स्पीती घाटी की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खूबसूरती को देख कर मैं कुछ समय और यहाँ रुकना चाहती थी। मैं चाहती थी कि घाटी के विशाल पहाड़ों को अपनी बाहों में समेट लूँ और इस घाटी की खूबसूरती में डूब जाऊँ। मेरा मन बार-बार यही कह रहा था कि मैं वापिस जाने के लिए तैयार नहीं हूँ और इसी ख्याल के साथ हमारी गाड़ी चंद्रताल से मनाली की ओर आगे बढ़ रही थी जो हमारी इस स्पिति रोड ट्रिप का आखिरी पड़ाव था। हम बाटल के चाचा चाची ढाबे पर रुके जहाँ यात्रियों की भीड़ लगी हुई थी।
बारिश का मौसम था और वहाँ की बारिश ने स्पीती को बाकि दुनिया से अलग कर दिया था। बाटल से मनाली के रास्ते में कई बार भूस्खलन हो चूका था जिसकी वजह से रास्ते बंद थे और अगले 24 घंटे में रास्ता साफ़ होने की उम्मीद थी। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे भगवान ने मेरी दुआ कुबूल कर ली हो। हम सभी ने वहाँ लज़ीज़ राजमा चावल खाया और पास के गाँव की ओर निकल पड़े। हमने फैसला किया कि हम रात उस गाँव में बिताएँगे और रास्ता साफ़ होने पर मनाली की तरफ बढ़ेंगे।
हमने हिम्मत की और वापिस उन मुश्किल रास्तों की तरफ मुड़ गए जिनको पार करके हम यहाँ तक पहुँचे थे। 3 घंटे की यात्रा के बाद हम अपने मुकाम पर पहुँच चुके थे। वहाँ के एक छोटे से गाँव लोसार में हमने इबेक्स होमस्टे को अपना ठिकाना चुना था।
एक जन्नत जिसका नाम था लोसार
लोसार काज़ा और बाटल के बीच एक छोटा सा गाँव था जहाँ लगभग 65 परिवार बसे थे। स्पीती नदी के पास बसे इस गाँव में बिलकुल वैसे ही घर थे जैसे स्पीती घाटी में देखने को मिले थे। इस छोटे से गाँव में वो सब कुछ था जो हम एक खूबसूरत गाँव में तलाशते हैं। यहाँ की शांति आपके दिल को छू लेती है और यहाँ के लोगों का स्वभाव आपका मन खुश कर देता है। इस गाँव में एक स्कूल, एक मोनास्ट्री और एक चिकित्सालय है।
इस जादुई जगह में मेरा अनुभव
बर्फीले पहाड़ों से ढके इस गाँव में हलकी ठण्ड थी जो सूरज ढलने के बाद बढ़ जाती है। हमारा कमरा गर्म था और थोड़ा अलग भी जहाँ 7 वर्ष की येशी ने हमारा स्वागत किया था। गुलाबी स्वेटर पहने येशी के गाल सेब की तरह लाल थे जैसे पहाड़ियों के होते हैं और उस अकेली बच्ची में हम सब से ज्यादा उर्जा थी। वो पूरे घर में इधर उधर दौड़ रही थी जैसे की उसे रास्ता नहीं पता हो और हम अजनबियों के बीच आते ही शर्मा जाती थी।
इबेक्स होमस्टे की सादगी
हमें हमारा कमरा दूर्जी ने दिखाया था जो इस होटल के मालिक थे और उनका व्यवहार भी उनकी बेटी की तरह सौम्य था। घर छोटा था, वहाँ 2 कमरे थे, एक छोटा और एक बड़ा, एक रसोई घर और एक डाइनिंग रूम जहाँ हम अपनी रात और दिन गुज़ारने वाले थे। घर में सिर्फ एक ही वॉशरूम था जो हम 6 लोगों को इस्तेमाल करना था। आम तौर पर मुझे इससे परेशानी होती है पर यह घर इतनी अच्छी तरह से साफ़ और संभाल कर रखा गया था कि मैं इस परेशानी को अनदेखा करने के लिए तैयार थी।
हमने अपना सामान रखना शुरू ही किया था कि गाँव की बिजली चली गयी। हमें लगा शहरों की तरह कुछ देर में बिजली आ जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ, बिजली अगली दोपहर तक नहीं आई। ना वहाँ बिजली थी और ना मोबाइल में नेटवर्क। हम बाहर की दुनिया से बिलकुल कट गए थे। पहले मैं इस माहौल को लेकर काफी उत्साहित थी पर अब मुझे चिंता होने लगी थी। दुनिया से हमारा कोई संपर्क नहीं था। हमारे पास एक दूसरे से बात करने के लिए सिर्फ हम लोग थे और वो परिवार जिसने खुली बाहों के साथ हमें अपने घर में ठहरने की जगह दी थी।
