक नहीं करेंगे सीधे बिलिंग के लिए निकलेंगे लेकिन नाश्ता ख़त्म होते-होते पलाचक वैली ट्रेक करने का तय हो गया।
ट्रेक के लिए तैयार
पलाचक वैली का कोई ट्रेक नहीं है बल्कि थमसर पास ट्रेक का ही भाग है। थमसर पास के ट्रेक में पलाचक जगह मिलती है। पलाचक का ट्रेक बहुत लंबा नहीं है लगभग 7-8 किमी. का ट्रेक है। हमें ऐसा बताया गया कि बहुत ज़्यादा कठिन भी नहीं है। एक दिन पहले यहाँ काफ़ी बारिश हुई थी तो फिसलने का ज़रूर डर था लेकिन तेज़ धूप की वजह से हम पलाचक जाने के लिए तैयार हो गए। कुछ देर में हम पैदल-पैदल आगे बढ़ चले। राजगुंधा में राजमा काफ़ी होता है। लोगों के घरों पर राजमा दिखाई दे रहा था और कुछ लोग एक गाड़ी पर बोरियाँ चढ़ा रहे थे। शायद ये बोरियाँ बाज़ार में बेचने के लिए जा रही होंगी। गाँव से एक रास्ता ऊपर की ओर बढ़ गया। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ने लगे। अभी तक रास्ता साधारण था लेकिन अब छोटे-छोटे पत्थर शुरू हो गए थे और बीच-बीच में पानी भी भरा हुआ था।
कुछ देर खुले रास्ते में चलने के बाद हम पेड़ों के बीच आ गए। हमारे एक तरफ़ ऊँचे पहाड़ थे और दूसरी तरफ़ पेड़ ही पेड़ नज़र आ रहे थे हालाँकि रास्ता अब आसान लगने लगा था। ये रास्ता जंगलों से इतना घिरा हुआ था कि धूप हम तक नहीं आ पा रही थी। कुछ देर बाद हम फिर से एक खुले रास्ते पर आ गए। यहाँ से हमें राजगुंधा और उह्ल नदी दिखाई दे रही थी। ये खूबसूरत नजारा किसी को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है और हमारा तो थकना भी अभी शुरू नहीं हुआ था। रास्ते में अचानक एक ऐसा पेंच आया जो ऊबड़-खाबड़ था। इसको सबने पार तो कर लिया लेकिन अब कुछ लोग आगे जाना चाहते थे और कुछ लोग ट्रेक नहीं करना चाहते थे। काफ़ी चर्चा के बाद ये तय हुआ कि जो लोग ट्रेक करना चाहते हैं वो आगे चलें और बाक़ी लोग वापस चलें जाएँ। हम राजगुंधा से 7 लोग ट्रेक के लिए निकले थे लेकिन अब 4 लोग ही आगे जा रहे हैं।
पगडंडी और नजारा
खुले रास्ते से बढ़ते हुए हम ऐसी जगह पर पहुँच गए जहां से पहाड़ का एक अद्भुत नजारा दिखाई दिया। पहाड़ों में जैसे-जैसे ऊँचाई वाली जगह पर जाते हैं तो लोग कम देखने को मिलते हैं लेकिन नज़ारे सुंदर होते जाते हैं। कहते हैं ना जहां मनुष्य कम होगा वहाँ प्रकृति का सबसे सुंदर स्वरूप देखने को मिलेगा। यहाँ हम कुछ देर रूके और फिर से आगे बढ़ चले। रास्ते में एक जगह कुछ खच्चर भी मिले। पहाड़ों में ऐसी जगहों पर गाड़ी तो आ नहीं सकतीं तो सामान ले जाने के लिए खच्चर ही एक माध्यम होता है। कई जगहों पर तो खच्चर पर बैठकर अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं। आगे बढ़ने पर सामने से पहाड़ी भेड़ें आती हुई दिखाई दीं। ये भेड़ें 50-100 की संख्या में नहीं बल्कि कई हज़ार में थीं। शायद चरवाहे इनको कुछ महीनों पहले चराने के लिए ले गए थे और अब वापस लौट रहे हैं। ट्रेक के दौरान ऐसे नज़ारे सफ़र को और शानदार बना देते हैं।
रास्ते में कुछ छोटे-छोटे झरने भी मिल रहे थे जिनको पार करके आगे बढ़ते जा रहे थे। बारिश में ऐसे झरनों को पार करना काफ़ी मुश्किल होता है लेकिन मौसम तो हमारे साथ था। रास्ता चढ़ाई वाला नहीं मिल रहा था लेकिन छोटे-छोटे पत्थर और फिसल की वजह से थोड़ा जोखिम था। मैंने इससे पहले तुंगनाथ, फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, कुंजापुरी, नैना देवी पीक और केदारकंठा का ट्रेक किया है। मुझे ट्रेकिंग का थोड़ा-थोड़ा अनुभव है तो ये रास्ता मुझे ज़्यादा कठिन नहीं लग रहा था। काफ़ी घने जंगलों से होकर हम फिर से एक खुली जगह पर पहुँच गए। यहाँ से हमें कुछ घर दिखाई दिए। वही पलाचक है और मुझे वहीं जाना था। देखकर लग रहा था कि हम कुछ ही मिनटों में वहाँ पहुँच जाएँगे लेकिन ऐसा नहीं होने वाला था।
