बात अब से लगभग ढाई साल पहले 1 अक्टूबर 2017 की है।
जैसा कि मैं एक सिविल इंजीनियर हूँ तो घूमने की छुट्टियाँ तो शायद ही कभी कभी मिलता है। अगले दिन 02 अक्टूबर की छुट्टी थी तो मैंने सोचा कहीं घूम आऊँ, अचानक दिमाग़ में आया कि अमृतसर चलता हूँ।
तो आइए शुरू करता हूँ अमृतसर का सफ़र, मैंने शाम के 7 बजे दिल्ली से अमृतसर का बस बुक किया जो कि एक वोल्वो थी। बस रात के 10:30 बजे दिल्ली के लालक़िले से थी।
रात के 10 बजे हम लालकिला पहुँच गये। (अमृतसर के लिए ज़्यादातर प्राइवेट बस लालकिला के आसपास से ही मिलती है) बस का टिकट लगभग ₹650 था। खाना खाकर हम बस में बैठ गये । बस इतनी अच्छी थी की बैठते ही नींद आ गयी।
सुबह जब आँख खुली तो मैं अमृतसर पहुँचने वाला था। सुबह के 07 बजे हम अमृतसर पहुँच गये थे। पहुँचने के बाद Ola से हम (मैं और मेरे एक मित्र) स्वर्ण मन्दिर के पास पहुँचे। मत्था टेकने से पहले हमने सोचा थोड़ा नहा लूँ और कुछ देर आराम कर लूँ तो हम पास के एक होटेल में गये वहाँ हमने 3-4 घण्टे के लिए रूम लिया जिसका उसने ₹1000 लिए। वहाँ नहा धो कर हमने थोड़ी देर आराम किया फिर निकल गए स्वर्ण मन्दिर की ओर। जैसे ही अन्दर पहुँचे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था। आँखों के सामने सोने सा चमकता स्वर्ण मन्दिर, बेहद ख़ूबसूरत। उस दिन भीड़ बहुत ज़्यादा थी इस वजह से 10 बजे लाइन में लगने के बाद लगभग 1 बजे मैंने दर्शन किया।
मत्था टेक के बाहर निकलने पे लगभग 200 मीटर की दूरी पे जलियाँवाला बाग़ है, हाँ वही बाग़ जिसमें आज़ादी के लिए ना जाने कितनो ने जान गँवा दिया था। उस बाग़ में आज भी दीवारों पे गोलियों के निशान हैं ।
जलियाँवाला बाग़ में वो कुआँ भी है जिसमें गोली चलने पे कई लोग कूद गये थे। वहाँ पे एक म्यूज़ीयम भी है।आइए जलियाँवाला बाग़ के बाहर का कुछ नज़ारा दिखाता हूँ।
लगभग 1:30 बजे तक हम स्वर्ण मन्दिर और जलियाँवाला बाग़ घूम चुके थे। जलियाँवाला बाग़ के बाहर ही लोग वाघा बॉर्डर ( भारत पाकिस्तान सीमा) के लिए पैसे लेकर जाने के लिए बुकिंग करते हैं वो आपसे पैसे लेकर आपको अपना नम्बर दे देंगे और बोलेंगे की 2 बजे किसी सिलेक्टेड जगह पे खड़े रहने को बोलेंगे जहाँ वो कहेंगे ( जलियाँवाला बाग़ के आसपास ही)। जहाँ तक मुझे याद है उन्होंने हमसे ₹200 एक आदमी के जाने और आने का लिया था शायद। दो बजे वो टेम्पो (अधिकतर टेम्पो यानि तिपहिया ही जाते हैं) लेकर आया। उसमें बैठ कर अब हम निकल चुके थे वाघा बॉर्डर की ओर। तक़रीबन 4 बजे हम वहाँ पहुँच चुके थे। चूँकि वो इंटर्नैशनल बॉर्डर है इस वजह से सुरक्षा जाँच बहुत चुस्त है। बॉर्डर से लगभग 1.5 किलोमीटर पहले ही गाड़ियों को रोक दिया जाता है। वहाँ से पैदल जाना होता है और बीच में कई जगह पे सुरक्षा जाँच भी हुए।
फिर हम भारत पाकिस्तान बॉर्डर पहुँचते हैं। जहाँ भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ़ स्टेडीयम बना हुआ है। अब हम बिटिंग रिट्रीट सेरेमोनी देखने के लिए बिलकुल तैयार थे। सच कहूँ तो इतना जोश तो कभी होता ही नहीं जितना वहाँ हुआ था।दोनों देशों के स्टेडीयम में डीजे पर देशभक्ति के गाने चलते हैं।
और हमने भी जोश से भरकर देशभक्ति में इतना शोर मचाया कि गला बैठ गया। फिर भी पानी पी पी के शोर मचाया। एक चीज़ और , भारत की तरफ़ का स्टेडीयम पूरा भरा हुआ था और पाकिस्तान की तरफ़ चंद लोग ही थे।
लगभग 6:30 तक सेरेमोनी ख़त्म हो गया था। बाहर निकल कर हम उसी ऑटो में बैठ कर वापिस 40 किलोमीटर की दूरी तय करके अमृतसर पहुँच चुके थे। उस समय रात के 9 बज रहे थे। हमने वापसी का टिकट नहीं कराया था क्योंकि हमें आइडिया नहीं था कि कब वापिस दिल्ली आना था। उस समय हम ट्रैवल एजेन्सी के पास गए जिसने हमें महँगा टिकट दिया जो की ₹1500/व्यक्ति था, लेकिन मज़बूरी में हमें लेना ही था क्योंकि अगले दिन यानि 3 अक्टूबर को हमें ऑफ़िस भी जाना था। बस वहाँ से रात के 11 बजे थी तो हमने डिनर करके थोड़ा समय वहीं व्यतीत किया। रात के 11 बजे हमनें वहाँ से बस पकड़ा जो सुबह 7 बजे दिल्ली पहुँच गयी।
तो ये थी हमारी एक दिन में अमृतसर घूमने की कहानी।
पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
क्या आप भी घूमना चाहते हैं अमृतसर वो भी एक दिन में ज़रूर बताएँ कॉमेंट बॉक्स में।
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