हिमाचल के स्पिती वैली का मेरा सफर मई 2018 जयपुर से चंडीगढ़, चंडीगढ़ से शिमला और शिमला से शाम 6:30 पर रिकोंगपीओ जाने वाली बस से हुआ जिसने करीब सुबह 4 बजे मुझे रिकोंगपीओ पहुंचा कर ही दम लिया।
सुबह के साड़े पांच बजे रिकोंगपीओ से काज़ा-स्पिती जाने वाली एक मात्र बस छूटते- छूटते बची है। मैं हांफते हुए दरवाजे के पास एक डंडे के सहारे खड़े होकर अपनी फूलती साँसों को आराम देने की कोशिश कर रहा हूं। यहाँ वहाँ सीट ढूँढने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि जानता हू कि अगले 8-10 घंटे मुझे खड़े-खड़े ही सफर करना है। गाड़ी अपनी मद्धम गति से पीओ से लगातार नीचे उतरते गयी और फिर सतलुज पर बने पुल को पार करते ही धीरे-धीरे ऊपर चढ़ती गयी। आज मौसम साफ है और हिमालय ऊँचे पहाड़ों में अपने चख सफेद पंख फैलाए खड़ा है। मेरी नजरे बार-बार गर्दन ऊँची कर कभी ऊँचे हिमालय को निहार रही हैं तो कभी बर्फीले पहाड़ों से बर्फ पिघल कर आती हुयी पानी की एक पतली धार को सतलुज में मिलते हुए देख रही हैं। आज समझ आ रहा है कि कोई भी नदी पैदा होते ही इतनी बड़ी नहीं होती जितनी हमें दिखती हैं। जाने कितने छोटे-मोटे झरने; नाले; नदियां; गाड़-गधेरे उसमें समा कर अपना योगदान देती हैं तब जाकर वो एक बड़ी नदी बनती है। आज समझ आ रहा है कि आखिर क्यों वैज्ञानिक लोग बार बार चेतावनी देते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग बड़ रहा है, हिमालय जल्दी जल्दी पिघल रहा है। समझ आ रहा है कि हिमालय और ग्लेशियरो में बर्फ पिघलती है तब जाकर नदियों का जलस्तर बना रहता है और अगर यही हिमालय जल्दी जल्दी पिघल कर खत्म हो गए तो नदियों में पानी कहाँ से आएगा? एक अंग्रेज और उसकी 14-15 साल की लड़की को भी सीट नहीं मिली है। लड़की बस के दरवाजे से लटक कर कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ झूले जा रही है और अंग्रेज डाक पार्सल वाली सीट के किनारे वाले डंडे में अपना पिछवाडा़ गड़ाए बैठा है। बस के झटके से वो कभी इधर तो कभी उधर फिसल रहा है लेकिन फिर भी पिछवाड़े को सीट के डंडे में गाड़ने से बाज नहीं आता। अंग्रेज की लड़की का बस टिकट female होने के नाते 30 प्रतिशत की छूट के साथ कटा है लेकिन जब लड़की ने अपनी लंबी टोपी उतारी और कुछ देर बाद जैकेट भी उतार दी तो मैं समझने की कोशिश कर रहा हू ये लड़का है या लड़की? क्योंकि उसके बाल बहुत ज्यादा छोटे हैं और पहनावा तो आजकल सबका एक जैसा हो गया है और उसपर उसका चेहरा..। स्पिलो में गाड़ी रुकी है और मैं गरमा गर्म जलेबी और धुएँ के गुब्बारों का एक साथ आनंद लेने से खुद को रोक नहीं पाया। स्पिलो के बाद ऊचाई बड़ती जाती है और हरे-भरे पहाड़ सूखे पहाड़ों में बदलने लगते हैं। पहाड़ों में अगर हरियाली ना देखूं तो मन बेचैन होने लगता है। लेकिन यहां नहीं हुआ। गाड़ी अब भी किन्नौर जिले में है, किन्नौर जिले का आधा हिस्सा जहां बेपनाह हरियाली से