न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते
- अहमद फ़राज़
नौ दिन नौ जगह
कुछ वजह कुछ बेवजह
दूसरा दिन
03 जनवरी 2020
कुमारकम की हॉउसबोट में पहले दिन की थकान उतारने के बाद अगली सुबह "अप्पम और अंडाकरी" के नाश्ते का लुत्फ लेकर अपने वादे के अनुसार हम निकल पड़े वाटर लिली (जलकुमुदिनी या नीलकमल) के खूबसूरत नज़ारे की ओर।
सालभर में इस वाटर लिली की दो फसल होती हैं और पूरा क्षेत्र सरकार के अधीन है। अगर आपने वाटर लिली के खूबसूरत नजारे का आनन्द लेना है तो सुबह 6 से 9 बजे के बीच झील में जाएं। दूर दूर तक फैला हुआ गुलाबी फूलों का आकर्षक नज़ारा आपके कैमरे और आप की आंखों दोनों को थाम देगा। ये अचंम्भे की बात नहीं होगी कि आपके नाविक आपके लिए एक ही फूल से एक सुंदर माला तैयार कर दें।
झील के बीच ही "कुमारकम पक्षी अभयारण्य" है जो कि रबर प्लांटेशन में अवस्थित है। जहां आपको पक्षियों की लगभग 100 प्रजातियां देखने को मिल सकती हैं। जिसमें आपको दुर्लभ प्रवासी "साइबेरियन सारस" भी देखने को मिल सकता है।
कमाल की बात ये भी है कि "व्यम्बनाड झील" को ही केरल में "कोच्चि झील" और "पुन्नमड झील" जैसे अलग अलग नामो से पुकारा जाता है।
भारत के पर्यटन में अहम स्थान रखने वाली करोड़ों की इनाम राशि वाली " नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़" इसी झील में हर साल अगस्त माह दूसरे शनिवार को आयोजित होती है । दौड़ में प्रयोग होने वाली 100 फ़ीट लंबी नावों को "चुण्डन वल्लम" कहा जाता है जिसका मतलब है "सर्प नाव" इस दौड़ का आयोजन नेहरू के सम्मान में किया गया था । लेकिन ये दौड़ आज से देश विदेश से लगभग 2 लाख सैलानियों को आकर्षित करती है।
व्यम्बनाड झील में बढ़ते चिन्ताजनक प्रदूषण के चलते भारतीय सरकार ने इसे "राष्ट्रीय जलभूमि संरक्षण कार्यक्रम" में शामिल किया है। यह झील भरतपुर राजस्थान के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा जलभूमि तंत्र है।
आने वाले पर्यटकों के लिए मेरा सुझाव है कि
अगर आप अलेप्पी और कुमारकम दोनों एक साथ घूमना चाहें तो अलेप्पी से फेरी बोट लेकर भी कुमारकम आ सकते हैं।
इस झील के मनमोहक सफर को पूरा कर हमने अपने नाविकों से विदा ली और अपने अगले पड़ाव मसालों के शहर "थेक्कड़ी" की ओर बढ़ चले। जिसके लिए हमें कोट्टयम शहर से ही बस पकड़नी थी ।
कोट्टयम शहर की ओर जाते हुए एक मजेदार किरदार ऑटो ड्राइवर "रेज़ज़ी" से मुलाकात हुई जिसे हिंदी गाने बहुत पसंद थे । कोट्टयम तक के सफर में इस ड्राइवर ने हमें बहुत से हिंदी गाने सुनाए । उसने बताया कि यहां पर शिरोधारा आयुर्वेदिक उपचार प्रक्रिया के कई स्थान हैं। जो कि स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक बताया जाता है। आप शिरोधारा का लाभ यहां उठा सकते हैं।
थेक्कड़ी तक साढ़े 3 घंटे के सफर में KSRTC की बस के बाहर देखकर आप मसालो और कॉफी के प्लांटेशन का आनंद ले सकते हैं। केरल की खास बात है कि यहां आपको इतनी हरियाली देखने को मिल सकती है की आपकी आंखें थक जाएंगी पर हरियाली खत्म नहीं होगी। थेक्कड़ी पहुंचने के अगला पर्यटन स्थल था पेरियार राष्ट्रीय उद्यान के बीच स्थित पेरियार झील ।
