यात्राएँ मुझे बेहद शांत रखती हैं। जब मैं बहुत दिनों तक एक ही जगह रुक जाता हूँ तो मेरा चेहरा परेशानी बयां कर देता है। यात्राएँ बेहद कठिन लेकिन अद्भुत होती हैं, जो हमें जीवन के फेर से दूर रखती हैं, वे हमें उलझने नहीं देती हैं। यात्रा करके अक्सर मैं हल्का महसूस करता हूँ। जब भी मुझे लगता है कि सुकून वाली जगह पर जाना है तो मैं ऋषिकेश निकल जाता हूँ। ऋषिकेश को लोग योग नगरी, राम झूला और लक्ष्मण झूला के लिए जानते हैं। मेरे लिए ऋषिकेश कहीं और है, जहाँ शांति है, सुकून है और गंगा की आवाज़ है। ऋषिकेश शून्यताओं से भरा है, अथाह खोज के लिए। मैं एक बार फिर से उसी ऋषिकेश को देखने निकल गया।
मैंने दिल्ली से हरिद्वार के लिए बस ली। लगभग 6 घंटे की यात्रा के बाद मैं सवेरे-सवेरे हरिद्वार पहुँच गया। हरिद्वार से ऋषिकेश जाना बेहद आसान हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर है। बस और ऑटो मिनटों के हिसाब से मिल जाते हैं। दोनों का किराया लगभग एक ही जैसा है। मैं ऋषिकेश टैक्सी से ही जाना पसंद करता हूँ। बस में बैठता हूँ तो लगता है किसी ने बांध रखा है, टैक्सी खुलेपन का एहसास देता है। रास्ते में कई छोटे-छोटे गाँव दिख रहे थे और उससे भी ज्यादा होटल नज़र आ रहे थे। बीच में रेलवे क्राॅसिंग आई तो हम कुछ देर वहीं ठहर गए।
हवा में लटका, झूला
दिल्ली से दूर होते ही सब कुछ हरा लगने लगता है। लगता है पूरी हरियाली यहीं है, जैसे किसी ने यहाँ हरियाली की बारिश कर दी हो। ऑटो आगे बढ़ी तो हरियाली भी साथ चलने लगी। लगभग आधे घंटे के बाद हम ऋषिकेश की गलियों में थे लेकिन हम अब भी ऑटो में ही थे। हम सीधे रामझूला उतरे और फिर इस शहर की भीड़ में शामिल हो गए। राम झूला एक पुल ही तो है जिस पर लोग और मोटरसाइकिल आराम से गुज़रते हैं। लेकिन जब कोई गाड़ी गुजरती है तो पूरा पुल हिलने लगता है। तब थोड़ा डर ज़रूर लगता है।
गंगा तीरे
राम झूला पर इतनी भीड़ होती है कि रुकने का मन ही नहीं करता है, मेरा भी मन नहीं किया। राम झूला पार किया और चल पड़े गंगा किनारे। गंगा किनारे पहुँचकर हमारा कुछ देर यहीं बैठने का मन किया और हम वहीं एक पत्थर पर बैठ गए। चलते-चलते हम जिस जगह रुकते हैं तो वो जगह भी हमारी तरह यायावर हो जाती है। कितना सुंदर है ये? पहाड़, गंगा और ये दूर तक फैली सफेद रेत।
ये ऐसी जगह है जहाँ कुछ और दिन रुकना चाहिए? हाँ, ये शहर, ये जगह एक दिन में समझ नहीं आएगा। हमें यहाँ कुछ और दिनों के लिए आना चाहिए, मेरे साथी यही कह रहे थे। पहाड़ हमारे बगल में खड़े थे, बिल्कुल शांत। कुछ देर हम वहीं रुके रहे और फिर उठकर नई जगह पर चल दिए। मैंने आगे जाने के लिए दो जगह चुनीं, नीर झरना और बीटल्स आश्रम। बीटल्स आश्रम पास में था सो हम सबसे पहले वहीं चल दिए।
