" रास्ता कितना लम्बा है, ये मायने नहीं रखता, आपकी मंज़िल क्या है, ये ज्यादा जरूरी है "
इन्ही शब्दों के साथ शुरू करते हैँ अपने बद्रीनाथ के सफर को. एक ऐसा सफर जो पूरा तो सिर्फ दो दिनों में हो गया, लेकिन उसकी यादें दिल दिमाग़ में बस छप सी गयीं. अपने रोज के कामकाज को थोड़ा आराम देकर देखिये, सुकून की जो अनुभूति होंगी वो अविस्मरणीय होंगी.
हमारे सफर की शुरुआत हुई थी बागेश्वर से. बागेश्वर उत्तराखंड राज्य का एक बेहद खूबसूरत जिला है जिसे भगवान बाघनाथ के नाम के लिए ज्यादा जाना जाता है. चलिए बागेश्वर के बारे में आपको और किसी दिन बताएँगे, अभी फोकस करते हैँ बद्रीनाथ पर. पहले बद्रीनाथ के बारे में थोड़ा जान लेते हैँ. बद्रीनाथ भगवान विष्णु का धाम है और उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम है. ये चमोली जिले में पड़ता है जिसकी ऊंचाई लगभग 3300फ़ीट है.
बागेश्वर से 22 अक्टूबर की शाम 4 बजे सफर की शुरुआत हुई. अब जैसे की हर कोई जनता है, जैसा सोचो वैसा कभी होता नहीं, इसी कहावत को हम कैसे गलत साबित कर सकते हैँ. प्लान तो सीधे जोशीमठ पहुंचने का ही था लेकिन पहाड़ की सड़कों से साथ नहीं मिला हमें, और हम कर्णप्रयाग ही पहुंच पाए. बागेश्वर की ही तरह कर्णप्रयाग भी एक पहाड़ी घाटी है. उत्तराखंड के पांच प्रयागों में से एक कर्णप्रयाग में पिंडर और अलकनंदा नदियों का समागम होता है. वहां रुकने के कई होटल और गेस्ट हाउस मिल जाते हैँ. हमने वहां GMVN (गढ़वाल मण्डल विकास निगम ) में रुकने का मन बनाया. रास्ते की थकान मिटाई और सुबह होते ही निकल पड़े अपनी मंज़िल बद्रीनाथ की ओर.
सुन्दर रास्ते का आनंद लेते हुए हमने अपना अगले दिन का सफर शुरू किया. आगे बढ़ते बढ़ते ठण्ड भी बढ़ने लगी और हिमालय और साफ दिखने लगे. बेहद ठण्डे मौसम के साथ खिली खिली धूप मिल जाये तो कोई और क्या चाहेगा अपने सफर में. चमोली, नंदप्रयाग, जोशीमठ होते हुए हमें बद्रीनाथ पहुंचने में लगभग साढ़े चार घंटे लग गए. कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ की दूरी करीब 122km है लेकिन यकीन मानिये रास्ता बहुत ही खूबसूरत है. कब आपके चार पांच घंटे निकल जायेंगे आपको पता ही नहीं चलेगा. बस फिर क्या था वहां पहुंच के सबसे पहला और जरूरी काम था बाबा बद्री के दर्शन. इतना सुन्दर और मनोरम है बद्रीनाथ धाम जिसकी कल्पना कर पाना भी एक कल्पना ही है. साक्षात् वहां होकर भी सपने जैसा लग रहा था सब. बस दर्शन करके वहीँ मंदिर से थोड़ा बाहर निकल के भोजनालय में पेट पूजा की. और उसके बाद भारत का आखिरी गांव "माणा गाँव " घूमा और रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन "Back to pavilion".
बद्रीनाथ कैसे पहुचे :
अगर आप दिल्ली से आ रहें हैँ तो दिल्ली से देहरादून तक की ट्रेन या फ्लाइट बुक कर सकते हैँ और वहां से आसानी से कैब मिल जाएगी.
या फिर आप दिल्ली से काठगोदाम की ट्रेन ले सकते हैँ और फिर वहां से भी आपको टैक्सी मिल जाएगी.
कहाँ रुकें :
स्टे करने के लिए बद्रीनाथ में कई तरह के होटल्स, धर्मशाला आसानी से मिल जाते हैँ.
और अगर आपके पास टाइम बचा है तो आप वहां से ऑली की ख़ूबसूरती के भी आनंद उठा सकते हैँ.
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