प्रिय मित्रों,
दुनिया भर में अपने गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाने जाने वाले हमारे देश के लगभग गांव और शहर का अपना एक समृद्ध अतीत है। जिसे जानने समझने और देखने की ललक हर किसी को होती है। आज का हमारा सफर ऐसे ही एक ऐतिहासिक गांव का है, जिसे मन्दिरों का गांव कहा जाता है।आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये मन्दिरों का गांव कैसा होगा और इसका नाम मन्दिरों का गांव क्यों पड़ा। तो हम आपको बता दें कि पश्चिम बंगल की सीमा से लगने वाले झारखंड के दुमका जिला स्थित शिकारीपाडा के निकट बसे इस गांव में सैंकडों मन्दिर है। करीब 108 मन्दिरों वाला यह ऐतिहासिक गांव आज भी मौजूद है।सदियों पुराने मन्दिरों से सजा यह गांव भले ही दुनिया के नक्शे में अपनी बड़ी पहचान नहीं रखता लेकिन यहा आकर अपने अतीत के एहसासों को महसूस करने की सुखद अनुभूति होती है।
17 वीं शताब्दी में बनाये गये इन मन्दिरों में रामायण व महाभारत काल की तमाम कलाकृतियों और घटनाक्रमों को भी उकेरा गया है।जो हिन्दू धर्म संस्कृति के अतीत को भी जीवंत करतीं है। इसके अलावा यहां मां तारा की बड़ी बहन माता मौलिक्षा का भी एक प्राचीन मन्दिर है, जो पर्यटन के साथ साथ लोगों के आस्था का भी बड़ा केन्द्र है। यहां हर वर्ष एक विशाल मेला भी लगता है जिसे भादो महोत्सव भी कहा जाता है।जिसे देखने के लिए देशभर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है।
कैसे पहुंचे:-
पश्चिम बंगाल की बार्डर से लगने वाले झारखंड का यह ऐतिहासिक गांव अपनी धार्मिक महत्व को लेकर खासा लोकप्रिय है। यहां पहुंचा बेहद आसान है।रेल मार्ग से यह स्थान सीधा नहीं जुड़ा है लेकिन यहां से थोडी दूरी पर प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो कोलकाता और झारखंड समेत के प्रमुख शहरों से जुड़े है। मलूटी का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल का रामपुर हाट है। यहां उतर कर आप आसानी से मलूटी पहुँच सकते है। मलूटी से रामपुरहाट की दूरी मात्र 14 कि.मी. है।आपको बता दें कि रामपुर हाट से ही मां तारपीठ के दर्शन के लिए भी लोग जाते है।
इसके अतिरिक्त यह सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। दुमका रामपुर हाट मार्ग पर एन.एच. 114 पर भव्य गेट लगा है जहां एनएच को छोड़ करीब 5 कि.मी. की दूरी तय करनी है। यह रास्ता सीधे मन्दिरों के ऐतिहासिक गांव मलुटी तक जाता है।
किसने और क्यों बनवाये एक गांव में इतने मन्दिर
मन्दिरों के गांव मलूटी को गुप्त काशी की भी कहा जाता है। काशी की तरह यहां भी चारो तरफ बस मन्दिर ही मन्दिर है। जानकारों का मानना है कि इन मन्दिरों का निर्माण यहां के राजा बाज बसंत राय द्वारा कराया गया है। चुँकि राजा बहुत धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे तो वे अपने लिए महल बनवाने के बजाये गांव में 108 मन्दिरों का निर्माण कराया और अपने सभी इष्ट देवी देवताओं का आह्वान करने के लिए उन्हे स्थापित किया। 17 वीं शताब्दी के आसपास बनी इन मन्दिरों में सर्वाधिक भगवान शिव के मन्दिर हैं। जबकि माता पार्वती, भगवान विष्णु व मां काली की भी यहां मन्दिर स्थित है।इसके अतिरिक्त इन मन्दिरों से अलग यहां पर माता मौलिक्षा का भी एक भव्य और बृहद मन्दिर है। वर्तमान समय में यहां 72 मन्दिर ही दिखते है। शेष मन्दिर अति प्राचीन होने के नाते ध्वस्त हो चुके है।
विश्व हेरिटेज बनाने की चल रही है कवायद
झारखंड के ऐतिहासिक गांव मलुटी को विश्व के मानचित्र पर उकेरने के लिए झारंखड के पर्यटन विभाग के साथ साथ केन्द्र सरकार ने भी पहल शुरु कर दी है। यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज (विश्व धरोहर) की सूची में लाने के लिए लागातार प्रयास किये जा रहे है। सरकार ने इसके लिए दुमका जिला प्रशासन को वहां की व्यवस्था के बेहतरी के लिए भी फरमान जारी किया है।
प्रमुख धार्मिक पर्यटन सर्किल के रुप विकसित हो रहा
देवघर, बासुकीनाथ, तारापीठ बाया मलुटी का पर्यटन
सावन का पवित्र महीना शुरु होने वाला है देशभर से लोग बडी संख्या में बाबा बैजनाथ के जलाभिषेक के लिए झारखंड के देवघर पहुंचते है।देवघर में जलाभिषेक के बाद लोग बासुकीनाथ में भी जलाभिषेक करते है। इसके बाद बडी संख्या में लोग पश्चिम बंगाल की प्रमुख देवी मन्दिर मां तारा के दर्शन के लिए तारापीठ भी जाते है।ऐसे पर्यटनों को तारापीठ और देवघर के बीच स्थित मां मौलीक्षा के दर्शन और मन्दिरों के गांव मलूटी में पर्यटन को बढावा देने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। झारखंड पर्यटन विभाग और दुमका जिला प्रशासन बासुकीनाथ में मलूटी के प्रचार प्रसार तेज कर दिया है। इसके साथ बासुकीनाथ तारापीठ मार्ग पर भी जगह जगह मलूटी के अतीत को रेखांकित कर पर्यटकों को आकर्षित करने का भरसक प्रयास कर रहा है जिसके चलते बडी संख्या में लोग मन्दिरों के गांव मलूटी को देखने पहँच रहे है।
रवि सिंह "प्रताप"