शांति की खोज
बीटल्स आश्रम जाते वक्त गलियों में ऋषिकेश का बाज़ार मिलता है, ठीक वैसा जैसा हरिद्वार में लगा रहता है। दुकानों में मालाएँ, कड़े, रुद्राक्ष, कुर्ते और भी बहुत कुछ मिल रहा था। हम उन सबको पार करके आगे बढ़ गए। हम गलियों में अब भी चल रहे थे लेकिन अब यहाँ कोई दुकान नहीं थी। बीच में एक छोटा-सा कैफे था, उसके आगे गाॅर्डन था, ऐसे ही कुछ नज़ारों को देखकर मैं आगे बढ़ता जा रहा था।
धूप बहुत तेज पड़ रही थी लेकिन इस बीटल्स आश्रम को देखना तो था। मैं तीन साल हरिद्वार में रहा था, कई बार ऋषिकेश आया था लेकिन बीटल्स आश्रम के बारे में कभी नहीं सुना था। अब जो कई लोगों से सुन लिया तो देखने का मन भी हो रहा था। इस धूप और छांव के चक्कर में कुछ ही देर में हम बीटल्स आश्रम पहुँच गए। इस आश्रम का नाम एक अमेरिकी बैंड के नाम पर पड़ा। 60 और 70 के दशक में भी पश्चिम से लोग भारत आ रहे थे। उस जमाने का मशहूर रॉक बैंड बीटल्स भी भारत के चाहने वालों में शामिल था। चार नौजवानों ने मिल कर ब्रिटेन के इस बैंड को खोला था। ये चारों ‘फैब फोर’ के नाम से फेमस हुए।
जॉन लेनन, पॉल मैकार्टनी, जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार, ये चारों 1968 में ऋषिकेश पहुँचे और महर्षि महेश योगी के आश्रम में जा कर रुके। इस आश्रम में रहने के दौरान बीटल्स ने लगभग 40 गाने लिखे। बाद में जब दोबारा से वे अपनी पहली जिंदगी में लौटे तब उन्होंने ये गाने उनके फेमस ऐलबम्स ‘वाइट ऐल्बम’ और ‘ऐबे रोड’ में शामिल किए। 1970 से यह आश्रम खाली पड़ा था। महेश योगी और उनके अनुयायी कहीं और जा बसे लेकिन बीटल्स के चाहने वाले उनके नाम पर यहाँ आते रहे। बीटल्स ग्रुप के आने के बाद ये जगह बीटल आश्रम के नाम से जाने लगी। स्थानीय लोग इस जगह को चौरासी कुटिया के नाम से भी जानते हैं।
हम उसी बीटल्स को देखने आये थे। बाहर से बीटल्स आश्रम पूरा गुंबद की तरह दिखता है। अंदर गए तो पता चला कि यहाँ भी अंदर जाने का टिकट लगता है। भारतीयों के लिये ₹150 और फाॅरनेर के लिए ₹600। हम अंदर चले तो एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था, ये जगह हिमालय पर्वत की शिवालिक रेंज के राजाजी टाइगर रिज़र्व में आती है। आश्रम तक जाने के लिए छोटी-सी चढ़ाई थी जिसे चढ़ने के लिए हमारे कुछ साथियों के पसीने छूट रहे थे। हम तब तक एक दीवार को देखने लगे, जिस पर लिखा था, ‘वी लव ऋषिकेश’। आगे चलने पर आश्रम का गेट मिला जिस पर लिखा था, चौरासी कुटिया।
क्या-क्या है यहाँ?
