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भारतीय पुलिस हो या सेना, इन जैसे सतर्क और बेहद संजीदा अमले में अंधविश्वास की कोई जगह नहीं होती। लेकिन ये कहानी है भारतीय सेना के विश्वास की, जो वास्तविक होकर भी अविश्वसनीय है। यह सच्ची कहानी है एक भारतीय सैनिक के बने अद्भुत मन्दिर की, जहांँ चीनी सेना आज भी अपना झुकाती है सर।
मृत्यु स्थान: नाथूला दर्रा, सिक्किम
जन्म भूमि: कपूरथला, पंजाब
जन्म: 3 अगस्त, 1941
एक सैनिक है, जो मरणोपरांत भी अपना काम पूरी मुस्तैदी और निष्ठा से कर रहा है। मरने के बाद भी वो सेना में कार्यरत है और उसकी पदोन्नति भी होती है। हैरान करने वाली ये दास्तान है बाबा हरभजन सिंह की। 30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथी सैनिक के सपने में आकर अपने शरीर के बारे में जानकारी दी। खोजबीन करने पर तीन दिन बाद भारतीय सेना को बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी जगह मिल गया।
कहा जाता है कि सपने में ही उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि उनकी समाधि बनाई जाये। उनकी इच्छा का मान रखते हुए उनकी एक समाधि भी बनवाई गई। लोगों में इस जगह को लेकर बहुत आस्था थी लिहाजा श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया था , जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है। हर साल हजारों लोग यहांँ दर्शन करने आते हैं। उनकी समाधि के बारे में मान्यता है कि यहाँ पानी की बोतल कुछ दिन रखने पर उसमें चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते हैं।
कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथु ला के आस-पास चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते रहे, जो हमेशा सच साबित होती थीं। और इसी तथ्य के आधार पर उनको मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा में रखा गया। उनकी मौत को 48 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है। बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है।
बाबा के मंदिर में बाबा के जूते और बाकी सामान रखा गया है। भारतीय सेना के जवान बाबा के मंदिर की चौकीदारी करते हैं। और रोजाना उनके जूते पॉलिश करते हैं, उनकी वर्दी साफ करते हैं, और उनका बिस्तर भी लगाते हैं। वहांँ तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है और उनके बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं। बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें भारत ही नहीं चीन की सेना भी बताती है। चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात में गश्त लगाने की पुष्टि की है। भारत और चीन आज भी बाबा हरभजन के होने पर यकीन करते हैं। और इसीलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है।
सारे भारतीय सैनिकों की तरह बाबा हरभजन को भी हर महीने वेतन दिया जाता है। सेना के पेरोल में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है। सेना के नियमों के अनुसार ही उनकी पदोन्नति भी होती है। अब बाबा सिपाही से कैप्टन के पद पर आ चुके हैं। हर साल उन्हें 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दो महीने की छुट्टी दी जाती थीं और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते हैं। वहाँ से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता है। गाड़ी में नाम का टिकट भी बुक किया जाता है । यहाँ से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गाँव तक छोडऩे जाती है। वहाँ सब कुछ उनके मां को सौंपा जाता फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था और सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल वापस लाया जाता। लेकिन कुछ साल पहले इस आस्था को अंधविश्वास कहा जाने लगा, तब से यह यात्रा बंद कर दी गई।
इस तरह की आस्था पर भले ही सवाल उठाए जाएं और अंधविश्वास कहा जाए लेकिन भारतीय सैनिकों का मानना है कि उन्हें यहांँ से शक्ति की अनुभूति होती है।
जेलेप और नाथुला दर्रे के बीच है मंदिर
सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच बना बाबा हरभजन सिंह मंदिर लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
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जय भारत