पहाड़ मेरे लिए रोमांच का नाम है। हर बार पहाड़ों में कुछ न कुछ रोमांचक हो ही जाता है। अभी कुछ दिन पहले उत्तराखंड की एक जगह पर गया, जो काफी रोमांचकारी था। मैंने इस यात्रा में कोई ट्रेक नहीं किया, न हिचकाईकिंग की और न ही रिवर राफ्टिंग की। फिर भी ये अनुभव किसी रोमांच से कम नहीं है। मैं आपको उसी यात्रा पर ले चलता हूं आप खुद ब खुद समझ जाएंगे कि मैं इसे रोमांचकारी क्यों कह रहा था। ये मेरे और पहाड़ की कहानी है। वही पहाड़ जो मेरे लिए रोमांच का नाम है।
मैं देहरादून में कई महीनों से था। मैं देहरदून को लगभग छान चुका था। हर वीकेंड पर मैं देहरादून को एक्सप्लोर करने निकल जाता था लेकिन देहरादून से बाहर जाना नहीं हो पा रहा था। देहरादून के बाद मुझे आसपास की जगहों को देखना था। मैं इंटरनेट पर काफी हाथ मारा तो एक बढ़िया सी जगह मिली, चकराता। इस वीकेंड पर मैं चकराता जाने के लिए तैयार था। इस सफर में मेरे साथ था एक दोस्त और एक बाइक। जिससे हम चकराता जाने वाले थे।
देहरादून से चले
वीकेंड पर ज्यादातर लोग देर से उठते हैं लेकिन हम रोज की तुलना में जल्दी उठे और चकराता के लिए निकल पड़े। देहरादून का मौसम एकदम सुहाना था और इसी सुहावने मौसम में हम चले जा रहे था। देहरादून एकदम खाली लग रहा था। सुबह के समय बिना भीड़ भाड़ वाला ये शहर वाकई में खूबसूरत लग रहा था। हर किसी को सुबह-सुबह देहरादून की सड़कों पर घूमना चाहिए।
चकराता देहरादून से लगभग 90 किमी. की दूरी पर है। मैं इससे पहले चकराता नहीं गया था लेकिन सुना था कि बेहद खूबसूरत है। सुबह का सुहानापन अपने सुरूर में था और उसी के फाहे में हम आगे बढ़ते जा रहे थे। देहरादून से हम बाहर आ चुके थे लेकिन वो अब भी हममें बना हुआ था। कहते हैं न शहर से निकलने के बाद भी शहर हममें बना रहता है। हम समतल रास्ते पर चले जा रहे थे। देहरादून से पहाड़ों तक पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।
मैदान से पहाड़
देहरादून से निकलने के बाद हमें सिद्धौवाला और सेलाकुई जैसी जगहें मिली। लगभग 40 किमी. की यात्रा के बाद हम लोग विकासनगर पहुँचे। विकासनगर के बाद आया कालसी। कालसी के बाद हम चले जा रहे थे। तभी एक शानदार नजारे ने हमें रूकने को मजबूर कर दिया। पहाड़ शुरू हो चुके थे और एक खेत में किसान हल चला रहा था। इस नजारे को देखते हुए हम फिर से आगे बढ़ गए। एक जगह रुककर हमने मैगी खाई।
जगहों के साथ-साथ मौसम भी अपनी करवट बदल रहा था, कभी धूप हो रही थी तो कभी घने बादल। पहाड़ के आते ही सिर्फ मौसम नहीं बदल देता, यहां आना वाले लोग भी बदल जाते हैं। इन हरे-भरे पहाड़ को देखकर हम खुश होने लगते है, खुली आंखों से इस खूबसूरती को देखना एक सुंदर एहसास है। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, पहाड़ हरियाली से लदते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि बुग्याल की हरियाली को खड़े पहाड़ पर पलट दिया हो। पहाड़ की नीचाई में कोई छोटी नदी बह रही थी। घुमावदार रास्ते और घुमावदार होते जा रहे थे और खूबसूरत भी। रास्ते में कुछ छोटे-छोटे गाँव मिले, इस समय हर जगह खेती हो रही थी।