सजा है वही आधा हिस्सा कुछ-कुछ लाहौल-स्पिती की तरह एकदम सूखा लेकिन देखने लायक है। Pooh में पहुचते ही ऊपरी चोटियों में बर्फ दिखने लगी है और लोगों ने जेबों से अपने मोबाइल निकाल कर खिड़की से सटा दिए हैं ताकि फोटो खींच सके। मैं अपना मोबाइल या कैमरा कहां सटाऊ मेरे पास ना तो सीट है और ना ही खिड़की। खूबसूरत नजारे दिखते गए और निकलते गए और मेरा कैमरा भी निकलता रहा, ऑन होता रहा लेकिन शर्म के मारे बिना फोटो खींचे फिर बंद होता रहा। शर्म बहुत बुरी चीज़ है क्योंकि ये आपको बहुत से अच्छे काम करने से रोकती है लेकिन कई दफे मर्यादा में बाँध कर बुरे काम करने से भी रोकती है।
नोट-स्पिती यात्रा का वृतांत पूरी जानकारी के साथ Google में जाकर मेरे ब्लॉग himboyps.wordpress.com ब्लॉग में पढ़ सकते हैं
नाको में लंच के बाद कई खड़े लोगों को सीट मिल चुकी है यहां तक कि लोकल सवारियों को भी और दोनों विदेशी लगभग खाली हो चुके डांक वाली सीट पर कब्जा जमा चुके हैं लेकिन मुझे और एक लंबे युवक को पूरे रास्ते सीट नहीं मिली। सूमदो चेकपोस्ट पर गाड़ी रुकी तो कंडक्टर ने दोनों अंग्रेजों को एंट्री कराने भेज दिया और पुलिस का एक जवान बस के अंदर सवारियों की चेकिंग करने अंदर दाखिल हुआ। एक सांवली सी दिखने वाली लड़की से पूछने लगा आप कहां से हो? उसने "हैयदराबाद" बताया, लेकिन उसे सुनाई नहीं पड़ा तो फिर पूछ बैठा। लड़की थोड़ा मुस्कुराई और थोड़ा जोर से बोली "जी हैयदराबाद से"। फिर पीछे की तरफ बैठे अंकल जिन्होने बड़ी सी गोल हैट पहन रखी थी उनसे पूछा तो उन्होने बताया वो स्पिती से ही हैं, इसपर जवान बोला "लेकिन लग तो चाइना के रहे हो"। हालांकि हैदराबाद वाली लड़की से पूछने का कोई तुक नहीं बनता, पर क्या पता श्रीलंका से होने की आशंका के चलते पूछा हो। भारत से बाहर के नागरिकों को लाहौल स्पिती में प्रवेश के लिए रिकांगपीओ से परमिट बनाना पड़ता है। सूमदो लाहौल स्पिती का लास्ट चेकपोस्ट है। यहां से किन्नौर जिला समाप्त होकर लाहौल स्पिती शुरू होता है। कह सकते हैं कि अब हम मिनी तिब्बत में हैं। जब भी लाहौल स्पिती नाम आता है तो मेरे दिमाग में तिब्बत का ल्हासा भी आ जाता है। सतलुज नदी ख़ाब में घाटी के पास पीछे छूट चुकी है और अब हम स्पिती नदी के साथ-साथ चल रहे हैं। ख़ाब में स्पिती नदी और चीन/तिब्बत की तरफ से आने वाली सतलुज नदी का संगम होता है। 5-6 घंटे से मुझे खड़ा देख एक स्पितीयन बुजुर्ग जिनकी उम्र करीब 52-55 साल है खड़े हो गए और मेरे कई दफे मना करने के बावजूद मुझे अपनी सीट दे दी और खुद 1 घंटे तक खड़े रहे। उसके बाद फिर काजा पहुंचने से एक घंटे पहले दोबारा अपनी सीट दे दी और करीब घंटे भर काजा तक खड़े-खड़े गए। दूसरे लंबे युवक को भी उसके साथी ने सीट दे दी। स्पिलो, pooh, नाको,सुमदो, ताबो, हुरलिंग सभी जगहों को आँखों में कैद करते-करते कब खड़े खड़े 9-10 घंटे निकल गए पता ही नहीं चला। ये इस जगह की खूबसूरती है जिसने मुझे इस कठीन सफर का एहसास तक नहीं होने दिया। करीब शाम के चार बजे गाड़ी kaza bus stand पहुची है। बस से उतरते ही मैं चारों तरफ अपनी नजरें दौड़ाता हूं.. उफ्फ क्या नजारे हैं...