जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस बार जुलाई और अगस्त माह में बहुत ज्यादा बारिश होने से काफ़ी जगहों में भारी तबाही हुई थीं। कहीं बादल फटने से तो कहीं बाढ़ आने से कई टूरिस्ट प्लेस तो काफ़ी तबाह हो गए हैं। पर ट्रैवल लवर को इन चीजों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आप ऐसा सोच रहे होगें हम ऐसा क्यों बोल रहें, ऐसा हम इसलिए बोल रहें हैं क्योंकि विपदा आना तो प्राकृतिक देन हैं और इससे हमारा समय चक्र नहीं रुकता। आज मैं आपको अपने अगस्त महीने की एक ऐसे यात्रा की कहानी बताने जा रहा हूं, जिसे मैं कभी नही भूल पाऊंगा।
मेरा नाम विशाल हैं और ट्रैवल करने का मेरा जुनून मुझे भारत के कहीं जगहों की सैर करा चुका हैं। 8 अगस्त को जालंधर में भारी बारिश का दौर चल ही रहा था, जब मैं और वालिया जी बैठ कर बातें करते हुए अपने घूमने के विचार का आदान प्रदान कर रहें थे। बातों बातों में हमने बोला मानसून में ट्रैकिंग करने का मज़ा ही कुछ और होता हैं। एक पहाड़ी व्यक्ति होने से वालिया जी ने मुझे बताया की मानसून में ट्रैकिंग करने पर जहां हमें प्राकृतिक का सबसे सुंदर पहलू देखने को मिलता हैं, वहीं दूसरी ओर इसमें काफ़ी रिस्क भी होता हैं। तो हमनें न्यूज में हिमाचल प्रदेश में बारिश से हुए तबाही के बारे में भी कुछ चर्चा किए और यह निर्णय लिया की इस मानसून हम वहां घूमने तो नहीं ही जा सकते। चर्चा का दौर गरम ही चल रहा था की बीच में रंजन भाई की एंट्री होती हैं, यह बोलते हुए की कहीं घूमने का प्लान बनाओ हमारी छुट्टियां व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। हम तीनों चर्चा कर ही रहें थे कि अचानक से मेरे दिमाग़ में बात आई की क्यों ना हम वैष्णो देवी चले ट्रैकिंग का ट्रैकिंग भी हो जायेगा और हम दर्शन भी कर लेंगे।
तो फिर क्या था, रात को हमनें प्लान किया और एक और मित्र को हमनें अपने प्लान के बारे में बताया। पाठक ने भी घूमने के लिए हामी भरी और हम निकल गए माता जी का जयकारा करते हुए जालंधर से।
जालंधर से निकलते वक्त ही बारिश बहुत तेज़ हो रही थी, हम ने कंपनी की बुलोरो मंगवाई और बस स्टॉप तक जैसे तैसे पहुंचे। जालंधर से हमनें ट्रेन ना ले कर के बस का सफ़र किया, ताकि हमें सुन्दर नजारे देखने को मिले। जैसे ही हम पठानकोट पहुचे वहां का मौसम बहुत ही सुहान था। बारिश की एक बूंद भी नही हो रही थी वहां, जिसे देख कर हम सब खुश हों गए। करीबन 5 घण्टे के सफ़र के बाद हम कटरा पहुंचे वो भी शाम 7 बजे। वहां पहुंचते ही हमनें सोचा कुछ टाइम आराम करते हैं और स्वादिष्ट भोजन का लुप्त उठाते हैं।
खाना खाने और आराम करने के बाद हम ने अपना एंट्री कार्ड बनवाया और निकल गए माता जी के पास। आपको बता दूं, जिस जोश और उलास के साथ हम ने चलना शुरु किया था, उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि हम 4-5 घंटों में ही वहां पहुंच जाएंगे। पर कहते हैं जैसा आप सोचते हो वैसे हर बार हो जाए ऐसा जरूरी नहीं।
इस ट्रैकिंग में हम से कुछ गलतियां हुई जैसे हम ने नए रास्ते से ना जा कर पुराने रास्ते से जानें का फैसला लिया। जिससे हमें बहुत से दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जैसे कि पुराने रास्तों पे आपको बहुत से खच्चर रास्ते में मिलेंगे, रास्तों में थोड़ी गंदगी भी मिलेगी और इस रास्ते में आपको भीड़ भी बहुत मिलेगा। जो कि आपकी एनर्जी को कम करती हैं। एक तो वैष्णो देवी का ट्रैक बाकी ट्रैकों के मुकाबले बहुत कठिन हैं। क़रीब 14 किलामीटर के इस ट्रैक को हमनें बिना रुके करने का फैसला लिया जिस कारण हमें बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अगर आप वैष्णो देवी के ट्रैक पे जा रहें हैं तो हमारी वाली गलती करने से खुद को जरूर बचाएं और ट्रैक को आराम से करने का फैसला लें।
अर्धकुमारी तक नॉन स्टॉप पहुंचने के बाद हमनें पेट पूजा किया और निकल गए आगे की यात्रा के लिए। करीब रात 3 बजे हम मंदिर तक पहुंचे और दर्शन किया। इतनी थकान होने के बाद भी जब हमनें माता जी से आशीर्वाद लिया तो हमारे सारे थकान वही दूर हों गए।
दर्शन करने के बाद हमनें भैरों बाबा के लिए चढ़ाई चालू की। और करीब 4 बजे तक उनके दर्शन करते ही हम वहा से नीचे अपने रूम के लिए रवाना हुए। मौसम बहुत सुहाना हो गया था और बारिश वाला भी। एक जगह रुक कर हमने चाय पिया और मौसम का लुप्त उठाया। थकावट की वजह से हमें रुझान आने शुरू हो गए और हम दो टुकड़ों में कब बट गए हमें पता भी नही चला।
हम नीचे उतर ही रहें थे की अचानक से बारिश शुरू हो गई। जिस वजह से हमनें एक दुकान में शरण ली। थकान की वजह से कब हमारी आंखे वहां लग गई हमे पता तक नहीं चला। जब आंखे खुली तो भी बारिश हो ही रही थी। करीब दिन के एक बज रहें थे फिर हम ने रेनकोट खरीदा और अपने पैरो में मूव लगाया और बारिश में ही अपना आगे का रास्ता खतम किया। बारिश में चलना और भी कठिन होता हैं, ये बात मुझे उस दिन पता चली। पिछले से पानी का प्रेशर और आगे ढलान पर वो कहते हैं ना जब मां का हाथ सर पर हो तो सब कुछ आसान हो जाता हैं। हम लोगों ने एक दूसरे का हौसला बढ़ाया और नीचे उतरे।
रूम आते ही हम ने कुछ नहीं देखा और सीधे अपने बेड पे जा के सो गए। पूरी शाम और पूरी रात सोने के बाद हमने सुबह ट्रेन ली और जालंधर आ गए।
ये सफ़र जितना कठिन था उतना ही रोमांचित भरा भी था। जो भी हमें मजे खूब आए। अगर आप भी वैष्णो देवी जाने का प्लान बना रहे हैं, तो आप एक बार में पूरा ट्रैक ना करे। सफर का मजा ले और कुछ घंटों की नींद भी ले कर आराम आराम से जाए।
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