बात 2018 की हैं, समझ नहीं आ रहा क्या टाइटल दूं। आप सब में से काफी के साथ कभी न कभी ऐसा हुआ भी होगा कि केवल कुछ सेकंड या किस्मत का फेर रहा होगा और आप बहुत बड़ी दुर्घटना से बच गए होंगे।
मुझे मेरे दोस्त का कॉल आया कि हम दोनो को कुछ 20 किमी दूर के गांव में उसके लिए लड़की देखने जाना हैं।उसके घर वालों ने उसे कहा कि पहले तुम दोनों देख आओ,अगर बात बैठी तो फिर परिवार वाले आपस में आ जाकर बात करेंगे। उसी मित्र के कुछ ही दिनों पहले नई dzire कार खरीदी थी। उस मित्र को गाड़ी चलानी आती नहीं थी , तो नई गाड़ी को मुझे ही चलाना था।
हम भीलवाड़ा से निकले ,आधे घंटे में लड़की के परिवार पहुंचे,एक घंटा उस परिवार के साथ हम रहे। फिर वहां से फ्री होते ही हमने सोचा कि इतना जल्दी भीलवाड़ा वापस जाकर क्या करेंगे।मौसम अच्छा था और गाने भी तो प्लान हुआ कि थोड़ा और आगे कुछ किलोमीटर चला जाए ऐसे ही बस गाने गाते गाते।
कुछ किलोमीटर छोड़ो ,हम दोनों पहुंच गए भीलवाड़ा से 90 किमी दूर "नाथद्वारा"। मेरा तो यहां पगफेरा होता रहता हैं लेकिन वो यहां कम आता था,तो उसने कहा कि आज श्रीनाथ जी के दर्शन करेंगे और नाथद्वारा की गलियों में पोदीने की चाय पियेंगे, रबड़ी खाएंगे।
नाथद्वारा पहुंचने से कुछ किमोमीटर दूर से ही विश्व की सबसे बड़ी शिव मूर्ति दिखने लग गई थी ,उसका उस समय काम चल रहा था (काम अभी भी चल रहा हैं), मूर्ति भगवान शंकर का रूप तो ले चुकी थी। हमने सोचा पहले इस मूर्ति के नजदीक पहुंचा जाए और यहां पर साइट से इसकी कुछ जानकारी ली जाएं।तो श्रीनाथ मंदिर ना रुक कर , हम दोनों मूर्ति के पास ऑफ रोड से गाड़ी ले गए। हम दोनों इंजीनियर थे,तो वहां के इंजीनियर से दोस्ती करके काफी कुछ जानकारी ली।कुछ फोटोज़ क्लिक किए। वही हमे पता लगा कि मूर्ति के पास से ही एक बड़ा रास्ता सीधा श्रीनाथ जी मन्दिर जाता हैं। हम गाड़ी मूर्ति के पास खड़ी कर,मंदिर पैदल भी पहुंच सकते थे।लेकिन धूप ज्यादा होने से हम इस नए रास्ते पर गाड़ी नीचे मंदिर की पार्किंग की तरफ ले गए।
पार्किंग से मेरा मतलब,यहां चौड़ी रोड के दोनों तरफ की साइड से हैं। हमे मंदिर की ओर जाती हुई ढलान वाली चौड़ी रोड पर ही साइड में गाड़ी खड़ी करनी थी। दो लेन की सड़क थी बीच में डिवाइडर था।उपर ढलान से मंदिर की ओर आने वाली लेन पर करीब 30 से 40 गाड़िया लगी हुई थी। गुजराती श्रद्धालु यहां काफी आते हैं। कई महंगी नई नई गाड़ियां लगी हुई थी जिन्हे ड्राइव करके कम्पनी से सीधा यहीं भगवान के दर लाया गया। मैने हमारी गाड़ी भी उन्ही के बीच लगानी चाही लेकिन अचानक मुझे क्या हुआ कि मैंने गाड़ी को डिवाइडर के दुसरी ओर वाली लेन में ले ली और वही एक पेड़ के नीचे खड़ी कर दी। हमारी गाड़ी यहां अकेली पड़ी रही और उसी के सामने दूसरी लेन में 25 से 30 गाड़ियां पड़ी रही।
हम दोनों पैदल वहां से मंदिर गए,दर्शन किए ,खाया पिया। डेढ़ घंटे हमको लगे वापस गाड़ी की ओर आने में।
जैसे ही हम गाड़ी की तरफ आए, चूकि सड़क उपर ढलान से नीचे की ओर थी।हमे ऊपर की तरफ काफी भीड़ , अफरा तफरी दिखी,कुछ पुलिस की गाड़ियां और बड़ा ट्रक जो कि कुछ भारी सामानों से हद से ज्यादा भरा नजर आ रहा था। हमने सोचा कोई झगड़ा वगेरह हो रहा हैं ऊपर।नीचे किसी से पूछा कि पार्किंग के पास क्या हुआ हैं, जेसे ही जवाब सुना , सारी स्माइल,खाना पीना सब छूट गया, पैरों तले जमीन खिसक गई, मेरे दोस्त के तो हाथ पैर धुजने लगे,पसीना बहने लगा। दोनों सब कुछ छोड़ कर पार्किंग की तरफ भागे।
सड़क पर खून बिखरा हुआ था। महिलाए,बच्चे ,आदमी सब चिल्ला चिल्ला कर रो रहे थे। 5-7 गाड़ियां पिचकी हुई पड़ी थी, अन्य गाड़िया कोई आगे से खत्म थी तो कोई पास की चट्टानों से टकरा कर क्षत विक्षत हुई पड़ी थी। पता लगा कि वो ओवरलोडेड ट्रक जो हमे दिख रहा था,उसका ब्रेक फैल हुआ और वो इस ढलान से सीधा बैलेंस बिगड़े नीचे आगया। रास्ते में जो था , सब खत्म करता करता। पुलिस वाले सभी गाड़ियों के नंबर , मालिक की जानकारी एक पेज में नोट कर रहे थे। लोग अपनी गाड़िया देख देख कर सड़क पर बैठ कर रो रहे थे। एक छोटी बच्ची भी उस ट्रक के चपेट में आ गईं थी और उसकी मौके पर ही मौत हो गईं थी।
#traveltalesbyrishabh
हमने हमारी गाड़ी देखी,एक दम अकेले पेड़ के नीचे चमक रही थी। हमे फिर भी यकीन नहीं हुआ,हमने गाड़ी को चारो तरफ से ढंग से देखा और देखते ही बिना एक पल गवाए ,गाड़ी स्टार्ट की। कई लोग हमारी गाड़ी को देख रहे थे, और इसके बारे में बात कर रहे थे। हम डर तो इतना गए थे कि हमे लगा कि आज यह भीड़ हमारी गाड़ी की बारा ना बजा दे कही , क्योंकि यह एक अकेली ही उस जगह से एकदम सुरक्षित वापस जा रही थी। हम तो भागे और सीधा 25 किमी दूर जा कर रुके और तब जाकर तस्सली हुई कि गाड़ी एकदम ठीक हैं,हमने उस अंजानी शक्ति को धन्यवाद दिया जिसने कि मुझे गाड़ी दूसरी ओर लगाने की बात मन में भेजी।
- ऋषभ भरावा