मैंने उम्मीद नहीं की थी कि मई महीने में ऐसा काजा देखने को मिलेगा, आधा शरदियों वाला और आधा गर्मियों वाला। गाड़ी से उतरने के बाद मैं उन बुजुर्ग के बाहर आने का इंतजार कर रहा हूं जो इस उम्र में भी लंबे सफर में किसी अनजान के लिए दो घंटे खड़े रहे। वे सबसे आखिरी में उम्र के इस पड़ाव में अपनी कमर को थोड़ा झुकाते हुए बस से बाहर उतर रहे हैं। उनके उतरने के बाद मैं उनके पीछे जाता हूँ और "अंकल जी" का संबोधन करके उनको रोकने की कोशिश करता हूं। मैं उनसे हाथ मिलाता हूं और तहे दिल के साथ उनका धन्यवाद करता हूं और वो मुस्करा कर कहते हैं "अरे कोई बात नहीं, कोई बात नहीं"। लंबा युवक और उसका थोड़ा कम कद काठी वाला साथी हिमाचल पुलिस में हैं, और मुझे मार्केट और काज़ा स्टैंड के पीछे की पहाडियों के बारे में बता रहे हैं। उनके अनुसार रात को इस तरफ 60 डिग्री का व्यू दिखता है, मैं कहता हूं कि जैसा दिखेगा देखूँगा लेकिन 60 हो या 90 डिग्री का व्यू, गणित वाली भाषा में नहीं देखूँगा क्योंकि बड़ी मुश्किलों से गणित से पीछा छुटा है। उनके साथ दोनों हाथों से हाथ मिलाते हुए मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं और हवा में धुएँ के छल्ले उड़ाता हुआ काजा की गलियों में खो जाता हूँ।
ऐसा नहीं कि घूमने का शौक अचानक ही पैदा हुआ हो, प्रक्रती और हिमालय से प्रेम,ऐसी कई सारी वजहों ने मुझे इन पहाड़ों के और करीब जाने के लिए उकसाया है। और आज यही उत्सुकता और जिज्ञासा मुजे हिमाचल का सबसे बड़ा और लास्ट जिला लाहौल स्पिती के spiti valley (काजा) तक खींच लाई है। यहां चलने वाली तेज ठंड हवा से मेरे होठ शुष्क हुए जा रहे हैं और मैं थूक लगा-लगा कर गिला किए जा रहा हूँ। सभी घरों के छतों पर लटके रंग बिरंगे पताके ऐसे फड़फड़ा रहे हैं जैसे हवा की चलने की दिशा बता रहे हों। मैं काज़ा के एक छोटे से लेकिन साफ सुथरे होटल के कमरे में हू। मुझे शौक नहीं एक रात के दिखावे के लिए हज़ारों रुपये बर्बाद करके महंगे होटलों में ठहरना और उसकी चका चोंद में सैल्फी लेकर Facebook और insta में डालकर झूठी वाहवाही लूटना. जिस ऐसों आराम में आप अपने घर में रहते हैं बस कुछ वैसा ही आपका होटल भी होना चाहिए। मैं अपने कमरे में बंद हूं और एक छोटी सी टेबल में मयखाना खुला है जिसमें कुछ चिप्स, पानी की बोतल और सेव के चंद टुकड़े, एक हाथ में जाम और दूसरे में धुएँ का गुब्बार है तो कानो में लीड, जिसमें कभी पहाड़ी तो कभी बॉलीवुड के सदाबहार गानों ने माहौल और खुस मिजाज बना दिया है। ऐसा नहीं कि मैं इन सब चीजों का आदि हूं, बिल्कुल भी नहीं। मैं अपनी ही मस्ती में मस्त हू तभी कमरे की डोर बैल दो बार बज उठी है, होटल मालकिन कमरों