बीटल्स आश्रम में पूरी तरह जंगल वाला लुक था जहाँ बहुत सारे पेड़ लगे थे और बीच में बहुत सारीं कुटिया बनी थीं। हम उन कुटियाओं को देखने लगे, कुटिया के अंदर इंग्लिश में बहुत सारे क्वोट्स लिखे थे। वहीं बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था इन कुटिया में जो पत्थर लगे हैं वो गंगा के किनारे से लाए गए हैं। मेरे साथी ने बताया कि इनमें रुक भी सकते हैं, एक रात के ₹1500। देखने के लिहाज से ये कुटिया बेहद अच्छी लग रही थीं लेकिन रुकने के लिहाज से व्यवस्था नहीं थी। किसी भी कुटिया में सफाई नहीं थी। बीटल्स आश्रम का टिकट लिया जाता है, सरकार को उसी पैसे को यहाँ की व्यवस्था के लिए लगाना चाहिए।
आगे जंगल जैसा रास्ता दिखा, मैंने वहीं रास्ता पकड़ लिया। मेरी आदत है मैं रास्तों में सीधा नहीं चल पाता, अक्सर पगडंडियों की ओर चला जाता हूँ। लगता है कि यहाँ कुछ नया मिलगा, ये रास्ता कोई नई जगह ले जाएगा, जहाँ कोई ना गया हो। मुझे ये पगडंडी भी एक नई जगह पर ले गई जहाँ से गंगा दिख रही थी, बहती हुई गंगा।
कुछ देर वो आवाज़ सुनी और फिर आगे बढ़ गया। आगे बढ़ा तो फिर एक और घर मिला। जिसके आगे बोर्ड लगा था यहीं योगी महेश रहते थे, वे यहीं ध्यान करते थे। मैं उस घर को देखने लगा। घर के सभी कमरों में कुछ ना कुछ लिखा था। कुछ अच्छे क्वोट्स थे तो कुछ बाकी जगहों के तरह ही अपने प्यार का नाम लिख गये थे। इसी घर में मुझे सीढ़ी मिलीं जो नीचे की ओर जा रहीं थीं। मैं नीचे चल दिया, सीढ़ी उतरते ही एक कमरे में आ गया। यहाँ पूरी तरह से अंधेरा था लेकिन बहुत ठंडक थी। आगे कुछ और कमरे मिले। शायद यहीं पर सबसे दूर होकर ध्यान करते होंगे। आगे चलने पर सीढियाँ मिलीं और मैं बाहर निकल आया।
सजी हुईं दीवारें
हम महेश योगी के तपोस्थली पर कुछ देर बैठ गए और थोड़ी देर बाद चल दिये। आगे चलने पर फिर एक मकान दिखा जो अब तक के सभी घरों से बड़ा था। मैं उसी में घुस गया, ये चार मंजिला मकान था जिसका हर कमरा, हर दीवार पर कुछ ना कुछ कलाकृति उकेरी गई थीं। कुछ तो बेहद शानदार जैसे वो औरत और हाथ जोड़े वो ऋषि। यही सब देखते-देखते मैं छत पर पहुँच गया। छत पर जो देखा मैं अवाक रह गया। छत पर एक गुफा बनी हुई है और उस पर एक ऋषि की तस्वीर बनी हुई है।
मेरे लियए बीटल्स आश्रम का सबसे शानदार दृश्य यही है। पहाड़ों से ऊँची दिखती वो गुफा और गुफा को खूबसूरत बनाती वो तस्वीर। बीटल्स आश्रम में ऐसे ही कलाकृति आपको मिल जाएँगी। आप जब भी जाएँगे तो कुछ नया मिल ही जाएगा। यहाँ एक बहुत बड़ा हाॅल है, जहाँ बीटल्स बैंड के चारों सिंगर की फोटो बनी हुई है। बीटल्स आश्रम बेहद सुकून, शांत और खूबसूरत है। यही सब देखते-देखते हम बीटल्स आश्रम से निकल आए।
मैं अभी और भी जगह जाना चाहता था लेकिन इस बार ये शहर हमें इतने ही पल देने वाला था। इस शहर में बेपरवाही है, आकर्षण है और खुद को खोजने की सुलझाने की आदत। इस शहर की भीड़, भीड़ नहीं लगती, यहाँ कोई हड़बड़ी नहीं है। यहाँ कोई घंटो एक ही जगह पर बैठा रहता है तो कोई इस शहर में चलता ही रहता है। शहर को देखने का सबका अलग-अलग नजरिया होता है। कोई वहाँ लोगों से शहर को खोजता है तो कोई वहाँ की जगहों से। ऋषिकेश जाना जाता है राम झूला, लक्ष्मण झूला और गंगा की वजह से। मुझसे कोई पूछे तो मैं उसे बीटल्स आश्रम के लिए ही जानूंगा क्योंकि सुकून कहीं है तो बस यहीं है।
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