झारखंड बंटवारे के बाद शेष बिहार में बचे गिने-चुने प्राकृतिक शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिला के गुप्तेश्वर धाम की गुफा में स्थित भगवान शिव की महिमा की बखान आदिकाल से ही होती आ रही है।
कैमूर की प्राकृतिक सुशोभित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती है। कहते हैं कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भष्म करने का वरदान दिया था। भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा लिया। जहां से भाग कर भगवान भोले इसी की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे हुए थे। भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गयी और उन्होंने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर का विनाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोलेदानी बाहर निकले। शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत देखने को मिलते हैं।
बक्सर से गंगाजल लेकर पहुंचते हैं भक्त शिवरात्रि के दिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त सैलानी यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता 48 घंटे पहले से ही लगा हुआ होता है।
यहा कैसे आये
जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किमी की दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट व दुर्गम हैं। दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाड़ियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं।