जयपुर शहर एक अत्यंत सुंदर शहर है जो अपने आप में प्राचीनता और आधुनिकता बहुत खूबसुरती से समेटे हुए है. यहाँ आप सबकुछ ढूंढ सकते हैं. पुराने राजा महाराजा के समय वाले बाज़ार और अति आधुनिक महंगे माल्स भी. पुराने रेडिओ बाज़ार जहाँ आप पुरानी सामानो को पसंद के अनुसार ढुंढ सकते हैं. भारतीय स्टेट बैंक में कार्य करने के दौरान मुझे कई राज्यों, शहरो और कस्बो को नज़दीक से देखने और समझने का मौका मिला. इसी क्रम में, मैं मुम्बई से कोलकाता होते हुए जयपुर आ गया . गुलाबी शहर की गलियाँ और परकोटे के बाज़ार की मोहकता किसी को भी आकर्षित कर सकती है. जयपुर की गर्मी तो ऐसे थोडी परेशान करती है पर इसकी ठंड अत्यंत सुहानी होती है. बैंकिंग के अलावा शौकिया तौर पर मैं फोटोग्राफी करता हूँ जो मेरा जुनून भी है. घूमने का जुनून और फोटोग्राफी के लिये मैं हिंदुस्तान के अलग अलग हिस्सों की यात्रा करता रहता हूँ . जयपुर में पदस्थापित होने के कारण मुझे जयपुर की सुंदरता को देखने का मौका मिला.
और वो दिसम्बर का महिना था जब रात आठ बजे पास की दुकान में सामान लेते मेरी मुलाकात आशिष से हुइ जो कई बार हमारे शौकिया फोटोग्राफर्स के ग्रुप में मिलते हुए परिचय हुआ और दोस्त बन गया था.
एक बार नेशनल जिओग्राफिक चैनल पर मैंने लेसर फ्लेमिंगोज का समुह देखा था जो किसी परीलोक की तरह लग रहा था. आपने कभी गर्मियों का वो नजारा देखा है जब दूर मृग मरिचीका जैसा दिखता है वैसा ही वो दृश्य था पर म्रिग मरिचीका वाला अपवर्तन (Refraction) गज़ब का कल्पनाशील गुलाबी रंग का था. एक बात और बताऊँ?? जानवर और पक्षी भाग्य से ही दिखते हैं . एक बार तो हम दिन भर साम्भर झील के सुखे पाट में भटकते रहे पर हमें कुछ भी नहीं दिखा.
आशिष से मुलाकात के दौरान मैंने बताया की नेशनल जिओग्राफिक चैनल वाला वो दृश्य अपने कैमरे में कैद करना मेरा सपना है. तब हमने तय किया कि कल हम चांद्लाइ झील जा कर लेसर फ्लेमिंगोज को नजदीक से निहारेंगे. हमें पता नहीं था कि वो चांद्लाइ झील में फ्लेमिंगोज इस वर्ष आये भी हैं या नहीं पर हमने तय किया कि हम सुबह वहाँ चलेंगे.
चांद्लाइ झील जयपुर से 32 किलोमीटर की दूरी पर शिवदासपुरा से लगभग दो किलोमीटर दाहिनी ओर चलते दिखने लगती है. शहर के तेज जिंदगी और रोजी रोटी की भागम भाग से दूर ये जलराशी आपको अत्यंत सुहावना एहसास देती है.
सुबह सुबह चांद्लाइ झील पहुंच कर किनारे हमने कार रोका और कांटेदार झाड़ियों से चलकर झील तक पहुंचे. वहाँ हमें कुछ मछुआरे मिले जो मछली पकड़ने की तैयारी कर रहें थें . हमने उनसे पूछा कि क्या फ्लेमिंगोज आये भी हैं ? तो उनमें से एक ने कहा पता नहीं पर बडे हंस उधर हैं. ये सुनते ही मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकी बड़े हंस का मतलब ग्रेटर या लेसर फ्लेमिंगोज होता है. मैंने फिर उनसे पूछा की नाव मिलेगी क्या ? उनके हाँ कहने पर बातचीत कर दो सौ रुपये मैं नाव किराये पर कर हम बैठ गये. आगे जाकर नाव रुक गई फिर नाविक के ज़ोर लगाने पर नाव चली. दरअसल चांद्लाइ झील कई जगह पर कम गहरी है और नाविक मिला कर तीन लोगों के बैठने से नाव नीचे फंस गई थी . खैर हम आगे बढे लेकिन अभी तक फ्लेमिंगोज के दर्शन नहीं हुए थे हमें. कुछ तरह के माइग्रेटरी पक्षी दिखे पर हमें तलाश थी किसी और की .आगे जा कर जैसे ही नाविक ने बाईं ओर नाव को मोड़ा की सुबह के कम रौशनी और हल्की धुंध में एक अद्भुत दृश्य हमारे सामने था और मेरा साकार होता सपना भी.
सामने लगभग सौ फ्लेमिंगोज बिना फिक्र दुनियादारी से दूर, रोजी रोटी की चिंता से मुक्त, अपने में मगन, वतन से दूर अठखेलियों में व्यस्त थे. हमने तो बेहद शांति साईं जी भर के फ्लेमिंगोज का दीदार किया, उनको अपने कैमरे में कैद किया तत्पश्चात नज़दीक से फोटो लेने के लिये नाव थोडा आगे ले गये लेकिन वे आशंकित हो गये और उड़ने लगे. उनका समूह में उड़ना भी बहुत मनमोहक था जिसे भी हमने अपने कैमरे मैं कैद कर लिया.