अपारंपरिक उत्तराखंड भ्रमण:-औली एवं चोपटा तुंगनाथ
कई वर्ष पूर्व एक समाचार पत्र में मशहूर लेखक श्री रस्किन बांड ने तुंगनाथ यात्रा पर एक रोचक वृतांत लिखा था,बस तभी से मन में इस जगह के प्रति उत्सुकता थी। मित्रो के साथ की वार्षिक यात्रा में इस वर्ष यही जाने का तय किया। छह मित्र बन्धु मै,अशोक,शेखर,मिलिंद,राजीव,एवं मनोज। मनोज ने तुरंत आंध्र एक्स से दिल्ली के टिकट भी बना लिए। मैंने भी ऑनलाइन होटल और टैक्सी बुक कर ली। शुक्रवार 7 फेब्रुअरी को रात साड़े नौ बजे ट्रेन में सवार हो के निकल पड़े दिल्ली की तरफ।
पहला दिन 8 फेब्रुआरी 2020 सुबह साड़े छह बजे नियत समय दिल्ली पहुच गए और समस्याओं की शुरुआत हो चुकी थी...टैक्सी ऑपरेटर ने इनोवा की बजाय एर्टिगा टैक्सी भिजवा दी जो छह व्यक्तियों के अनुरूप नही थी। ऐन वक्त पर कोई अन्य उपाय नही था तो असुविधा में सुबह 8 बजे कार में बैठ कर निकल पड़े। (चित्र:-मित्र समूह हिमालय की ओर) गाज़ियाबाद मोदीनगर मेरठ से निकलने में ट्राफिक आदि की भीषण समस्या के निदान के रूप में अपर गंगा हाईवे का निर्माण बहुत सुविधाजनक था और गंगा नहर के किनारे किनारे लगभग सभी शहरों में प्रवेश किये बिना बहुत अच्छा सफ़र कट रहा था, रूडकी के पूर्व ही ये हाईवे दिल्ली हरिद्वार हाईवे से जुड़ गया और साथ ही वाहनों की रेलमपेल भी। एक बजे लगभग ऋषिकेश पहुचे और पवित्र साफ़ सुथरी शुध्ह गंगा के किनारे देवप्रयाग की ओर निकल पड़े। रास्ते में रुक कर नाश्ता और लंच लेते लेते आगे बढ़ रहे थे तभी अचानक ट्राफिक जाम मिला। पता लगाया तो मालूम हुआ की उत्तराखंड सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना "चार धाम प्रोजेक्ट"का काम जोरो पर है और इन सब को जोड़ने वाली सड़को को चौड़ा कर फोर लेन बनाया जा रहा है। (चित्र:-बंद ट्राफिक में मित्र समूह) अगले चार पांच दिन इसी प्रकार जगह जगह ट्राफिक में अनेक बाधाए आयी किन्तु इससे भविष्य में आने वाले यात्रियों को अत्यंत सुविधाजनक मार्ग प्राप्त होगा। इन्ही बाधाओं के चलते अब सारी गाँव तक पहुचना संभव नही लग रहा था। वैसे भी शाम आठ बजे बाद यात्रियों के आवागमन पर रोक है।इसी के चलते साड़े आठ बजे 380 किमी और 13 घंटे की यात्रा के बाद अंततः रुद्रप्रयाग में रुकना पड़ा ।यहाँ होटल शांग्री ला एक सुन्दर होटल है। यही चेक इन कर कल सुबह सारी गाँव होते हुए चोपटा तुंगनाथ जाना था। दिन भर के थके मांदे डिनर कर सो गये।
दूसरा दिन 9 फेब्रुअरी 2020 सुबह जागे तो सामने भव्य दिव्य हिमाच्छादित हिमालय की सुन्दर चोटिया देख के मन प्रसन्न हो गया।ठण्ड अपने जोरो पर थी,तापमान माइनस में था। कपड़ो से लदे फदे हम इसी ठण्ड का आनंद लेने ही तो आये थे। कुछ साथियो ने स्नान किया कुछ टाल गये। तगड़ा नाश्ता कर के सामान गाडी पे लाद के बैठे ही थे कि हमारे चालक सचिन ने सूचना दी की चोपटा का मार्ग पूरी तरह बर्फ से ढंका हुआ है और किसी भी तरह की दुर्घटना को टालने की दृष्टी से आवागमन बंद कर दिया गया है। एक बार पुनः हिमालय ने जता दिया की यहाँ उसकी सत्ता है और उसीकी इच्छानुसार यात्रियों को बढ़ना होगा। स्थानीय लोगो से पूछताछ में पता चला कि चमोली होते हुए चोपटा का रास्ता खुला होने की सम्भावना है किन्तु इसमें अत्यधिक खतरा भी है। अब यात्रा कार्यक्रम में बदलाव आवश्यक था। इसी को ध्यान में रख