चित्रकूट। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत का आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। इसी पावन और पवित्र पर्वत पर प्रभु श्री राम ने सीता और अनुज लखन के साथ बनवास काल का साढे 11 वर्ष का समय व्यातीत किया था। पर्वतराज सुमेरू के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरि को कामदगिरि होने का भगवान श्री राम ने वरदान दिया था।तभी से विश्व के इस अलौकिक पर्वत के दर्शन मात्र से आस्थावानों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
भगवान श्री राम के वरदान से मनोकामनाओं के पूरक बने कामतानाथ
श्री रामचरित मानस में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कामदगिरि पर्वत की महिमा का बखान करते हुए लिखा है कि 'कामद भे गिरि राम प्रसादा,अवलोकत अपहरत विसादा।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के इसी वरदान की महिमा के कारण प्रतिवर्ष देश भर से करोडोें श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर मंदाकिनी नदी में स्नान करने के बाद मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते है।
धर्म नगरी के प्रमुख संत जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए बताते है कि चित्रकूट अनादि काल से अत्रि,वाल्मीकि समेत तमाम प्रख्यात ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहीं है।
त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम मां सीता व भ्राता लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे तब उन्होेने आदि ऋषि वाल्मीकि से पूछा था कि साधना के लिए उत्तम स्थान कहां है और हमे कहां निवास करना चाहिए। जिसके जवाब में वाल्मीकि ऋषि ने कहा था कि आप तीनों चित्रकूट गिरी जाये। वहां आपका सभी तरह से कल्याण होगा। ऋषि वाल्मीकि की आज्ञा पर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट पहुंच गये और चित्रकूटगिरी पर निवास करने लगे। चित्रकूट के इसी पावन स्थल पर भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष में से साढे 11 वर्ष बिताये थे।
वही कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगद्गुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य महाराज बताते है जब श्री राम चित्रकूट पर्वत पर निवास करते थे तो इसी पावन स्थल पर प्रभु राम का दरबार लगता था और श्रीराम भक्तों का कल्याण करते थे।
चित्रकूट पर्वत ही वो स्थान है जहां भगवान राम ने तप कर रावण का वध करने के लिए विशेष शक्तियां प्राप्त किया था। जब भगवान श्रीराम चित्रकूट को छोड़कर जाने लगे तो चित्रकूट गिरी ने भगवान राम से याचना किया कि हे प्रभु आपने इतने वर्षो तक यहां वास किया।जिससे ये जगह पावन हो गई।लेकिन आपके जाने के बाद मुझे कौन पूछेगा। तब प्रभु श्रीराम ने चित्रकूटगिरि को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे।यानि ईच्छाओं (मनोकामनाओं) की पूर्ति करने वाले हो जायेंगें। जो भी आपकी शरण में आयेगा उसके सारे विशाद नष्ट होने के साथ-साथ सारी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी और उस पर सदैव राम की कृपा बनी रहेगी। जैसे प्रभु राम ने चित्रकूट गिरि को अपनी कृपा का पात्र बनाया कामदगिरी पर्वत कामतानाथ बन गये। इसके अलावा संत स्वामी मदन गोपाल दास महाराज और सुप्रसिद्ध भागवताचार्य डॉ रामनारायण त्रिपाठी तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहते है कि चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का सर्वश्रेष्ठ केंद्र है।
यह वह भूमि है जहां पर ब्रह्म,विष्णु और महेश तीनों देव का निवास है। भगवान विष्णु ने श्री राम रूप में यहां वनवास काटा था, तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रगट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रपाल के रूप में आज भी विराजमान है। विश्व के करोडों हिन्दुओें के आराध्य कामदगिरि पर्वत पर ही निवास कर भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास काल का साढ़े ग्यारह वर्ष व्यतीत किये थे। वनवास काल में राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ इतनी लंबी अवधि तक निवास किया था कि चित्रकूट की पग-पग में राम, लक्ष्मण और सीता के चरण अंकित हो गये है।
वहीं कामदगिरि प्राचीन द्वार के प्रधान पुजारी भरतशरण दास महाराज का कहना है कि धर्म नगरी के प्रमुख तीर्थ स्थल कामदगिरि पर्वत पर रहकर ही प्रभु राम ने तप-साधना कर शक्ति का संचय करने के साथ-साथ अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प लिया था। उन्होने बताया कि भगवान श्रीराम के वरदान से कामदगिरि बने चित्रकूट गिरि आज भी देश भर से अमावस्या आदि मेलों पर आने वाले श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।इसीलिए देश भर से प्रतिमाह लाखों श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामदगिरि की पंचकोसीय परिक्रमा करते है।
इतना ही नही कई श्रद्धालु तो मनोकामना पूर्ण होंने पर दंडवती परिक्रमा (लेटी परिक्रमा) लगाते है। कामदगिरि पर्वत को लेकर प्रचलित किवदंती का उल्लेख करते हुए भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास और रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास बताते है कि वायु पुराण में चित्रकूट गिरि की महिमा का उल्लेख है। सुमेरू पर्वत के बढते अहंकार को नष्ट करने के लिए वायु देवता उसके मस्तक को उडा कर चल दिये थे।किंतु उस शिखर पर चित्रकेतु ऋषि तप कर रहे थे।शाप के डर से वायु देवता पुनः उस शिखर को समुेर पर्वत में स्थापित करने के लिए चलने लगे। तभी ऋषिराज ने कहा कि मुझे इससे उपयुक्त स्थल पर ले चलो नही तो शाप दे दूंगा। सम्पूर्ण भूमंडल में वायु देवता उस शिखर हो लेकर घूमते रहे,जब इस भूखंड पर आये तो ऋषि ने कहा कि इस शिखर को यहीं स्थापित करों।चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर को नाम चित्रकूट गिरि पडा था।संत श्री बताते है धनुषाकार कामदगिरि पर्वत के चार द्वार है।जिसमे उत्तरद्वार पर कुबेर,दक्षिणीद्वार पर धर्मराज,पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरूण देव द्वारपाल है।