रामपुर बुशहर: ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का एक अद्भुत शहर

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Photo of रामपुर बुशहर: ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का एक अद्भुत शहर by Rishabh Dev

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो आपकी घूमने की लिस्ट में नहीं होती हैं लेकिन जब आप उस जगह पर पहुंचते हैं तो आप अचंभित रह जाते हैं। ऐसी छोटी जगहें वाकई में कमाल की होती हैं। ऐसी ही शानदार और कमाल की जगह है, रामपुर बुशहर। हिमाचल की यात्रा के पहले मैंने इस जगह का नाम नहीं सुना था लेकिन हिमाचल में मेरा पहला दिन इसी शहर को देखने में बीता। मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है।

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इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ। मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।

यात्रा शुरू

मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।

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मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।

रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।

अब नींद आने लगी थी लेकिन बस का सफर सोने कहां देता है? हम सो रहे थे लेकिन बार-बार नींद खुल जा रही थी। रात 12 बजे बस चंड़ीगढ़ पहुंची। उसके बाद कालका। कालका वही जगह है, जहां से शिमला के लिए टॉय ट्रेन चलती है। कालका के बाद एक चेक पोस्ट आता है, परवानू चेक पोस्ट। यहीं से हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। हिमाचल प्रदेश शुरू होते ही हरियाली शुरू हो गई। ऐसा लगा कि कंक्रीट का शहर छोड़कर नई जगह पर आ गए हों।

हिमाचल

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अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।

थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।

कब आएगा रामपुर?

थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।

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दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?

8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।

रामपुर बुशहर

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मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते, ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।

सुबह 10 बजे हमारी बस रामपुर बस स्टैंड पर पहुँची। हम बस स्टैंड के पास किसी होटल में रूकना चाहते थे ताकि अगले दिन अगली जगह के लिए जल्दी निकल सकें। हम बस स्टैंड से बाहर रूकने के ठिकाना खोजने के लिए पैदल निकल पड़े। हम चलते जा रहे थे लेकिन अब तक कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं दिखाई दिया। थोड़ी देर बाद हम मुख्य सड़क पर पहुँच गए जहाँ दोनों तरफ पहाड़ और बीच में सतलुज नदी बह रही थी। वाकई में सुंदर नजारा था।

नई जगह नए लोग

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लगभग 1 किमी. चलने के बाद हम एक कमरा मिला। हमें कमरा रोड किनारे मिला। जहाँ से सामने एक छोटी-सी मोनेस्ट्री, रामपुर का बाजार और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमें जल्दी रामपुर बुशहर को देखने के लिए निकलना चाहते थे। कमरे में सामान रखा और नहा धोकर रामपुर बुशहर की सड़कों पर आ गए। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था और भूख जोर की लगी थी।

हम रामपुर बुशहर की सड़क पर खाने की खोज में निकल पड़े। हमारा कुछ चाइनीज खाने का मन था। मुख्य सड़क पर नानवेज वाली दुकानें ज्यादा थीं और कुछ जगहों पर परांठा मिल रहा था। मैंने यहाँ पर मछली का पकौड़ा दुकान पर बेचते हुए देखा। हम मुख्य सड़क से नीचे गलियों में आ गए। कुछ ही दूर चले थे कि एक दुकान पर चाइनीज फूड मिल रहा था। इस दुकान को महिलाएँ चला रहीं थी। दुकान पर कोई मर्द नहीं था, ये देखकर अच्छा लगा।

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मैंने थुकपा पहले कभी नहीं खाया था इसलिए उसे ही मंगाया। गर्म-गर्म थुकपा वाकई में शानदार था। बिल्कुल साधारण था, कोई मिर्च मसाला नहीं। थुकपा का स्वाद लेने के बाद हम रामपुर की गलियों में घूमने लगे। बाहर से रामपुर छोटा लग रहा था लेकिन असली रामपुर तो इन गलियों में था। यहाँ टीवी, फ्रिज से लेकर छोटी-बड़ी हर प्रकार की दुकान थी। बाजार में बहुत ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। मुझे तो इस शहर के छोटे-से बाजार से प्यार हो गया था।

मंदिर

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रामपुर बुशहर में घूमते हुए हमें एक पुराना मंदिर दिखाई दिया। ये रामपुर बुशहर का भूतेश्वर नाथ मंदिर है। हिमाचली शैली में बने इस मंदिर में कोई नहीं था। इस मंदिर को देखने के बाद अब हमें नदी किनारे जाना था। चलते-चलते नीचे जाते हुए सीढ़ी मिली। ये सीढ़ी हमें नदी के पास में तो ले गईं लेकिन नदी के किनारे नहीं। यहाँ पर एक मंदिर भी था, श्री जानकी माई गुफा मंदिर।

