मेरा ऐसा मानना है कि हिमालय पूरी दुनिया का सबसे खूबसूरत खजाना है। हिमाचल प्रदेश की किन्नौर वैली का नाको गाँव इसी हिमालय का शानदार नगीना है। हमने जब हिमाचल प्रदेश की यात्रा का प्लान बनाया था तो ये तय किया था कि सिर्फ शहर और गाँव देखेंगे, कोई ट्रेक नहीं करेंगे। उसके के लिए बाद में अलग से प्लान बनाएंगे लेकिन नाको गाँव में हमने एक शानदार ट्रेक किया। मैंने नाको में एक ऊँची पहाड़ी से अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सूर्यास्त देखा।
नाको में हम सुबह से हैं। सबसे पहले हमने नाको झील देखी, उसके बाद एक गोंपा देखा और आखिर में शानदार नाको मोनेस्ट्री देखी। 4 बज चुके थे और हम अपने होटल के कमरे में बैठे थे। हमने नाको की किसी ऊँची जगह से सूर्यास्त देखने का प्लान बनाया। काफी सोच-विचार के बाद हमने गोंपा की तरफ जाने का मन बनाया। आपको बता दें कि नाको एक छोटा-सा गाँव है। यहाँ ना कोई एटीएम और न ही पेट्रोल पंप है। नेटवर्क की बात करें तो वोडाफोन को छोड़ दिया जाए तो सारे नेटवर्क अच्छे आ रहे हैं।
नाको में क्रिकेट
हम पैदल चलते-चलते गोंपा के पास में आ गए। यहाँ खूब सारे पत्थर रखे हुए हैं जिन पर शायद तिब्बती भाषा में कुछ लिखा हुआ है। सुबह ही हमने यहाँ बोर्ड पर पढ़ा था कि ये नाको पवित्र क्षेत्र है। हम इन पत्थरों को देखते हुए आगे बढ़े तो एक रास्ता ऊपर की ओर जाता हुआ दिखाई दिया। ऊँचाई की ओर जाने वाला ये रास्ता पूरी तरह से ट्रेक की तरह लग रहा था। हमारे पास समय था तो हमने उस रास्ते पर चलने का तय किया।
कुछ ही आगे बढ़े तो स्थानीय महिलाएं मिलीं। उन्होंने हमसे पूछा कि कहाँ जा रहे हो? हमने बताया कि ऐसे ही घूम रहे हैं। उन्होंने बताया कि पास में क्रिकेट टूर्नामेंट हो रहा है, उसे देख आओ। हम क्रिकेट देखने के लिए आगे बढ़ गए। थोड़ी देर में हम क्रिकेट के मैदान पर तो पहुँच गए लेकिन वहाँ कोई मैच नहीं हो रहा था। मैदान के एक तरफ कुछ लोग बैठे हुए थे और एक तरफ टेंट लगा हुआ था। एक लड़का माइक से हिन्दी गाना गा रहा था। एक लड़के से बात करने पर पता चला कि इन्टरविलेज टूर्नामेंट हो रहा है और आज पहला मैच हुआ। मलिंग ने नाको को हरा दिया।
नाको ट्रेक
हमने उस लड़के से विदा ली और आगे बढ़ गए। नाको में अभी तेज धूप थी तो हम चाह रहे थे कि सबसे ऊँची जगह से सूर्यास्त देखा जाए। रास्ता काफी पतला है और पत्थर भी बहुत सारे पड़े हुए हैं। हम धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं। हम जितना चल रहे हैं नाको गाँव और लोग छोटे-छोटे दिखाई देने लगे। हम थोड़ी देर में एक जगह पहुँचे जहाँ झंडा लगा हुआ था। इतनी ऊँचाई पर आकर हवा काफी तेज चल रही थी। नजारा यहाँ से खूबसूरत था लेकिन मेरा मन और ऊपर जाने का था।
हमारे पास वक्त था तो फिर से आगे बढ़ने लगे। कुछ आगे चले तो सामने से बहुत सारी भेड़ आती हुई दिखाई दी। साथ में एक चरवाहा भी है। उससे बात करने पर पता चला कि वो हर रोज इतनी ऊँचाई पर भेड़ चराने आता है। हमारे पूछने पर उसने बताया कि जून से भेड़ के बाल काटने शुरू कर देते हैं और सितंबर में बाल फिर से आने शुरू हो जाते हैं। ऊन से गर्म कपड़े, कंबल और रजाई बनाते हैं और गाँव में ही बेचते हैं, बाहर कहीं बेचने नहीं जाते हैं। उन्होंने ये भी बताया कि हम लोग से भेड़ से दूध नहीं निकालते हैं।