दुर्घटना
रास्ते में एक जगह खूब भीड़ थी। आगे बढ़े तो एंबुलेंस और पुलिस भी खड़े थी और कुछ लोग रस्सी खींच रहे थे। कुछ दूर जाकर हम भी रूक गये, वहीं खड़े लोगों ने बताया एक गाड़ी रात को खाई में गिर गई थी और अब घायल लोगों को निकालने की कोशिश की जा रही है। पहाड़ की ये भी एक सच्चाई है, थोड़ी-सी भी कोताही सीधे खाई में पहुँचा देती है। थोड़ी देर उस खतरनाक दृश्य को देखा और आगे बढ़ गये। हम फिर से पहाड़ों के घुमावदार रास्ते और मोड़ों में गुम होने लगे।
हम जैसे-जैसे आगे आ रहे थे दूर तलक दिखने वाले रास्ते ऐसे लग रहे थे जैसे खेत के बीच में होती है, पतली-सी मेड़। रास्ते में कुछ खतरनाक पहाड़ भी मिले जहां बारिश के मौसम में लैंसलाइडिंग होती है और रास्ते बंद हो जाते हैं। अब हम चकराता से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थे। तभी अचानक हमारी गाड़ी रुक गई। हमने उसे फिर स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन बाइक चालू नहीं हुई। यात्रा में ऐसा होने पर मैं परेशान हो जाता हूं।
गाड़ी और बारिश
हम पहाड़ों के बीचों बीच अपनी खराब गाड़ी के साथ खड़े हुए थे और स्टार्ट करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। लोगों को चकराता की ओर जाते हुए देख गुस्सा आ रहा था। अब दिक्कत ये थी कि चकराता कैस पहुँचे? आसपास कोई गाँव भी नहीं था और चकराता 15 किमी. दूर था। पैदल पहुँचने में काफी समय लगता लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं था। हम खराब गाड़ी के साथ चकराता की ओर बढ़ते जा रहे थे।
रास्ते में पिकअप, बोलेरो और ट्रक निकलता तो मदद मांगने की कोशिश करते लेकिन कोई गाड़ी रोक ही नहीं रहा था। तभी अचानक बारिश शुरू हो गई। कुछ ही देर हम पूरी तरह से भीग चुके थे। बारिश इतनी तेज थी कि रास्ता भी अच्छे से दिख नहीं रहा था। पहाड़ अब खूबसूरत की जगह खतरनाक लगने लगे थे। अब हमने लिफ्ट मांगना छोड़ दिया था। हमने सोच लिया था कि चकराता पैदल ही पहुँचना पड़ेगा। तभी चकराता की तरफ से आने वाली पिकअप हमारे पास रूकी।
आखिर पहुँच ही गए चकराता
हमने सारी परेशानी और अपनी रामकहानी पिकअप वाले को बताई। पता नहीं क्यों? पिकअप वाला हमें चकाराता छोड़ने के लिए तैयार हो गया। उसने गाड़ी चकराता की ओर घुमाई और हमने अपनी मोटरसाइकिल पिकअप पर चढ़ा दी। हम हम ही मन पिकअप वाले का धन्यवाद कर रहे थे। अब हम जल्दी से जल्दी चकराता पहुँचना चाहते थे। कुछ ही मिनटों के बाद हम चकराता में थे।
हमने पिकअप वाले को कुछ पैसे दिए और चकराता छोड़ने के लिए धन्यवाद किया। चकराता पहुँचते ही बारिश बंद हो गई। ऐसा लग रहा था कि बारिश सिर्फ हमारे लिए शुरू हुई है। हमने मैकेनिक को अपनी गाड़ी दिखाई। जब तक गाड़ी सही हुई। हमने नाश्ता किया और कपड़े बदले। इसके बाद हमने चकराता को एक्सप्लोर किया और देहरादून के लिए लौट गए। देर रात हम देहरादून पहुँचे और बिस्तर पर पड़ते ही सो गए। ऐसा रोमांचकारी अनुभव मेरी जिंदगी में पहली बार हुआ था। इस यात्रा के बाद पहाड़ मेरे लिए रोमांच बन गया।
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