रामपुर बुशहर का श्री जानकी माई गुफा मंदिर लगभग 150 साल पुराना मंदिर है। शिखर शैली में बने इस मंदिर को यहाँ के स्थानीय महंतों ने बनवाया था। लकड़ी और पत्थर से बने इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों के अलावा भी कई देवी-देवताओं की मूर्ति है। मंदिर में एक पुजारी भी थे जिन्होंने हमें प्रसाद भी दिया। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई में शानदार है।

सतलुज नदी

मंदिर को देखने के बाद अब वापस रामपुर की गलियों में आ गए। अब हमें नदी किनारे जाना था। रामपुर बुशहर में सतलुज नदी बहती है। हम नदी पर बने पुल पर पहुँच गए। यहाँ से नजारा तो खूबसूरत था ही हवा भी तेज चल रही थी। नदी के दोनों तरफ रामपुर बुशहर है। इस पुल से स्थानीय लोग आते-जाते हैं। हम भी इसी पुल को पार करके उस पार पहुँच गए।

थोड़ा आगे चलने पर एक जगह से नदी किनारे जाने के लिए सीढ़ियां गईं थीं। उन सीढ़ियों से उतरकर हम नदी किनारे पहुँच गए। नदी में पैर डाला तो दिमाग झन्ना गया। पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। रामपुर बुशहर में सर्दी नहीं थी लेकिन पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। यहाँ से रामपुर बेहद सुंदर लग रहा था। चारों तरफ हरियाली, ऊंचे पहाड़ और पास से कलकल करती हुई नदी। नदी की धार बहुत तेज थी। हम नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गए। नदी किनारे बैठना हमेशा मुझे सुकून देता है।

बौद्ध मंदिर

काफी देर तक बैठने के बाद हम वापस चल पड़े। घूमते-टहलते हुए अपने कमरे पर वापस आ गए। हमने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया। बेड पर लेटे तो नींद आ गई और आंख खुली शाम 5 बजे। बालकनी से देखा तो शाम हो चुकी थी और पहाड़ों पर धुआं दिखाई दे रहा था। पहाड़ों में गर्मियों के दौरान आग काफी लगती है। थोड़ी देर में हम होटल के बाहर थे।

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हमारे कमरे के सामने एक मोनेस्ट्री थी। हम रोड पर पार करके मोनेस्ट्री में पहुँच गए। अंदर आने पर पता चला कि ये दुंग ग्युर बौद्ध मंदिर है। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और 14वें दलाई लामा ने इस बौद्ध मंदिर का लोकार्पण किया था। बौद्ध मोनेस्ट्री का गेट बंद था तो हम बस चारों तरफ से देखकर बाहर आ गए। हम फिर से रामपुर की गलियों में थे।

हमने दिन में थुकपा खाया था तो अब हम रोटी सब्जी जैसा कुछ खाना चाहते थे। लोग से पूछते-पूछते काफी देर बाद हमें एक छोटा-सा भोजनालय मिला। यहाँ हमने बेहद लजीज राजमा चावल खाए। पेट पूजा करने के बाद हम रामपुर की गलियों में थे। हमें फिर से एक और मंदिर दिखाई दिया। मैं हनुमान घाट मंदिर में घुस गया। मंदिर काफी खूबसूरत था और पहाड़ी शैली में बना हुआ था। हिमाचल में ज्यादातर मंदिर इसी शैली में बने होते हैं। मंदिर को देखने के बाद हम वापस अपने कमरे में आ गए।

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रात में रामपुर बुशहर किसी आसमान के जैसा लग रहा थी जहाँ तारे-तारे चमक रहे थे। पूरा दिन रामपुर बुशहर में घूमने के दौरान मुझे कोई टूरिस्ट नहीं मिला। ज्यादातर लोग के लिए रामपुर गेटवे की तरह है। वे यहाँ आते हैं और यहाँ से रिकांगपिओ, कल्पा और नाको के लिए चले जाते हैं। रामपुर बुशहर बेहद छोटा लेकिन प्यारा शहर है। मैं इस जगह को हिमाचल प्रदेश की सबसे अच्छी जगहों में रखूंगा।

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