फ़र्ज़ कीजिए, हिमालय के पर्वतों में बसे शांत से गाँव में आपका अपना घर है। आप जब चाहे तब वहाँ रहने जाते रहते हैं...
है ना मज़ेदार ख़याल ?
ऐसा ही कुछ मेरे ज़हन में भी कौंधा, तभी तो मैं चार महीनों के लिए अपना काम-धंधा लेकर सीधा हिमालय के एक छोटे से गाँव रक्कड़ में जा बसा। मेरा सारा काम मेरे कम्प्युटर से हो जाता है, तो पुणे शहर से निकलकर रक्कड़ गाँव में कुछ महीनों के लिए बसना मुझे काफी आसान लगा।
वहाँ रहा तो पता चला कि शहरी ज़िन्दगी कितनी आसान है, मगर हम कभी इस तरफ गौर ही नहीं करते। पता चला कि शहर की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में कुछ वक़्त चुरा कर अपनी ख़ुशी का काम भी कर लेना चाहिए। सारा दिन मज़े से पूरे गाँव में घूमते रहना, लगा बचपन लौट आया हो जैसे। यहाँ से जाते हुए ऐसा लगा जैसे क्या इतना सुकून फिर कभी कहीं जुटा सकेंगे ?
पहाड़ों में रहते हुए मुझे पहाड़ों से प्यार हो गया। ये प्यार पनपने के कई कारण रहे, जिनमें से कुछ हैं....
प्रदूषण से दूर, बहुत दूर
इस गाँव में अपने लकड़ी के मकान से जब भी खिड़की खोलो, धौलाधार पर्वतों पर जमी सफ़ेद झक बर्फ के दर्शन होते हैं। पहाड़ों से छोटी-छोटी नदियाँ बहती दिखती हैं और घने जंगलों से आती हवा में देवदार के पत्तों की खुशबू महसूस होती है। हरी-भरी घास के मैदानों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चावल के खेत लहलहाते हैं।
गाँव की चाल, प्रकृति के साथ
यहाँ लोग प्रकृति के साथ जीते हैं। सूरज उगने से पहले मुर्गा बांग देकर जगा देता है, और शाम के वक्त सूरज डूबते ही नींद अपनी गोद में लेटा लेती है। पहले मैं जल्दी नहीं उठ पाता था, मगर अब तो ऐसा आलम है कि छुट्टी के दिन भी नहा-धोकर उगते सूरज के दर्शन कर लेता हूँ।
सुबह उठकर बाहर नज़र घुमाओं तो गाँव के लोग अपने-अपने काम में डूबे दिखते हैं, मगर शान्ति से। हरेक के पास रूककर दो घड़ी बतियाने की फुर्सत है। किसी अनजान से भी नज़रें मिल जाएँ तो मुस्कुरा देते हैं।
साफ़-सुथरा ताज़ा बढ़िया खाना
हिमाचल में कहीं भी चले जाओ, आपको हर ढाबे पर दाल-चावल तो मिल ही जाएँगे। ये दाल-चावल यहीं के खेतों में पैदा होती हैं और इन्हें अपने प्राकृतिक रूप में ही पकाकर आपके सामने परोस दिया जाता है।
मीठे पानी में उगी सब्जियों का स्वाद भी बिलकुल अलग, एकदम बढ़िया। यहाँ रक्कड़ गाँव में तिब्बती काफी रहते हैं, इसलिए आपको ख़ास अंदाज़ में बना तिब्बती खाना भी बड़े आराम से मिल जायेगा।
कुदरती मिनरल वॉटर
मेरे घर के ठीक पीछे साफ़ मीठे पानी की नदी बहती थी, जहाँ से पानी सीधा लोगों के घरों के नलों में आता था। अगर कहीं फ़िल्टर लगा भी है तो भी मैनें लोगों को सीधा नल से पानी पीते देखा है। बताते हैं कि चूंकि नदी हमेशा बहती रहती है, इसलिए इसका पानी साफ़ तो है ही, साथ ही इसमें कई तरह के मिनरल भी है।
