जब इंसान थोड़ा सा अकेला हो जाता है तो वो दो में से एक काम करता है। या तो शादी कर लेता है या फिर किताबें उसकी बहुत अच्छी दोस्त बन जाती हैं। घूमना और किताब पढ़ना लगभग एक ही बात है। दोनों ही जगह आप एक यात्रा में होते हैं।
घूमना हर बार सबको मयस्सर नहीं, लेकिन किताबें हों तो हर दिन आप एक नई यात्रा पर हो सकते हैं। हमारे कुछ साथी दोस्त हैं, जिन्होंने अपने ट्रैवलिंग अनुभवों को क़िताब की शक्ल दे दी। अगर ये किताबें हों तो आप उस जगह पर जाए बिना भी ठीक-ठाक अनुभव जुटा सकते हैं।
1. इश्क़ में शहर होना- रवीश कुमार
रवीश के अन्दर का पत्रकार यहाँ लाल माइक लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर रहा। यहाँ रवीश एक आशिक़ है, जो दिल्ली में प्यार की दस्तक दे रहा है। बारिश के समय फ़्लाईओवर के नीचे खड़े जोड़े को दुनिया कैसे देखती है, उस हर एक लम्हात का ज़िक्र कितने बेहतरीन ढंग से करते हैं, पढ़कर दिल खुश हो जाता है। और ऐसे ढेरों छोटे क़िस्से जो आप सुनना चाहते होंगे, लप्रेक अर्थात् लघु प्रेम कथा बनाकर परोसे गए हैं। मेरे जैसे 22 साल के लड़के ने तो रात भर में किताब ख़त्म कर दी थी।
प्रेमिका का हाथ पकड़ने के लिए मौक़ा खोज रहा है एक आशिक़ जिसमें प्रेमिका की सहमति भी है, लेकिन शहर की आँखें इजाज़त नहीं दे रहीं। वो शहर घूम रहा है लेकिन गाँव को भूला नहीं है। अगर दिल्ली को देखना है तो रवीश की नज़र से देखिए।
लप्रेकों को कूची से सहेजने का उम्दा काम करते हैं चित्रकार विक्रम नायक। इसलिए ये किताब एक फ़िल्म की शक्ल में बाहर आती है। रवीश का लेखन बहुत पढ़ा जाता है, आपको भी ये किताब एक आशिक़ की नज़र से पढ़नी चाहिए।
2. एवरेस्ट की बेटी- अरुणिमा सिन्हा
यह अरुणिमा सिन्हा की अंग्रेज़ी किताब 'बॉर्न अगेन ऑन द माउंटेन' का हिन्दी अनुवाद है। एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी, जिसके पाँव ट्रेन दुर्घटना में कट चुके हैं, किसी तरह से अस्पताल पहुँचाई गई है और अब उसके अन्दर का एथलीट बोल रहा है माउंट एवरेस्ट चढ़ने को। किस तरह से वह माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करती हैं अरुणिमा, पढ़कर आपको इतना अन्दर तक प्रेरित करेगा कि गड़े मुर्दे तक जाग उठें।
हर पन्ने में अरुणिमा की मेहनत, लगन और पागलपन दिखाई देता है। हर स्तर पर लोग अरुणिमा को पागल बोलते हैं और उसके जज़्बे की तारीफ़ भी करते हैं। एवरेस्ट की चढ़ाई पर शेरपा से उनकी झड़प भी पढ़ने लायक है जब शेरपा के विरोध में जाकर अरुणिमा सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचकर मज़े कर रही होती हैं।
ज़िन्दगी धोख़ा देने वाली लगती है तो अरुणिमा की इस किताब को अपना दोस्त बना लीजिए। डर छूमंतर हो जाएगा और इस लड़की का हैरतअंगेज़ अंदाज़ देखना है तो ज़रूर पढ़ना चाहिए।
3. बहुत दूर कितना दूर होता है- मानव कॉल
मानव कौल, राइटर आदमी हैं। एक बड़ा थियेटर आर्टिस्ट, जिसके नाटक पृथ्वी थियेटर में सालों से हो रहे हैं। थियेटर करना दिल का काम है। यूरोप के अपने यात्रा वृतांत को लिखते वक़्त मानव ने दिल निचोड़ कर रख दिया है। एक बहुत सहज लेखक, जो न तो कहीं कठिन भाषा इस्तेमाल करता है और न ही सड़कछाप। पूरी ईमानदारी से किसी जगह को लिख देता है जो कहानी की शक्ल में निकल कर आती है।
आप अपने भीतर भी एक यात्रा से गुज़र रहे होते हैं। मानव बाहर और भीतर, दोनों ही संवादों को बख़ूबी पन्ने पर उतारते हैं। वो संवाद आपके साथ इतना जुड़े महसूस होते हैं कि ये आपको अपनी ही कहानी लगने लगती है। आप जो कहना चाहते थे उनको मानव ने किताब में लिख दिया है। कहना चाहिए ये किताब है तो आपकी, बस इसे लिखा मानव ने है।
4. इनरलाइन पास- उमेश पंत
यह किताब 2016 में आई थी। ट्रैवल किताबों में बेस्टसेलर। उमेश पन्त ने 200 कि.मी. की कैलाश यात्रा को 18 दिनों में पूरा किया और उसे क़िताब की शक्ल में ढाल दिया।
जो हो रहा है, वो किताब का पन्ना बनता जा रहा है। लेखक महज़ उसके पन्ने व्यवस्थित कर रहा है। उमेश कहते कहते आपके अन्दर इतना विश्वास पैदा कर लेते हैं कि वे किसी पन्ने पर लिख दें कि, 'मैं मर कर फिर से ज़िन्दा हो गया।' तो आप उनकी इस बात पर भी यकीन कर लेंगे।
उनके वन लाइनर बेहतरीन हैं। उनमें केवल एक यात्री नहीं है, एक प्रेमी भी है। मसलन, "घुमक्कड़ी किसी ऐसे प्रेमी से मन भर मिल आना है जो आपका कभी नहीं हो सकता।"
वे देसी घुमक्कड़ हैं। किसी जगह के सांस्कृतिक, राजनीतिक, सभी परिवेशों को समझते हुए वे पन्नों में समेटते हैं। अगर आपको भी घर बैठे कैलाश की यात्रा करनी है तो उमेश की इनरलाइन पास पलट लीजिए।
5. आज़ादी मेरा ब्रांड
इसको लिखा है अनुराधा बेनीवाल ने। हरियाणवी छोरी हैं और अपनी यूरोप यात्रा के क़िस्से सुना रही हैं । स्वानंद किरकिरे इन्हें भारतीय फ़कीरन कहते हैं जो पीठ पर सामान लादे, शॉर्ट्स पहने यूरोप घूम रही है। लेकिन उसका दिल बिल्कुल देसी है। क़िस्सागोई कुछ इस तरह की गई है जैसे वो हिसार से रोहतक घुमक्कड़ी कर रहीं हो।
विदेश में लड़कियाँ कपड़ों की, ज़िन्दगी जीने की आज़ादी देखकर अपने समाज का गुस्सा काग़ज़ पर भी उतारती हैं, लेकिन अनुराधा की लिखाई में ये कहीं नहीं दिखाई देता। वो एक चतुर लेखिका हैं, गुस्सैल हैं पर उद्दंड नहीं। आप ऑनलाइन भी अनुराधा की ये किताब पढ़ सकते हैं।