सुनहरी शाम और हम पांच यार निकले जैसे पांडवों का वनवास ले चल साथ सभी के दिल और मन का सैलाब।
-सारथी पार्थ थे साथ
जाना कहां?
हमारे सारथी कहाँ ले चले , था मन में एक अजीब सवाल हो जैसे बचपन में पानी के बुलबुले बना ने का गहरा राज।
- हम पांच और एक यान(car) निकले वैसे के न सुनले किसी के कान
- निकल पड़े बिना कोई काउंट जिसे लोग कहे माउंट(आबू रोड)
-सफर था नज़दीक और मौसम था मस्ताना लिए साथ सभी का याराना
ठहर लिए एक मोड़ सड़क पर लि एक चाय की चूसकी ।आखिर पहुंचे वहाँ , देखा जनों का मेला। ले कर ठहर ने का स्थान(होटल रूम) किया सब्र ढल जाने को एक शाम।
----ट्रेवर टेंक----
रोमांचक सफर में करीबन थी धूप भी हमारे संग,पर पर्यटन की और सब जगहों से ये जगह थी कुछ खास और शांत ।
शुरू हुआ ट्रेवर टेंक का रास्ता वहाँ आप पेदल भी जा सकते हो या आपका यान (car) ले कर भी। रास्ते घने जंगल में गुजर कर दुर्लभ पेड़ो और फूलों को साथ ले चलते है, थोड़ा चल रुकना खाने छांव।
पहुंच कर ऊपर देखा उन तालाब में मगरमच्छ मस्ती में टहल रहे थे।
पर्वत को जेसे बादलों की छांव ने सहारा दिया हो वैसा वो नज़ारा।
मस्त हवाएं वो पेड़ो के पन्नो की सरसराहट और वन्यजीवो की आवाज रूह को सुकून दे रही थी।
साथ में वहां ऊपर एक भाई और उसका छोटा परिवार वहां आए पर्यटकों के लिए चूलें पर बनी चाय और मैगी का लुफ्त बेच रहा था।
बादल के रंग उन गिरगिट के जैसे हो रहे थे। एक दम शांत पानी में रंगबेरंगी वो मछलीयां और हमारी परछाई वहां थम जा ने को कह रही थी।
शाम होने को थी,
उठा सारथी बोले ले चलु तुमको वहां जहाँ मंजिल थी अनजान, कर सब्र तू थोड़ा होगा तेरे अंदर भी भूचाल।
उसी शाम रोज,
शुरू हुआ दूसरा ट्रेक
----Bailey's Walk, Mount Abu, Rajasthan----
(Night Trek)
शाम ढले सब डूबते सूरज को देखने जाते है, सनसेट पॉइंट। हम निकले ऐसे जगह से जहाँ मानो सूरज को आप छू सके,
हम भी निकले उसी शाम देखने डुबता सूरज को वही रास्ते में एक आया मोड़, जहाँ रुक सारथी ने दिखाया दायाँ हाथ। लिखा हुआ था Bailey's Walk,
आगे चले उस ऊँगली के इशारे पर शाम होने को थी सूरज तकरीबन डूब चुका था मानो जैसे हमारे साथ ही सूरज डुबा हो।
किसी जमाने में कोई अंग्रेज़ ने ये राह खोजा था उसके नाम से था Bailey's Walk,
यार
, लिए चार जाम आए हम उस शाम के नाम,
नज़रो ने धोका दिया या कोई सपना मानो जैसे कुदरत का था श्रृंगार,
हाथ दोनो फेंला बाहों में ले लो तारे-आसमान,
था तलवे तले जमाना,उड़ रहा था वो चंदामामा,
एक चट्टान पर जा में बैठा, हुआ नजरकैद वो सारा जहाँ,
रात उसी में हमराही थे हम, फिर भी वह खड़ा अकेला इंसान ,
कुदरत का अयाना था या वो मेरी सख्सियत।
दी थी दस्तक़ ग़ुमराह अरमानो ने जाने कोई जन्नत का था वो पैगाम,
जुगनू जैसे टीम-टीम करते रहे ,हुई रात गहरी कई खुले अनजान नाम और काम,
लगाई नीचे नज़र पाए पैरो के निशान था वो भालू या होगा कोई हम जैसा इंसान।
हर पेड़-पौधे-पत्थर की थी वहाँ एक अलग ही पहचान और आखिर में फेंक आये हम अपने सारे सेलाब लिख आये वहां एक नई दास्तान। -KaRaN