पलाचक वैली
हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे नदी हमारे पास आती जा रही थी। नदी काफ़ी तेज़ चल रही थी। पहाड़ों के बीच नदी का बहना सबसे सुंदर दृश्यों में से एक है। मैं घटों नदी किनारे बैठ सकता हूँ। मुझे याद है कि नदी किनारे बैठने के चक्कर में घांघरिया ट्रेक में रात कर ली थी। इस बार हमारे पास समय थोड़ा कम था तो मैं ऐसा कुछ करने के मूड में नहीं था। कुछ देर में एक लकड़ी का पुल आया जिससे हम नदी पार करने वाले थे। ये लकड़ी के पुल देखने में बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन इनमें ख़तरा भी काफ़ी रहता है। इस नदी को पार करने के बाद मैं उस जगह पहुँचा, जहां एक घर बना हुआ था। इस घर में कुछ लोग थे। बात करने पर पता चला कि वो यहाँ खेती करते हैं सर्दियों में यहाँ से चले जाते हैं। घर के पास में कुछ महिलाएँ एक खेती में मटर काट रही थीं।
नदी के किनारे
हम अपनी मंज़िल पर पहुँच चुके थे। अब हमें यहाँ कुछ देर रूकना था और फिर वापस लौटना था। कुछ लोग हमारे इंतज़ार में राजगुंधा में थे। हमारे लौटने के बाद हमें वापस बिर के लिए निकलना था। इस घर में खाने के लिए मैगी बन सकती थी तो मेरे साथियों ने अपने लिए मैगी खाने का तय किया। मेरा ऐसा कोई मन नहीं था और ना ही भूख लगी थी। मैं मैगी और उस घर से दूर नदी किनारे आ गया। नदी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। मैं नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गया। पानी में पैर डालने का एक अलग ही मज़ा है लेकिन पानी काफ़ी ठंडा था इसलिए वापस निकालना पड़ा। पहाड़, जंगल और नदी हर जगह ही होती है, नजारा भी अलग ही होता है लेकिन सबसे अलग होता एक नया एहसास। पहाड़ स्थिर होना सिखाते हैं और नदी आगे बढ़ने की सीख देती है।
मैं वापस पहुँचा तो मैगी बन चुकी थी और खाने वाले खाना शुरू कर चुके थे। मैंने भी उसमें से एक चम्मच स्वाद लिया। तभी मुझे याद आया कि मैं राजगुंधा से एक पराँठा लाया था। बाकी लोग मैगी खा रहे थे और मैं पराँठा। कुछ देर बाद हम वापस राजगुंधा की तरफ़ निकल पड़े। उसी रास्ते से कुछ घंटों बाद हम राजगुंधा पहुँच गए। पहले कुछ खाया और फुर बिर चलने के लिए तैयार हो गए। हम बिर से बरोट होते हुए राजगुंधा आए थे लेकिन अब बिर दूसरे रास्ते से जाने वाले थे। राजगुंधा से सीधा एक रास्ता बिलिंग के लिए जाता है। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ चले। रास्ता काफ़ी कठिन था। कुछ ही किलोमीटर पहुँचने में हम काफ़ी समय लग गया। हमने रास्ते में घना कोहरा, मिट्टी और पत्थरों वाले रास्तों का सामना किया। पहले हम बिलिंग पहुँचे और फिर बिर।
जब मैं दिल्ली से चला था तो मैंने सोचा नहीं था कि इस सफ़र में इतना रोमांच देखने को मिलेगा। पहले एक कठिन रास्ते से राजगुंधा पहुंचा और फिर एक ट्रेक किया। उसके बाद फिर बिर आने के लिए दुर्गम रास्ता चुना। हम अब बिर आ चुके थे। भारत की एक बेहद मशहूर जगह, जहां हर कोई पैराग्लाइडिंग के लिए आता है। इस जगह पर अभी हमें कुछ और अनुभवों को समेटना था।
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