मैनें भी सीधे नल से पानी पिया और एकदम स्वस्थ जिया।
सुहाने नज़ारों के बीच किताब के पन्ने पलटने का मज़ा
यहाँ जब भी मेरा मन किताब पढ़ने का होता तो मैं कुछ देर पहाड़ चढ़कर ऐसी जगह बैठ जाता, जहाँ से मुझे गाँव के छोटे-छोटे घर और पास बहती नदी की धारा साफ़ दिखती थी।
जंगल की शान्ति में कभी-कबार किसी पक्षी के कूकने की आवाज़ आ जाती थी। ऐसी शांति में आप बड़ी तल्लीनता से पढ़ते-लिखते हो।
यहाँ आपको चुस्त-दुरुस्त और फुर्तीला रहना ही होगा
यहाँ कोई ओला-ऊबर नहीं आती। अगर कुछ लाने जाना है तो पैदल निकलना होता है। गाँव के कच्चे रास्तों में चलते हुए ऐसा लगता है मानों वक़्त की सुई पीछे घुमा कर अतीत में लौट आये हों। शहर में तो आपको हर सुख-सुविधा चुटकी बजाते ही मयस्सर हो जाती है, मगर यहाँ शरीर को गतिमान बनाए रखना ज़रूरी ही नहीं ज़रूरत भी है।
पहाड़ी लोगों जैसा जीना ही जीना है
अगर आप यहाँ सैलानी के तौर पर आते हैं तो आपको बढ़िया रेस्टोरेंट मिलते हैं, रुकने- सुथरे कमरे, कमरे से फ़ोन करते ही आपके लिए मंगाया हुआ सामान आ जाता है।
लेकिन अगर कोई मेरी तरह यहाँ के गाँववालों की तरह रहने आया है तो उसे अपना सारा काम खुद ही नियोजित करना होगा। सामान लाने बाज़ार जाना होगा, खाना खुद पकाना होगा, साफ़-सफाई आप खुद रखते हैं, अपना सामान सुनियोजित रखते हैं, अपनी चीज़ों के प्रति सजग रहते हैं।
आप लोगों से प्रेम भाव रखते हैं क्योंकि रहते तो आप साथ ही हैं। यहाँ रहते हुए मैनें कई तरह के तिब्बती पकवान बनाना भी सीख लिया।
आखिरकार मुझे यहाँ घर जैसा ही लगने लगा
हिमाचल घूमने आए लोग यहाँ रहने का मज़ा नहीं समझ सकते। पहाड़ों में नयी जगह आकर भी मैं सभी से घुल-मिल गया। लोग मुझे पहचानने और इज़्ज़त देने लगे। ऐसे माहौल में आप हर दिन कुछ नया ज़रूर सीखते हैं, और ऐसे शानदार अनुभव ही आपके व्यक्तित्व में चार-चाँद लगा देता है।
मुझे ऐसे लोग मिले जो हर तरह की मदद देने को हमेशा तैयार थे, ऐसे में मैं भी उनसे ये गुण सीख गया।
गाँव की जानकारी
रक्कड़ गाँव हिमाचल के सबसे प्रख्यात हिल स्टेशन में से एक धर्मशाला से सिर्फ 12 कि.मी. लोमीटर दूर है। आप दिल्ली से ट्रेन या बस लेकर पठानकोट पहुँचिए और फिर 3 घंटे बस में सफर के बाद रक्कड़ आ जाता है। गाँव से 30 कि.मी. दूर कांगड़ा जिले के गग्गल में हवाई अड्डा है जो आपको भारत के सभी मुख्य शहरों से जोड़ता है। आपको यहाँ एयर इंडिया और स्पाइसजेट जैसी फ्लाइट्स आराम से मिल जाती हैं।
अगर आपने भी हिमाचल में हिमाचलियों के बीच रहने की योजना बनायी है तो आप सबसे पहले अपने पसंद का कोई भी हिल स्टेशन देख लेते हैं और फिर इसके आस-पास का कोई भी गाँव चुन लेते हैं। हिल स्टेशन के पास होने के बावजूद इन गाँवों में पूरी शांति और सुकून रहता है।
