अरबों के खजाने वाला लखनऊ का रहस्यमयी इमामबाड़ा

Tripoto

आपने इतिहास में अवश्य ही पड़ा होगा की अवध प्रांत की राजधानी लखनऊ हुआ करती थी। यहीं पर नवाब आसिफ उद्दौला द्वारा बनवाया गया था यह वास्तुकला का अनोख़ा शाहकार। नवाब साहब ने अपने सलाहकारों की मदद से बड़े ही सुनियोजित तरीके से बड़े इमामबाड़े का निर्माण कराया। जैसे ही आप बाड़े में प्रवेश करेंगे आपको सबसे पहले शाही बावली (सीढ़ीदार विशालकाय कुआँ) देखने को मिलेगीऔर उसके बाद पंचमहल। यह 7 मंजिल की बावली है इसका लिंक पास में बहती हुई गोमती नदी से है। जब कभी गोमती नदी में जलभराव अधिक होता है तो बावली में तीसरी या चौथी मंजिल तक पानी आ जाता है और अगर गोमती नदी में सूखा पड़ता है तो बावली का जलस्तर भी कम हो जाता है, फिर भी इसकी दो मंज़िल तो पानी में हमेशा डूबी रहती ही हैं।

Photo of अरबों के खजाने वाला लखनऊ का रहस्यमयी इमामबाड़ा by Rahasyamaya

लखनऊ से नवाबी सल्तनत तो गायब हो गई परंतु उनका खजाना कहां है यह आज भी एक अनसुलझा पहलू बना हुआ है, जिस पर इतिहासकार और अन्य विशेषज्ञ अपने-अपने क़यास लगाते रहते हैं। कुछ प्रतिष्ठित इतिहासकारों के अनुसार, बड़े इमामबाड़े की शाही बावली में ही छुपा हुआ है अरबों रूपए का खज़ाना। ऐसा कहा जाता है कि जब 1856 में अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार कर लिया तो उन्हें कोलकाता भेज दिया गया। उसके बाद अंग्रेजों द्वारा उनके शाही खजाने की खोज शुरू करी गयी। कहानियों की माने तो नवाब के वफादार मुनीम शाही खजाने की चाबी और नक्शे को लेकर बावली में कूद गए थे।

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ये अकाल लगभग 3-4 सालों तक चला और लोगों के पास अपनी आजीविका का कोई भी साधन ना बच पाया। अधिकांश जनता गरीब हो गयी। आधुनिक वामपंथी इतिहासकार लिखते हैं कि उस समय लखनऊ के तत्कालीन नवाब आसिफ उद्दौला ने बड़े इमामबाड़ा का निर्माण करवाया। उनके स्वतः स्फूर्त दावे के अनुसार इसका निर्माण कराने का सिर्फ एकमात्र उद्देश्य था कि लोगों को रोजी-रोटी कमाने का जरिया मिल सके।भावनाओं की अतिरेकता में कहा तो यहाँ तक भी जाता है कि इसका निर्माण बिना किसी नक्शे को बनाए शुरू कर दिया गया था क्योंकि नवाब साहब सिर्फ यह चाहते थे कि लोगों को मेहनत करके अनाज कमाने का मौका मिल सके। यह निर्माण कार्य काफी वर्षों तक चला।

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