कर जोशीमठ की ओर निकल पड़े। यहाँ एक और आधुनिक तकनीकी हादसा हमारी राह देख रहा था। अब तक गूगल मैप्स हमारी राह का मार्गदर्शक था अब उसी ने हमारे साथ मजाक करने की ठानी। उसीके बताये शार्टकट रूट के अनुरूप निकल पड़े। बेहद खुबसूरत छोटा सा मार्ग चहु ओर पेड़ो से घिरा हुआ और ट्राफिक नही के बराबर हमें अतिरिक्त आनंद प्रदान कर रहा था। ना बसों का शोर ना धुआँ ना बड़ी बड़ी मशीनों द्वारा खुदाई के चलते मार्ग की रुकावट। लगभग दस बारह किमी चलने के पश्चात एक मोड़ पे गाडी मुड़ी और ये क्या....????? आगे मार्ग का अंत ????सामने सटे हुए गाँव में जाने के लिए सीढिया और पगडण्डी दिखाई दी किन्तु सड़क मार्ग समाप्त! मरता क्या न करता वाली स्थिति में वापस लौटने के अलावा कोई चारा नही था। अनुमान लगाते रहे कि गूगल ने ऐसा मार्ग क्यों दिखाया। सभी ने अपने अनुभव शेयर किये तो लगा की अब भी भारत के गावों के बारे में इसमें त्रुटियाँ है। खैर हमारा महत्वपूर्ण दो ढाई घंटे का समय नष्ट हो चूका था। पुनः रुद्रप्रयाग लौटे और परंपरागत हाईवे पर चल पड़े जोशीमठ...अब सतर्कता बरतते हुए मार्ग के बारे में स्थानीय लोगो से पूछते हुए आगे बढ़ते रहे। और अलकनंदा नदी भी अब हमारी मार्गदर्शक थी जिसका उदगम बद्रीनाथ से होता है। एकदम स्वच्छ जल हरा नीला अपनी धुन में बहता हुआ सभी को आप्लावित कर रहा था। सारी गंदगी का कारण इंसान ही है और यहाँ इंसानी आबादी बहुत कम होने का प्रभाव नदी पर दृष्टिगोचर हो रहा था। हमने ये भी देखा की पहाड़ी लोग मैदानी लोगो की अपेक्षा अधिक जागरूक है। इसी तरह बातचीत और हँसी मजाक करते हुए रास्ता कट रहा था और दोपहर ढलते हमें पुनः ऊँचे हिमालय की बर्फ से ढँकी चोटियों के दर्शन आरंभ हो गये थे। हमारी कार के शीशे बंद होने से बाहर की ठण्ड का अनुमान नही हो रहा था किन्तु लंच के लिए उतरते ही ठण्ड से पाला पड़ा। खैर खाना खा के गोल गोल लहराती बल खाती सड़को से रास्ता पार करके (115+30किमी) सायं जोशीमठ पहुचें। होटल ढूँढा (नेचर इन) और चेक इन किया। यहाँ भी तापमान माइनस दिखा रहा था। जगह जगह बर्फ बिखरी हुई थी। (चित्र:-जोशीमठ से हिमालय की चोटिया) शहर में थोड़ी देर घूमते रहे और डिनर के बाद सोने चले गये।
तीसरा दिन 10 फेब्रुअरी 2020 आज का दिन औली के लिए सुरक्षित था। नहाने के बाद नाश्ता किया। अधिकांश यहाँ नाश्ते में आलू पराठे ही मिलते है।9 बजे निकले एशिया की सब से लम्बी केबल कार (साड़े चार किमी )की सवारी कर के औली के लिए। (कार से 14 किमी की दुरी है यहाँ से) केबल कार का टिकट (रु 1000/-आना जाना )लेकर पहुचे। हमारी राइड सवा दस बजे की थी।लगभग 40 मि के बाद सवार हुए। तभी बताया गया की शीतकालीन खेलो की प्रतियोगिता भी चालु हो चुकी है किन्तु उसमे आम जन का प्रवेश निषेध था।जैसे जैसे ऊपर की ओर बढ़ते गये बर्फ से ढंकी पहाड़ी अपने भव्य स्वरुप में उपस्थित थी। आँखे चकाचौंध हो रही थी। अप्रतिम दृश्यावली सामने थी। स्कीइंग करने वाले तेज़ गति से फिसलते हुए अपना हुनर दिखा रहे थे और उनका हवाई दर्शन हमें भौचक्का कर रहा था। एक ओर जमी हुई झील और आइस स्केटिंग रिंग।