थेक्कड़ी में एक अदद अच्छे होटल की तलाश में भटकते भटकते भूख लगने लगी और होर्डिंग्स को देखते देखते नज़र गई "हिमालय रेस्टोरेंट" पर । रेस्टोरेंट के नाम से अंदाज़ा लगाया कि दक्षिण भारत में रेस्टोरेंट का नाम हिमालय पर रखने वाला शायद कोई उत्तर भारतीय हो सकता है। रेस्टोरेंट के अंदर जाकर पता करने पर पता चला की सारा स्टाफ ही उत्तराखंड से है। स्टाफ में काफी लोग टिहरी और पौड़ी से थे ।ये रेस्टॉरेंट असल मे जिस होटल "ब्लूमिन्ग पैराडाइस" से यह जुड़ा है वहीं पर रहने की अच्छी व्यवस्था देखकर वहीं रुकने का निर्णय हुआ ।
लेकिन शाम को खाली रहने का कार्यक्रम कुछ जंच नहीं रहा था। होटल के रिसेप्शन पर पता करने पर पता चला कि पेरियार झील में कुछ बड़ी नावें नौकायन कराती है। जिस के लिए जंगल क्षेत्र में एक बोट बुकिंग सेंटर है । उस तक ले जाने के लिए बस है जिस बस की बुकिंग सुबह 5 बजे से ही शुरू हो जाती है।
ब्लूमिन्ग पैराडाइस होटल से ही लगा हुआ एक कथकली नृत्य और कलियारप्यट्टू मार्शलआर्ट केंद्र भी है । जिसका नाम "मुद्रा कलारी" है। टिकट एडवांस में बुक करेंगे तो आगे की सीट मिलने की संभावना है।
शाम को थोड़ा सुस्ताने के बाद "मुद्रा कलारी" जाना हुआ।
यहां से प्रारम्भ हुआ संभवतः भारत की प्राचीनतम युद्ध कला कलियारप्यट्टू का अदभुत प्रदर्शन। कलियारप्यट्टू जिसे आप सबने और मैंने भी टाइगर श्रॉफ की बागी फ़िल्म में ही अब तक देखा था सामने से पहली बार देखने मिला। 1 घंटे के इस कार्यक्रम में दांतो तले उंगलियां दबा लेने वाले हैरतअंगेज़ युद्ध कलाओं का प्रदर्शन हुआ। कलियारप्यट्टू असल मे भारतीय मार्शलआर्ट ही है। जिसे केरल में उसी तरह से सिखाया जाता है जिस प्रकार से उत्तर भारत में कुश्ती को। यदि आप केरल आएं तो कलियारप्यट्टू ज़रूर देखें। यकीन मानिए इस कला के प्रदर्शन की तुलना आप किसी से नहीं कर सकते।
अगले कार्यक्रम में केरल के प्रसिद्ध नृत्य कथकली का प्रदर्शन हुआ जिसे आज तक मात्र दूरदर्शन पर ही देखा था। किसी लोक नृत्य को सामने से देखने का अनुभव वास्तव में खुद को इस कला में शामिल कर लेने जैसा होता है। असल मे कथकली -कथा को कला के माध्यम से कहने का एक लोक नृत्य है। जिस प्रकार हमारी रामलीलाएं होती हैं। इसमे इडक्का या मड्डलम (प्रयुक्त ढोलक) प्रयोग किये जाते हैं।
कलाकार सुनील और अखिल जो कि कथकली नृत्य में स्त्री और पुरुष की भूमिका में थे उन्होंने चेहरे की भंगिमाओं से नव रसों को प्रदर्शित किया इसके बाद एक कथा का मंचन कथकली के माध्यम से हुआ। साथ ही मंच पर स्वयंसेवक के तौर पर मुझे भी बुलाया गया काफी हँसी मज़ाक के बीच उस मंच पर जाना एक जीवनपर्यंत साथ रहने वाला अनुभव था।
शाम को "हिमालय रेस्टोरेंट" के उत्तरभारतीय खाने के साथ मन को घर के खाने का सुकून मिला। इस जगह के आस पास मसालों की और होम मेड चॉकलेट की अच्छी बाजार है जहां आप कम दाम पर अच्छे मसाले खरीद सकते हैं। यहां से 8 mm की इलायची अवश्य खरीदें। जो कि काफी प्रसिद्ध है।
अगली सुबह पेरियार झील की सैर के लिए जल्दी उठना था।
इस तरह दूसरे दिन का सफर केरल की आश्चर्यजनक विविधता के बारे में सोचते-सोचते थम गया।
सुझाव-यदि आप केरल में हैं तो यहां आप थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी से ही आप काम चला सकते हैं क्योंकि यहां केवल हिंदी से आपको लोगों को समझाने में बहुत दिक्कत हो सकती है।
यात्रा जारी है......
