पीरियड्स दो तरह के होते हैं - एक जो स्कूल में रोज़ घंटी बजने पर बदल जाया करता है और दूसरा जिसके बारे में हमारा समाज बात करना तो दूर, सोचने से भी कतराता है! जी नहीं, ये हम एक समाज की बात नहीं कर रहे हैं. आप लोगों के ऊपर वाले की कृपा से और हमारी क्युरिऑसिटी की वजह से घूम घाम कर और पढ़ लिख कर काफी सारे समाजों में परिवारों को हमने ठीक ठाक से और बेहद क़रीब से देखा है - जैसा हाल हमारे घरों का है, वही हाल कमोबेश आपके भी घरों का है!
'पीरियड्स', 'माहवारी', 'महीने के वो दिन', 'अशुद्ध होना', 'डाउन होना' जैसे शब्दों की आड़ लेकर स्कूलों में अपने स्कर्ट्स पर चॉक की सफ़ेदी, गाँवों में राख के टेक्सचर और छोटे शहरों में पुराने कतरनों के नीचे एक पूरी पीढ़ी ने पूरे ताम झाम से एक सिंपल बायोलॉजिकल प्रोसेस के नाम पर सबका चूतिया (माफ़ करना, गुस्से में इधर उधर हो जाता है!) काटा है! और, आज भी यही एक्सपेक्ट किया जा रहा है कि वैसे ही ये वाली पीढ़ी भी कटवाती रहे - अब ये तो होने से रहा! ट्रैवल ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों से ही ट्रिप्स और ट्रेक्स पर पीरियड्स को लेकर होने वाली परेशानियां, दिक्कतें और हिडेन कॉम्पलेक्सेज़ के बारे में लिखने और बात करने की चुल रही है - लॉकडाउन में ये भी निपटा ले रहे हैं!
सबसे पहले बात करते हैं, मेन ऑन द ट्रिप के लिए - चाहे आप सोलो ट्रैवल कर रहे हों या मिक्स्ड ग्रुप में! वो इसलिए, क्योंकि पैट्रिआर्की आपके ही नाम पर बेची गई है, भले ही इसके परपेट्रेटर्स में आप वीमेन को भी क्यों न गिनते हों. सबसे पहले आपका ख़ुद इस बात से कन्विंस होना बेहद ज़रूरी है कि न तो मेंस्ट्रुएशन कोई बहुत बड़ी चीज़ है और न ही इससे कोई पवित्र या अपवित्र होता है! आप अगर इतना कन्विंस हो जाते हैं कि आपकी बहन या कोई फ़ीमेल रिश्तेदार आपसे आकर इसके बारे में बात कर सके - बिना आपके और उनके डिस्कॉम्फ़ोर्ट के, तो समझ लीजिए आपने एक बेहद अहम सोशल रिस्पांसिबिलिटी को पूरा कर लिया है! आप अपने अपने परिवारों से शुरुआत कर सकते हैं, बस बात करने की!
अब आती है बात ऑन ट्रिप सीचुएशन्स और कंडीशंस की! अगर आप अकेले कहीं घूम रहे हैं, तो ये कोशिश करिए कि इतनी बेसिक बायोलॉजिकल प्रोसेस के बारे में जितने अवेयर आप हैं, आपसे मिलने वाले लोग भी हो सकें! आप सोलो ट्रैवल करते हैं या इसके मायने जानते हैं, तो आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हम क्या कह रहे हैं!अगर आप ग्रुप में या अपने किसी फ़ीमेल फ्रेंड के साथ ट्रिप पर हैं (कपल्स और हस्बैंड वाइफ़ भी), तो इसके इग्नोरेंस में न रहे ! जैसा माहौल है, इसमें आप बिलकुल एक्सपेक्ट नहीं कर सकते कि कोई फ़ीमेल को-ट्रैवलर इस बारे में आपको या किसी भी दूसरे मर्द को बताए! हो सकता है कि आपके हेल्प ऑफ़र करने पर पर्सनल और प्राइवेसी के ताने दिए जाएं और आप अपना सा मुँह लिए बैठ जाओ! लेकिन, आपको ये समझना होगा कि ये सब उसी समाज की देन है जिसको बदलने के लिए आप घूम घूम कर सीख रहे हो! सबसे पहले तो ख़ुद को मेंस्ट्रुएशन और मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में जागरूक करें! ऐसा आप अपनी फीमेल फ्रेंड्स, अपनी माँ, नानी, दादी, या बहनों से बात करके कर सकते हैं - ट्रस्ट अस यू, इन मामलों में सबसे रिलाएबल सोर्स ऑफ़ इन्फॉर्मेशन और अवेयरनेस यहीं हैं और कोई सर्च इंजन इसके बारे में उनसे बेहतर नहीं बता सकता!