औली घुमने के लिए चेयर लिफ्ट। अवर्णनीय दृश्य आँखों और मस्तिष्क में जैसे प्रिंट हो गये है। लगभग 25 मि की सवारी कर के औली पहुचे। उतर के किराये के स्नो बूट्स पहने और चल पड़े बरफ पर मस्ती मजे करने। दो तीन फीट गहरी बर्फ में पैर गड़ाते हम काफी उपर पहुच तो गये पर अब नीचे उतरना मुश्किल जान पड़ा,अंततःहम तीन लोगो ने स्लाइडिंग कर के उतरने का फैसला लिया। उसमे भी डर तो लगा पर हिम्मत कर के फिसल के नीचे आ ही गये। इस प्रक्रिया में बहुत आनंद का अनुभव हुआ एवं आत्मविश्वास भी बढ़ गया अतः फिर से ऊपर गये और फिर स्लाइड। आनंद तो बहुत आया पर ऊपर चढ़ना थका देता था तो चौथी बार नहीं गये। वही चाय नाश्ते की दूकान भी थी। चहु ओर के नज़ारे देखते दो घंटे कब बीत गये पता ही नही चला। इतनी अधिक बर्फ देखने का अवसर पिछले वर्ष की पटनी टॉप नाथा टॉप यात्रा के बाद अब आया था। अनिच्छुक से वापस केबल कार में बैठे और वापसी में उपर से खेलो के कुछ इवेंट का नज़ारा भी लेते रहे।लगभग तीन साड़े तीन घंटे कहा गये पता नही चला पर ठण्ड और बर्फ पे चलने के कारण थकान भी बहुत थी। लंच कर के होटल पहुचे और तीन बजे तक लगभग सभी सो चुके थे। पांच बजे तक चाय ले के जोशीमठ की सैर की। छोटा सा क़स्बा। बद्रीनाथ(45 किमी )एवं हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा (20+14 किमी) के यात्री अक्सर यही पड़ाव डालते है। कल लम्बी यात्रा करना थी अतः डिनर ले के नौ बजे सभी सोने चले गये। (आगे दो चित्र औली के)
चौथा दिन 11 फेब्रुअरी 2020 आज लम्बी यात्रा का दिन होने वाला था जोशीमठ से चोपटा वाया चमोली (80किमी) और वहा से ऋषिकेश (170किमी) साथ ही एक घंटा चोपता में रुकना भी था। अतः सब तैयार हो के सुबह मुह अँधेरे छह बजे कार में सवार हो के निकल पड़े। 55 किमी बाद मंडल नाम के छोटे से गाँव में नाश्ता किया और चोपटा के लिए निकले। अब चढ़ाई शुरू हुई। लगभग 10 किमी बाद धीरे धीरे बर्फ सड़क के दोनों ओर दिखना शुरू हो चुकी थी।उत्साहित से हम आगे बढ़ते जा रहे थे। अब बर्फ सड़को पर भी आने लगी थी। फिसलन भरा रास्ता। बेहद धीमी गति से गाडी आगे बढ़ने लगी। ब्रेक लगाओ तो फिसल के नीचे सैकड़ो फुट गहरी खाई में गिरने का डर। बेहद संकरी सड़क। सब सांस रोके बैठे थे। अजीब सा डर समा गया मन में। क्या इस रास्ते आ के गलती की?? तभी वो हुआ जिसका डर था। एक मोड़ पर चढ़ते समय सामने से एक और कार आती दिखाई दी। उसने काफी दूर रोक दी और इशारे से हमें रोका। अब दोनों गाडिया आमने सामने फस गयी और गाडी रिवर्स भी नही हो पा रही थी किसी की भी। पहिये एक ही जगह गोल गोल घूम रहे थे। ना आगे बढ़ रहे ना पीछे जा रहे। तब सब को नीचे उतार दिया गया और सामने की गाडी को धक्का दे के पीछे की ओर धकेल कर साइड से दूसरी गाडी जाने लायक रास्ता बनाना था। (सामने की गाडी में तीन लडकिया थी जो धक्का देने के काबिल भी नही थी और इच्छुक भी नही दिख रही थी) ये सोचना जितना आसान था करना उतना ही मुश्किल। धक्का लगाने वालो के पैर बर्फ पर बुरी तरह फिसल रहे थे और पैरो को फिसलने से रोकना और कार को धक्का लगाना (दोगुना दबाव)।उस कार का ड्राईवर रिवर्स गियर में पीछे ले रहा था।भारी मशक्कत और मेहनत के बाद जैसे तैसे कार पीछे हुई और हमारी कार निकलने के लिए जगह बन पायी।अब हमारी कार को धक्का लगाने की बारी आयी। मै बुरी तरह हाँफ गया था अतः अन्य लोगो ने पीछे से धक्का लगाया और ड्राईवर ने पहले गियर में कार आगे बढाई।