क्या आप लोगो को जलियांवाला बाग के इतिहास के बारे में पता है यह जगह स्वर्ण मंदिर से 2 मिनट पैदल दूरी पर है |
हर कोई यात्री जो अमृतसर घूमने आता है वो गोल्डन टैंपल के बाद इस जगह के दर्शन करने जरूर आता है यहां पे हज़ारों लोगों ने अपने देश की आज़ादी के लिए अपनी जान दी |
जलिआंवाला बाग़ हमारे देश की मिटटी और आज़ादी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वालों हज़ारों शहीदों की यादगार है |
जलिआंवाला बाग़ का इतिहास
जलिआंवाला बाग में कत्लेआम की घटना 13 अप्रैल, 1919 को हुई थी।
जलिआंवाला बाग को अमृतसर कांड के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन जनरल डायर को इस जगह जो के एक बग़ीचा था में मौजूद भारतीय प्रदर्शनकारियों को गोली मारने का आदेश दिया गया था।
जलियांवाला बाग में भारतीय लोग रोलोट एक्ट के खिलाफ शंतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। सभी लीडर अपने भाषण कर रहे थे और बहुत से लोग उनको सुनने के लिए आये हुए थे |
बाग ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था और यह एक साधारण बगीचा था जिसमें आने जाने के लिए सिर्फ एक छोटा रस्ता था यहां से आज आप इसमें ैन्ट्री करते हो, अंग्रेज़ों के लिए इसमें प्रवेश करने का यह एक अच्छा तरीका था।
जिस दिन यह घटना घटी उस दिन बैसाखी का दिन था। जनरल डाइर ने अचानक अपनी फ़ोर्स के साथ आकर निहथे लोगों पर गोलियन चलनी शुरू कर दीं |
जलियांवाले बाग में लगभग 1000 लोग मारे गए थे।
इस बाग में एक कुआं था जिसमें लोग अपनी जान बचाने के लिए उसमें कूदे थे। इस कुएं को शहीदी कुँए के नाम से भी जाना जाता है।
इस कुएं से 120 शव मिले थे। मृतकों में महिलाएं और बच्चे भी थे। कहा जाता है कि कुआं लाशों से भर गया था।
इस गार्डन की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि बाग में करीब 1650 गोलियां चली थीं। जलियांवाले बाग में उस दिन 10 मिनट तक लगातार गोलाबारी होती रही।
इस कत्लेआमके बाद पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया, जिससे घायल अस्पताल नहीं पहुंच सके|
इस घटना के बाद जनरल डायर को उसके पद से निलंबित कर दिया गया और वह ब्रिटेन लौट आया, जिसके बाद सरदार उधम सिंह ने इक्कीस साल उसका पीछा कीआ और अंत 13 जुलाई 1940 को डायर की हत्या करके जलियांवाला बाग की घटना का बदला लिया।
आज का जलिआंवाला बाग़
जलियांवाला बाग, अमृतसर एक सार्वजनिक स्थान है जिसे राष्ट्रीय महत्व के प्रमुख स्थानों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह स्थान 26000 वर्ग मीटर में फैला हुआ एक शानदार बगीचा है जो प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर मार्ग पर स्थित है। बाग़ के दरवाज़े में एन्ट्री करते ही लेफ्ट साइड शहीद उधम सिंह जी की मूर्ति बनी हुई है जो अपने हाथ में अपने देश की मिट्टी लेकर जनरल डायर को मारकर जलिआंवाला बाग़ के कत्लेआम का बदला लेने की शपथ लेते दिखाई दे रहे हैं |
आगे एक museum बना है जिस में आपको आज़ादी के लिए शहीद हुए लोगो ने क्या क्या दुःख झेले वो सभ दिखाया गया है | इसके आगे बाग़ की दीवारों पर गोलिओं के निशान और यहां दिखाई गई चीज़ें आपको यहां पर इन सभ घटनाओं और खूंखार नरसंहार के होने की सूचना देती हैं। जलिआंवाला बाग़ में वो कुआँ आज भी मौजूद है जिसमें कूदकर औरतों और बच्चों ने अपनी जान दी थी |
बाग़ के बिल्कुल सैंटर में एक बड़ा स्तंभ बना है जो यहां के सभी शहीदों को समर्पित है और यह जलिआंवाला बाग़ की निशानी भी है | इस से आगे वापसी के रास्ते में एक जगह पे शहीदों की याद में अमर ज्योति हमेशा जलती रहती है | जलियांवाला बाग में आप टूर गाइड भी ले सकते हैं जो आपको इस बाग़ के बारे में सारी जानकारी दे सकते हैं |
जलियांवाला बाग देखने के लिए आपको कितना समय चाहिए?
जलियांवाला बाग घूमने में एक घंटे से ज्यादा नहीं लगता है लेकिन आप शहर की भाग-दौड़ से दूर बगीचे में भी एक या दो घंटे बिता सकते हैंऔर हमारे शहीदों को नमन कर सकते हैं। फिर आप शाम को लाइट एंड साउंड शो के लिए एक और घंटा लगा सकते हैं।
जलियांवाला बाग में प्रवेश शुल्क
जलियांवाला बाग में आने के लिए कोई शुल्क नहीं है
आने का सही समय
यहां यात्रा करने का सबसे अच्छा समय शाम 6:30 बजे से पहले है, आदर्श रूप से लगभग शाम 6 बजे, आप दिन में भी आ सकते हैं इंडोर meuseum देख सकते हैं लेजिन शाम का समय सबसे अच्छा रहता है |
शाम 7 बजे से 7.30 बजे तक लाइट एंड साउंड शो जरूर देखें
शो में पूरे इतिहास को संक्षिप्त तरीके से और प्रेरणादायक तरीके से इतना बढ़िया दिखाया जाता है के आपमें से कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो सकते हैं।
शो देखने के बाद आपके दिल से यही आवाज़ आएगी के उन सभी शहीदों को सलाम जिन्होंने हमारे लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।