ठंडे रेगिस्तान की कहानियाँ
हम सब रसोई घर में कम्बल ओढ़ कर सिगड़ी के आस पास बैठ गए। रात के खाने में हमें आलू और मटर से बना स्वादिष्ट खाना परोसा गया जो स्पीती के लोग आम तौर पर खाते हैं। स्पीती के वातावरण, उँचाई और जगह की वजह से वहाँ सर सिर्फ दो सब्जियों की ऊपज होती है।
वहाँ के हर पकवान में इन दोनों का मेल होता है। दूर्जी ने हमें अपनी स्पीती में रहने के अनुभव के बारे में बताया और कुछ तस्वीरें भी दिखाई जिसमें उन्होंने स्पीती के सबसे महतवपूर्ण और प्रसिद्ध जंतु सफ़ेद तेंदुए को देखा था।
उन्होंने हमें स्पीती के उन कठिन दिनों के बारे में बताया जिससे ठंड के मौसम में हर स्पीती वासी गुज़रता है। स्पीती को स्टोर में बचाए हुए खाने से काम चलाना पड़ता है। पानी बिलकुल बर्फ में बदल जाता है, शौचालय के लिए भी पानी नहीं होता और उँचाई पर बसे होने की वजह से ऑक्सीजन में भी कमी हो जाती है और 7 फीट बर्फ जम जाती है। जो हमनें देखा वो हमारे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। मैं और मेरे साथी कुछ देर बिजली और नेटवर्क नहीं आने पर इतने व्याकुल हो गए थे पर स्पीती वासी इन मुश्किलों के साथ करीब आधा साल गुज़ार देते हैं।
दूर्जी ने हमें पहाड़ पर मिलने वाली बीयर छांग भी पिलाया जो वो खुद अपने आँगन में बनाते हैं। समय काफी बीत चूका था और दूर्जी की दोनों बेटियाँ और पत्नी सो चुकी थी। छांग और सीबकथोर्न जूस की चुस्कियों के साथ हम कुछ देर और उनो खेलते रहे। दूर्जी ने हमें बारी बारी से गाना गाने को कहा था ताकि वो अपनी सुरीली आवाज़ हम सब को सुना सके पर हम सभी ने एक साथ गान गाना शुरू कर दिया। हमारी इस रात का अंत होटल की छत पर तारों को निहारते और सप्त ऋषि को देखते देखते हुआ।
अगले दिन इस परिवार के लोग गाँव के किसी त्योहार को मानाने के लिए पास के मंदिर गए थे। हम उनके साथ नहीं जा पाए क्योंकि हमारी गाड़ी किसी भी वक़्त हमें लेने आ सकती थी। हमें कुछ पता नहीं चल पा रह था क्योंकि हमारी ड्राईवर अंगरूप भैया हमसे किसी भी ज़रिये से बात नहीं कर पा रहे थे। तब तक हमारे फ़ोन में सिग्नल नहीं आया था।
गाड़ी के इंतज़ार में हम सब घर के अन्दर बैठे हुए थे और बात चल रही थी कि हम सब लोसार जैसे शांत गाँव में रहना चाहते हैं। हाँ, वहाँ ज़िन्दगी मुश्किल थी, पर वहाँ की अद्वितीय खूबसूरती और शांति ने हमें दूसरी दुनिया का अनुभव करवाया था। बहुत समय बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं वर्तमान में जी रही हूँ। मेरा ध्यान ना किसी और के काम पर था ना सोशल मीडिया पर, मैं जहाँ मौजूद थी वहाँ के जादू को महसूस कर पा रही थी।
मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी थी और मैं दूसरे नज़रिए से भी चीज़े को देखना सीख गयी थी। मैं बहुत रिलैक्स्ड और शांत हो गयी थी। क्योंकि कोई मुझसे संपर्क नहीं कर सकता था इसलिए मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था कि ऑफिस और घर पर क्या चल रहा है। लोसार में रहना ध्यान करने जैसा था, इससे अच्छी छुट्टियाँ मैं मांग ही नहीं सकती थी।
स्पीती में एक अतरिक्त दिन ने हमारी रोडट्रिप को एक बेहतरीन अंत दिया था। इसके बाद हम कज़ा से शिमला लगातार 19 घंटे ड्राइव करने के बाद पहुँचे।
इसलिए जब आपकी ट्रिप में कुछ आकस्मिक हो तो घबराएँ नहीं बल्कि उसका आनंद लें।