
जम्मू कश्मीर भारत का मुकुट है। इस मुकुट में बहुत खूबसूरत-खूबसूरत नगीने जड़े हैं। इन्हीं में से एक है जम्मू का अखनूर।
कॉलेज के दिनों की बात है, जनवरी की ठंड की एक खुशनुमा धूप वाली सुबह थी और रविवार का दिन था। हमने सोचा ऐसे खूबसूरत मौसम में कहीं चलना चाहिए फिर हम कुछ दोस्तों ने अखनूर जाने की योजना बनाई। कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ घूमने का एक अलग ही मजा होता है, प्लान झट से बन जाता है। सो हमने भी वही किया और अखनूर ज्यादा दूर भी नहीं था हमारे कॉलेज से तो बस निकल पड़े एक दिन की यात्रा पर...
अखनूर जम्मू से 30 किमी. की दूरी पर है। भारत- पाकिस्तान की सीमा पर स्थित चिनाब नदी के किनारे यह हिमालय की तलहटी में बसा एक पौराणिक-ऐतिहासिक स्थल है। ऐसा माना जाता है कि यह महाभारत काल का 'विराट नगर' है, जहाँ पांडवों ने अपने एक वर्ष का अज्ञातवास का समय बिताया था। इसके नाम के पीछे की एक कहानी है कि मुगलकाल में एक बार कश्मीर से लौटते समय मुगल शासक जहांगीर की आँख में इन्फेक्शन हो गया। तब एक संत की सलाह पर वह अखनूर आया और आश्चर्य की बात है कि यहाँ चिनाब से होकर आती ठंडी हवाओं से उसकी आँख ठीक हो गई जिससे उसने खुश होकर इस जगह का नाम रखा "आँखों का नूर" जो बाद में चलकर अखनूर हो गया। वीक डेज पर छुट्टी मनाने की इससे बेहतर जगह नहीं हो सकती।
संत बाबा सुंदर सिंह तपोस्थान गुरुद्वारे की स्थापना उसी जगह हुयी है जहाँ लगभग 118 साल पहले संत बाबा सुंदर सिंह ने तपस्या की थी। सन् 1997 में इस गुरूद्वारे का निर्माण शुरू हुआ। यह गुरूद्वारा चिनाब नदी के किनारे ही है और बहुत ही खूबसूरत लगता है। यह गुरूद्वारा सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है । हमने यहाँ मत्था टेका और लंगर छका।

इस किले को 18वीं शताब्दी में राज तेगसिंह ने बनवाया था।चिनाब नदी के किनारे स्थित ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI) द्वारा संरक्षित है। दोमंजिले इस किले का हड़प्पा कालीन इतिहास भी रहा है। किले का एक रास्ता नदी किनारे भी खुलता है। यह किला अखनूर की शान और पहचान है।

चन्द्रभागा अर्थात् चिनाब के दाहिने किनारे पर स्थित इस घाट का ऐतिहासिक महत्व है। इस घाट का नाम यहाँ पाए जाने वाले जिया पोटा वृक्ष के नाम पर पड़ा है जिसके तले 17 जून 1822 को तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह जी ने अपने एक वीर सैनिक गुलाब सिंह का राजतिलक करके डोगरा राज्य की नींव रखी थी। हांलाकि जिया पोता का वह वृक्ष 1957 की बाढ़ में नष्ट हो गया पर चिनाब की ठंडी हवा और पीछे खड़ा किला उस ऐतिहासिक घटना की गवाही देते प्रतीत होते हैं।
माना जाता है कि इस गुफा में ही रहकर पांडवों ने अपने वनवास के अंतिम साल गुजारे थे। यहीं पांडव कौरवों से छिपकर रहते थे और भगवान कृष्ण बालरूप में उनसे मिलने आते थे जिनके पैरों की छाप आज भी यहाँ एक बड़ी शिला पर अंकित है।यहाँ एक शिवलिंग है जिसको माना जाता है कि पांडवों ने ही स्थापित किया था। ऐसी भी एक कहानी है कि एक बार एक ऋषि यहाँ चिनाब किनारे तप कर रहे थे परंतु चिनाब की तेज लहरों से उनका ध्यान भंग हो रहा था तो क्रोध में उन ऋषि ने अपने चिमटे से चिनाब की लहरों पर प्रहार किया जिससे यहाँ चिनाब नदी आज भी शांत है।

पास में ही अंबारा एक ऐतिहासिक बौद्धिक स्थल है जहाँ पुरातात्विक खुदाई में बहुत सी बौद्धकालीन वस्तुएं मिली हैं जैसे- सोने की टोकरी में बुद्ध, पुराने सिक्के, बर्तन, कुषाणवंशी वस्तुएं, बौद्ध स्तूप आदि जिन्हें वहीं संग्रहालय में रखा गया है। बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा स्वयं यहाँ आ चुके हैं।
शाम होने वाली थी। पूरा दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। जाते जाते कुछ देर हमने चिनाब किनारे बैठने का निश्चय किया। जैसे ही हमने अपने पैर चिनाब के पानी में डाले, पूरा शरीर सिहर उठा। किसी भी हिमालयन नदी का इतना ठंडा पानी और ऊपर से सर्दी का मौसम काफी थे शरीर में कंपकंपी लाने के लिए।
कुछ देर हम यूंही बैठे रहे और फिर हमें चिनाब को देखकर उस प्रेमी जोड़े की याद आयी जिसे दुनिया सोहनी-महिवाल के नाम से जानती है। अखनूर वही जगह है जहाँ इस मरहूम जोड़े की यादगार प्रेम कहानी का अंत इसी चिनाब ने कर दिया पर आज भी ऐसा लगता है जैसे मानो चिनाब की लहरों के साथ-साथ इस प्रेम की अमरगाथा का संगीत कानों में प्रेमरस घोल रहा हो ।
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