कहाँ रुकें
हिमाचल के गाँवों में लोग अपने-अपने घरों में एक खाली कमरा ज़रूर रखते हैं, ताकि सैलानियों को रहने के लिए दे सकें। इसलिए रुकने के लिए कमरा तो आपको बड़ा आसानी से मिल जाता है और किराया भी ₹2000 से ₹6000 के बीच वाजिब ही लगता है। पहले दो महीने तो मैं घुमक्कड़ फार्म्स में रहा, फिर गाँव के ही एक घर में शिफ्ट हो गया।
क्या खाएँ
साफ़-शुद्ध और सात्विक खाना तो आप अपने यहाँ पकवा कर खाइये। अगर कुछ तिब्बती खाने का मन है तो सिद्धबाड़ी रोड पर कई ढाबे है। नोर्बुलिंग्का मठ के आस-पास कई बढ़िया रेस्टोरेंट भी हैं, जिनमें तिब्बतन किचन मेरा फेवरेट था। भारतीय खाने के भी कई रेस्टोरेंट हैं जैसे कैफ़े बाय द वे और सत्यम।
गाँव में इंटरनेट कैसा है
अगर आपका काम भी मेरी तरह ही लैपटॉप पर हो जाता है तो आपको यहाँ एयरटेल और जिओ की इंटरनेट सुविधाएं बढ़िया लगेंगी। आपको वाजिब दामों पर खूब इंटरनेट मिलता है, जिससे आप अपनी काम-कमाई का सतूना सेट करते हैं। याद रखिये, आपका घर वहीं है, जहाँ आप हैं।
इंटरनेट का काम नहीं है ? फिर कैसे रह सकते हो आप हिमाचल में ...
स्वयंसेवक : रक्कड़ गाँव में घुमक्कड़ फार्म और निष्ठा एनजीओ को स्वयंसेवकों की ज़रुरत पड़ती रहती है। आपको सेवा देने के पैसे नहीं दिए जायेंगे, मगर रहने की जगह और भोजन मुहैया हो जायेगा। पिछले साल बीर में रहने के दौरान धर्मालय में काम मिल गया था। अगर ऐसा कोई अवसर नहीं है तो आप पढ़ा भी सकते हैं।
कमाओ : आप अपने कौशल की हिसाब से कमाई का जरिया ढूंढ लेते हो तो खूब कमाते हो। हिमाचल के गाँवों में रहने के दौरान मैं कई ऐसे लोगों से मिला जिनका ऑर्गनिक फ़ूड का काम था तो कई वेब डेवलपमेंट के काम में लगे थे। कई फोटोग्राफर्स से भी मिले तो कई योग प्रशिक्षकों से भी मुलाक़ात हुई।
बचत : अगर कुछ ना करने का मन हो तो कुछ नया कर लो। मेरी जानकारी कई ऐसे बढ़िया लोगों से थी जो चित्रकारी में, संगीत , पाककला, आर्गेनिक फार्मिंग और किताबें पढ़ने-लिखने में लगे थे। ये अपनी बचत पर जी रहे थे।
रक्कड़ गाँव में रहते हुए आप,
-साफ़ नदी में नहाते हैं, बचपन लौट आता है।
-नोर्बुलिंग्का इंस्टिट्यूट में तिब्बतन कला के बारे में सीखते हैं।
-सलोनी माता मंदिर में चाय की चुस्कियों के साथ नज़ारे का मज़ा लेते हैं।
-धर्मशाला स्टेडियम में मैच के मज़े लेते हैं
-आपकी खुशकिस्मती अगर आपको दलाई लामा मंदिर में घूमते हुए दलाई लामा के दर्शन हो जाएँ।
-मैक्लॉडगंज और धर्मकोट के कैफ़े में खाने के मज़े लेते हैं।
-भगसू झरने और शिवा कैफ़े तक ट्रेक करते हैं।
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