अंगकोर वाट: कंबोडिया के इस मंदिर का क्या है भारतीय कनेक्शन?

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भारत सनातन संस्कृति का केन्द्र रहा है और इससे समय-समय पर अन्य देशों के लोग प्रभावित होते रहे हैं। यही कारण है कि आज भी नई पीढ़ी के लोग सात समुद्र पार से आकर सनातनी संस्कृति को ना केवल समझने की कोशिश करते हैं बल्कि उसकी खूबियों को अपनाते भी हैं। अगर आप दुनिया देखने निकलते हैं तो पाते हैं कि भारत किसी ना किसी रूप में दूसरे देशों को प्रेरित करता रहा है। बात जब धर्म की आती है तो भारत का जो आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान की परंपरा रही है वो कहीं और दुर्लभ है। लिहाजा ऐसा कह सकते हैं कि दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से भारत का कोई ना कोई कनेक्शन रहा है। लेकिन जब बात कंबोडिया की आती है तो ये कनेक्शन कुछ ज्यादा ही गहरा जान पड़ता है।

Photo of अंगकोर थोम, Krong Siem Reap, Cambodia by Rupesh Kumar Jha

कंबोडिया के बारे में जो जानकारी आपको सबसे ज्यादा चौंकाती है, वो है अंगकोर वाट मंदिर। अब आप कहेंगे कि इसमें चौंकने की क्या बात है? बता दें कि 97 प्रतिशत बौद्ध जनसंख्या वाले इस देश में दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है!

वैसे तो आजकल हिन्दू मंदिर दुनियाभर में देखने को मिलने लगे हैं। लेकिन अंगकोर वाट मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व रहा है। साथ ही कंबोडिया के बनने और विकसित होने की कहानी भी इससे जुड़ी हुई है। यूँ कहें कि कंबोडिया की जड़ें इस मंदिर से पोषित हैं जिसे मेरू पर्वत का भी प्रतीक माना गया है। इस मंदिर को अलौकिक शक्तियों से भरा हुआ माना जाता है जिसकी दीवारें रामायण और महाभारत जैसे पवित्र धर्मग्रंथों से जुड़ी कहानियाँ कहती हैं। मंदिर की ये कलाकृतियाँ खुद में कई कहानियों को बयान करती देखी जा सकती हैं।

कलाकृतियों में अंकित है पूरी रामायण

Photo of अंगकोर वाट: कंबोडिया के इस मंदिर का क्या है भारतीय कनेक्शन? by Rupesh Kumar Jha
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अंगकोर वाट मंदिर जाते ही आप भारतीय धर्मग्रंथों से जुड़ी कलाकृतियों को देखकर चौंकते हैं, साथ ही उन्हें गौर से देखने और पढ़ने की कोशिश में लग जाते हैं। आप देखेंगे कि मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियों में पूरी रामायण अंकित है। इतना ही नहीं, मंदिर में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण से संबंधित अनेकों चित्र हैं। इन शिलाचित्रों में रावण वध के लिए देवताओं द्वारा की गई प्रार्थना से लेकर सीता स्वयंवर तक के कई रोचक प्रसंगों के दृश्य हैं। मंदिर में टहलते हुए आप देखेंगे कि राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ रहे हैं तो सुग्रीव से राम की दोस्ती का खूबसूरत दृश्य भी मौजूद है। बाली और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध, अशोक वाटिका में हनुमान, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के चित्र भी बने हुए हैं। जाहिर है, भारत के बाहर ऐसे मंदिर टूरिस्टों को आश्चर्यचकित करते हैं। ऐसे में इतिहास जानने की इच्छा जागती है!

क्या है मंदिर का इतिहास?

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मंदिर घूमते हुए आपको स्पष्ट हो जाता है कि कंबोडिया हिन्दू देश रहा है। इतिहास पर नज़र डालें तो इसे कंबोज या कंबुज कहा जाता था जिसके शासक हिन्दू राजा हुआ करते थे। 12वीं शताब्दी में खमेर वंश के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने अमरता की इच्छा से इस अद्भुत मंदिर का निर्माण करवाया था। मान्यता है कि इस अलौकिक मंदिर को एक ही दिन में तैयार कर लिया गया था। अभिलेखों से पता चलता है कि मंदिर जहाँ स्थित है, उस स्थान का नाम यशोधरपुर हुआ करता था।

