90 के दशक के ज़्यादातर बच्चों की तरह मेरे मन में भी एक बेहद सुहानी याद आज तक ताज़ा है; जब मैं हर हफ्ते दूरदर्शन चला कर मालगुडी डेज़ कार्यक्रम की धुन सुनने का इंतज़ार किया करता था | जब इस छोटे से कस्बे के लोगों को सादगी और एक मुस्कान के साथ जीते हुए देखते थे तो बड़ा मज़ा आता था | मश्हूर लेखक आर. के. नारायणन द्वारा लिखे हुए इस कार्यक्रम का प्रमुख किरदार 'स्वामी' 'मालगुडी' नाम के कस्बे में रहता है | ये कुछ उन चुनिंदा टीवी शो में से एक है जो 30 साल पहले टेलीकास्ट होने के बावजूद आज भी उतना ही पसंद किया जाता है।
ये शो भले ही काल्पनिक हो, लेकिन असलियत में शिवमोगा शहर के पास बने अरसालु रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ' रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'मालगुडी' रखा जाने वाला है | कुछ समय इस मुद्दे पर विचार करने के बाद सरकार ने इस लोकप्रिय कार्यक्रम को श्रद्धांजलि देने के लिए अरसालु रेलवे स्टेशन का नाम मालगुडी रखे जाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी है | वैसे तो इस शो में दिल को छू जाने वाली छोटी कहानियाँ आस पास के स्थानीय कस्बों में फ़िल्माई गयी है, मगर रेलवे के ज़्यादातर दृश्यों को इसी स्टेशन पर फिल्माया गया था, जिसकी वजह से ये स्टेशन सालों से लोगों की यादों में छपा हुआ है |
दक्षिण पश्चिम रेलवे के उप महाप्रबंधक, ई. विजया को नाम बदलने की प्रक्रिया को खुलकर समझाते सुना गया है " किसी स्टेशन का नाम बदलने के लिए अगर जनता या जनता के चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा गुज़ारिश की जाती है तो पहले हम राज्य सरकार का दरवाज़ा खटखटाते हैं | वहाँ से मंज़ूरी मिलने के बाद ही रेल मंत्रालय कोई निर्णय लेता है | "
अरसालु रेलवे स्टेशन, जहाँ दिन की मात्र दो ट्रेनें गुज़रती है, शो फ़िल्माने के लिए सबसे सही स्टेशन था जिसके लिए मूल लेखक आर. के. नारायणन और निर्देशक शंकर नाग ने मंज़ूरी दी थी |
"ब्रिटिश काल के दृश्यों को फ़िल्माने के लिए अरसालु स्टेशन सही था | हर सुबह हड़बड़ी में हम इस स्टेशन पर दो दृश्य फ़िल्माने पहुँच जाते थे | पहला दाहिने प्लेटफार्म पर फिल्माया जाता था और दूसरा दृश्य 20 मिनट बाद सामने वाले प्लेटफार्म पर फिल्माया जाता था | ये बहुत सुहानी यादें हैं | " कार्यक्रम में स्वामी का किरदार निभाने वाले मास्टर मंजुनाथ ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया |
ये पुराना स्टेशन फिलहाल खस्ता हालत में है, जिसे स्थानीय संग्रहालय के रूप में तब्दील किया जाएगा | नए स्टेशन, जहाँ से अब पाँच रेलें गुज़रती है, के सौंदर्यीकरण और नामकरण में 1.3 करोड़ का खर्च आएगा |
अगर आप अपने अनुभव को और गहरा बनाना चाहते है तो आप यशवंतपुर, बेंगलुरु से मैसूरु (मैसूर) जाने वाली मालगुडी एक्सप्रेस में भी सफ़र कर सकते हो जिसका नामकरण 2011 में किया गया था |
भले ही लेखक ने नक्शे पर उंगली रख कर मालगुडी का पता जगजाहिर नहीं किया हो, मगर आप चाहें तो इस छोटे से काल्पनिक कस्बे से जुड़ी अपने बचपन की यादें जी सकते हैं |
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