जैसे तैसे खाली कार आगे बढ़ी और सामने की कार की साइड से निकल गयी। हम सब भी पीछे पीछे चलते हुए कार में बैठ के आगे बढे। दुआ कर रहे थे की आगे से कोई और कार नही आये। अब की हमारा ड्राईवर सतर्कता से चला रहा था दो तीन गाडिया आयी जरुर पर सावधानी से निकल गयी। जैसे जैसे आगे बढ़ते गये सड़क पर बर्फ की मात्रा भी बढती गयी। बेहद धीमी गति से चलते हुए अंततः चोपटा पहुचे। पूरा क़स्बा बर्फ में लगभग चार फीट डूबा हुआ था। सडको से बर्फ हटाई गयी थी बस। चारो ओर सफेदी सिर्फ सफेदी मानो पूरा गाँव एक सफ़ेद चादर ने नीचे दबा हो। वही से एक ट्रेक तुंगनाथ के लिए जाता है जो पञ्चकेदार का एक मंदिर है। हम में से चार उस ओर बढे। साड़े चार किमी की खड़ी चढ़ाई। सारा रास्ता दो से तीन फीट बर्फ के नीचे। लगभग आधा किमी जा के समझ आया की इस मौसम में तो ये संभव नही है। एक व्यक्ति जो जा के आया था उसने बताया की सिर्फ जाने में उसे साड़े तीन घंटे लगे और आने में भी इतने ही। पूरे दिन का काम था ये। मन में इच्छा अधूरी लिए लौटना पडा। कहते है न कि जब बुलावा आएगा तभी जाना हो पायेगा।better luck next time सोचके उतर आये। वहा उपस्थित अन्य कार चालको ने चेताया की बर्फ की सड़क पर उतरना चढ़ने से अधिक जोखिम भरा है और सिर्फ पहले गियर में ही उतरना और ब्रेक हरगिज़ नही लगाना। सो डरते डरते उतरते गये। हमारा चालक एक 26 वर्षीय युवा था पर माहिर था अपने काम में ।लगभग 20 किमी बाद बर्फीला खतरनाक रास्ता समाप्त हुआ और सब ने राहत की सांस ली। कुल 35 किमी लम्बा बर्फ से ढंका रास्ता हमें काफी कुछ सिखा गया था ऐसी जगहों में जीवन के बारे में। (5 चित्र चोपटा के) आगे सारी गाँव और उखीमठ होते हुए रुद्रप्रयाग पहुचे ।इस सभी रास्ते में हमारे साथ गंगा की एक और प्रसिद्ध नदी मन्दाकिनी बराबर प्रवाहित हो रही थी जो केदारनाथ से उद्गमित होती है और रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ से आ रही अलकनंदा में विसर्जित हो जाती है। लंच लेते समय ही लगने लगा था की बर्फ के रास्तो में काफी समय नष्ट हो चुका है और रात तक ऋषिकेश पहुचना असंभव नही तो मुश्किल और खतरनाक भी हो सकता है। तो जहा भी ठीक ठाक होटल मिलेगा वही रात बिताएंगे। अंततः साड़े आठ बजे देवप्रयाग पहुचे और एक सुन्दर से लोकेशन वाले होटल(मोटेल देव) में जगह ली जो संगम के ठीक सामने था किन्तु रात्रि में संगम के ठीक से दर्शन नही हो पा रहे थे। भोजन पश्चात नींद की आगोश में समा गये।
पांचवा दिन 12 फेब्रुअरी 2020 सुबह उठते ही जब बालकनी में गये तब एक सुन्दर दृश्य हमें लुभा रहा था। इसे फोटो में कई बार देखा था किन्तु प्रत्यक्ष में देखने का अवसर आज आया था। बद्रीनाथ से आती अलकनंदा एवं गंगोत्री गोमुख से निकलती भागीरथी यहाँ एक दुसरे में समाहित हो गंगा के रूप में भारतवर्ष को अपने दर्शन लाभ देने हेतु ऋषिकेश की ओर बढ़ जाती है। दोनों नदियों का अलग अलग रंग का पानी कुछ दूर तक ही अपना अस्तित्व बनाये रखता है फिर मानो जैसे दोनों अपने अहंकार को त्याग एकसार हो जाते है। (चित्र:-संगम का) यहाँ से सुबह नौ बजे निकले और रास्ते में ऋषिकेश में लक्ष्मण झुला पुल देखा वही लंच लिया और बढ चले दिल्ली की ओर जहा से रात साड़े दस बजे की तमिलनाडु एक्स से भोपाल वापसी। 13 फेब्रुअरी नियत समय पर भोपाल पहुच के अपनी एक और अविस्मरणीय यात्रा के संस्मरण परिवार को बताने। फिर मिलेंगे अगली यात्रा के बाद। धन्यवाद । संजीव जोशी भोपाल