दिलचस्प बात ये है कि कंबोज के इस मंदिर को मौलिक रूप से शिव को समर्पित किया गया था। लेकिन बाद में इसे विष्णु भगवान से जोड़ दिया गया। हालांकि यहाँ त्रिदेव –ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियाँ एक साथ मौजूद हैं। कालक्रम में यह हिन्दू देश जब बौद्ध धर्म अपनाने लगा तो इस विशेष मंदिर में बौद्ध धर्म से जुड़ी कलाकृति भी शामिल की गईं। इससे साफ जाहिर होता है कि किस प्रकार मान्यताओं और प्रभावों के लिए मानव समुदाय अपने प्रतीकों को बदलता रहा है। एक समय ऐसा आया कि ये मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका था लेकिन जनवरी 1860 में एक फ्रांसीसी रिसर्चर हेनरी महोत ने इसे फिर से दुनिया की नज़रों में लाने का काम किया।

दूर से झील जैसी दिखती है

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मंदिर अपनी बनावट और स्वरूप को लेकर भी लोगों को आकर्षित करता है। सुरक्षा के लिए इसके चारों तरफ खाई निर्मित किया गया है। जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से देखने पर यह खाई झील जैसी दिखती है। आप जब मंदिर को दूर से देखते हैं तो झील सी चमकती है। दरअसल ये खाई ही है जिसे पार करने के लिए मंदिर के पश्चिम की तरफ एक पुल भी बना हुआ है। पुल को पार करने बाद आपको मंदिर में प्रवेश करने के लिए द्वार दिखता है जो कि लगभग 1000 फुट चौड़ा है। मंदिर में मुख्य शिखर के अलावा 8 अन्य शिखर भी हैं। बता दें कि मुख्य शिखर की ऊँचाई लगभग 64 मीटर है तो वहीं बाकी शिखरों की ऊँचाई 54 मीटर है। मंदिर के बाहर 30 मीटर का ओपन स्पेस भी मौजूद है। ये मंदिर 162.6 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है जो कि आने वाले टूरिस्टों को हैरत में डाल देता है और आप आँखें चौड़ी कर देखने लग जाते हैं। यहाँ पहुँचकर सूर्योदय और सूर्यास्त जरूर देखें!

विश्व धरोहर में है शामिल

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इतिहास को खुद में समेटे कभी गुमनाम रहा ये मंदिर आज यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल है। मंदिर वास्तुकला के अनुपम नमूना पेश करते हुए भारत की प्राचीनता और कंबोडियाई कनेक्शन को सहेजे हुए है। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बने इस मंदिर को देखने दुनियाभर से लोग आते हैं। खास बात है कि ये मंदिर 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज पर भी अंकित है। जानकर खुशी होगी कि वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर को संरक्षित करने के साथ ही संवारने का काम किया है। ये अपने आप में अपनापन को दर्शाने के लिए काफी है। जड़ों में जाएँगे तो पाएँगे कि कंबोडिया की धरती को भारत से आए शासकों ने ना केवल आबाद किया है बल्कि इसे बनाया और सजाया भी है!

भारतीय टूरिस्टों के लिए ये जगह ज़रूर जाने के काबिल है। आप जब ऐसी जगहों पर जाते हैं तो आपको अपने इतिहास, अपने देश और अपनी संस्कृति पर गौरव महसूस होता है। यहाँ जाकर पता चलता है कि हमारे पुरखों ने कितनी तरक्की की थी जिसे हम भूलने की कगार पर हैं! उन्हें आदर देने और याद करने की इससे बड़ी वजह और क्या हो सकती है!

कब और कैसे पहुँचें

कंबोडिया की जबरदस्त सुंदरता और विश्व धरोहर मंदिरों और खंडहरों को देखने के लिए नवंबर और फरवरी के बीच का समय बेहतरीन होता है जब ठंडा और शुष्क समय होता है। जानकारी के लिए बता दूँ कि अंगकोर वाट का एक ड्रेस कोड है जिसके अनुसार आपको हल्के कपड़े पहनने चाहिए। ऐसे कपड़ों का चुनाव करें जिससे कि आपके कंधे और घुटने कवर हो जाएँ। भारत से अंगकोर वाट टेम्पल देखने जा रहे हैं तो निकटवर्ती शहर सिएम रीप के लिए कोई सीधी उड़ान उपलब्ध नहीं है। लेकिन बैंकॉक और कुआलालंपुर होते हुए आपको कई कनेक्टिंग फ्लाइट आसानी से मिल जाती हैं।

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