काफी बात करने के बाद हम आगे फिर से बढ़ने लगे। हम धीरे-धीरे चल रहे थे लेकिन सांस काफी फूल रही थी। नाको समुद्र तल से 3,600 मीटर से भी ज्यादा की ऊँचाई पर स्थित है। जब इतनी ऊँचाई पर ट्रेक करते हैं तो ऑक्सीजन की कमी की वजह से थकावट जल्दी होती है। वैसे ही मेरे साथ हो रहा था। काफी देर के बाद चढ़ाई खत्म हो गई लेकिन ट्रेक अभी खत्म नहीं हुआ था। अब हमारे सामने एक लंबा घास का मैदान था।
एक आखिरी चढ़ाई
घास के मैदान पर एक काला घोड़ा घास खाने में लगा हुआ था। उसने हमारी तरफ देखा तक नहीं। हम जिस पहाड़ पर पहुँचना था उसके लिए इस घास के मैदान को पार करना था। मैं कई सालों बाद ऐसे छिपे हुए ट्रेक को कर रहा था। वाकई में मजा आ रहा था लेकिन किसी भी हालत में सनसेट के पहले उस पहाड़ी तक पहुँचना था। हम जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही देर बाद हमने घास का मैदान पार कर लिया।
घास के मैदान को पार करने के बाद हमारे सामने एक चुनौती और आ गई। पहले तो हमें बड़-बड़े पत्थर मिले जिनको कुछ ही देर में पार कर लिया। उसके बाद एक खड़ी चढ़ाई थी, जिसका कोई रास्ता नहीं था। हमें रास्ता बनाकर चलना था। अब यहाँ तक आ गए थे तो ऊपर तो जाना ही था। हिम्मत बांधकर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ने लगे। कुछ ही मिनटों में हमने उस खड़ी पहाड़ी को पार कर लिया।
खूबसूरत सूर्यास्त
इस आखिरी चढ़ाई को पार करने के बाद जो नजारा देखने को मिला, वो वाकई में बेहद खूबसूरत था। इस नजारे को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है। चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़, जहाँ देखो बस पहाड़ ही पहाड़। सामने से डूबता हुआ सूरज और आसमां में फैली हुई लालिमा इस नजारे को और भी शानदार बना रही थी। इतनी ऊँचाई पर हवा भी काफी तेज चल रही थी। हमारे आसपास लगे झंडे लहरा रहे थे।
इतना लंबा रास्ता तय करने के बाद ऐसा नजारा दिख जाए तो सफर यादगार बन जाता है। मैंने नाको में अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सूर्यास्त देखा है। इस ट्रेक को किए बिना नाको की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। हर किसी को नाको में एक दिन ठहरना चाहिए और इस ट्रेक को जरूर करना चाहिए। सूर्यास्त होने के बाद हम नीचे उतरने लगे। नाको गाँव पहुँचते-पहुँचते अंधेरा हो गया। थकान इतनी ज्यादा थी कि बेड पर लेटते ही नींद के आगोश में चला गया। हिमाचल का सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। एक लंबा सफर अभी भी बाकी था।
क्या आपने हिमाचल प्रदेश के नाको गांव की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।
रोज़ाना टेलीग्राम पर यात्रा की प्रेरणा के लिए यहाँ क्लिक करें।