के पर्दे बदलने आई है और मैं कुछ देर रुकने का कहकर मयखाना टेबल के नीचे छुपा रहा हू ताकि खुले में एक महिला के सामने ये सब असभ्य ना लगे। होटल वाली अंटी के साथ बातों का सिलसिला चल पड़ा है, वो बताती हैं उन्होंने ये होटल और नीचे दुकान सालाना किराये पर ले रखा है. बच्चों के बारे में पूछने पर कहती हैं एक लड़का है जो विदेश में है और वहीं की लड़की से शादी कर रखी है। "अच्छा अंग्रेजन से शादी कर रखी है? उसे कैसे पटा लिया?" "सर मेरा लरका ना बहोत.. ही सुन्दर है, लरकी इधर घूमने आया था तो दोनों को प्यार हो गया और शादी कर ली"। अच्छा लगता है ना? जब एक माँ कहती है कि उसके बच्चे बहुत सुन्दर हैं, चाहे दुनिया की नजरों में कैसे ही क्यों ना हो। रात के 9 बज चुके हैं और अधिकतर रेस्टोरेंट बंद होने की तैयारी कर रहे हैं तो कोई सज्जन मुझे हिमालयन कैफे वाली गली का पता बताते हैं, सामने हिमालयन कैफे रोशनी से चमक रहा है और अंदर से लाइव गिटार की धुन बाहर आ रही है और उसी के बगल में रॉयल inफील्ड की बाइक सजाये पंजाबी ढाबा भी है। मैं दोनों रेस्टोरेंट के सामने 40 इंच का सीना ताने एक हाथ ट्रक सूट की जेब में डाले, हवा में धुआं उड़ाता खड़ा हूं और सोचता हूं किसमें जाऊ? हवा के ठंडे थपेड़े मूह पर पड़ रहे हैं । सामने हिमालयन कैफे के सामने 3 टूरिस्ट लड़कियां गप्पे में मशगूल हैं, जहां हर कोई मई के महीने में भी जनवरी माह के गर्म लिबास में लिपटा है वहीं ये लड़कियां दिल्ली मुंबई की गर्मी के फैशनेबल स्कर्ट में उतरी हैं। मैं कुछ सेकेंड उन्हें ताकते हुए बुदबुदा रहा हूं " कम्बखतो अगर काजा की फड़फड़ाती बर्फीली हवा शरीर में घुस गईं ना, तो दिल्ली, मुंबई जयपुर पहुंचने के बाद ही बाहर निकलेगी और स्पीती घूमने से पहले ही काजा में सेहत का बाजा बज जाएगा"। खैर पहनने को कुछ भी पहना जा सकता है लेकिन सेहत का ध्यान रखना भी जरूरी है। अब चूंकि हिमालयन कैफे में लाइव गिटार बज रहा है और गिटार वाला उसमें अपनी खुद की धुन भी मिला रहा था तो यकीनन सादा खाना भी महँगा मिलेगा, इसलिए गिटार की धुन कुछ देर बाहर खड़े होकर सुना और खाना पंजाबी होटल में जाकर खाया। लेकिन गिटार बगल में बज रहा है और उसकी आड़ में खाना महँगा पंजाबी ढाबे वाले ने कर रखा है। वापस होटल पहुंच कर अपने आप को एक मखमली कंबल और एक रज़ाई के हवाले कर दिया है और कंबल से परफ्यूम की एक सौंधी सी महक आ रही है, जरूर मुझ से पहले कोई भाभी जी यहां रुकी होंगी और परफ्यूम लगा कर सोई होंगी। शुबह ठीक 8 बजे गाड़ी वाला अपनी कार के साथ बस स्टैंड के सामने हाजिर है और मुझे देखते ही पहचान गया है। हम हाय हैलो करने के बाद की गोम्पा की ओर चल पड़े हैं। गाड़ी स्पिती नदी के साथ चल रही है और दूर कहीं नदी के उस पार याक घास चर रहे हैं। यहां चलने वाली तेज हवा बर्फ को इधर उधर उड़ाती रहती है जिससे कहीं-कहीं बर्फ ऐसी दिख रही है मानो किसी ने बीच बीच में पहाड़ों