आपको मेंस्ट्रुएशन के लक्षण, इसकी ज़रूरतों और इसके मायने पता हैं, तो आपको बस एक सहज स्माइल और ढेर सारी केयरिंग एट्टीट्यूड के साथ एक रेस्पेक्टेबल डिस्टेंस बना कर कुछ चीज़ों का ध्यान रखना है - जैसे मूड स्विंग्स के दौरे, जैसे कहीं ज़रूरत पड़ने पर उनका ढाई सौ ग्राम वाला हैंड बैग ही पकड़ लेना, जैसे बेहद ठंढी जगहों में गरम पानी का जुगाड़ कर देना - वगैरह वगैरह! बात बस सेंसटिव होने की है - अपने फ़ेलो ह्यूमन बीइंग के लिए! सब अपनी इतनी रिस्पांसिबिलिटी ही निभा लें, तो सोचिए म्यूच्यूअल रेस्पेक्ट इंडेक्स क्या शानदार होगा हमारे समाजों में!
अब बात करते हैं "द एवर केयरिंग" एंड "एवर डेस्क्रिमिनटेड लेडीज़" (हालाँकि इन दोनों एडजेक्टिव्स को हम सही नहीं मानते) इन द हाउस के लिए! देखो जी, बहुत साफ़ सीधी बात है - अपने जेंडर को बहुत ज़्यादा सीरियसली या बहुत ज़्यादा हलके में लेना बंद करो! जिस दिन आप ये कर लोगे, ये सारी भसड़ आपके लिए ख़त्म हो जानी है. दुनिया भर की मुसीबतों का जड़ मोस्टली हमारे दिमाग में ही होता है! दिमाग से वो मुसीबत खत्म, तो बहुत मायनों में वो मुसीबत ही खत्म हो जाती है! अनुभव से बता रहे हैं, दीन दुनिया देखने के बाद! जब तक आप ख़ुद अपनी मेंस्ट्रुअल हेल्थ और हाइजीन को नॉर्मलाइज़ नहीं करेंगी, तब तक कुछ नहीं बदलने वाला! मतलब ये कि अगर क्रैम्प्स पड़ रहे हैं, ब्लीडिंग हो रही है, चला नहीं पा रहे हो, तो अपने साथ खड़े किसी दूसरे जेंडर वाले को ये बताने से कि आप डाउन हो गई हैं या "यू आर ऑन पीरियड्स एंड यू मे नीड हेल्प", आपकी मुश्किलें कम होने की उम्मीद ज़्यादा है! पहले आपको भरोसा करना होगा, ख़ुद पर और उसके बाद समाज पर! एक्सपेक्टेशंस एंड रीएक्शन्स आर ऑल्वेज़ अ टू वे प्रोसेस!
हम ये बिलकुल नहीं सज़ेस्ट करेंगे कि आप अपनी पीरियड साईकल के हिसाब से अपनी ट्रिप्स प्लान करें! हमारा मानना है कि अपने शरीर और अपनी कैपेसिटीज़ का सबसे बेहतर पता खुद को होता है, इसलिए ट्रिप्स तो आप अपनी सहूलियत और अपने हिसाब से ही प्लान करें! मतलब ये कि अगर आप डाउन होने के बावजूद दो ढाई घंटे में बस से मेट्रो, मेट्रो से ई-रिक और ई-रिक से पैदल ऑफिस पहुँच कर अपने मूड स्विंग्स वाले फेज में अपनी बॉस की बकचोदी सुन लेती हो, तो आप कुछ भी कभी कर सकती हो! तो जी कोई अगर ये कह रहा है कि आप अपने मेंस्ट्रुअल कैलेंडर की वजह से ट्रिप्स पर जाओ या न जाओ, तो आपको समझ लेना चाहिए कि कहने वाले बन्दे को 'ज्ञान' की ज़रुरत है और आप चाहें तो उसे ऑब्लाइज़ कर सकती हैं.
क्योंकि हमारे पास डाउन होने के 'बावजूद' ट्रिप्स और ट्रेक्स पर जाने का अच्छा ख़ासा झेला हुआ एक्सपीरियंस है, तो कुछ बेसिक पॉइंटर्स शेयर कर रहे हैं, आप देख लो इन केस यू नीड टू नो!
1. आप डाउन होते हुए भी ट्रिप्स पर जा सकती हैं! पूरी तरह से आपकी बॉडी पर और आप पर डिपेंड करता है! आपको आपकी कंडीशन पता है, आप जैसे 'उन दिनों' के लिए तैयार होती हैं, वैसे ही अपनी ट्रिप के लिए तैयार होएं! अगर आपको पता है कि ट्रिप पर आप डाउन हो सकती हैं या आप पहले से डाउन हैं, तो घर में लाइट एक्सरसाइज़ कर के अपनी स्ट्रेंग्थ ज़रूर देख लें! जिनको वोमिटिंग, एसिडिटी वगैरह की प्रॉब्लम होती है, अपने खाने पीने का हिसाब कर लें - मतलब एसिडिक फ़ूड नहीं खाना, कॉफ़ी नहीं घोलनी और नींद पूरी करनी है! हाँ, अगर आप को वीकनेस ज़्यादा लग रही है तो एक बार ठीक से सोच लें!
2. अपने प्लान को बचाने और दोस्तों का मन रखने के लिए दवाई लेकर अपने पीरियड्स की डेट पोस्टपोन वगैरह करने की मत सोचना! एक बेसिक सी बात है - दवाई बीमारी ठीक करने के लिए होती है और आप बीमार नहीं हो! अगर आप शरीर की किसी भी रीफ़्लेक्स एक्शन को सप्रेस करना आपकी बॉडी के साथ ज़्यादती है! मेडिसिन्स पर डिपेंड होने से पहले खुद को इसके साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में इंफ़ोर्मड रखें! हो सकता है इन पिल्स की वजह से आपका मेंस्ट्रुअल साइकिल बिगड़ जाए और तब आपकी लग जाएगी - बहुत ज़्यादा वाली!
3. पेल कर खाओ! अरे मतलब, आपको खाली पेट नहीं रहना है! कुछ न कुछ खाते रहना है!
4. ब्लड लॉस का एक्क्लेमेटाइज़ेशन से कोई ख़ास लेना देना नहीं है! हाँ, थोड़ा ज़्यादा समय लग सकता है एक्क्लेमेटाइज़ होने में. आप पानी ठीक-ठाक पी रही होंगी तो कोई ज़्यादा सीन नहीं है!
5. हाई एल्टीट्यूड की वजह से मेंस्ट्रुएशन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता! ज़्यादा या कम ब्लीडिंग से इसका कोई लेना देना नहीं है. पैड्स, टैम्पून्स या मेंस्ट्रुअल कप - आप जो भी कम्फॉर्टेबली यूज़ करती आई हैं, वही यूज़ करें! ट्रिप पर ये एक्सपेरिमेंटेशन न करें तो बेहतर है!