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https://youtu.be/-RSr40KffNI
9 दिन और 9 जगह,
कुछ वजह कुछ बेवजह
आए ठहरे और रवाना हो गए
ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है
-हैदर अली जाफ़री
अध्यापक के तौर पर सर्दी और गर्मी की छुट्टियां आपको अपने काम से कुछ यादगार पल चोरी करने का अवसर देती हैं। मैं और मेरी संगिनी अक्सर इस चोरी को साथ साथ अंजाम देते हैं और हर बार की तरह घुमक्कड़ी करने का एक नियम रहता है कि कोई योजना नहीं । इस बार की अनिर्धारित अनियोजित यात्रा कम्पास की सुई जा टिकी केरल पर । जिसके बारे में कहा जाता है कि यह "ईश्वर का घर है" (GOD'S OWN COUNTRY)।
सुनते हैं कि पुर्तगाली व्यापारी नाविक वास्कोडिगामा ने भारत को नक़्शे पर ढूंढ कर यहीं पर विश्व से परिचित कराया।
तो यहीं से शुरू हुई इस बार की घुमक्कड़ी
दिवस -01
2 जनवरी 2020
अपनी पहली हवाई यात्रा के सुखद अनुभव के बाद प्लेन केरल के कोचीन अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। प्लेन के उतरने के साथ ही दिल्ली की सर्दी भी गर्म कपड़ों के साथ उतरने लगी। इस हवाई अड्डे की स्वयम में खास बात यह है कि दुनिया का पहला सौर ऊर्जा से संचालित और भारत का चौथा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है जिसका निर्माण PPP मोड में किया गया है।
यूँ तो हवाई अड्डे की दुकानों में महंगाई की मार रहती है पर यहां हवाई अड्डे से थोड़ा बाहर आपको उचित मूल्य पर उचित भोजन उपलब्ध है। निकट के स्थानों पर जाने के लिए एयरपोर्ट टैक्सी की बजाय आप UBER या ola को चुनें।
इस हवाई अड्डे से 2 घंटे की दूरी पर स्थित हैं केरल अनूपझीलें या केरल बैकवॉटर्स भारत के दक्षिण में स्थित केरल राज्य में अरब सागर से समांतर कुछ दूरी पर स्थित खारी अनूप झीलों और झीलों की एक श्रंखला है। इसमें प्राकृतिक और कृत्रिम नहरों द्वारा जुड़ी हुई पाँच बड़ी झीलें हैं जिनमें ३८ नदियाँ जल लाती हैं।
यहां से हमारे लिये असमंजस की स्थिति यह थी कि दो प्रसिद्ध अलेप्पी या कुमारकम बैकवाटर्स में से कहाँ जाएं। अलेप्पी की अधिक भीड़ भाड़ से बचने के लिए 70 किमी दूर कुमारकम चुना गया।
KUMAARKOM
कुमारकम केरल के कोट्टयम जिले के अंतर्गत आने वाला एक पर्यटन स्थल है जो अपनी बैकवाटर्स और हॉउसबोटस अनुभव के साथ साथ पक्षी अभ्यारण्य के लिए भी प्रसिद्ध है। जो कि व्यम्बनाड झील के बीचों बीच है। यह जगह कोट्टयम से 14 किमी दूर है लेकिन पहले ये जगह रबड़ के प्लांटेशन के लिए जानी जाती थी। साथ ही 1997 में ये जगह अंतराष्ट्रीय चर्चा मे रही क्योंकि अरुंधति राय के लिखे बुकरप्राइज़ प्राप्त करने वाले अंग्रेज़ी उपन्यास द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स को यहां के आयमनम नामक गांव की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है है।
कुमारकम के पश्चिम में व्यम्बनाड झील है जिस पर हाउसबोटिंग या बोटिंग कराई जाती है। इस झील को मीनाछिल नाम की नदी से पानी मिलता है जिसकी वजह से मानसून में अक्सर बाढ़ की स्थिति रहती है।
कुमारकम आकर एक दिन के लिए हॉउसबोट पर ही रहने का निर्णय हुआ। जिसमें एक कमरा, रसोई, डाइनिंग एरिया बाथरूम सबकुछ था । इसके बाद हाऊस बोट के द्वारा झीलभर में नौकायन करने के साथ साथ केले के पत्ते पर पारम्परिक खाना परोसा गया । जिसमें पॉम्फ्रेट मछली, और झींगा फ्राई बहुत स्वादिष्ट था।
यह बात जानने लायक थी कि इस व्यम्बनाड झील में लगभग 100 मछलियों की प्रजातियां हैं।अगली सुबह के झील के दूसरी ओर विस्तृत वाटर लिली के खूबसूरत नज़ारे के वादे के साथ हाउस बोट किनारे लगा दी गई। ढलते दिन और जाती हुई थकान के साथ कुमारकम की झील का नज़ारा निश्चित रूप से आपकी कलात्मकता और रचनात्मकता को जगा देता है।
शायद कोई कविता, कहानी या पेंटिंग आपको यहां मिल सके।
यात्रा जारी है.......
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