में आटा छिड़क रखा हो। खेतों में अभी सिर्फ अंकुर ही फूटे हैं लेकिन फिर भी हरियाली विहीन स्पिती में काफी हरियाली फैली हैं, जैसे किसी ने कैनवास पर हरा रंग पोत रखा हो। ड्राइवर हर बात पर 'जी सर' लगाता है और मैं ड्राइवर से यहां की डेली लाइफ ही हर जानकारी ले लेना चाहता हूं। उसका घर स्पिती के ऊपरी इलाकों में है। वो सर्दियों में स्पिती वैली की दिनचर्या और यहां की मुश्किल हालातों के बारे में बता रहा है लेकिन फिर भी शहर के लोगों से भी ज्यादा खुश है। की/कीह गाँव आने वाला है। पहाड़ों में बहुत ज्यादा ऊचाई होने के बाद भी ऐसा लग रहा है जैसे गाड़ी किसी खुले मैदान में दौड़ रही है। नीचे "की गाँव" है और पहाड़ी के ऊपर अकेला "की गोम्पा" किसी डिज्नी लैंड की तरह प्रतीत हो रहा है। गाँव से की गोम्पा ज्यादा दूर नहीं है लेकिन सांप की तरह टेढ़े मेड़े घूमते सड़क ने उस छोटी सी दूरी को काफी दूर कर दिया है। गाड़ी को गेट के पास खड़ी कर मैं मुख्य मंदिर में जहां सभी लामा पूजा में व्यस्त हैं वहाँ मैं सर झुका कर हाथ जोड़ता हुं लेकिन अंदर से भक्ति भाव पूरी तरह जाग्रत नहीं है लेकिन मन साफ है। ड्राइवर यहां का अच्छा जानकार हैं और एक लामा को बुला कर मुझे मठ की स्पेशल हर्बल चाय सर्व की जा रही है। मठ की छत से बर्फीले पहाड़ और स्पिती नदी का विहंगम दृश्य दिख रहा है। "की गोम्पा" के बाद मैं चीचम ब्रीज के लिए रवाना होने को हूं और सामने से एक अंग्रेज पुरुष, लामा वाली लाल वेश-भूसा धारण किए ड्राइवर से बतिया रहा है, लेकिन ड्राइव अँग्रेजी समझने में अक्षम है तो मैं अंग्रेज से उसकी परेशानी पूछता हूं। माना कि हिन्दी स्कूल में पांचवी कक्षा के बाद अँग्रेजी का पहला अ (a) पढ़ा है लेकिन फिर भी अंग्रेज को अँग्रेजी भाषा में 80 प्रतिशत के साथ संतुष्ट कर रहा हूं। उसे काजा जाना है लेकिन 'की गोम्पा' से काजा जाने वाली दिन की एक मात्र लोकल बस जा चुकी है और वो हमसे काजा तक लिफ्ट चाहता है। मैं उसकी मदद करना चाहता हूं लेकिन उसे अपनी स्थिति भी बताता हूं लेकिन फिर भी अंग्रेज हमारे साथ 4-5 घंटे बर्बाद करने के बाद काजा जाने को राजी है। मैं ड्राइवर की तरफ देखता हूं तो वह कहता है "गाड़ी फ़िलहाल आपकी है जैसा आप चाहें?" और मैंने अंग्रेज को हामी भर दी है। अंग्रेज खुशी-खुशी में भागता हुआ अपने कमरे में जाकर अपना समान लाने को है, वापसी में वह एक 4 फीट लंबा-चौड़ा भारी भरकम सूटकेस और एक बैग खींच कर ला रहा है, इतना बड़ा कि एक 5 फीट 5 इंच का भारी भरकम आदमी उसमें फीट हो जाए। यह दृश्य देख ड्राइवर रुआँसा हुआ जा रहा है,पर अब कुछ नहीं हो सकता क्योंकि मैं अंग्रेज को हाँ बोल चुका हूं। उसे बिठाकर हम चीचम ब्रीज की ओर चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं और मैं विंडों से धुएँ का गुब्बार spiti valley ki हवा में उड़ाए जा रहा हूं।
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