घूमना बहुत आसान है लेकिन घुमक्कड़ बने रहना थोड़ा मुश्किल काम है। कोई मुझसे कहे कि तुम कितना घूम सकते हो तो मैं शायद वीकेंड या महीने तक जा सकता हूँ। लेकिन हमेशा घूमते रहना सबसे नहीं हो पाता और जो ऐसा करते हैं वो बेमिसाल होते हैं। इन घुमक्कड़ों में भी कुछ लोग ऐसा करते हैं जिनके बारे में हर किसी को जानना चाहिए। ऐसे ही कुछ खास करने वाले शख्स हैं पीटर वान गीत जो अपने देश को छोड़ भारत में ही घुमक्कड़ी कर रहा है।
पीटर वान गीत बीस सालों से भारत में घूम रहे हैं। पीटर ज्यादातर पहाड़ों में ट्रेक करते हैं। वो पहाड़ों के बहुत अंदरूनी इलाकों में जाते हैं, जहाँ गिने-चुने लोग ही जा पाते हैं।। इन्होंने 75 दिनों में 40 बड़ी घाटियों को पार किया है। पीटर को पहाड़ों से बहुत प्यार है और यही वजह है कि वे यहीं रहना चाहते हैं। हमने पीटर से बात की है, जिसमें उनके अनुभवों, मुश्किलों और सफर के बारे में जानने की कोशिश की है।
सफर की शुरुआत
पीटर का जन्म और परवरिश बेल्जियम में हुई। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स की पढ़ाई की और कुछ साल अपने देश में ही नौकरी की। और फिर 1998 में शुरु हुआ पीटक का भारत सफर। हालांकि इस सफर की शुरुआत घूमने के मकसद से नहीं बल्कि नौकरी के मकसद से शुरू हुआ। लेकिन इस बीच पीटर कहीं ना कही से वक्त निकाल कर अपनी बुलेट पर भारत की गलियों के दर्शन करने निकल पड़ते। कुछ वक्त में बुलेट से शुरू हुआ ये सफर साइकल पर शिफ्ट हो गया, फिर लंबी पैदल यात्राओं पर अब पीटर अनछुए पहाड़ों के बीच वक्त बिताते हैं।
घूमने की चाहत में छोड़ी नौकरी
पीर सालों से ट्रैवल कर रहे हैं, लेकिन कारपोरेट जाॅब उनके घूमने की राह में एक रोड़ा बन रही थी। नई जगह पर जाने के लिए हफ्ते में सिर्फ दो दिन मिल रहे थे तो उन्होंने जॉब जोड़ फुल टाइम ट्रैवल को अपना साथी चुन लिया। उन्होंने फुल टाइम ट्रैवल के लिए अपने खर्चों को कम करने के लिए मिनिमम लाइफस्टाइल को अपनाया। पीटर को लगता है जिंदगी बहुत छोटी है और प्रकृति बेहद खूबसूरत। इसलिए आर्टिफिशियल शहरों से निकलकर वो प्रकृति के बीच आ गया।
भारत सिर्फ घूमा ही नहीं, उसके लिए काम भी किया
दिसंबर 2015 में चेन्नई बाढ़ के दौरान पीटर की कंपनी चेन्नई ट्रेकिंग क्लब (सीटीसी) के सैकड़ों वाॅलिंटयर्स (सीटीसी, एक गैर लाभकारी संगठन है जो पर्यावरणीय और सामाजिक कार्यों में सक्रिय है) ने इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों (विशेष रूप से गरीब) के बचाव, राहत और पुनर्वास में सहायता की। पीटर ने लोगों के साथ मिलकर गंदी बस्तियों को साफ करने, राहत सामग्री वितरित करने, घरों के पुनर्निर्माण और इससे प्रभावित लोगों की खोई हुई आजीविका को बहाल करने में मदद की।
भाषा नहीं आती तो मुस्कान से काम चला लिया
भारत में पीटर उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर तक फैले हिमालय को ही अपना घर मान चुके हैं। उन्हें हिमालय के दूरस्थ कोनों के दूरदराज के गाँवों, पर्वतीय जनजातियों और ऊँचे अल्पाइन घास के मैदानों के चरवाहों से प्यार है।
उनके लिए ट्रैवलिंग के समय भाषा कभी बाधा नहीं बनती। वो लोकल लैंग्वेज जाने बिना भारतीय हिमालय और वियतनाम में हज़ारों किलोमीटर दौड़े हैं। वो मानते हैं कि एक दोस्ताना चेहरा और प्यारी-सी स्माइल तुरंत आपको लोकल लोगों से जोड़ देता है। जब वे महसूस करते हैं कि आप लंबी दूरी की यात्रा कर चुके हैं और कई चुनौतियों को पार करके आए हो, वे अपने घर में आपको होस्ट करने के लिए सबसे अधिक उत्सुक होते हैं। वे खाने, ठहरने के लिए जगह और मार्गदर्शन के साथ अपने क्षेत्र में एक गेस्ट का स्वागत करने के लिए प्राउड फील करते हैं।
मैं पिछले एक दशक से ज्यादा समय से इन अनछुई जगहों को एक्सप्लोर कर रहा हूं। शुरू में मैं दक्षिण भारत के घने जंगलों में ट्रेवल करता था और अब हिमालय के पहाड़ी इलाकों की खूबसूरती की ओर फोकस हूं। ये मैप पढ़ने, नेविगेशन और जंगल में जिंदा रहना एक अलग अनुभव था। कई सालों से ऐसा ही कर रहा हूं और अब मैं अनछुई जगहों को एक्सप्लोर करने वाला, अल्ट्रा रनर और आलपिनिस्ट बन गया हूं। अज्ञात जगहों को तलाशना, रिमोट इलाकों में जाना बहुत अधिक रोमांचकारी और संतोषजनक है। पर्यटन और काॅर्मिशियल ट्रेल्स ने प्राकृतिक और मानवीय सुंदरता के बहुत हद तक खो दिया है।
मुद्दे की बात: घूमने के लिए पैसा कहाँ से आता है?
मिनिमल ट्रैवलिंग शायद जिंदा रहने का सबसे सस्ता तरीका है। पीटर ने गाँवों में मुश्किल से ₹60 में एक टाइम का भोजन लिया है। कई बार तो ये फ्री होता है, मिलनसार लोगों ने उन्हें रास्ते में खाना ऑफर किया। सार्वजनिक बस या शेयर टैक्सी से ट्रेवल करना बहुत सस्ता है। इसलिए वो हर रोज मुश्किल से ₹200 खर्च करते हैं, जो शहरों में रहने के लिए बहुत सस्ता है। वो सिर्फ ₹5,000 के बजट में एक महीने ट्रैवल कर सकते हैं जो उनकी सेविंग और उनके घर से मिलने वाले रेंट से आसानी से कवर हो जाता है।
साथी घुमक्कड़ों को सलाह
पीटर कई खूबसूरत जगहों के बारे में अपनी वेबसाइट ultrajourneys.org पर लिखते हैं। "मैं नए लोगों को कुछ आसान और कम चुनौतीपूर्ण जगहों पर ट्रैवल करने की सलाह दे सकता हूँ। मेरे ब्लॉग पर सोलो या दोस्तों के साथ ट्रैवल करने के बारे में बताया गया है। ट्रेवलिंग की प्लानिंग बनाने और फिर खुद से से यात्रा पर जाना बहुत ज्यादा सुकून देने वाला होता है। इसलिए ट्रैवल कंपनियों के साथ ग्रुप में जाने से बचें।"