"नमस्ते बाबू ! नाव की सवारी करना चाहते हो? ”
"जी नहीं धन्यवाद।"
"अरे आओ, मैं आप को दिखाता हूँ कि भगवान शिव ने मोक्ष कहाँ प्राप्त किया था |"
"नहीं रहने दीजिए | मुझे इसमे कोई दिलचस्पी नहीं है | मैं तो एक ईसाई हूँ |"
"अरे क्या बात है! आइए तब तो आप को वो जगह दिखता हूँ जहाँ साक्षात यीशू मसीह सूली पर चढ़ाए जाने से बच कर भाग के आ कर छुप गए थे | "
"यहाँ? भारत में?"
"जी हाँ, बिल्कुल | आइए नाव की सवारी करते हुए मिल कर प्रभु यीशू को ढूँढते हैं | "
चाहे आप किसी भी धर्म के हो, किसी भी देश से ताल्लुक रखते हों या आप का कोई भी रंग क्यों ना हो, अगर आप बनारस आए हैं तो आप को कुछ ख़ास चीज़ ज़रूर मिलेगी | और बनारस की उस ख़ास चीज़ का नाम है धोखा |
आप ने बनारस के तागॉन के बारे में पहले भी कभी सुना है ? मेरी राय में ये ठग भगवा वस्त्र धारण कर के पूरे दिन बनारस में गंगा के किनारे घाटों पर दिन दहाड़े हम जैसे लोगों को लूटने के लिए बैठे रहते हैं | बनारस गंगा के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है जिसे दुनिया का सबसे पुराना बसा हुआ शहर होने का गौरव भी प्राप्त है | कहते हैं भीष्म पितामह की माँ गंगा ने जब अपने तेजस्वी पुत्र भीष्म को महाभारत के युद्ध में पराजित हो कर बाणों की शैया पर लेते देखा तो वो बहुत रोई | मगर उससे भी ज़्यादा दुख उसे तब हुआ होगा जब गंगा ने मानव को अपना व्यापार और जीविका के लिए अपनी धारा के किनारे बसते देखा | भारत की पौराणिक किताबों के अनुसार अगर किसी मरे हुए आदमी की अस्थियों को गंगा की धार में विसर्जित किया जाता है तो उस आदमी की आत्मा सीधा स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान करती है | शर्त ये थी कि उस आदमी का धरती लोक में ही एक अच्छी आत्मा होना ज़रूरी है | महर्षि वेद व्यास ने अपने महान ग्रंथ महाभारत में ये कहा है कि स्वर्ग गति प्राप्त करना इंसान के खुद के कर्मों और योग्यता पर निर्भर करता है | मगर इंसान के लालचीपन की हद देखिए कि मरने के बाद सुख सुविधाएँ प्राप्त करने और सीधा स्वर्ग जाने के लिए वो जीवित रहते अपने भगवान को भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है | कैसी अजीब विडंबना है |
अपने किसी प्रियजन या रिश्तेदार की मौत के समय आदमी की तर्क शक्ति सबसे कमज़ोर होती है | ऐसे समय में आदमी पैसा खर्च करने से मना नहीं कर पाता | कुछ मूर्ख लोग तो सच में इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि एक- दो हज़ार रुपए दे कर वो अपने मरे हुए प्रिय जनों के लिए स्वर्ग जाने वाली सीढ़ी खरीद सकते हैं | मगर ज़्यादातर लोग समाज के डर से अपने मृत परिजनों के आख़िरी क्रिया कर्म के संस्कारों में रुपयों को ले कर मोल भाव नहीं कर पाते | इन कारणों के चलते बनारस के भगवा धारण किए हुए ठग बड़ी आसानी सी स्वर्ग के चौकीदार बन कर भोले भाले और मूर्ख लोगों का फ़ायदा उठाने आ जाते हैं |
"पूरे कर्म कांड के ₹5001 लगेंगे , बच्चा |"
"क्रिया कर्म में कितना समय लगेगा पंडित जी? 3 घंटे बाद मुझे वापिस जाने के लिए हवाई जहाज़ पकड़ना है | "