7. ट्रिप या ट्रेक पर आप अपना टिश्यू पेपर या टॉयलेट पेपर यूज़ करें! डिस्पोज़ करने के लिए, आप इसे मिट्टी के नीचे दबा सकती हैं या डस्टबिन्स ढूंढ सकती हैं. वेट वाइप्स बायो डिग्रेडेबल नहीं होते हैं, बाकी आप समझदार हैं.
8. क्रैम्प्स होने या पेट दर्द होने पर आप दवाई लेने से बचो! वैसे, जनरली, ट्रेक करते समय या ट्रिप्स पर आप डिसट्रक्टेड रहते हो, तो दर्द का ज़्यादा पता नहीं चलता! अगर दवाई ज़रूरी लग रही है तो अपने डॉक्टर से बातचीत कर लें!
9. दर्द से डिस्ट्रैक्ट होने के लिए खुद को बिजी रखें। साथ वाले बन्दों से बात चीत करें। कैंप साइट्स पर गरम खाना या सूप का जुगाड़ बिठाएं।
10. ट्रेक के बीच में अगर चेंज करने की ज़रुरत पड़ी तो पी ब्रेक यानि टॉयलेट जाने के लिए हमेशा टोका और रोका जा सकता है!
11. मदद की ज़रुरत पड़ने पर आपको इम्मीडिएटली अपने ट्रेक लीडर से बात करनी चाहिए! ट्रस्ट अस यू, उससे बेटर हेल्प आपकी कोई नहीं कर सकता!
और लास्ट में कुछ ऐसी ज़रूरी चीज़ें जो आप कैरी कर सकती हैं! वैसे हम फ़िर यही कहेंगे - आपको सबसे बेहतर पता है कि आपको किन चीज़ों की ज़रुरत पड़ेगी! लेकिन वही बात है, एक्सपीरियंस हेल्प्स और इसलिए इन चीज़ों का भी ध्यान रखा जा सकता है
1. ज़िप लॉक पाउचेज़ या कैरी बैग्स - कुछ भी खुल्ले में छोड़ के नहीं आना है!
2. कुछ एक्स्ट्रा पैड्स या जो भी आप यूज़ करते हो ज़रुरत से ज़्यादा पैंटीज , कॉटन हो तो सबसे बढ़िया
3. हैंड सैनेटाइजर टॉयलेट या टिश्यू पेपर - ढेर सारा
4. Meftal Spas 1mg, पेन किलर
वैसे कोई ब्लॉग लिखते लिखते भी आप बहुत कुछ सीखते, समझते और सोचते हैं। अब जैसे इसी ब्लॉग को खत्म करते करते ये बात चली कि हम भारत के लोग अपनी समानता और समता किसके यहां इतने सस्ते में बेच आए। कि हम भारत के लोग सीकर्स थे, प्रीचर्स बनने की होड़ में कब लग गए? कब हम पर ख़ुद को विश्व गुरु बनाने का भूत सवार हो गया? सन 1992 में एक मंदिर में महिलाओं की एंट्री को हमारे कोर्ट में हम भारत के लोगों ने ही चैलेंज किया - आज़ादी के 44 साल बाद। और इस चवालीसवें साल के छब्बीस साल बाद हमारे देश की अदालत ने ये माना कि हम भारत के लोग ग़लत थे। मतलब, आज़ादी के 70 साल बाद।अगर हमें 70 साल ये कानूनी रूप से समझने और समझाने में लग जाते है कि माहवारी/पीरियड्स/मेंस्ट्रुएशन जैसी चीज़ किसी को पवित्र या अपवित्र नहीं कर सकती, तो हम भारत के लोगों को ये समझना चाहिए कि पहले हमें ख़ुद एलिमेंट्री क्लासेज़ में बोरा बिछा कर बैठने की ज़रूरत है। गुरु बाद में बन जाएंगे और विश्व गुरु तो बनने के ओवर एम्बिशन की पॉलिटिक्स को जितना जल्दी समझ लें उतना बेहतर है।
आपको हमारा ये पोस्ट अच्छा लगा तो हमें सपोर्ट करना न भूलें