"चिंता मत करो, ₹8001 में सब कुछ जल्दी करवा दूँगा बालक | "
वाह, क्या बात है | मात्र ₹3000 रुपये ज़्यादा देते ही पंडित जी ने भगवान विष्णु को मना लिया और अब मरे हुए के शव को स्वर्ग में स्थान मिल ही जाएगा | जब पंडित और यजमान के बीच इस तरह के धंधे की बात चल रही थी तो मैं उस समय पास ही मणीकर्णिका घाट पर आराम से बैठा धूम्रपान कर रहा था | जैसे ही भगवान विष्णु के दाम तय हुए, मोटी तोंद वाले पंडित जी ने मंत्रोच्चारण शुरू किया और लगे हिंदू धर्म के तेंतीस करोड़ देवी देवताओं को प्रसन्न करने | शायद वैकुंठ (धरती लोक से ऊपर स्वर्ग लोक की दुनिया) पहुँचने के लिए रास्ते मे इन सभी दलालों को अपना अपना ब्याज देना ही पड़ता है | आश्चर्य की बात नहीं कि कर्म कांड का पूरा कार्यक्रम मात्र आधे घंटे में समाप्त हो गया और अब यजमान बड़े आराम से अपना हवाई जहाज़ पकड़ सकते हैं | शुक्र है, पैसे दे कर ही सही, यजमान का मरा हुआ बाप अब स्वर्ग की सुख सुविधाओं का मज़ा ले सकता है | या यूँ कहें कि पंडित का धन्यवाद, जिन्होंने अपने मंत्रों के माध्यम से भगवान विष्णु को ये विश्वास दिलवाया कि मुर्दा बड़ा ही सज्जन आदमी था और अब मुर्दे की आत्मा को स्वर्ग में स्थान दिया जाए | चाहे उस आदमी ने जिंदा रहते अच्छे कर्म किए हो या नहीं |
दोपहर से शाम तक नदी किनारे घूमते हुए मैंने कम से कम 50 घाट तो ज़रूर देखे होंगे | हर घाट पर पूजा करने का एक अलग फ़ायदा था और हर पूजा से आप एक अलग भगवान प्रसन्न कर सकते थे | कुछ अधनंगे स्पेन के लोग गांजा फूँक कर मोक्ष पाने की कोशिश कर रहे थे तो एक एनआरआई परिवार विदेश से स्वदेश गंगा में डुबकी लगा कर अपने पाप धोने आया था | ये संपन्न गुजराती परिवार हर पाँच साल में एक बार स्वदेश आ कर नदी में नहा कर पिछले पाँच साल के सारे पाप धो कर चला जाता है ताकि मरने के बाद धरती पर किए पापों के कारण स्वर्ग का सुख भोगने से वंचित ना रह सके | क्या बात है |
घाट जितना मशहूर हो, वहाँ के भगवान को खुश करना भी उतना ही महँगा होगा | सबसे महँगे भगवान अस्सी घाट पर प्रसन्न होते है | दोयम दर्जे के भगवानों को खुश करना है तो दश्वमेध घाट पर जा सकते हैं | ज़ैनी और तमिल ब्राह्मणों के भगवान अलग ही घाटों पर विराजते हैं | शायद इनके भगवान अपने आप को बाकी घाटों पर बिकने वाले हिंदू भगवानों से ऊपर मानते हैं | आप यहाँ के कुछ घाटों पर प्रभु यीशू को भी ढूँढ सकते हैं जैसा की इस पोस्ट के शुरुआत की बातचीत में आप ने पढ़ा | यीशू का भारत में तो कोई ज़्यादा भाव है मगर ईसाइयों के लोकतांत्रिक धर्मस्थल वैटिकन सिटी में प्रभु यीशू के नाम का सिक्का चलता है | मैंने कहीं पढ़ा था कि वैटिकन सिटी में जितनी दौलत है उससे पूरी दुनिया की ग़रीबी को दो बार मिटाया जा सकता है | उम्मीद करते हैं कि आपको पैसे और प्रभु में कुछ तालमेल दिखा होगा |
आप का प्रभु कौन है ?
यह आर्टिकल अनुवादित है | ओरिजिनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें |